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न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों, दोषों और उनके प्रभाव: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 511 और 512
किसी भी न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल प्रक्रिया का पालन करना नहीं, बल्कि न्याय (Justice) को सुनिश्चित करना होता है। हालाँकि प्रक्रिया का अनुपालन न्याय की नींव है, लेकिन कभी-कभी मामूली त्रुटियाँ (Errors), चूक (Omissions) या प्रक्रिया में अनियमितताएँ (Irregularities) हो जाती हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी त्रुटियों के आधार पर किसी फैसले, सजा या आदेश को रद्द किया जा सकता है?भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में अध्याय 37 (Chapter XXXVII)...
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील और यौन सामग्री के प्रसारण से जुड़े अपराध और दंड: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67, 67A, 67B और 67
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को भारत सरकार ने डिजिटल दुनिया में बढ़ते आर्थिक, सामाजिक और कानूनी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को कानूनी मान्यता देना था, जिससे इंटरनेट आधारित संचार और व्यापार को एक वैधानिक आधार प्राप्त हो सके। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, इंटरनेट का दुरुपयोग बढ़ता गया और इस अधिनियम में नए संशोधन करने की आवश्यकता महसूस हुई।खासकर, इंटरनेट के ज़रिए अश्लील सामग्री का आदान-प्रदान, बच्चों के यौन शोषण से...
किसी भी प्रॉपर्टी के डॉक्यूमेंट के बारे में किस तरह जानकारी ली जाती है?
किसी प्रॉपर्टी की कीमत उसके दस्तावेजों से होती है। किसी भी ज़मीन का मालिक तब ही बना जा सकता है जब उसके दस्तावेज मज़बूत हो। संपत्ति दो प्रकार की हो सकती है। पहली वह संपत्ति जो किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग की जा रही है और उसके उपभोग की जाने में एक लंबी यात्रा है। एक लंबे समय से वह संपत्ति को उपयोग किया जाता रहा है। दूसरी वह संपत्ति होती है जो किसी बिल्डर या डेवलेपर द्वारा डेवलप की जाती है। इस संपत्ति को बिल्डर डेवलप करते हैं। फिर लोगों में प्लॉट या फ्लैट के माध्यम से उन्हें बेचा जाता है।पहली संपत्ति वह...
एक बार Divorce के बाद फिर से शादी करना
शादी और तलाक जीवन का हिस्सा है। शादी संस्कार होने के साथ एक लीगल कॉन्सेप्ट भी है क्योंकि शादी के बाद लोग एक दूसरे की जिम्मेदारी से बंध जाते हैं। कई बार आपसी विवादों के चलते पति पत्नी में तलाक हो जाता है और शादी खत्म कर दी जाती है। फिर जीवन में नई शुरुआत के साथ नई शादी की जाती है। जब कभी पति और पत्नी में विवाद होने पर तलाक लेने का मन बनाया जाता है तब उन्हें फैमिली कोर्ट से डिक्री लेना होती है। बड़े जिलों में फैमिली कोर्ट होता है और छोटी जगहों पर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ही फैमिली कोर्ट का काम करता है।...
विलंबित फ्लैट डिलीवरी के लिए घर खरीदार का मुआवजा पाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने की सिद्धांतों की व्याख्या
ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (GMADA) बनाम अनुपम गर्ग और अन्य के मामले में हाल ही में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देरी या डिलीवरी न होने की स्थिति में डेवलपर्स को पीड़ित घर खरीदारों को ब्याज सहित मूल राशि वापस करनी चाहिए, लेकिन खरीदारों द्वारा अपने घरों के वित्तपोषण के लिए लिए गए व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज का भुगतान करने के लिए उन्हें उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।निर्णय में न्यायालय ने बैंगलोर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम सिंडिकेट बैंक [(2007) 6 एससीसी 711] पर भी पुनर्विचार...
गलत स्थान पर हुई कार्यवाही का प्रभाव : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 508 से 510
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित अनेक प्रावधान शामिल हैं, जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपराधिक न्याय प्रणाली एक सुव्यवस्थित, निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रणाली बनी रहे।अध्याय 37 (Chapter XXXVII) “Irregular Proceedings” से संबंधित है, जिसमें बताया गया है कि किन परिस्थितियों में प्रक्रिया संबंधी त्रुटियाँ (Procedural Errors) न्यायिक निर्णय को प्रभावित करेंगी और किन परिस्थितियों में नहीं करेंगी। धारा 508, 509 और 510...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 166 से 173 : किराया निर्धारण से लेकर दस्तूर गणवाई Wajib-ul-arz तक
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 एक ऐसा विधिक ढांचा है जो भूमि बंदोबस्त, किराया निर्धारण और ग्रामीण भूमि प्रशासन को सुव्यवस्थित करने का प्रयास करता है। इस लेख में हम अधिनियम की धारा 166 से 173 तक के प्रावधानों को विस्तार से सरल हिंदी में समझेंगे। ये धाराएं मुख्यतः किराया निर्धारण के बाद की प्रक्रिया, आपत्तियों की सुनवाई, किराया लागू होने की तिथि, किराया अस्वीकृति की स्थिति, नए किरायेदार को अधिकार देने की प्रक्रिया, और गांव के दस्तूर (Customary Record) तैयार करने से संबंधित हैं।धारा 166 —...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66F: साइबर आतंकवाद की व्यापक व्याख्या
प्रस्तावनाडिजिटल युग में इंटरनेट, कंप्यूटर, नेटवर्क प्रणाली और संचार उपकरण हमारे दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। लेकिन जितनी तेजी से ये तकनीकें उपयोग में लाई जाती हैं, उतनी ही चिंताएं भी बढ़ रही हैं। साइबर अपराध (Cyber Crime) बढ़े हैं और उसमें अधिकांश नए खतरों में से एक साइबर आतंकवाद (Cyber Terrorism) है। भारत सरकार ने इसे नियंत्रण में लाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में संशोधन करते हुए 2008 में धारा 66F जोड़ी, जो इस अपराध पर आजीवन कैद समेत अन्य दंड प्रदान करती है। पहले हमने...
क्या इस्तीफा देना पर्याप्त है ताकि ऑडिटर Companies Act की कार्रवाई से बच सके? – धारा 140(5) की समीक्षा
धारा 140(5) की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity of Section 140(5))सुप्रीम कोर्ट ने Union of India बनाम Deloitte Haskins and Sells LLP (2023) मामले में यह स्पष्ट किया कि Companies Act, 2013 की धारा 140(5) संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार – Right to Equality) और अनुच्छेद 19(1)(g) (व्यवसाय करने का अधिकार – Right to Practice Profession) का उल्लंघन नहीं करती। कोर्ट ने माना कि यह प्रावधान न तो मनमाना (Arbitrary) है और न ही भेदभावपूर्ण (Discriminatory)। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना...
रेंट एग्रीमेंट से संबंधित प्रावधान
मौजूदा समय में मकान किरायेदारी की व्यवस्था है जिसके लिए अलग अलग राज्यों में अलग अलग क़ानून है। किराया अनुबंध से किरायदारी की शुरुआत होती है। किराया अनुबंध एक कानूनी विषय है तो इस पर सभी कानूनी जानकारियां उन व्यक्तियों को होना चाहिए जो किसी संपत्ति को किराए पर देते हैं और जो किसी संपत्ति को किराए पर लेते हैं। समाज में एक भ्रांति हमेशा से बनी हुई है कि किराएदार मकान मालिक हो जाता है जबकि कानून में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है।किराएदारी कानून भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग हैं। इन्हें कंट्रोल करने के...
Consumer Protection Act में कंप्लेंट लगाए जाने का तरीका
इस अधिनियम के अंतर्गत तीन फोरम बनाए गए हैं। इस अधिनियम में जो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं उसमें एक संशोधन यह है कि जिला आयोग के समक्ष लगाए जाने वाले परिवाद में लगने वाले समय को कम किया गया है और साथ ही जिस राशि के लिए परिवाद प्रस्तुत किया जा रहा है उसे बढ़ाया गया है।वर्तमान में कोई भी परिवाद जिसमे एक करोड़ रूपए तक का मामला है उसे जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि कोई भी विवाद करोड़ रुपए तक का है ऐसी स्थिति में उसे प्राथमिक स्तर पर जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। जिला आयोग...
क्या जिला जजों को हाईकोर्ट जजों के समान वेतन और पेंशन मिलनी चाहिए?
न्यायिक स्वतंत्रता का संवैधानिक आधार (Constitutional Foundation for Judicial Independence)सुप्रीम कोर्ट ने All India Judges Association बनाम Union of India (2023) के महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि जिला न्यायपालिका (District Judiciary) की स्वतंत्रता केवल एक नीति का विषय नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अनिवार्यता (Constitutional Mandate) है। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अधिकारी राज्य के कर्मचारी नहीं होते, बल्कि वे संवैधानिक पदाधिकारी (Constitutional Functionaries) होते हैं। उनके वित्तीय...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 163 से 165 : चाही होल्डिंग्स के किराया निर्धारण
राजस्थान की भूमि व्यवस्था में पारदर्शिता, न्याय और समानता बनाए रखने के उद्देश्य से राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इस लेख में हम धारा 163 से 165 तक के प्रावधानों को विस्तार से, सरल हिंदी में समझेंगे। ये प्रावधान विशेष रूप से चाही भूमि (Well Irrigated Land) के किराया निर्धारण, परचा वितरण (Assessment Parcha) और परिस्थितियों में अंशतः किराया वसूली रोकने (Interim Stoppage of Kind Rent Recovery) से जुड़े हुए हैं।धारा 163 – चाही होल्डिंग्स के किराया निर्धारण के...
अनियमित कार्यवाही और मजिस्ट्रेट की शक्ति की सीमा – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 506 और 507
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में ऐसे अनेक प्रावधान हैं जो न केवल अपराध और उसकी प्रक्रिया से संबंधित हैं, बल्कि न्यायिक अधिकारियों की शक्तियों और सीमाओं को भी स्पष्ट करते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई भी मजिस्ट्रेट (Magistrate) अपनी कानूनी शक्ति (Legal Authority) के अनुसार ही काम करे।हालाँकि कभी-कभी किसी मजिस्ट्रेट द्वारा सीमित ज्ञान या ईमानदारी से की गई गलती (Error in Good Faith) से कोई कार्यवाही हो जाती है जो उसकी शक्ति क्षेत्र...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66B से 66E : डिजिटल अपराध और हमारी सुरक्षा
आज का युग तकनीक का युग है। इंटरनेट, मोबाइल और कंप्यूटर अब हमारी जिंदगी के अभिन्न हिस्से बन चुके हैं। लेकिन जहां इन तकनीकों ने जीवन को आसान बनाया है, वहीं इनके दुरुपयोग ने कई नए अपराधों को जन्म दिया है। इन्हीं अपराधों से निपटने और नागरिकों की डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) लागू किया था।इस अधिनियम के अध्याय XI में विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों और उनके लिए दंड का प्रावधान किया गया है। पहले हम इस अध्याय की धारा...
Consumer Protection Act की कंप्लेंट पर लगने वाली कोर्ट फीस
किसी भी सिविल केस में वादी को कोर्ट की अदा करना होती है तब उसका मामला अदालत में रजिस्टर्ड होता है, अदालत उसके बाद को सुनती है। इसी तरह कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट में भी कोर्ट फीस की व्यवस्था है हालांकि इस एक्ट में कोर्ट फीस बहुत नाम मात्र की है। उपभोक्ताओं को कोर्ट फीस के बोझ से बचाने के लिए यह व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था के तहत किसी भी उपभोक्ता को नाममात्र की कोर्ट फीस पर अपना प्रकरण दर्ज करवाने की सुविधा उपलब्ध है।उपभोक्ता संरक्षण उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नियम 2020 के नियम 7 के अंतर्गत...
Consumer Protection Act में धारा 100 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 100 यह बताती है, यह अधिनियम इस प्रकार की विधि में सर्वोच्च है, इस धारा 100 के अनुसार-अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में ।यह व्यवस्था की गई है कि यदि संविधि इस उद्देश्य से पारित की गई है कि पब्लिक को बुराइयों एवं परेशानियों से निजात मिल सके तो इसका प्रभाव भूतलक्षी होना चाहिए।कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि यदि अधिनियम के अस्तित्व में आने से पूर्व किसी उपभोक्ता का...
क्या संपत्ति के नए खरीदार से पुराने मालिक का बकाया बिजली बिल वसूल किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने K.C. Ninan बनाम Kerala State Electricity Board के ऐतिहासिक निर्णय में यह अहम सवाल सुलझाया कि क्या कोई बिजली कंपनी (Electric Utility) उस व्यक्ति से बकाया बिजली बिल वसूल सकती है, जिसने किसी संपत्ति को नीलामी (Auction) या अन्य प्रक्रिया से खरीदा है, लेकिन जिसने स्वयं बिजली का उपभोग (Consumption) नहीं किया है।इस निर्णय में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि क्या ऐसा करना कानूनन उचित है, और क्या विद्युत आपूर्ति कोड (Electricity Supply Code) या अन्य अधीनस्थ कानूनों (Subordinate Legislations)...
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 157 से 162 किराया निर्धारण संबंधी प्रावधान
धारा 157 – किराए का निर्धारण (Assessment of Rents)जब राज्य सरकार द्वारा किसी क्षेत्र में पुनः बंदोबस्त (re-settlement) की घोषणा की जाती है और किराया-दरें (rent-rates) सरकारी मंजूरी से निर्धारित हो जाती हैं, तो इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है — हर एक भूमि धारक की ज़मीन पर उचित किराया तय करना। यह जिम्मेदारी बंदोबस्त अधिकारी (Settlement Officer) की होती है। बंदोबस्त अधिकारी यह देखता है कि कौन-कौन से ज़मींदार पहले से कितना किराया दे रहे हैं, वर्तमान किराया-दरों के हिसाब से अब कितना देना...
जब कोई मालिक सामने न आए या वस्तु जल्दी खराब हो – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 504 और 505
भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) केवल अपराधी को सज़ा देने तक सीमित नहीं है। इसमें उन संपत्तियों (Properties) को लेकर भी विस्तृत नियम हैं जो अपराध के दौरान जब्त (Seized) की जाती हैं। कई बार ऐसी संपत्तियों का असली मालिक सामने नहीं आता, या वो संपत्ति जल्दी खराब हो सकती है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 504 (Section 504) और धारा 505 (Section 505) में विशेष व्यवस्था दी गई है।यह लेख इन दोनों...




















