गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं, जब तक कि बर्खास्तगी को चुनौती न दी जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

11 March 2025 3:59 AM

  • गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं, जब तक कि बर्खास्तगी को चुनौती न दी जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि गलत तरीके से बर्खास्तगी के कारण हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं है, जब तक कि बर्खास्तगी को पहले चुनौती न दी जाए और गलत घोषित न कर दिया जाए। न्यायालय ने पाया कि वादी ने न तो दलील दी और न ही यह साबित करने का कोई प्रयास किया कि बर्खास्तगी का विवादित आदेश उसके रोजगार की किसी भी शर्त का उल्लंघन था।

    जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने माना कि वादी ने अपनी सेवाओं की समाप्ति को कानून के अनुसार गलत करार देने के लिए घोषणात्मक राहत नहीं मांगी थी। ऐसी प्रार्थना के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने बर्खास्तगी को कानून के अनुसार गलत घोषित करके और फिर से बहाल करने के अधिकार की अनुमति देकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया, जिसकी पहली बार में प्रार्थना नहीं की गई।

    न्यायालय ने अपील खारिज करते हुए कहा कि वादी/प्रतिवादी द्वारा दायर मुकदमा कानून के अनुसार सुनवाई योग्य नहीं है। तदनुसार, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और डिक्री रद्द कर दी गई।

    न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी आवास वित्त निगम लिमिटेड बनाम प्रभाकर सीताराम भदंगे, (2017) 5 एससीसी 623 पर भरोसा किया, जिसमें न्यायालय ने माना कि व्यक्तिगत सेवाओं का अनुबंध सामान्य कानून के तहत लागू करने योग्य नहीं है। सिविल कोर्ट के पास बहाली की राहत देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसी राहत देना व्यक्तिगत सेवाओं के अनुबंध को लागू करने के बराबर होगा।

    न्यायालय ने माना कि उपलब्ध एकमात्र उपाय सिविल न्यायालय में मुकदमा दायर करना है, जिसमें यह घोषित करने की मांग की जाए कि समाप्ति गलत थी और सेवाओं की ऐसी गलत समाप्ति के लिए हर्जाना मांगा जाए।

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि तत्काल मामला निजी रोजगार से जुड़ा है, जो पक्षों के बीच एक अनुबंध द्वारा शासित होता है। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई अनुबंध नहीं था, जिसके आधार पर उक्त विवाद को सुलझाया जा सके।

    न्यायालय ने आगे रेखांकित किया कि वादी यह प्रदर्शित करने में विफल रहा कि उसकी सेवाओं की समाप्ति से पहले जांच करना या आरोप पत्र दाखिल करना एक शर्त थी। इसने यह भी कहा कि बर्खास्तगी को बुरा नहीं कहा जा सकता। इसे मुकदमे में चुनौती भी नहीं दी गई।

    केस-टाइटल: पंजाब नेशनल बैंक बनाम वी के गंडोत्रा, 2025, लाइव लॉ, (जेकेएल)

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