राजस्थान आबकारी अधिनियम की धारा 40: आबकारी राजस्व की वसूली की प्रक्रिया और डिफॉल्टर की जिम्मेदारी
Himanshu Mishra
20 Jan 2025 6:02 PM IST

आबकारी राजस्व (Excise Revenue) की वसूली राजस्थान आबकारी अधिनियम की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह राज्य सरकार को आबकारी से संबंधित बकाया राशि को कुशलतापूर्वक एकत्रित करने का अधिकार देता है।
अधिनियम की धारा 40 (Section 40) इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाती है। इस लेख में, धारा 40 के प्रावधानों को सरल हिंदी में समझाया गया है ताकि इसे आम लोग भी आसानी से समझ सकें।
आबकारी राजस्व (Excise Revenue) क्या है?
आबकारी राजस्व वह आय है, जो राज्य सरकार को उत्पाद शुल्क (Excise Duty) के माध्यम से प्राप्त होती है। इसमें शराब और अन्य उत्पादों के उत्पादन, बिक्री, और वितरण पर लागू कर शामिल होता है।
इसके अतिरिक्त, इसमें आबकारी से संबंधित अनुबंधों से प्राप्त होने वाली बकाया राशि भी शामिल होती है। धारा 40 यह सुनिश्चित करती है कि ऐसी बकाया राशि को वसूलने के लिए स्पष्ट और प्रभावी प्रक्रिया उपलब्ध हो।
वसूली के तरीके (Modes of Recovery)
धारा 40 के अनुसार, राज्य सरकार बकाया राशि की वसूली के लिए कई तरीके अपना सकती है। यह राशि उस व्यक्ति से वसूली जा सकती है, जो इसके लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है, या उसके गारंटर (Surety) से। वसूली के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं:
1. भूमि राजस्व (Land Revenue) के बकाये की तरह वसूली
आबकारी राजस्व की वसूली भूमि राजस्व के बकाये की तरह की जा सकती है। इसका मतलब है कि जिस प्रक्रिया का उपयोग भूमि राजस्व की बकाया राशि वसूलने में होता है, वही प्रक्रिया आबकारी बकाया राशि पर भी लागू होगी।
2. सार्वजनिक मांग (Public Demands) के कानून के अनुसार वसूली
यदि किसी अन्य कानून में सार्वजनिक मांगों की वसूली के लिए कोई प्रावधान हो, तो उसे भी इस बकाया राशि की वसूली के लिए अपनाया जा सकता है।
डिफॉल्टर (Defaulter) की जिम्मेदारी
यदि कोई व्यक्ति आबकारी राजस्व का भुगतान करने में असफल रहता है, तो आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) या अधिकृत अधिकारी (Empowered Officer) निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:
1. लाइसेंस की व्यवस्था संभालना (Management of Grant)
उस अनुबंध (Grant) को, जिसके लिए लाइसेंस दिया गया था, सीधे राज्य सरकार के नियंत्रण में ले लिया जाता है। यह प्रबंधन डिफॉल्टर के जोखिम (Risk) पर होता है। यदि इस दौरान कोई घाटा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी डिफॉल्टर पर होगी।
2. अनुबंध को जब्त करना और पुनः बिक्री (Forfeiture and Resale)
डिफॉल्टर का अनुबंध जब्त (Forfeit) कर लिया जाता है और इसे किसी अन्य पार्टी को पुनः बेचा (Resale) जाता है। यदि इस पुनः बिक्री से राजस्व में कमी होती है, तो इसका भुगतान डिफॉल्टर को करना होगा।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति का लाइसेंस ₹10 लाख में बेचा गया था और डिफॉल्ट के कारण इसे ₹8 लाख में बेचना पड़ा, तो ₹2 लाख की कमी डिफॉल्टर को भरनी होगी।
तीसरे पक्ष से वसूली (Recovery from Third Parties)
जब अनुबंध को राज्य सरकार के नियंत्रण में ले लिया जाता है, तो आबकारी आयुक्त को यह अधिकार होता है कि वह डिफॉल्टर के किसी भी किरायेदार (Lessee) या असाइन (Assignee) से बकाया राशि वसूल सके।
उदाहरण के लिए, यदि डिफॉल्टर ने लाइसेंस को ₹1 लाख में किसी और को सब-लीज (Sub-Lease) किया है और वह राशि डिफॉल्टर को मिलनी बाकी है, तो सरकार सीधे उस सब-लीसी (Sub-Lessee) से यह राशि वसूल सकती है।
विशेषाधिकार और अन्य प्रावधान (Exclusive Privileges and Additional Provisions)
धारा 40 में एक प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि धारा 14 के तहत दिए गए विशेषाधिकार (Exclusive Privileges) बिना उचित मंजूरी के न तो जब्त किए जाएंगे और न ही पुनः बेचे जाएंगे। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि किसी का विशेषाधिकार बिना किसी ठोस कारण के समाप्त न हो।
एक अन्य प्रावधान के अनुसार, धारा 40 के तहत वसूली योग्य राशि को डिफॉल्टर की संपत्ति पर पहला अधिकार (First Charge) माना जाएगा। इसका मतलब है कि डिफॉल्टर की संपत्ति पर किसी अन्य कर्ज (Debt) या दावा (Claim) की तुलना में राज्य सरकार की बकाया राशि को प्राथमिकता दी जाएगी।
उदाहरण: आबकारी राजस्व भुगतान में डिफॉल्ट
मान लीजिए, श्री शर्मा के पास जयपुर में एक शराब की दुकान चलाने का लाइसेंस है। उन्हें राज्य सरकार को ₹10 लाख का वार्षिक आबकारी शुल्क (Excise Duty) देना है। किसी वित्तीय समस्या के कारण वे यह राशि समय पर जमा नहीं कर पाते। इस स्थिति में, धारा 40 के तहत निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. आबकारी आयुक्त उनकी दुकान को सीधे राज्य सरकार के नियंत्रण में ले लेता है। दुकान का संचालन जारी रहता है, लेकिन इससे होने वाला लाभ सरकार के पास जाएगा। यदि दुकान घाटे में जाती है, तो श्री शर्मा को यह घाटा भरना होगा।
2. यदि प्रबंधन से भी राशि की वसूली संभव नहीं होती, तो लाइसेंस को जब्त कर लिया जाएगा और इसे किसी अन्य व्यक्ति को ₹8 लाख में पुनः बेचा जाएगा। ₹2 लाख का अंतर श्री शर्मा को चुकाना होगा।
3. यदि श्री शर्मा ने दुकान को ₹1 लाख में किसी अन्य को सब-लीज किया है, तो सरकार यह राशि सीधे उस व्यक्ति से वसूल सकती है।
न्यायपूर्ण प्रक्रिया (Fair Procedure)
धारा 40 यह सुनिश्चित करती है कि वसूली प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) और न्याय (Fairness) बनी रहे। विशेषाधिकार को समाप्त करने या पुनः बेचने का कोई भी निर्णय उचित कानूनी प्रक्रिया (Legal Procedure) के तहत ही लिया जा सकता है।
पहला अधिकार (First Charge on Property)
धारा 40 का दूसरा प्रावधान राज्य सरकार को बकाया राशि की वसूली में प्राथमिकता देता है। डिफॉल्टर की संपत्ति पर अन्य कर्जदारों (Creditors) या दावेदारों (Claimants) की तुलना में सरकार का दावा पहले माना जाएगा।
उदाहरण के लिए, यदि डिफॉल्टर ने अपनी संपत्ति बैंक के पास गिरवी रखी है, तो बैंक के दावे से पहले सरकार की बकाया राशि वसूल की जाएगी।
अनुपालन सुनिश्चित करना (Ensuring Compliance)
धारा 40 के कठोर प्रावधान डिफॉल्ट के मामलों को रोकने में मदद करते हैं। वसूली के कई विकल्प और डिफॉल्टर को घाटे के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान समय पर भुगतान को प्रोत्साहित करता है। यह राज्य की वित्तीय स्थिरता (Financial Stability) बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
राजस्थान आबकारी अधिनियम की धारा 40 आबकारी राजस्व की वसूली के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करती है। यह राज्य सरकार को कुशलता और पारदर्शिता के साथ बकाया राशि की वसूली का अधिकार देती है।
डिफॉल्ट के मामलों में यह प्रावधान कई विकल्प उपलब्ध कराता है, जिसमें अनुबंध का प्रबंधन, जब्ती, और पुनः बिक्री शामिल है। यह कानून न केवल अनुपालन सुनिश्चित करता है, बल्कि राज्य के संसाधनों की सुरक्षा भी करता है।