Transfer Of Property Act में प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं होकर भी संपत्ति ट्रांसफर की जानी

Shadab Salim

21 Jan 2025 9:23 AM IST

  • Transfer Of Property Act में प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं होकर भी संपत्ति ट्रांसफर की जानी

    इस एक्ट की धारा 43 Unauthorized Person द्वारा अंतरण के विषय में उल्लेख कर रही है। इस धारा का अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति का अंतरण उस समय कर देता है जिस समय वह इस प्रकार का अंतरण करने के लिए अधिकृत नहीं है परंतु बाद में वह संपत्ति का अंतरण करने के लिए अधिकृत हो जाता है तब इस अधिनियम के क्या प्रावधान होंगे वे सभी प्रावधान इस धारा में समाहित किए गए हैं।

    यदि अन्तरण विलेख में, जिसे पक्षकारों के बीच तैयार किया गया है और जिसे उनकी मुहर द्वारा सत्यापित किया गया है किसी तथ्य का उल्लेख है और यह तथ्य सुनिश्चित, संक्षिप्त, स्पष्ट तथा अभिव्यक्त है तो उसके विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस सिद्धान्त को विलेख द्वारा विबन्धन का सिद्धान्त कहा जाता है।

    इस सिद्धान्त में शामिल साम्या का सिद्धान्त प्रतिपादित करता है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी हैसियत से अधिक कार्य करने की प्रतिज्ञा करता है तो उसे तब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए बाध्य किया जा सकेगा जब वह अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की सामर्थ्य से युक्त हो जाएगा।

    इस धारा में वर्णित सिद्धान्त वहाँ लागू होता है जहाँ अन्तरक अन्तरण के समय सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए प्राधिकृत नहीं था, पर बाद में अन्तरित करने के लिए सक्षम हो जाता है।

    यह सिद्धान्त निम्नलिखित मामलों में लागू नहीं होगा-

    (क) अनैच्छिक अन्तरण जैसे निष्पादक ऋणदाता की इच्छा से विक्रय।

    (ख) लोकनीति के आधार पर प्रतिषिद्ध अन्तरण।

    (ग) प्रतिफल के बिना अन्तरण।

    इस धारा की मुख्य बातें

    अन्तरक द्वारा कपटपूर्ण अथवा भूलवश व्यपदेशन कि वह कथित सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए प्राधिकृत है

    अन्तरण प्रतिफलार्थ हो

    अन्तरक द्वारा उस सम्पत्ति का पाश्चिक अर्जन

    किसी अन्य अन्तरितों को प्रतिफलार्थ सद्भाव में पूर्ववर्ती अन्तरितों के हितों को सूचना बिना सम्पत्ति अन्तरित न की गयी हो

    यह आवश्यक है कि अन्तरक का आचरण कपटपूर्ण अथवा प्रभावपूर्ण हो इस आचरण द्वारा वह यह जाहिर करे कि उसे सम्पत्ति अन्तरित करने का अधिकार है। यदि ऐसे व्यपदेश के आधार पर वह किसी व्यक्ति को सम्पत्ति अन्तरित करता है तो अन्तरिती को इस सिद्धान्त का लाभ मिलेगा भले ही अन्तरिती भी इस प्रकार की प्रव्यंजना का भागीदार रहा हो। इस सिद्धान्त के लागू होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अन्तरिती के साथ धोखा हुआ हो, क्योंकि इस धारा में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि अन्तरिती ने कपटपूर्ण अथवा भूलवश व्यपदेशन पर कार्य किया हो। अन्तरक द्वारा कपटपूर्ण अथवा भूलवश व्यपदेशन ही इस सिद्धान्त के लागू होने के लिए पर्याप्त है। अन्तरितों द्वारा अन्तरक के व्यपदेशन पर कार्य करना ही पर्याप्त होगा।

    यदि अन्तरिती ने स्वयं सम्पत्ति के बारे में छानबीन की थी और उसने अन्तरक के व्यपदेशन पर विश्वास नहीं किया था तो यह नहीं कहा जा सकेगा कि वह अन्तरक के व्यपदेशन से भ्रमित हुआ था या उसे कोई क्षति पहुंची थी, परिणामस्वरूप इस धारा में उल्लिखित सिद्धान्त का लाभ उसे नहीं मिलेगा

    यदि अन्तरिती इस तथ्य से भिन्न था कि अन्तरक सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए प्राधिकृत नहीं है फिर भी उसने अन्तरक के व्यपदेशन के आधार पर सम्पत्ति को प्राप्त किया तो वह सिद्धान्त का लाभ पाने का अधिकारी नहीं होगा।

    उदाहरण:-

    (1) अ ब और स तीन व्यक्ति एक कम्पनी में बराबर के हिस्सेदार थे। अ तथा ब ने सम्पूर्ण सम्पत्ति द को इस प्रकार पट्टे पर दिया जैसे स का उस सम्पत्ति में कोई हिस्सा हो न हो। कुछ समय पश्चात् उसकी (स) मृत्यु हो गयी और मृत्यु से पूर्व उसने अपना हिस्सा अ तथा ब को दे दिया। द, स के हिस्से को पाने का हकदार होगा।

    (2) अ ने अपनी पारिवारिक सम्पत्ति का आधा हिस्सा ब को बन्धक कर दिया, जबकि बन्धक के समय उसे सम्पत्ति में केवल एक तिहाई हिस्सा प्राप्त था। कुछ समय पश्चात् उसके पिता की मृत्यु हो गयी और अ आधी सम्पत्ति का स्वामी बन गया। अन्तरण के समय यह तथ्य ब को ज्ञात था। ब केवल एक तिहाई हिस्से का हो अधिकारी होगा। शेष भाग की मांग वह नहीं कर सकेगा

    (3) अ को एक सम्पत्ति में सोरदारी अधिकार प्राप्त था। उसने 28.10.1961 को भूमिधरी अधिकार प्राप्त करने हेतु आवश्यक धनराशि जमा किया और उसी दिन अपना अधिकार "ब' को बेच दिया। भूमिधरी अधिकार प्रदान करने वाला प्रमाण पत्र 30.10.1961 को जारी हुआ अन्तरण की तिथि को 'अ' को भूमिधरी अधिकार नहीं प्राप्त था। 'अ' की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र ने 'ब' के अधिकारों को चुनौती दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्णीत किया कि अन्तरक द्वारा बाद में अर्जित स्वत्व अन्तरिती पाने का अधिकारी है। 'ब' को इस धारा का लाभ मिलेगा।

    (4) 'अ' की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति उसकी तीन पुत्रियों 'क', 'ख' तथा 'ग' को उत्तराधिकार में सीमित हित के साथ प्राप्त हुई। उपभोग की सुविधा की दृष्टि से उन्होंने सम्पत्ति का आपस में बँटवारा कर लिया और प्रत्येक ने एक भाग अपने निजी कब्जे में ले लिया। 'क' ने अपना तथा अपनी दोनों बहिनों का अंश 'ब' के हाथ में बेच दिया। कुछ समय पश्चात् उसकी दोनों बहिनों की मृत्यु हो गयी और उसे उनका भी अंश मिल गया। 'क' को मृत्यु के उपरान्त उसके उत्तरभोगियों ने उसके द्वारा किये गये अन्तरण को इस आधार पर रद्द कराने का प्रयास किया कि 'ख' तथा 'ग' के हिस्सों के अन्तरण हेतु क्रमशः उनकी सम्मति नहीं ली गयी थी। हाईकोर्ट में वे सफल रहे, किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया कि अन्तरिती धारा 43 का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चूँकि 'ख' तथा 'ग' की मृत्यु के पश्चात् मात्र 'क' जीवित थी अतः सम्पूर्ण सम्पत्ति उसकी हो गयी थी। अन्तरण आवश्यकता के आधार पर किया गया था, अतः अन्य बहिनों की सम्मति का प्रश्न उस समय समाप्त हो गया जब 'क' एकमात्र सीमित स्वामी रह गयी। अन्तरिती धारा 43 का लाभ पाने का अधिकारी माना गया है

    (5) 'क' 'ख' का पुत्र जो 'ख' की स्त्रीधन सम्पत्ति को जिसका कि 'ख' स्वामी थी, कपटपूर्ण ढंग से हस्तान्तरित कर देता है। 'क' को 'ख' को स्त्रीधन सम्पत्ति किसी भी रूप में यथा उत्तराधिकार वसीयत उसके जीवनकाल में नहीं प्राप्त होती है। 'क' को मृत्यु के पश्चात् 'ख' की सम्पत्ति 'क' के उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। 'क' के अन्तरिती इस धारा का लाभ उठाकर सम्पत्ति 'क' के उत्तराधिकारियों से नहीं प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रावधान का लाभ अन्तरितों को तभी प्राप्त होगा जब कि सम्पत्ति अन्तरक को अन्तरक के जीवन काल में प्राप्त हो तथा अन्तरण की संविदा अस्तित्व में रहे।

    यदि दोनों पक्षकारों को दोषपूर्ण स्वत्व का ज्ञान था या स्वत्व के अभाव का ज्ञान था तो इस धारा में वर्णित सिद्धान्त लागू नहीं होगा

    एन० वैंकटेशय्या बनाम मुनेम्मा एवं अन्य के प्रकरण में यह विवादित था कि यदि कोई व्यक्ति एक सम्पत्ति को सेवा पुरस्कार (सर्विस ईनाम) के रूप में धारण कर रहा था तथा कालान्तर में यह निर्णय हुआ कि विधि में संशोधन कर उसके इस अधिकार को पूर्ण अधिकार के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए तो क्या निर्धारित तिथि एवं संशोधन के प्रवर्तित होने की तिथि के बीच सर्विस ईनाम धारक द्वारा सम्पत्ति का अन्तरण धारा 43 के प्रावधान से आच्छादित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्णीत किया कि यह अन्तरण धारा 43 से आच्छादित होगा तथा अन्तरितो को इसका लाभ प्राप्त होगा। अन्तरितो अनधिकृत धारक नहीं माना जाएगा और उसके विरुद्ध निष्कासन की कार्यवाही हो सकगी।

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