एनडीपीएस एक्‍ट| एलएसडी और ब्लॉटर का संयुक्त वजन मामूली या वाणिज्यिक मात्रा निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Nov 2022 7:30 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्‍ट| एलएसडी और ब्लॉटर का संयुक्त वजन मामूली या वाणिज्यिक मात्रा निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा स्थित पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड (एलएसडी) दवा और इसे ले जाने वाले ब्लॉटिंग पेपर का संयुक्त वजन यह पता लगाने के लिए आवश्यक है कि जब्त की गई दवा छोटी या व्यावसायिक मात्रा है या नहीं और तदनुसार एनडीपीएस अधिनियम के तहत दंड लगाया जाना चाहिए या नहीं।

    अदालत ने यह आदेश एकल न्यायाधीश द्वारा एक संदर्भ पर पारित किया कि क्या जब्त दवा के वजन को निर्धारित करने के लिए अकेले एलएसडी का उपयोग किया जाएगा या एलएसडी और ब्लॉटिंग पेपर के संयुक्त वजन का उपयोग किया जाएगा।

    जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस भरत देशपांडे की खंडपीठ ने माना है कि ब्लॉटर पेपर एलएसडी की खपत को समग्र रूप से सुविधाजनक बनाता है। इसलिए, यह एनडीपीएस अधिनियम के अर्थ में एक प्र‌िपरेशन, मिश्रण या तटस्थ पदार्थ के रूप में है। किसी भी दवा के वजन में मिश्रण या तटस्थ पदार्थ का वजन शामिल होता है, यह कई निर्णय में माना गया है।

    एलएसडी एक साइकोट्रॉपिक पदार्थ है जैसा कि एनडीपीएस अधिनियम की अनुसूची में प्रविष्टि 4 के साथ पठित धारा 2(xxiii) के तहत परिभाषित किया गया है, और 19 अक्टूबर 2001 की एक अधिसूचना के अनुसार, 0.002 ग्राम एलएसडी को छोटी मात्रा माना जाता है और 0.1 ग्राम को व्यावसायिक मात्रा माना जाता है।

    ज‌स्टिस एसके शिंदे की एकल न्यायाधीश पीठ ने मामले को संदर्भ‌ित कर दिया था। उन्होंने कहा था कि हितेश हेमंत मल्होत्रा ​​बनाम महाराष्ट्र राज्य में माना गया है कि केवल शुद्ध एलएसडी का वजन गिना जाता है; जबकि अनुज केशवानी में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की समन्वय पीठ ने माना कि ब्लॉटर के साथ एलएसडी का संयुक्त वजन ऐसे मामलों में निर्धारक है।

    एडवोकेट रिजवान मर्चेंट ने प्रस्तुत किया कि अनुज केशवानी का फैसला एक गलत धारणा पर आधारित था कि उपभोक्ता हमेशा ब्लॉटिंग पेपर निगलते हैं और दवा को इसके वाहक से अलग करना असंभव होता है। हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि एक बार जब उपभोक्ता एलएसडी को ब्लॉटर से चाट लेता है, तो कागज सौम्य हो जाता है। चूंकि ब्लॉटर से एलएसडी की सटीक सामग्री को निर्धारित करने की एक विधि थी, इसलिए यह तय करने के लिए कि दवा की मात्रा छोटी, मध्यवर्ती या व्यावसायिक है, ब्लॉटर के वजन पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    दूसरी ओर अभियोजन पक्ष के लिए एएसजी अनिल सिंह ने संशोधन अधिनियम 2016 के उद्देश्यों और कारणों के कथन पर भरोसा किया। उन्होंने कहा कि चैपमैन या फिंच के अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई निर्णयों में निर्धारित सिद्धांत इस मुद्दे पर लागू होंगे और उन पर विचार किया जाना चाहिए।

    शुरुआत में अदालत ने नोट किया कि एलएसडी के भंडारण, परिवहन, छुपाने, बेचने, खरीदने, उपभोग करने या अन्यथा व्यवहार करने का सबसे आम तरीका इसे एक ब्लॉटर में लगाना था। ऐसा ब्लॉटर सामान्य इंक ब्लॉटर नहीं है बल्कि चावल, कपास, या फ्लेक्स बीजों से बना एक अति-पतला, अति-अवशोषक ब्लॉटर है। यह ब्लॉटर तब जीभ के नीचे रखा जाता है और अधिकतर निगल लिया जाता है क्योंकि एलएसडी अत्यंत शक्तिशाल होता है।

    अदालत ने कहा कि हीरा सिंह के फैसले में अदालत ने कहा कि अवैध दवाएं शायद ही कभी अपने शुद्ध रूप में बेची जाती हैं। यह पाया गया कि मर्चेंट का ब्लॉटर के सौम्य होने का तर्क बिना किसी सबूत के था। इसके अलावा, 2014 के एनडीपीएस अधिनियम संशोधन के बयान और उद्देश्य स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि अधिनियम के तहत परिभाषित "प्र‌िपरेशन" में एक मिश्रण शामिल है।

    कोर्ट ने अनुज केशवानी के मामले में जस्टिस डेरे के तर्क से सहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि 2001 की अधिसूचना के नीचे के नोट से पता चलता है कि किसी विशेष दवा की मात्रा पूरे मिश्रण से संबंधित होती है।

    "उपरोक्त सभी कारणों से, हम मानते हैं कि एक ब्लॉटर पेपर एलएसडी (दवा) का एक अभिन्न अंग होता है जब इसे उपभोग के लिए रखा जाता है और इस तरह एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत आपत्तिजनक दवा की व्यावसायिक मात्रा का निर्धारण करने के लिए एलएसडी युक्त ब्लॉटर पेपर के वजन पर विचार करना होगा।

    इसके अलावा, हम यह भी मानते हैं कि ब्लॉटर पेपर जिसमें दवा (एलएसडी ड्रॉप्स) होती है, जो समग्र रूप से इसके सेवन की सुविधा प्रदान करती है, एनडीपीएस अधिनियम 1985 के अर्थ के भीतर एक प्र‌िपरेशन, मिश्रण या तटस्थ पदार्थ है।"

    केस टाइटल: एचएस अरुण कुमार बनाम गोवा राज्य

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