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Right to Information Act में सूचना की प्रक्रिया का अनुपालन
इस एक्ट से जुड़े एक प्रसिद्ध प्रकरण अरविन्द केजरीवाल बनाम सेण्ट्रल पब्लिक इन्फार्मेशन आफिसर, एआईआर 2012 डेलही 291 के प्रकरण में कहा गया है कि इस धारा के अधीन विहित प्रक्रिया का अनुपालन गोपनीय सूचना के मामले में किया जाना चाहिए, जब सूचना पर पक्षकार से सम्बन्धित है या पर पक्षकार द्वारा प्रदान की जाती है।आर० के० जैन बनाम भारत संप, ए आई आर 2013 दिल्ली 24 के मामले में कहा गया है कि सूचना केवल तब प्रदान की जा सकती है, जब मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा आज्ञापक प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् यह राय बनाई गई...
Right to Information Act की सेक्शन 11 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 11 इस प्रकार है-पर व्यक्ति सूचना - (1) जहाँ, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किए गए अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, जो किसी पर व्यक्ति से संबंधित है या उसके द्वारा इसका प्रदाय किया गया है और उस पर व्यक्ति द्वारा उसे गोपनीय माना गया है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध प्राप्त होने से पांच दिन के भीतर, ऐसे पर व्यक्ति को अनुरोध की -...
क्या IBC की धारा 7 के तहत डिफॉल्ट साबित होने के बाद आवेदन खारिज किया जा सकता है?
भूमिका (Introduction): IBC की धारा 7 (Section 7) की व्याख्यासुप्रीम कोर्ट ने एम. सुरेश कुमार रेड्डी बनाम केनरा बैंक एवं अन्य (2023) के फैसले में इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) की धारा 7 की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि कोई फाइनेंशियल डिफॉल्ट (Financial Default) साबित हो जाए, तो नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के पास उस आवेदन को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि IBC एक क्रेडिटर-चालित (Creditor-Driven) कानून...
इंटरनेट कंपनियों की ज़िम्मेदारी और छूट: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79
अध्याय बारह: सीमित उत्तरदायित्व - मध्यस्थ (Intermediary) की भूमिका और छूटइंटरनेट की दुनिया में जब भी हम किसी वेबसाइट पर कुछ पोस्ट करते हैं, किसी वीडियो प्लेटफॉर्म पर वीडियो डालते हैं, या सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, तब उस प्लेटफॉर्म का संचालन करने वाली कंपनी "मध्यस्थ" (Intermediary) की भूमिका निभाती है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 इसी विषय से संबंधित है और बताती है कि किन परिस्थितियों में ये प्लेटफॉर्म, कंपनियां या वेबसाइट्स कानूनी जिम्मेदारी से मुक्त (Exempted from...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएं 529 से 531: अधीनस्थ न्यायालयों पर हाईकोर्ट की निगरानी
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) का अंतिम भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें न्यायालयों की निगरानी, इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की मान्यता और पुराने कानून (दंड प्रक्रिया संहिता, 1973) को निरस्त करने के साथ-साथ संक्रमण संबंधी व्यवस्थाओं को भी विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।इस लेख में हम धारा 529, 530 और 531 का विस्तृत और सरल हिंदी में विश्लेषण करेंगे। ये धाराएं आधुनिक भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की नई दिशा को रेखांकित करती हैं, जो पारंपरिक विधियों...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 211 से 216: संपत्ति विभाजन के विशेष प्रावधान, साझा संरचना और राजस्व वितरण
धारा 211 – एक सह स्वामी के हिस्से में दूसरे द्वारा बनाई गई इमारतों, बागों या बगीचों का न्यायसंगत पुनर्वितरणजब संपत्ति का विभाजन किया जा रहा हो, और किसी सह स्वामी के हिस्से में ऐसी जमीन आ रही हो जिस पर दूसरे सह स्वामी ने अपना आवास, भवन, बगीचे, वृक्षारोपण या अन्य सुधार अपने खर्च पर किया है, तो उस सुधारकर्ता को उस जमीन का अधिकार बना रहने दिया जाएगा। हालाँकि वह जमीन दूसरे सह स्वामी के हिस्से में आती है, लेकिन उसे कुछ स्थायी किराया देना होगा जिसे 'ग्राउंड रेंट' कहते हैं। इसमें कलेक्टर ही तय करेगा कि...
Right to Information Act में जानकारी दिए जाने का टाइम पीरियड
इस एक्ट के अधीन सूचना प्रदान करने के लिए 30 दिनों की समय सीमा की संगणना करने में लोक सूचना अधिकारी द्वारा अतिरिक्त/अग्रिम फीस की मांग करने और आवेदक द्वारा उसके अन्तिम भुगतान के मध्य की अवधि धारा 7 (3) (क) के अनुसार अधिनियम की धारा 7 (1) में नियत 30 दिनों की अवधि की संगणना करने में अपवर्जित की जाती है।आवेदन के निस्तारण की अवधि अधिनियम की धारा 7 या तो सूचना प्रदान करके या निवेदन को नामंजूर करके तीस दिनों के भीतर निवेदन के निस्तारण के लिए प्रावधान करती है। विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचना के लिए...
Right to Information Act में जानकारी नहीं दिए जाने वाले विषय
इस एक्ट में कुछ विषय ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी नहीं दी जाएगी। इस संबंध में धारा 8 है-(1) इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी व्यक्ति को निम्नलिखित सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी:-(क) सूचना, जिसके प्रकटन से भारत को प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या किसी अपराध को करने का उद्दीपन होता हो।(ख) सूचना, जिसके प्रकाशन को किसी कोर्ट या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से निषिद्ध किया गया है या जिसके प्रकटन से कोर्ट...
Right to Information Act में किसी भी व्यक्ति को सूचना प्राप्त करने का अधिकार
इस एक्ट से जुड़े एक मामले दिवाकर एस० नटराजन बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमिश्नर ए आई आर 2009 के मामले में कहा गया है कि सूचना के लिए अनुरोध केवल लोक प्रयोजन के लिए होगा और सूचना प्राप्त करने के लिए अविवेकपूर्ण प्रयास न्यायोचित और उचित नहीं है।आवेदन का कोई विशिष्ट प्ररूप आवश्यक नहीं और सूचना की ईप्सा करने के लिए कोई कारण अपेक्षित नहीं:-सूचना की ईप्सा करने के लिए विशिष्ट प्ररूप को विहित करने के लिए कोई निर्देश आज्ञापक नहीं हो सकता और साधारण आवेदन की अपेक्षा को अभिभावी नहीं कर सकता, जैसा कि इस धारा में...
Right to Information Act में मांगी गई सूचना का निपटारा
इस संबंध में अधिनियम के भीतर धारा 7 है।(1) धारा 5 की उपधारा (2) के परन्तुक या धारा 6 की उपधारा (3) के परन्तुक के अधीन रहते हुए धारा 6 के अधीन अनुरोध के प्राप्त होने पर यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, यथा संभव शीघ्रता से, और किसी भी दशा में अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए या तो सूचना उपलब्ध कराएगा या धारा 8 और धारा 9 में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी कारण से अनुरोध को अस्वीकार करेगा:परन्तु जहाँ मांगी गई जानकारी का...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528: हाईकोर्ट की Inherent Power
यह प्रावधान, धारा 528, अनिवार्य रूप से पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की सुप्रसिद्ध धारा 482 का उत्तराधिकारी है। यह हाई कोर्ट (High Courts) को आपराधिक मामलों में हस्तक्षेप करने की एक विशेष, अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) देता है जब नियमों का कड़ाई से पालन करने से अनुचित परिणाम हो सकता है।"अंतर्निहित शक्ति" क्या है? (What is "Inherent Power"?) कानूनी अर्थों में "अंतर्निहित शक्ति" उस असाधारण अधिकार को संदर्भित करती है जो हाई कोर्ट (High Courts) के पास होता है, इसलिए नहीं कि यह कानून...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएँ 77A, 77B और 78 : अपराधों की जांच का अधिकार
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) भारत में डिजिटल माध्यमों से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख कानून है। इस अधिनियम के तहत, न केवल तकनीकी सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन की वैधता को मान्यता दी गई है, बल्कि इसने डिजिटल अपराधों से निपटने की विधिक प्रक्रिया भी निर्धारित की है। इस लेख में हम विशेष रूप से धाराओं 77A, 77B और 78 को विस्तार से समझेंगे जो दंड प्रक्रिया, अपराधों की प्रकृति तथा जांच से संबंधित हैं।धारा 77A: अपराधों का संधि (Compounding of...
क्या PoSH Act के तहत जांच समितियों को बिना प्रक्रिया अपनाए सजा देने का अधिकार है?
पीड़िता को न्याय देने और आरोपी के अधिकारों के बीच संतुलनसुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले ऑरेलियानो फर्नांडिस बनाम गोवा राज्य (2023) में यह स्पष्ट किया गया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) की शिकायतों की जांच में प्रकृतिक न्याय (Natural Justice) और न्यायिक प्रक्रिया (Procedural Fairness) को अनदेखा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह निर्णय न केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए दिया, बल्कि PoSH कानून के तहत गठित आंतरिक समिति (Internal Complaints Committee – ICC) की...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 204 से 210: विभाजन की प्रक्रिया और ज़मीनों का न्यायसंगत आवंटन
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत भूमि के विभाजन की प्रक्रिया को पूरी तरह व्यवस्थित किया गया है। जहां पहले की धाराओं में यह बताया गया कि विभाजन कैसे किया जा सकता है – आपसी सहमति, मध्यस्थता या कलेक्टर द्वारा – वहीं धाराएं 204 से 210 तक यह बताती हैं कि विभाजन की क्रियात्मक प्रक्रिया किस तरह से की जाएगी, कौन अधिकारी क्या करेगा, अमीन की भूमिका क्या होगी, किस तरह से दावे और आपत्तियां निपटाई जाएंगी, और कैसे ज़मीनों का संतुलित और न्यायसंगत बंटवारा किया जाएगा। यह लेख इन सभी धाराओं की सरल,...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 523 से 526 : हाईकोर्ट द्वारा नियम बनाने की शक्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का अंतिम अध्याय, अध्याय 39 (मिश्र विषय – Miscellaneous), ऐसे विविध और व्यावहारिक विषयों को शामिल करता है जिनका संबंध न्यायिक प्रशासन, नैतिकता, और संस्थागत मर्यादा से है।इस लेख में हम विशेष रूप से धारा 523 से धारा 526 तक का गहराई से सरल हिंदी में अध्ययन करेंगे। ये धाराएँ न्यायालयों के संचालन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और नैतिक शुचिता बनाए रखने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें याचिका लेखक (Petition-writers) के लिए नियम बनाने से लेकर न्यायाधीशों और...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 200 से 203: आपसी सहमति, मध्यस्थता, कलेक्टर द्वारा विभाजन और विभाजन
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 200 से 203 तक की विधिक व्यवस्था भूमि के विभाजन (Partition) की प्रक्रिया को तीन अलग-अलग रूपों में प्रस्तुत करती हैं — पहला, जब पक्षकार आपसी सहमति से विभाजन करते हैं; दूसरा, जब वे मध्यस्थों (Arbitrators) की सहायता लेते हैं; और तीसरा, जब मतभेद या विवाद के कारण कलेक्टर को स्वयं विभाजन करना पड़ता है।साथ ही यह भी बताया गया है कि कलेक्टर द्वारा किए गए विभाजन में खर्च का अनुमान और भुगतान किस प्रकार किया जाएगा। इस लेख में इन चारों धाराओं को आसान हिंदी में,...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 73 से 77: डिजिटल प्रमाणपत्र, धोखाधड़ी, अंतरराष्ट्रीय अपराध और जब्ती
डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर और उससे संबंधित प्रमाणपत्रों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है। किसी व्यक्ति की पहचान, लेनदेन की वैधता और दस्तावेज़ की प्रमाणिकता को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का प्रयोग किया जाता है।परंतु, जब इनका दुरुपयोग किया जाता है या झूठे प्रमाणपत्र प्रकाशित किए जाते हैं, तो इससे न केवल डिजिटल विश्वास पर आघात होता है बल्कि साइबर अपराध को भी बढ़ावा मिलता है। इसलिए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धाराएं 73 से 77 ऐसे ही अपराधों और उनके परिणामों...
क्या सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और समावेशी बनाया जाना चाहिए?
भारत में एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (Advocates Act, 1961) की धारा 16 (Section 16) के अंतर्गत सीनियर एडवोकेट का दर्जा एक विशेष सम्मान (Recognition of Excellence) के रूप में दिया जाता है। यह दर्जा उन वकीलों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने उत्कृष्ट वकालत कौशल (Advocacy Skills), विधिक ज्ञान (Legal Knowledge), और कानून के विकास (Development of Law) में विशेष योगदान दिया हो।लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और पक्षपात के आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सर्वोच्च...
Right to Information Act धारा 6 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 6 सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया बताती है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई आवेदक सूचना प्राप्त कर सकता है। धारा 6 के अनुसार-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन कोई सूचना अभिप्राप्त करना चाहता है, लिखित में या इलेक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या उस क्षेत्र की, जिसमें आवेदन किया जा रहा है, राजभाषा में ऐसी फीस के साथ, जो विहित की जाए(क) संबंधित लोक प्राधिकरण के यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी।(ख) यथास्थिति,...
Right to Information Act में गवर्नमेंट अथॉरिटी की सूचना देने की जिम्मेदारी
इस एक्ट की धारा 4 के अंतर्गत लोक अधिकारी को सूचना दिया जाना आवश्यक बनाया गया है, यह लोक सेवक को आदेशात्माक रूप से जिम्मेदारी के साथ सूचना प्रदान करनी होती है। धारा 4 के अनुसार-(1) प्रत्येक लोक प्राधिकारी(क) अपने सभी अभिलेखों को सम्यक् रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध ऐसी रीति और रूप में रखेगा, जो इस अधिनियम के अधीन सूचना के अधिकार को सुकर बनाता है और सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी अभिलेख, जो कंप्यूटरीकृत किये जाने के लिए समुचित हैं, युक्तियुक्त समय के भीतर और संसाधनों की उपलभ्यता के अधीन रहते...




















