हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

13 Nov 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (31 अक्टूबर, 2022 से 4 नवंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 36A(4) एनडीपीएस एक्ट | वैधानिक अवधि से परे अभियुक्तों को हिरासत में लेने के कारणों के अलावा अभियोजक की रिपोर्ट में जांच की प्रगति का खुलासा होना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 36-ए (4) के अनुसार जांच की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 180 दिनों की वैधानिक अवधि का विस्तार करने के लिए लोक अभियोजक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में आरोपी व्यक्ति को हिरासत में लेने के कारणों के अलावा जांच की प्रगति का खुलासा होना चाहिए।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा, "... लोक अभियोजक द्वारा अपनी रिपोर्ट में जांच अधिकारी के आवेदन या अनुरोध का पुन: उत्पादन भर , वह भी विवेक के आवेदन के प्रदर्शन के बिना और अपनी संतुष्टि के रिकॉर्ड के बिना, 4 उसकी रिपोर्ट को उस तरह नहीं देखेगा, जैसा कि अधिनियम की धारा 36-ए के तहत परिकल्पित किया गया है। इसी तरह, रिपोर्ट में लोक अभियोजक जांच की प्रगति और 180 दिनों से अधिक अभियुक्तों को हिरासत में रखने का विशिष्ट कारण बताएगा।"

    केस टाइटल: उबैद एएम बनाम केरल राज्य

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    केरल सर्विस रूल्स | सरकार पीएचडी करने के लिए नियम 91A के तहत कर्मचारियों की छुट्टी के आवेदन को सरसरी तौर पर खारिज नहीं कर सकती: हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने केरल सेवा नियमों के भाग I के नियम 91A के तहत अपने कर्मचारियों को पीएचडी करने के लिए छुट्टी नहीं देने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए सोमवार को कहा कि राज्य डॉक्टरेट या पोस्टडॉक्टरल रिसर्च के लिए छुट्टी के आवेदन को सरसरी तौर पर खारिज नहीं कर सकता।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पीएचडी उम्मीदवारों को नियम 91ए के तहत छुट्टी नहीं देने का सामान्य निर्णय लिया गया।

    केस टाइटल: गीशा मारिन जोस बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को कंपनी के निदेशकों की सटीक भूमिका का पता नहीं हो सकता है, परोक्षा देयता के बारे में बुनियादी जानकारी पर्याप्त: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में, शिकायतकर्ता से केवल यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी परोक्ष देयता के बारे में आवश्यक बयान दे और उसके बाद निदेशकों पर यह साबित करने का भार होता है कि वे दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।

    ज‌स्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा, "शिकायतकर्ता को केवल आम तौर पर यह जानना चाहिए कि कंपनी के मामलों के प्रभारी कौन थे ... शिकायतकर्ता से केवल यह अपेक्षा होती है कि वह यह आरोपित करे कि‌ शिकायत में नामी व्यक्ति कंपनी के मामलों के प्रभारी है...निदेशक मंडल या कंपनी के मामलों के प्रभारी व्यक्तियों पर यह साबित करने का भार होगा कि वे दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।"

    केस टाइटल: हीना थिरुमाली सतीश और अन्य बनाम मेसर्स मिनिमेल्ट इंजीनियर्स इंडिया।

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    केवल एफआईआर दर्ज होने से कोई उम्मीदवार सार्वजनिक नियुक्ति के लिए अपात्र नहीं हो सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने केनरा बैंक को एक महिला को नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है। महिला का ऑफर लेटर 2018 में एक लंबित एफआईटार के आधार पर रद्द कर दिया गया था।

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना भर कभी भी उसे भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने और सार्वजनिक नियुक्ति प्राप्त करने के अधिकार से इनकार का आधार नहीं हो सकता है। जस्टिस राजबीर सहरावत ने फैसले में कहा कि एफआईआर केवल एक कथित घटना के संबंध में एक रिपोर्ट है जिसमें कुछ अपराध शामिल हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं।

    केस टाइटल: मंदीप कौर बनाम केनरा बैंक और अन्य

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    एनडीपीएस एक्‍ट| एलएसडी और ब्लॉटर का संयुक्त वजन मामूली या वाणिज्यिक मात्रा निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा स्थित पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड (एलएसडी) दवा और इसे ले जाने वाले ब्लॉटिंग पेपर का संयुक्त वजन यह पता लगाने के लिए आवश्यक है कि जब्त की गई दवा छोटी या व्यावसायिक मात्रा है या नहीं और तदनुसार एनडीपीएस अधिनियम के तहत दंड लगाया जाना चाहिए या नहीं।

    अदालत ने यह आदेश एकल न्यायाधीश द्वारा एक संदर्भ पर पारित किया कि क्या जब्त दवा के वजन को निर्धारित करने के लिए अकेले एलएसडी का उपयोग किया जाएगा या एलएसडी और ब्लॉटिंग पेपर के संयुक्त वजन का उपयोग किया जाएगा।

    केस टाइटल: एचएस अरुण कुमार बनाम गोवा राज्य

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    बैंकों की तरफ से पेंशनभोगियों से अतिरिक्त राशि की वसूली एकमुश्त नहीं की जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि बैंकों द्वारा पेंशनभोगियों को भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली की अनुमति है, इसका मतलब यह नहीं है कि अतिरिक्त राशि एक मुश्त वसूल की जानी है। ऐसी राशि मासिक किश्तों में वसूल की जा सकती है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ केनरा बैंक की कार्रवाई से व्यथित 73 वर्षीय विधवा के मामले की सुनवाई कर रही थी। उसके परिवार पेंशन खाते से 6,40,000 रुपए बिना किसी संचार के काट लिए गए।

    केस टाइटल: विमला रामनाथ पवार बनाम सीनियर प्रबंधक, केंद्रीकृत पेंशन प्रसंस्करण केंद्र और अन्य

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    [चेक बाउंस] निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 139 के तहत अनुमान के खंडन और आनुपातिकता के परीक्षण' के लिए आरोपी को "संभावित बचाव" उठाना चाहिए : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को माना कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 139 के तहत चेक धारक के पक्ष में अनुमान का खंडन 'आनुपातिकता के परीक्षण' द्वारा निर्देशित है।

    जस्टिस तीर्थंकर घोष की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि अनुमान का खंडन करने के लिए आरोपी व्यक्ति को शिकायतकर्ता पर बोझ डालने के लिए न्यायालय के समक्ष "संभावित बचाव" उठाना चाहिए। इसने स्पष्ट किया कि केवल इनकार ही पर्याप्त नहीं है और आरोपी को जवाबी नोटिस द्वारा या अपने गवाहों की जांच करके एक प्रारंभिक बचाव स्थापित करना चाहिए।

    केस: सुब्रत बोस बनाम मिठू घोष,सीआरए 658/ 2018

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    निवारक निरोध| हिरासतकर्ता प्राधिकरण की संतुष्टि पुलिस डोजियर और जुड़े दस्तावेज़ों की सामूहिक जांच पर आधारित होनी चाहिए: जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि आरोपों के समर्थन में सामग्री या ऐसी घटना के विशिष्ठ विवरणों के अभाव में, यह नहीं माना जा सकता कि कुछ गतिविधियां शांति और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए प्रतिकूल हैं, और वह भी तब जब इन अस्पष्ट आरोपों की पुष्टि के लिए दिए गए रिकॉर्ड में कोई संकेत न हो।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की। पति के माध्यम से दायर याचिका में बंदी ने जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 की धारा 8 के तहत प्रतिवादी की ओर से उन्हें दिए गए निरोध आदेश की वैधता को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: सज्जाद अहमद भट बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    भौतिक तथ्यों को छुपाना अस्थायी निषेधाज्ञा से इनकार करने का आधार: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अस्थायी निषेधाज्ञा तभी दी जा सकती है जब आवेदक भौतिक तथ्यों को छुपाए बिना अदालत का दरवाजा खटखटाए और दोहराया कि ऐसा निषेधाज्ञा तभी दी जा सकती है जब प्रथम दृष्टया मामला, सुविधा का संतुलन, और अपूरणीय क्षति हो।

    औरंगाबाद पीठ के जस्टिस संदीप कुमार सी. मोरे ने वह अस्थायी निषेधाज्ञा खारिज कर दी, जिसमें अपीलकर्ताओं को संपत्ति विवाद में वाद भूमि को अलग करने से रोक दिया गया, क्योंकि प्रतिवादियों ने अदालत से विवाद से संबंधित पूर्व मुकदमे को दबा दिया।

    केस टाइटल- उमाजी पुत्र सतवाजी शेप (मृत्यु) द्वारा एल.आर. और अन्य बनाम गुलाम मोहम्मद पुत्र गुलाम दस्तगीर (मृत्यु) और अन्य।

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    धारा 36 सीआरपीसी | जांच लंबित रहने के दरमियान समानांतर जांच संभव नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि जांच के लंबित रहने के दरमियान धारा 36 सीआरपीसी के तहत समानांतर जांच का आदेश देने योग्य नहीं है। जांच रिपोर्ट को अमान्य बताते हुए जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने जांच अधिकारी को जांच के उद्देश्य से इस पर विचार नहीं करने का निर्देश दिया- इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 36 के तहत समानांतर जांच जांच के लंबित रहने के दरमियान बनाए रखने योग्य नहीं है। स्पष्ट न्यायिक घोषणा के बावजूद, यह आश्चर्यजनक है कि एसपी, भिंड ने फिर से एसडीओ (पी), लहार, जिला भिंड को समानांतर जांच करने का निर्देश दिया। एसपी भिंड की इस कार्रवाई की सराहना नहीं की जा सकती। हालांकि, चूंकि जांच के लंबित रहने के दरमियान समानांतर जांच कायम नहीं रहती, इसलिए एसडीओ (पी), लहार, जिला भिंड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अमान्य है और इसे पुलिस केस डायरी या जांच का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है और इस प्रकार, एसडीओ (पी), लहार, जिला भिंड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को देखने के लिए जांच अधिकारी को निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: महेंद्र कुमार वैद्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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    आर्थिक पिछड़ापन या सामाजिक कलंक वैधानिक निषेध की अवहेलना या गर्भावस्था की चिकित्सकीय समाप्ति की अनुमति का कारण नहीं हो सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि आर्थिक पिछड़ापन या सामाजिक कलंक की आशंक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत निर्धारित वैधानिक निषेध को लांघने और गर्भावस्था की चि‌कित्सकीय अनुमति का आधार नहीं हो सकता है।

    जस्टिस वीजी अरुण ने कहा, याचिकाकर्ता या भ्रूण के संदर्भ में किसी भी चिकित्सा कारण के अभाव में, आर्थिक पिछड़ापन या सामाजिक कलंक की आशंक अदालत को वैधानिक निषेध की अवहेलना करने और गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति की अनुमति देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।

    केस टाइटल: रामसियामोल आरएस बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    केरल यूनिवर्सिटी यूजीसी के नियमों के विपरीत प्रोफेसरों के लिए ऊपरी आयु सीमा लागू करने वाला पहला कानून संचालित नहीं कर सकता: हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता पर यूजीसी विनियम (यूजीसी विनियम 2018) प्रोफेसर की स्थिति के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा लागू नहीं करता है तो केरल यूनिवर्सिटी के पहले क़ानून 1977 में कोई भी शर्त नहीं हो सकती।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा, "जब "यूजीसी विनियम 2018" ने जानबूझकर प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के उद्देश्य के लिए ऊपरी आयु सीमा की शर्त को लागू करने से इनकार कर दिया तो मैं यह समझने में विफल हूं कि केरल यूनिवर्सिटी के "प्रथम क़ानून" में इस तरह की कोई भी अनुबंध कैसे है। विशेष रूप से जब इसे वर्ष 1986 में शुरू किया गया- "यूजीसी विनियमन" तैयार किए जाने से बहुत पहले - याचिकाकर्ताओं जैसे व्यक्तियों की हानि के लिए काम कर सकता है।"

    केस टाइटल: सेबस्टियन जोसेफ और अन्य बनाम केरल यूनिवर्सिटी और अन्य।

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    बंदी के प्रतिनिधित्व पर विचार करने में 14 दिनों का अत्यधिक और अस्पष्टीकृत विलंब निवारक निरोध आदेश को रद्द करने के लिए पर्याप्त: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में निवारक निरोध के एक आदेश को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि बंदी की ओर से किए गए अभ्यावेदन पर विचार करने में 14 दिनों की असाधारण और अस्पष्टीकृत देरी की गई थी।

    कोर्ट ने कहा, इस विषय में, माना जाता है कि माननीय मंत्री गृह, मद्य निषेध और आबकारी विभाग की ओर से अभ्यावेदन पर विचार करने में 14 दिनों का अत्यधिक और अस्पष्टीकृत विलंब किया गया है। इसलिए आक्षेपित निरोध आदेश निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

    केस टाइटल: लिली पुष्पम बनाम अतिरिक्त मुख्य सचिव और अन्य

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    दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 96 के तहत अंतरिम अधिस्थगन विशेष गारंटर तक सीमित है और समान ऋण के अन्य व्यक्तिगत सह-गारंटरों की रक्षा नहीं करेगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में भूषण स्टील लिमिटेड के लेनदारों द्वारा भूषण स्टील के पूर्व प्रमोटरों बृज भूषण सिंघल और नीरज सिंघल के खिलाफ पैसे की वसूली के लिए दायर किए गए दो समरी मुकदमों से निपटने के दौरान कहा कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC/Code) की धारा 96 के तहत अंतरिम स्थगन किसी विशेष देनदार के सभी ऋणों के लिए विशिष्ट है और अन्य व्यक्तिगत सह-गारंटरों पर लागू नहीं होगा।

    केस टाइटल: एक्सिस ट्रस्टीशिप सर्विसेज लिमिटेड बनाम बृज भूषण सिंघल और अन्य।

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    दुर्घटना के समय बाइकर रात में सड़क पर खड़े वाहन की पार्किंग लाइट बंद होने पर अंशदायी लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा है कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत एक खड़े/रुके हुए टेंपो को टक्कर मारने के लिए मोटरसाइकिल सवार को आंशिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, अगर उक्त टेंपो/वाहन की पार्किंग लाइट बंद थी।

    अदालत ने ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 13 लाख के मुआवजे को बढ़ा दिया और माना कि बाइकर के परिजन याचिका दायर करने की तारीख से इसकी प्राप्ति तक की अवधि के लिए छह प्रतिशत ब्याज के साथ 39,51,256 रुपये का मुआवजा पाने के हकदार हैं।

    केस टाइटल- मोहिनी मोहनराव सालुंके व अन्य बनाम रामदास हनुमंत जाधव व अन्य

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    सीबीआई आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना देने के लिए उत्तरदायी नहीं, धारा 24 के तहत छूट: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले मे कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) आरटीआई एक्ट के तहत मांगी गई किसी भी जानकारी को प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि यह दूसरी अनुसूची में शामिल उन संगठनों में है, जिन्हें आरटीआई एक्ट की धारा 24 के विचार के तहत छूट दी गई है।

    आरटीआई एक्ट की धारा 24 के अनुसार, एक्ट दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट खुफिया और सुरक्षा संगठनों, जो केंद्र सरकार द्वारा स्थापित संगठन हैं या ऐसे संगठनों द्वारा उस सरकार को दी गई कोई भी जानकारी है, पर लागू नहीं होगा। [भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित जानकारी को छूट नहीं है।]

    केस टाइटल: एस. राजीव कुमार बनाम निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो

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    अनारक्षित कैटेगरी के उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया से बाहर रखा जा सकता है यदि क़ानून आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार की अनुपस्थिति में भी उनके विचार को अस्वीकार करता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया से ही बाहर रखा जा सकता है, यदि क़ानून उपयुक्त उम्मीदवारों की अनुपस्थिति में भी किसी विशेष आरक्षित श्रेणी के लिए निर्धारित रिक्तियों के लिए उनके विचार को अस्वीकार कर देता है। जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा ने कहा कि ओपन कैटेगरी के उम्मीदवारों को इस तरह की चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने से उन्हें केवल "झूठी उम्मीद" मिलेगी।

    उपस्थिति: यूनिवर्सिटी के लिए सरकारी वकील दिनेश मैथ्यू जे. मुरिकेन; प्रतिवादियों की ओर से एडवोकेट एम.पी.श्रीकृष्णन।

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    अनुकंपा नियुक्ति के लिए बेटी का आवेदन केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने बाद में शादी कर ली: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने पिता की मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वाली एक विवाहित महिला द्वारा दायर एक रिट याचिका का निपटारा करते हुए उसे इस तरह की नियुक्ति का दावा करने का हकदार माना है, क्योंकि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन उसने तब किया था, जब वह अविवाहित थी।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसके मृत पिता राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में अंग्रेजी शिक्षक के रूप में काम करते थे और उनकी मृत्यु 29.11.2008 को हुई। याचिकाकर्ता ने उस समय अविवाहित होने के कारण पिता की मृत्यु के कुछ दिनों बाद 12.12.2008 को मृतक सरकारी सेवकों के आश्रितों की राजस्थान अनुकंपा नियुक्ति नियम, 1996 के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए एक आवेदन दायर किया। आवेदन जमा करने के एक साल बाद याचिकाकर्ता ने शादी कर ली।

    केस टाइटल: क्षमा चतुर्वेदी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

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    किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवार दिल्ली अधीनस्थ सेवाओं में आरक्षण के हकदार हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अधिसूचित आरक्षित श्रेणियों के सभी उम्मीदवार दिल्ली अधीनस्थ सेवाओं में आरक्षण लाभ के हकदार होंगे।

    हाईकोर्ट ने कहा, "यदि कोई उम्मीदवार अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने में सक्षम है, जो अन्यथा केवल सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जा सकता है, जहां ऐसा उम्मीदवार सामान्य रूप से निवासी है- उसे अधिूसचना में निर्दिष्ट नियम के अनुसार, आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: आशु और अन्य बनाम रजिस्ट्रार जनरल, दिल्ली हाईकोर्ट और अन्य।

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    कमर्शियल सूट में लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति सिर्फ इस आधार पर नहीं दी जा सकती कि वाद खारिज करने का आवेदन लंबित है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वाणिज्यिक मुकदमों में लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति केवल इस आधार पर नहीं दी जा सकती निर्धारित समय सीमा (120 दिनों की) से अधिक नहीं दी जा सकती कि प्रतिवादी द्वारा दायर वादपत्र लंबित है।

    वाणिज्यिक मुकदमे में लिखित बयान दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने की मांग करने वाले ऐसे आवेदन पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने दोहराया कि लिखित बयान दाखिल करने को स्थगित करने का ऐसा निर्देश केवल साधारण मूल सिविल में दायर किए गए मुकदमों के संबंध में दिया जा सकता है।

    केस टाइटल: मेसर्स. नियो कार्बन्स प्रा. लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, सीएस 45/2022

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    कर्मचारी का प्रदर्शन "व्यक्तिगत जानकारी", जिसे आरटीआई एक्‍ट की 8(1)(j) के तहत छूट प्राप्तः जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शनिवार को दोहराया कि "किसी संगठन में किसी कर्मचारी या अधिकारी का प्रदर्शन मुख्य रूप से कर्मचारी और नियोक्ता के बीच का मामला है और व्यक्तिगत जानकारी के अर्थ में आता है।"

    केंद्रीय विद्यालय संगठन की ओर से दायर एक याचिका पर जस्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस सिंधु शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी की, जिसमें केंद्रीय सूचना आयुक्त के निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्होंने आरटीआई के तहत आवेदक को "बिंदु-वार पूर्ण और सच्ची जानकारी" प्रस्तुत करने का निर्देश जन सूचना अधिकारी को दिया था।।

    केस टाइटल: केंद्रीय विद्यालय संगठन और अन्य बनाम केंद्रीय सूचना आयोग

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    सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत फोरम को नागरिक अधिकारों पर स्पष्ट निष्कर्ष देने की आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत बनाए गए फोरम नागरिक अधिकारों के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए "न तो बाध्य हैं और न ही कर्तव्य के तहत रखे गए हैं" जिनका दावा पक्षकारों द्वारा किया जाता है।

    जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा, "उन कार्यवाही का प्राथमिक विचार सीनियर सिटीजन के हितों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें बुढ़ापे में परेशान या उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाए।"

    केस टाइटल: मनीष गुप्ता बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य

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    बिजली नियामक आयोग को बिजली चोरी से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि राज्य का विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) बिजली अधिनियम, 2003 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग में बिजली चोरी के मुद्दों का निर्णय नहीं कर सकता।

    जस्टिस निरजार एस. देसाई की पीठ गुजरात विद्युत नियामक आयोग के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा उसके समक्ष बिजली चोरी के मामले में उसके खिलाफ जांच की संस्था को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल - मितुलभाई रणछोड़भाई लखानी बनाम गुजरात विद्युत नियामक आयोग [विशेष नागरिक आवेदन संख्या। 20013/2022]

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    अनुसूचित जाति आयोग किसी विशेष स्थान या संवर्ग में किसी व्यक्ति की पदोन्नति या पदस्थापन का आदेश नहीं दे सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग प्रभावी तरीके से निर्णय लेने के उद्देश्य से दीवानी अदालत की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, लेकिन वह अधिकारियों को किसी व्यक्ति को पदोन्नति देने या उसे विशेष स्टेशन या स्थान पर किसी पद पर पदस्थ करने का निर्देश नहीं दे सकता है।

    जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा, "राष्ट्रीय आयोग को किसी विशेष पद या स्थान पर किसी कर्मचारी को स्थानांतरित करने के लिए कोई निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं है। पदोन्नति भी सेवा की एक शर्त है और सभी पदोन्नति सेवा नियमों के अनुसार सख्ती से दी जानी चाहिए।"

    केस टाइटल: भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और अन्य

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