ट्रायल कोर्ट के पास अपने अंतिम आदेश को वापस लेने या उसकी समीक्षा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
7 March 2025 8:49 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट के पास अपने अंतिम आदेशों पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में पीड़ित पक्ष के पास एकमात्र विकल्प उक्त आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती देना है।
न्यायालय ने CrPC की धारा 362 का संज्ञान लिया जो किसी आपराधिक न्यायालय को लिपिकीय या अंकगणितीय गलतियां को सुधारने के अलावा अपने अंतिम आदेशों को बदलने या उनकी समीक्षा करने से रोकती है।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से जिला जेल अनंतनाग में हिरासत स्थानांतरित करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर तीन अलग-अलग आवेदनों का निपटारा किया और बाद में उक्त आदेश को वापस ले लिया।
न्यायालय ने कहा कि आदेश को वापस लेने में ट्रायल कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिस पर खंडपीठ ने रोक लगा दी थी। इसलिए न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के लिए अपने अंतिम आदेशों पर पुनर्विचार करना संभव नहीं है।
न्यायालय ने अदालत प्रसाद बनाम रूपलाल जिंदल और अन्य, (2004) 7 एससीसी 338 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कानून की पिछली स्थिति को खारिज कर दिया था, जो आपराधिक न्यायालयों को अपने आदेशों पर पुनर्विचार करने की अनुमति देता था।
न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण कानूनी प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के विपरीत था। न्यायालय ने वापस बुलाने का आदेश रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को उन आदेशों के खिलाफ उचित उपाय का लाभ उठाने के लिए खुला छोड़ दिया, जिनके माध्यम से हिरासत के हस्तांतरण का प्रारंभिक आदेश दिया गया।
पूरा मामला
इस मामले में याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज कई FIR के तहत मुकदमे का सामना कर रहे थे। उनके मुकदमों के लंबित रहने के दौरान, उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत हिरासत में लिया गया और उत्तर प्रदेश की जेलों में स्थानांतरित कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने जम्मू और कश्मीर में न्यायिक हिरासत में वापस स्थानांतरित करने की मांग करते हुए ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने आवेदन स्वीकार करते हुए हिरासत को कश्मीर के अनंतनाग स्थित मट्टन जेल में ट्रांसफर करने का निर्देश दिया। अभियोजन पक्ष ने इन आदेशों को चुनौती दी और बाद में ट्रायल कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए उन्हें वापस ले लिया।
अदालत ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जिस फैसले पर भरोसा किया गया, उसे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निलंबित कर दिया। इसलिए ट्रायल कोर्ट के पास अपने द्वारा पारित आदेशों को वापस लेने का कोई अधिकार नहीं था और वापस लेने के आदेशों को रद्द कर दिया गया।
केस-टाइटल: फिरोज अहमद जरगर और अन्य बनाम यूटी ऑफ जेएंडके और अन्य, 2025, लाइवलॉ, (जेकेएल)