हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

6 Nov 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (31 अक्टूबर, 2022 से 4 नवंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत आरोपी जब्त मवेशियों की अंतरिम कस्टडी का दावा कर सकते हैं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने दोहराया कि आरोपी व्यक्ति को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 ('पीसीए अधिनियम') के तहत कथित अपराध के परिणामस्वरूप जब्त किए गए मवेशियों की अंतरिम कस्टडी में सौंपा जा सकता है।

    जस्टिस रॉबिन फुकन की एकल पीठ ने प्रबंधक, पिंजरापोल देवदर और बनाम चक्रम मोराजी नट और अन्य (1998) में सुप्रीम कोर्ट की निम्नलिखित टिप्पणियों को पुन: प्रस्तुत करना सार्थक पाया: "[पीसीए] अधिनियम की धारा 35 (2) के तहत मजिस्ट्रेट के पास जानवर की अंतरिम कस्टडी पिंजरापोल को सौंपने का विवेक है, लेकिन वह बाध्य नहीं है ... ऐसे मामले में जहां मालिक जानवर की कस्टडी का दावा कर रहा है, पिंजरापोल का कोई अधिमान्य अधिकार नहीं है। यह तय करने में कि क्या पशु की अंतरिम कस्टडी उस मालिक को दी जाए जो अभियोजन का सामना कर रहा है या पिंजरापोल को तो निम्नलिखित कारक प्रासंगिक होंगे: (1) अपराध की प्रकृति और गंभीरता के खिलाफ आरोप लगाया गया; (2) क्या यह कथित पहला अपराध है या वह पहले अधिनियम के तहत अपराधों का दोषी पाया गया है; (3) यदि मालिक अधिनियम के तहत पहले अभियोजन का सामना कर रहा है तो जानवर को जब्त करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, इसलिए अभियोजन के दौरान पशु की कस्टडी के लिए मालिक का बेहतर दावा होगा; (4) निरीक्षण और जब्ती के समय पशु जिस स्थिति में पाया गया; (5) जानवर के फिर से क्रूरता के अधीन होने की संभावना। "

    केस टाइटल: ध्यान फाउंडेशन बनाम असम राज्य और 7 अन्य

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    पॉक्सो एक्ट| 13 साल के लड़के का यह दावा कि आरोपी ने 'गंदी हरकत' की थी, धारा 204 सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया जारी करने के लिए पर्याप्त: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल में कहा कि 13 वर्षीय लड़के का यह कथन कि आवेदक ने 'गंदी हरकत' की है, आरोपी (इस मामले में एक महिला) को बुलाने के लिए धारा 204 सीआरपीसी के अनुसार प्रथम दृष्टया पर्याप्त आधार होगा।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह का कृत्य, यदि ट्रायल में उसका किया जाना साबित हो जाता है तो पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत अपराध हो सकता है, यहां तक कि यौन भावना से एक बच्चे के निजी अंग को छूना भी पोक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत 'यौन हमले' के अंतर्गत आ सकता है।

    केस टाइटलः आरती देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [Application U/S 482 No.-9242 of 2022]

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    नाबालिग के घरेलू हिंसा के आवेदन को उसके बालिग होने पर सुनवाई योग्य होने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत नाबालिग द्वारा दायर घरेलू हिंसा के आवेदन को उसके बालिग होने पर सुनवाई योग्य होने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। जबकि यह पाया गया कि नाबालिग द्वारा दायर आवेदन, जिसका प्रतिनिधित्व उसके प्राकृतिक अभिभावकों या किसी अन्य करीबी व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया, अनियमित है, कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के आवेदन को उस दिन नियमित किया जाता है जब ऐसा आवेदक वयस्क हो जाता है।

    मामला: श्रीकांत रे बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य, सीआरआर 2923/2019

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    ज्ञानवापी : 'शिव लिंग' की वैज्ञानिक जांच से इनकार करने के वाराणसी कोर्ट के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती, एएसआई को नोटिस

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को वाराणसी कोर्ट के 14 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर एक नोटिस जारी किया, जिसमें उसने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर कथित तौर पर पाए गए 'शिव लिंग' की वैज्ञानिक जांच के लिए हिंदू उपासकों की याचिका खारिज कर दी थी।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिवलिंग मिलने वाली जगह को उसी रूप में संरक्षित रखा जाए। सर्वे की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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    धारा 197 सीआरपीसी | यदि आक्षेपित कृत्य सरकारी कर्तव्य के साथ 'उचित गठजोड़' में हो तो लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी प्राप्त की जानी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि यदि किसी लोक सेवक का आक्षेप कृत्य उसके आधिकारिक कर्तव्य के साथ 'उचित सांठगांठ' में है तो सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी प्राप्त की जानी चाहिए।

    दूसरे शब्दों में, न्यायालय का विचार था कि किसी लोक सेवक पर उसके द्वारा किए गए किसी भी कार्य के लिए, जो उसके आधिकारिक कर्तव्य के साथ संबंध‌ित है, उपरोक्त मंजूरी के बिना मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

    केस टाइटल: अजय कुमार बारिक बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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    पदोन्नति पर कर्मचारी की सेवाओं का उपयोग करने के नियोक्ता के अधिकार को रूटीन ट्रांसफर पर सामान्य दिशानिर्देशों से कम नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पदोन्नति पर किसी कर्मचारी की सेवाओं का उपयोग करने के नियोक्ता के अधिकार को वार्षिक या नियमित स्थानान्तरण को विनियमित करने के लिए जारी सामान्य दिशानिर्देशों से कम नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने इस तर्क को भी स्वीकार किया कि भले ही एक कर्मचारी का ट्रांसफर, जो एक ट्रांसफरेबल नौकरी में है, कार्यकारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन है, अदालत को आम तौर पर ऐसे ट्रांसफर में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि दुर्भावना का आधार न बनाया जाए।

    केस टाइटल: सुमित डागर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    'गिरफ्तारी से रोकने का इरादा' आईपीसी 216 के तहत आश्रय के अपराध का गठन करने के लिए एक आवश्यक घटक: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि धारा 216 आईपीसी में प्रयुक्त शब्द "हार्बर" को उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए‌, हालांकि, 'इरादा' अपराध का गठन करने के लिए एक आवश्यक घटक है। यह प्रावधान उस अपराधी को पनाह देने के लिए दंडित करता है, जो हिरासत से भाग गया है या जिसकी गिरफ्तारी का आदेश दिया गया है।

    जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा, आईपीसी की धारा 216 में प्रयुक्त 'हार्बर' शब्द का अर्थ उदारतापूर्वक लगाया जाना चाहिए। जिस व्यक्ति के कहने पर आश्रय दिया जाता है, वह अपराध करता है, लेकिन जो घोषित अपराधी हैं उन्हें केवल भोजन देना धारा 216 के अर्थ में अपराध नहीं है क्योंकि इस आशय के किसी भी सबूत के अभाव में यह नहीं माना जा सकता है कि आवेदक/आरोपी का इरादा मुख्य आरोपी को पकड़ने से रोकना था। यह दिखाया जाना चाहिए कि यह शरणागत व्यक्ति को पकड़ने से रोकने के इरादे से था।

    केस टाइटल: सरिता बाई बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    विभागीय कार्रवाई के खिलाफ 'दया याचिकाओं' की डीजीपी द्वारा सुनवाई करना असंवैधानिक: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी भी कानून के तहत किसी भी दोषी व्यक्ति की दया याचिका पर विचार करने की शक्ति, जिस तक राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार केवल राज्य के राज्यपाल के पास है। इस प्रकार, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) कार्यालय को विभागीय कार्रवाई में पारित आदेशों के खिलाफ दया याचिकाओं पर विचार करने की कोई वैधानिक शक्ति नहीं है। इस प्रकार डीजीपी द्वारा सत्ता का ऐसा प्रयोग भारतीय संविधान का उल्लंघन है।

    केस टाइटल: प्रसन्ना गुणसुंदरी बनाम पुलिस उप महानिरीक्षक और अन्य

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    मध्यस्थता प्राधिकरण के बिना लागू दोष की पुष्टि नए बोर्ड के प्रस्ताव से नहीं की जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह मुद्दा कि क्या मध्यस्थता को लागू किया गया और दावा का विवरण दावेदार द्वारा विधिवत अधिकृत व्यक्ति द्वारा दायर किया गया, मामले की तह तक जाता है, जिसके संबंध में मध्यस्थ न्यायाधिकरण अंतिम निर्णय ले सकता है। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश दावेदार को उसके द्वारा पारित बोर्ड के प्रस्ताव को साबित करने, उसके अधिकृत प्रतिनिधि को नियुक्त करने या नया बोर्ड प्रस्ताव पारित करने का विकल्प प्रदान करना अंतरिम अवार्ड है, जिसे मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 34 के तहत चुनौती दी जा सकती है।

    केस टाइटल: सुषमा आर्य और अन्य बनाम पामव्यू ओवरसीज लिमिटेड और अन्य।

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    चेक बाउंस मामले में आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील सेशन कोर्ट में नहीं की जा सकती : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि चेक बाउंस मामले में आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील केवल सीआरपीसी की धारा 378(4) के तहत हाईकोर्ट में दायर की जा सकती है, न कि सत्र न्यायालय के समक्ष।

    जस्टिस शुभेंदु सामंत की पीठ ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत एक शिकायतकर्ता सीआरपीसी की धारा 2 (डब्ल्यूए) के तहत पीड़ित नहीं है और इसलिए, वह सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान के अनुसार दोषमुक्ति के खिलाफ अपील दायर नहीं कर सकता।

    केस टाइटल - सुश्री टोडी इन्वेस्टर्स बनाम आशीष कुमार। दत्ता और एन.

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    यदि धारा 138 एनआई एक्ट के तहत जारी डिमांड नोटिस में अभियुक्त का पता सही है तो डाक रसीद में भिन्नता के कारण डिलिवरी का प्रश्न ट्रायल में तय किया जाए: जएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि यदि शिकायत में और साथ ही नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत मांग के नोटिस में आरोपी के सही पते का उल्लेख किया गया है, तो डाक रसीद में पते की भिन्नता मात्र से यह धारणा नहीं बनती है कि नोटिस गलत पते पर भेजा गया था। कोर्ट ने कहा, "इन परिस्थितियों में, यह सवाल कि क्या याचिकाकर्ता/ आरोपी को वास्तव में मांग का नोटिस प्राप्त हुआ है, मामले की सुनवाई के दौरान ही निर्धारित किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: तमन्ना बनाम खुशमीला

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    कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग के पास सेवा मामलों में कोई निर्णायक शक्ति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग को कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग अधिनियम, 2002 के तहत न्यायिक शक्तियां प्रदान नहीं की गई हैं और यह सेवाओं के नियमितीकरण का निर्देश नहीं दे सकता है।

    जस्टिस एसजी पंडित की एकल पीठ ने कर्नाटक आवासीय शैक्षणिक संस्थान सोसायटी के कार्यकारी निदेशक-सह-नियुक्ति प्राधिकरण द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और मोरारजी देसाई आवासीय स्कूल, अरकेरी के प्रधानाचार्य के रूप में ज्योति मल्लप्पा सवानाल्ली की सेवा को नियमित करने के आयोग के 2016 के आदेश को रद्द कर दिया।

    केस नंबर: रिट याचिका संख्या 36193/2016

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    मध्यस्थों में से एक की मृत्यु- लेकिन मृत्यु से पहले अवार्ड पारित करने का निर्णय लिया तो मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 10 के विपरीत नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने मुख्य रूप से उस दिन निर्णय पारित करने का निर्णय लिया जब मध्यस्थ न्यायाधिकरण के सभी सदस्य उपस्थित थे, केवल इसलिए कि विस्तृत निर्णय उस दिन पारित किया गया जब मध्यस्थ के सदस्यों में से एक ट्रिब्यूनल जीवित नहीं था और इस प्रकार केवल दो सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया तो यह नहीं कहा जा सकता कि निर्णय मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 10 के विपरीत है।

    केस टाइटल: मेसर्स राम जूनावा इंडस्ट्रीज बनाम मेसर्स रौनक स्टील्स

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    व्यभिचार में रहने वाली पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि व्यभिचार में रहने वाली पत्नी तलाक की डिक्री पारित होने के बाद अपने पति से स्थायी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार नहीं होगी। मामले में अपीलकर्ता-पत्नी ने फैमिली कोर्ट, अंबाला के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की, जिसके फैसले से फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी-पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i) और 13(1)(बी) के तहत दायर तलाक की याचिका को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटल: एबीसी बनाम एक्सवाईजेड और अन्य।

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    अनुकंपा नियुक्ति | किसी व्यक्ति को केवल इसलिए वित्तीय रूप से स्थिर नहीं माना जा सकता क्योंकि उसने शादी कर ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति का विवाह अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का कोई आधार नहीं है क्योंकि वैवाहिक संबंध में प्रवेश करने से यह धारणा नहीं बनती कि व्यक्ति आर्थिक रूप से स्थिर है।

    इसके साथ ही जस्टिस विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने डीआईजी (स्थापना) पुलिस मुख्यालय, उत्तर प्रदेश के एक आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें यूपी पुलिस के एक सिपाही के छोटे बेटे को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था, जिनकी सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी।

    केस टाइटल- गोमती देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [WRIT A No- 17078 Of 2015]

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    सेवा से बर्खास्तगी पर ग्रेच्युटी की जब्ती स्वतः नहीं होगी, प्रभावित पक्ष को कारण बताओ नोटिस जरूरी: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के अनुसार सेवा से बर्खास्तगी पर ग्रेच्युटी की जब्ती स्वत: नहीं होती है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने कहा कि प्रभावित पक्ष को कारण बताओ नोटिस जरूरी है।

    पीठ सियाराम बसंती द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिसे कदाचार के लिए विभागीय जांच के बाद ग्रामीण बैंक में 33 साल की सेवा के बाद बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने अपनी भविष्य निधि राशि, ग्रेच्युटी राशि और छुट्टी नकदीकरण जारी करने की मांग की।

    केस टाइटल: सियाराम बसंती बनाम छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक और अन्य।

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    ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 25 के तहत सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट "निर्णायक" नहीं होगी, यदि यह उस व्यक्ति को नहीं दी जाती है, जिससे नमूना एकत्र किया गया था: जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि एक सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 25 (3) के तहत केवल उस व्यक्ति के खिलाफ निर्णायक होगी जो रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त करने के बावजूद 28 दिनों की अवधि के भीतर रिपोर्ट के विवाद में सबूत पेश करने के अपने इरादे को सूचित करने में विफल रहा है।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ और सह-आरोपियों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, श्रीनगर की अदालत में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 18(ए)(i) सहपठित धारा 27(डी) के के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए दायर शिकायत को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: मेसर्स स्विस गार्नर लाइफ साइंसेज और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया।

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    बलात्कार के आरोपी के डीएनए नमूने लेना आत्म-अपराध के खिलाफ उसके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के तहत गारंटीकृत सुरक्षा एक आपराधिक मामले की जांच के दौरान किसी आरोपी को अपना रक्त नमूना देने के लिए मजबूर करने से बचाने के लिए विस्तारित नहीं होती है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि अनुच्छेद 20(3) का विशेषाधिकार केवल प्रशंसापत्र साक्ष्य पर लागू होता है और एक आपराधिक मामले में एक आरोपी के शरीर से डीएनए नमूने लेना, विशेष रूप से यौन अपराध से जुड़े मामले में, अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षित आत्म-अपराध के खिलाफ उसके अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा।

    केस टाइटल: दास@अनु बनाम केरल राज्य

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    तलाक की याचिका वापस लेने पर भी परित्यक्त पत्नी अंतरिम भरण पोषण की हकदार: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता उपेक्षित पत्नी के अधिकार का मामला है, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां वह तलाक की मांग वाली याचिका वापस लेती है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "पत्नी द्वारा वापस ली जा रही तलाक की याचिका का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि पत्नी अभी भी पति के साथ वैवाहिक बंधन में है। जब तक प्रतिवादी याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और तथ्य यह है कि उसे पति ने छोड़ दिया है, अंतरिम भरण-पोषण पत्नी के अधिकार का मामला है।"

    केस टाइटल: एक्सवाईजेड बनाम एबीसी

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    एस 41डी सीआरपीसी | एडवोकेट को पूरी पूछताछ के दरमियान आरोपी के साथ उपस्थित रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 41 डी, जो एक आरोपी को जांच एजेंसी द्वारा पूछताछ के दरमियान पसंद के वकील से मिलने का अधिकार देती है, पूरी जांच के दरमियान वकील की उपस्थिति तक विस्तारित नहीं होती है।

    जस्टिस विवेक चौधरी ने मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन को स्वीकार करते हुए जांच के समय विपक्षी पक्ष/अभियुक्तों को सभी के साथ उपस्थित रहने की अनुमति दी, जस्टिस बिबेक चौधरी ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 41D को लागू करने का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित नागरिक के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करना है। इस प्रकार की स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता है। साथ ही कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह जांच और ट्रायल के दरमियान एक नागरिक का एक एडवोकेट द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने के अधिकार और कानून के किसी भी दंडात्मक प्रावधान के तहत दंडनीय अपराध के अपराधी के खिलाफ सत्यता का पता लगाने और सबूत एकत्र करने के लिए जांच एजेंसी की शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखे।"

    केस टाइटल: In Re: प्रवर्तन निदेशालय बनाम श्री अरिजीत चक्रवर्ती और अन्य, CRR No. 3943 of 2022

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    इस्लामिक कानून मुस्लिम महिला के तलाक मांगने के अधिकार को मान्यता देता है, पति की सहमति जरूरी नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पत्नी की इच्छा "पति की इच्छा से संबंधित" नहीं हो सकती। कोर्ट ने उक्त टिप्पणी यह देखते हुए कि इस्लामी कानून एक मुस्लिम महिला के विवाह की समाप्ति की मांग के अधिकार को मान्यता देता है।

    एक फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए, जिसमें अदालत ने एक मुस्लिम महिला को खुला का सहारा लेने के अधिकार को मान्यता दी थी, जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सीएस डायस की खंडपीठ ने कहा, "पत्नी के कहने पर विवाह के खात्मे को मान्यता देने, जबकि पति सहमति देने से इनकार कर रहा हो, के लिए देश मे किसी मैकेनिज्म के अभाव में अदालत केवल यह कह सकती है कि पति की सहमति के बिना महिला खुला का उपयोग कर सकती है।"

    केस शीर्षक: XXXX बनाम XXXXX

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    धारा 138 एनआई अधिनियम | कंपनी को आरोपी बताए बिना चेक अनादर के लिए निदेशक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने दोहराया कि जब किसी कंपनी द्वारा जारी किया गया चेक अनादरित हो जाता है, तो उसके निदेशक के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अभियोजन जारी नहीं रहेगा, यदि कंपनी को आरोपी के रूप में नहीं रखा गया है।

    जस्टिस ए बधारुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून पर भरोसा करते हुए कहा कि कंपनी के निदेशक के खिलाफ अभियोजन केवल इस कारण से है कि निदेशक ने चेक पर हस्ताक्षर किए हैं, अगर कंपनी को मामले में आरोपी के रूप में पेश नहीं किया जाता है तो वह कायम नहीं रहेगा।

    केस टाइटल: कल्लार हरिकुमार बनाम अमृता एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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    भारतीय क्षेत्र से बाहर रहने वाले व्यक्ति के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट जारी नहीं किया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि वह भारत के क्षेत्र से बाहर रहने वाले व्यक्ति के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) का रिट जारी नहीं कर सकता। जस्टिस विवेक रूस और जस्टिस ए.एन. केशरवानी ने कहा कि याचिका खारिज किए जाने योग्य है, क्योंकि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति के दायरे से बाहर किसी चीज के लिए प्रार्थना कर रहा है।

    केस टाइटल: प्रीति कौशलय बनाम भारत संघ और अन्य।

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    वैधानिक प्राधिकरण से पूर्व अनुमति के बिना भूमि उपयोग में परिवर्तन की अनुमति नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैधानिक प्राधिकरण से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना 'भूमि उपयोग' में परिवर्तन की अनुमति नहीं है। यह अवलोकन छत्तीसगढ़ नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, 1973 के अंतर्गत निदेशक की पूर्व अनुमति के बिना 'खुले स्थान' को सामुदायिक केंद्र में बदलने के संदर्भ में किया गया।

    चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू की पीठ ने कहा, "जहां अपील की भूमि निर्विवाद रूप से खुली भूमि/लेआउट में स्थान के रूप में आरक्षित है। हमारा विचार है कि खुली जगह के रूप में आरक्षित भूमि पर सर्व समाज सामुदायिक भवन का निर्माण अवैध है। प्रतिवादी 3/नगर निगम भूमि का उपयोग सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना लेआउट योजना में आरक्षित भूमि के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं कर सकता।"

    केस टाइटल: प्रियदर्शनी गृह निर्माण सहकारी समिति मर्यादित बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    धारा 138 एनआई एक्त के तहत दंड प्रावधान उस व्यक्ति पर हमला करता है, जिसने चेक जारी किया, देयता का स्थानांतरण शिकायत को रद्द करने का आधार नहीं है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि चेक जारी होने के बाद केवल देयता को स्थानांतरित करने का कोई महत्व नहीं होगा क्योंकि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दंडात्मक प्रावधान चेक जारी करने वाले व्यक्ति पर हमला करेंगे, खासकर जब एक प्रथम दृष्टया मामला पहले ही बन चुका हो।

    इस मामले में, चेक के ड्रावर ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की, जो कि इंस्ट्रूमेंट के, इस आधार पर अनादर के बाद कि एक पंजीकृत समझौते के अनुसार मोंटू सैकिया द्वारा पिछले सभी दायित्व उठाए जाएंगे।

    केस टाइटल: आशा बावरी बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं माना जा सकताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 19 साल की देरी होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करने के खिलाफ एक रिट याचिका पर विचार करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का ''आरक्षण''नहीं माना जाना चाहिए।

    जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा, कहने का तात्पर्य यह है कि अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं माना जाना चाहिए। यह एक नियोक्ता द्वारा उस मृत कर्मचारी के परिवार के सदस्यों की तत्काल गरीबी को कम करने के लिए किया गया एक परोपकारी उपाय है, जो कि सेवा के दौरान मर जाता है, और परिवार को उस स्थिति में अचानक और अत्यधिक कठिनाई के साथ रहना पड़ता है, जहां परिवार में कोई अन्य कमाने वाला सदस्य नहीं होता है।

    केस टाइटल- सुधीर कुमार बनाम हरियाणा राज्य व अन्य

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    अभियुक्त की जाति संबंधी कथन और पीड़ित की जाति के बारे में उसकी जागरूकता के अभाव में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(v) आकर्षित नहीं होगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (2) (v) के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए, आरोपित को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं होना चाहिए और पीड़ित की जाति/समुदाय के बारे में उसे जानकारी के साथ अपराध करना दिखाया जाना चाहिए। इस आशय के एक बयान के अभाव में, धारा 3(2)(v) के तहत अपराध को आकर्षित नहीं किया जाएगा।

    केस शीर्षक: XXXXX बनाम केरल राज्य और अन्य

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    एमवी एक्ट की धारा 157 - वाहन का स्थानांतरण करने पर बीमा पॉलिसी को भी हस्तांतरण के पक्ष में स्थानांतरित माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जब मोटर वाहन अधिनियम , 1988 (एमवी एक्ट) में प्रक्रिया का पालन करते हुए किसी वाहन का स्थानांतरण किया गया तो वाहन के संबंध में ली गई बीमा पॉलिसी को भी बिना किसी हस्तांतरण के हस्तांतरण के पक्ष में स्थानांतरित माना जाता है।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान ए.ए. ने आगे कहा, "हालांकि अधिनियम की धारा 157 की उप-धारा (2) इस तरह के हस्तांतरण की सूचना प्रदान करती है, क्योंकि ऐसा करने में विफलता के परिणाम के बारे में क़ानून चुप है, इसे केवल प्रकृति में निर्देशिका के रूप में माना जा सकता है और अनिवार्य नहीं है।"

    केस टाइटल: अन्नाम्मा राजू @ बिन्सी और अन्य बनाम शैलेट जोस और अन्य।

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    मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भू-राजस्व के बकाया की वसूली के लिए पारित भरण-पोषण के आदेश को लागू करने के लिए वारंट जारी कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भू-राजस्व के बकाया की वसूली के लिए पारित भरण-पोषण के आदेश को लागू करने के लिए कलेक्टर को वारंट जारी कर सकता है।

    जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि धारा 125(3) और धारा 421 को एक साथ पढ़ने पर मजिस्ट्रेट को भू-राजस्व के बकाया के रूप में बकाया भरण-पोषण की वसूली के लिए कलेक्टर को वारंट जारी करने का अधिकार देता है।

    केस टाइटल - राम नंद बनाम हीरा लाल [द्वितीय अपील संख्या - 1698 of 1990]

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    पोक्सो एक्ट के तहत युवा प्रेमी-प्रेमिका के बीच पारस्परिक प्रेम को 'यौन हमले' के रूप में नहीं समझा जा सकता: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट (Meghalaya High Court) ने एक नाबालिग के साथी के खिलाफ पोक्सो के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि POCSO एक्ट के अनुसार 'यौन हमला (Sexual Assault)' शब्द को ऐसे कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है जहां एक युवा जोड़े (प्रेमी और प्रेमिका) के बीच आपसी प्रेम और स्नेह है। पॉक्सो के आरोपी और पीड़िता की मां की आपसी समझ से दायर याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल - सिलवेस्टर खोंगला एंड अन्य बनाम मेघालय राज्य एंड अन्य [सीआरएल. याचिका नंबर 45 ऑफ 2022]

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    नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी अमान्य; पॉक्सो एक्ट पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

    एक नाबालिग मुस्लिम लड़की से शादी करने वाले एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर विचार करते हुए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में इस तर्क को खारिज कर दिया कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी यौवन (15 वर्ष की आयु) प्राप्त करने के बाद विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन नहीं मानी जाएगी।

    जस्टिस राजेंद्र बादामीकर की पीठ ने आगे कहा कि पॉक्सो एक्ट एक विशेष अधिनियम है और यह पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता है और इस अधिनियम के अनुसार, यौन गतिविधियों में शामिल होने की आयु 18 वर्ष है।

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    अनुकंपा नियुक्ति| पुनर्वास सहायता योजना के लाभ से विवाहित बेटियों को वंचित नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि एक 'विवाहित बेटी' को उसके पिता की मृत्यु के बाद पुनर्वास सहायता योजना के तहत लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    डॉ जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने अपने पिता की मृत्यु पर एक विवाहित बेटी के अनुकंपा के आधार पर रोजगार पाने के अधिकारों की पुष्टि करते हुए कहा, "... इस अदालत का विचार है कि विवाह अपने आप में अयोग्यता नहीं है और केवल विवाह के आधार पर पुनर्वास सहायता योजना के तहत नियुक्ति प्राप्त करने से 'विवाहित' बेटी के विचार को रोकना और प्रतिबंधित करना स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16(2) में परिकल्पित है।"

    केस टाइटल: बसंती नायक बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य

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