बिजली नियामक आयोग को बिजली चोरी से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Sharafat

6 Nov 2022 9:19 AM GMT

  • बिजली नियामक आयोग को बिजली चोरी से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि राज्य का विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) बिजली अधिनियम, 2003 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग में बिजली चोरी के मुद्दों का निर्णय नहीं कर सकता।

    जस्टिस निरजार एस. देसाई की पीठ गुजरात विद्युत नियामक आयोग के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा उसके समक्ष बिजली चोरी के मामले में उसके खिलाफ जांच की संस्था को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता दक्षिण गुजरात विज कंपनी लिमिटेड [एक राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण इकाई] का उपभोक्ता था। दिसंबर 2020 में याचिकाकर्ता को बिजली की 'सीधी चोरी' में शामिल होने के बाद कंपाउंडिंग चार्जेस के लिए 52,22,762.16 रुपये और 7,93,566.00 रुपये की राशि का सप्लीमेंट्री बिल जारी किया गया। याचिकाकर्ता को कुल राशि 60,16,328.16 रुपये का भुगतान करने को कहा गया।

    इससे व्यथित याचिकाकर्ता ने गुजरात विद्युत राज्य नियामक आयोग के समक्ष एक याचिका दायर कर प्रार्थना की कि उसके खिलाफ मात्र कल्पना के आधार पर लगाए गए झूठे चोरी के मामले की जांच की जाए और प्रचलित नियमों और कानून के प्रावधानों की अनदेखी करते हुए जारी किए सप्लीमेंट्री बिल की जांच की जाए।

    याचिका में आगे यह प्रार्थना की गई कि याचिका को स्वीकार करने और या अंतिम रूप से निपटाने तक आयोग को दोषपूर्ण मीटर के मामले के रूप में सप्लीमेंट्री बिल की पुनर्गणना करनी चाहिए। याचिका में कुछ अन्य राहतों के लिए भी प्रार्थना की गई थी।

    हालांकि, आयोग ने याचिका के सुनवाई योग्य होने के बिंदु पर ही खारिज कर दिया। आयोग यह देखा कि याचिकाकर्ता का कार्य "ऊर्जा की चोरी" के दायरे में है या नहीं, इस पर इस आयोग द्वारा बिजली अधिनियम 2003 के तहत शक्तियों के प्रयोग में निर्णय नहीं लिया जा सकता।

    आयोग ने आगे जोर दिया कि यह विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत गठित विशेष न्यायालय के लिए है कि वह उस पर गौर करे और याचिकाकर्ता के मामले को स्वीकार करने या खारिज करने के लिए उचित आदेश पारित करे। इसी आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    हाईकोर्ट ने आयोग द्वारा व्यक्त की गई राय से सहमति व्यक्त की कि बिजली अधिनियम, 2003 के तहत शक्तियों के प्रयोग में बिजली की चोरी से संबंधित मुद्दों पर आयोग द्वारा निर्णय नहीं लिया जा सकता।

    न्यायालय ने इस प्रकार देखा क्योंकि उसने कहा कि विद्युत अधिनियम की धारा 86 (जो राज्य आयोग के कार्यों से संबंधित है) ऐसे मामलों से निपटने के लिए इसे आयोग का कार्य नहीं बनाती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच शुरू करने के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना विशेष अदालत के समक्ष की जा सकती है।

    कोर्ट ने कहा,

    " इसलिए, अधिनियम की धारा 86 की स्पष्ट और स्पष्ट भाषा पर विचार करते हुए आयोग ने ठीक ही देखा है कि याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर विचार करने के लिए आयोग के अधिकार क्षेत्र में निहित नहीं है ... आयोग ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया है कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना, विद्युत अधिनियम द्वारा ही अधिनियम की धारा 135, 153 और धारा 154 के तहत एक पूर्ण तंत्र प्रदान किया गया है और याचिकाकर्ता को अधिनियम के तहत गठित सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना आवश्यक है जो दीवानी और आपराधिक कानून का फैसला कर सकता है।"

    इस प्रकार अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल - मितुलभाई रणछोड़भाई लखानी बनाम गुजरात विद्युत नियामक आयोग [विशेष नागरिक आवेदन संख्या। 20013/2022]

    साइटेश:

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story