जब जमानत रद्द करना एक उपलब्ध उपाय है तो निवारक निरोध को शॉर्टकट विधि के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
6 March 2025 8:08 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा जमानत रद्द करने की मांग न करना और इसके बजाय अभियुक्त को सलाखों के पीछे डालने के लिए शॉर्टकट के रूप में निवारक निरोध का उपयोग करना कानूनी रूप से संधारणीय नहीं है।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने कहा कि यदि अभियुक्त जमानत पर रिहा होने के बाद राज्य के लिए हानिकारक कृत्यों में शामिल था तो अभियोजन पक्ष को जमानत रद्द करने की मांग करने का पूरा अधिकार है। हालांकि अदालत ने कहा कि अभियुक्त को सलाखों के पीछे भेजने के लिए शॉर्टकट विधि अपनाई गई।
अदालत ने यह भी देखा कि निरोध आदेश में कथित जमानत के बाद की गतिविधियों की प्रकृति, तिथियां या विवरण निर्दिष्ट नहीं किया गया, जिससे हिरासत में लिए गए व्यक्ति के लिए ठोस सामग्री की कमी के कारण अपनी हिरासत को चुनौती देना असंभव हो गया।
अदालत ने आगे कहा कि प्रतिवादियों ने दावा किया कि धारा 107 CrPC के तहत कार्यवाही यचिकाकर्ता के खिलाफ़ कार्यवाही शुरू की गई लेकिन हिरासत रिकॉर्ड से यह पता नहीं चला कि इस तरह की कार्यवाही विवादित हिरासत आदेश पारित करने से पहले शुरू की गई।
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से किए गए अपराधों के संबंध में सामान्य कानून का सहारा लेने के बजाय उसे हिरासत में लेने के लिए एक शॉर्टकट तरीका अपनाया। अदालत ने माना कि केवल इस आधार पर हिरासत आदेश कानूनी रूप से मान्य नहीं है।
पूरा मामला
याचिकाकर्ता को जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 के तहत हिरासत में लिया गया। उस पर आतंकवादी संगठन के लिए ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) के रूप में काम करने का आरोप था। उसके खिलाफ Arms Act की धारा 7/25 और UAPA की धारा 17, 18, 19, 23, 38 और 39 के तहत FIR दर्ज की गई। इसके बाद उसे FIR में शामिल विभिन्न अपराधों से मुक्त कर दिया गया और सख्त शर्तों के साथ जमानत दी गई।
प्रतिवादी को जमानत के दौरान इस आधार पर निरोधक निरोध आदेश के तहत हिरासत में रखा गया कि जमानत पर होने के बावजूद वह पक्षपातपूर्ण गतिविधियों में शामिल था।
अदालत ने माना कि यदि ऐसा मामला था तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने के लिए स्वतंत्र था, जो नहीं किया गया। इसके बजाय उसे निरोधक निरोध में रखकर एक शॉर्टकट अपनाया गया जो कानून में टिकने योग्य नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि निरोध आदेश के तहत आरोपों का सेट अस्पष्ट और गूढ़ था, जिसने याचिकाकर्ता को उक्त आदेश को प्रभावी ढंग से चुनौती देने से रोक दिया। अदालत ने तदनुसार निरोध आदेश रद्द कर दिया।
केस टाइटल: मंजूर अहमद वानी बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, 2025, लाइव लॉ (जेकेएल)