बंदी के प्रतिनिधित्व पर विचार करने में 14 दिनों का अत्यधिक और अस्पष्टीकृत विलंब निवारक निरोध आदेश को रद्द करने के लिए पर्याप्त: मद्रास हाईकोर्ट
Avanish Pathak
8 Nov 2022 7:59 AM GMT
![God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2021/02/17/750x450_389287--.jpg)
मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में निवारक निरोध के एक आदेश को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि बंदी की ओर से किए गए अभ्यावेदन पर विचार करने में 14 दिनों की असाधारण और अस्पष्टीकृत देरी की गई थी।
कोर्ट ने कहा,
इस विषय में, माना जाता है कि माननीय मंत्री गृह, मद्य निषेध और आबकारी विभाग की ओर से अभ्यावेदन पर विचार करने में 14 दिनों का अत्यधिक और अस्पष्टीकृत विलंब किया गया है। इसलिए आक्षेपित निरोध आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।
जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आरएमटी टीका रमन एक बंदी की बेटी द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। बंदी को तमिलनाडु प्रिविंशन ऑफ एक्टिवटीज़ ऑफ बूटलेगर्स, ड्रग-ऑफेंडर्स, फॉरेस्ट ऑफेंडर्स, गुंडाज़, इम्मोरल ट्रैफिक ऑफेंडर्स, सैंड ऑफेंडर्स, सैक्सुअल ऑफेंडर्स, स्लम ग्रैबर्स और वीडियो पाइरेट्स एक्ट, 1982 (तमिलनाडु एक्ट 14 ऑफ 1982) के तहत हिरासत में लिया गया था।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उप सचिव की ओर से विचार किए जाने के बाद भी मंत्री-गृह, मद्य निषेध और आबकारी विभाग ने उनके प्रतिनिधित्व पर विचार करने में 14 दिनों की देरी की। इस प्रकार, यह दलील दी गई कि प्रक्रियात्मक रक्षोपायों का घोर उल्लंघन था जो निरोध को दूषित करता है।
दूसरी ओर, अतिरिक्त लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि अभ्यावेदन पर विचार करने में देरी हुई थी, केवल इसी कारण से निरोध आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा, बंदी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं था, जो संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उसके अधिकारों को प्रभावित करेगा।
अदालत ने रेखा बनाम तमिलनाडु राज्य, तारा चंद बनाम राजस्थान राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और सुमैया बनाम सेक्रेटरी टू गवर्नमेंट में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जहां अदालत ने बार-बार माना है कि अस्पष्टीकृत विलंब निरोध को अवैध बनाता है और यह निरोध आदेश को रद्द करने के लिए पर्याप्त है। इसे देखते हुए अदालत ने प्रतिवादियों को हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: लिली पुष्पम बनाम अतिरिक्त मुख्य सचिव और अन्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 456
केस नंबर: HCP No 1223 of 2022