मुफ्त कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 340 और 341
Himanshu Mishra
21 Jan 2025 5:24 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार को मान्यता देती है।
धारा 340 और 341 स्पष्ट रूप से यह स्थापित करती हैं कि किसी आरोपी को अपनी पसंद का वकील चुनने का अधिकार है और अगर वह आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है, तो राज्य द्वारा उसे मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी। ये प्रावधान न्याय तक समान पहुंच को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
धारा 340: अपनी पसंद के वकील का अधिकार (Right to Choose an Advocate)
धारा 340 यह मान्यता देती है कि हर व्यक्ति, जिसे किसी अपराध का आरोपी बनाया गया है, उसे अपनी पसंद के वकील (Advocate) से बचाव करने का अधिकार है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अनुरूप है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को मनमाने राज्य कार्रवाई से बचाने के लिए कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि हर आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिले। यह अधिकार सभी पर लागू होता है, चाहे आरोप किसी भी प्रकार का हो।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि ए पर चोरी (Theft) का आरोप लगाया गया है। धारा 340 के तहत, ए अपनी पसंद का वकील रख सकता है, जिससे उसे मजबूत और बेहतर बचाव करने का अवसर मिलता है। यह अधिकार किसी भी परिस्थिति में छीना नहीं जा सकता।
धारा 341: राज्य खर्च पर कानूनी सहायता (Legal Aid at State Expense)
जहां धारा 340 कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार देती है, वहीं धारा 341 यह सुनिश्चित करती है कि अगर कोई आरोपी वकील का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है, तो राज्य उस पर होने वाले खर्च को उठाएगा।
उपधारा (Subsection) (1): वकील नियुक्त करने का दायित्व
इस प्रावधान के अनुसार, अगर कोई आरोपी वकील नहीं रख सकता और अदालत को लगता है कि उसके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं, तो अदालत राज्य खर्च पर उसके बचाव के लिए वकील नियुक्त करेगी। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी आरोपी बिना कानूनी प्रतिनिधित्व के सुनवाई का सामना न करे।
उपधारा (2): हाईकोर्ट की भूमिका
इस प्रावधान के तहत, हाईकोर्ट (High Court) को यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ नियम बनाए।
ये नियम निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित हो सकते हैं:
• वकीलों के चयन (Selection) की प्रक्रिया।
• अदालतों द्वारा इन वकीलों को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं।
• सरकार द्वारा इन वकीलों को दिए जाने वाले शुल्क (Fees)।
यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी सहायता का तंत्र सुचारू और प्रभावी रहे।
उपधारा (3): अन्य अदालतों तक कानूनी सहायता का विस्तार
इस प्रावधान के तहत, राज्य सरकार एक अधिसूचना (Notification) जारी करके कानूनी सहायता को अन्य अदालतों में भी लागू कर सकती है। इस तरह, केवल सत्र न्यायालयों (Sessions Courts) में ही नहीं, बल्कि जिला और निचली अदालतों में भी यह सहायता उपलब्ध होगी।
धारा 340 और 341 के बीच संबंध (Relationship Between Sections 340 and 341)
धारा 340 और 341 एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां धारा 340 कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार देती है, वहीं धारा 341 यह सुनिश्चित करती है कि यह अधिकार आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए भी सार्थक हो। दोनों प्रावधान मिलकर यह सिद्धांत स्थापित करते हैं कि न्याय केवल आर्थिक रूप से संपन्न लोगों तक सीमित नहीं होना चाहिए।
कानूनी सहायता के व्यावहारिक उदाहरण (Practical Illustrations of Legal Aid)
1. गरीब आरोपी का मामला
बी पर डकैती (Robbery) का आरोप है, लेकिन वह वकील रखने में असमर्थ है। धारा 341(1) के तहत, अदालत राज्य खर्च पर वकील नियुक्त करती है, जिससे बी को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर मिलता है।
2. अन्य अदालतों में कानूनी सहायता का विस्तार
राज्य सरकार धारा 341(3) के तहत एक अधिसूचना जारी करती है, जिससे कानूनी सहायता का प्रावधान जिला अदालतों तक बढ़ा दिया जाता है। अब, निचली अदालतों में भी आर्थिक रूप से कमजोर आरोपियों को राज्य द्वारा वकील उपलब्ध कराया जाएगा।
3. हाईकोर्ट द्वारा नियमों का निर्माण
एक राज्य का हाईकोर्ट धारा 341(2) के तहत नियम बनाता है, जिसमें वकीलों के चयन की प्रक्रिया और उनकी फीस का निर्धारण किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि अनुभवी और कुशल वकील आरोपियों का प्रतिनिधित्व करें।
इन प्रावधानों का महत्व (Significance of These Provisions)
1. कानून के समक्ष समानता (Equality Before Law)
धारा 341 यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी न्याय तक समान पहुंच प्राप्त कर सकें।
2. निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial)
कानूनी प्रतिनिधित्व के बिना कोई भी व्यक्ति उचित बचाव नहीं कर सकता। धारा 340 और 341 यह सुनिश्चित करते हैं कि हर आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर मिले।
3. न्यायिक प्रक्रिया में सुधार (Judicial Efficiency)
धारा 341(2) के तहत कानूनी सहायता प्रदान करने की संरचित प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया सुचारू हो और मामलों में अनावश्यक देरी न हो।
4. राज्य की जिम्मेदारी (State Accountability)
ये प्रावधान राज्य को यह जिम्मेदारी सौंपते हैं कि वह न्यायिक तंत्र (Judicial System) को सभी नागरिकों के लिए सुलभ और निष्पक्ष बनाए।
क्रियान्वयन में चुनौतियां (Challenges in Implementation)
इन प्रावधानों को लागू करने में कई चुनौतियां भी सामने आती हैं:
• कानूनी सहायता की गुणवत्ता (Quality of Legal Aid)
सरकारी वकीलों पर भारी कार्यभार और सीमित संसाधनों के कारण कानूनी सहायता का स्तर कमजोर हो सकता है।
• आरोपियों में जागरूकता की कमी (Lack of Awareness Among Accused)
कई आरोपी धारा 341 के तहत अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते, जिससे वे कानूनी सहायता का लाभ नहीं उठा पाते।
• नियम बनाने में देरी (Delay in Framing Rules)
हाईकोर्ट द्वारा समय पर नियम न बनाए जाने से कानूनी सहायता की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 340 और 341 न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये प्रावधान कानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए राज्य की जिम्मेदारी को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हैं।
इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए न केवल विधायी और न्यायिक समर्थन आवश्यक है, बल्कि नागरिकों को भी उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। इस तरह, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि न्याय केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार न रहे, बल्कि सभी के लिए एक मौलिक अधिकार बने।