अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं माना जा सकताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Manisha Khatri

1 Nov 2022 8:45 AM GMT

  • अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं माना जा सकताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    Punjab & Haryana High court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 19 साल की देरी होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करने के खिलाफ एक रिट याचिका पर विचार करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का ''आरक्षण''नहीं माना जाना चाहिए।

    जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा,

    कहने का तात्पर्य यह है कि अनुकंपा नियुक्ति को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं माना जाना चाहिए। यह एक नियोक्ता द्वारा उस मृत कर्मचारी के परिवार के सदस्यों की तत्काल गरीबी को कम करने के लिए किया गया एक परोपकारी उपाय है, जो कि सेवा के दौरान मर जाता है, और परिवार को उस स्थिति में अचानक और अत्यधिक कठिनाई के साथ रहना पड़ता है, जहां परिवार में कोई अन्य कमाने वाला सदस्य नहीं होता है।

    यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 2003 में हुई थी और 19 साल बाद, यह अचानक गरीबी का मामला नहीं हो सकता है,जो वर्ष 2003 में थी।

    अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता के पिता सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग में लिपिक के पद पर कार्यरत थे। 28.03.2003 को सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

    राज्य ने याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु से 24 दिन पहले ही मृतक सरकारी कर्मचारी के आश्रितों को हरियाणा अनुकंपा सहायता नियमों को अधिसूचित किया था।

    याचिकाकर्ता की मां ने एक आवेदन दिया जिसे विभाग ने मंजूरी दे दी। याचिकाकर्ता जो अपने पिता की मृत्यु के समय 17 वर्ष का था, अपने पिता की मृत्यु की तारीख से 3 वर्ष के भीतर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने के लिए पात्र हो गया था।

    इसके बाद, राज्य सरकार ने मृतक सरकारी कर्मचारी के आश्रितों को हरियाणा अनुकंपा सहायता नियम, 2006 को अधिसूचित किया, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को विकल्प दिया गया था कि वे 2003 या 2006 के नियमों के तहत कवर होना चाहते हैं। याचिकाकर्ता ने 2003 के नियमों का विकल्प चुना था।

    याचिकाकर्ता ने 2018 में सीएम विंडो में एक शिकायत दर्ज की, जिस पर एक कार्रवाई रिपोर्ट प्राप्त हुई जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को नौकरी की पेशकश नहीं की गई थी क्योंकि विभाग में नौकरियों को सही आकार दिया गया था और याचिकाकर्ता नियुक्ति के लिए वरिष्ठता के मामले में क्रमांक 171 पर था। यह भी उल्लेख किया गया कि याचिकाकर्ता को अब 2006 के नियमों के तहत कवर किया गया है और इसलिए, केवल वित्तीय सहायता के लिए हकदार है।

    याचिकाकर्ता की मां को मुख्य अभियंता के कार्यालय से एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें 2.5 लाख रुपये की अनुकंपा वित्तीय सहायता का दावा करने के लिए दस्तावेज जमा करवाने के लिए कहा गया था। याचिकाकर्ता को सुनवाई के लिए बुलाया गया था और सीएम विंडो में शिकायत दर्ज की गई थी, जिस पर कार्रवाई की रिपोर्ट प्राप्त हुई थी जिसमें कहा गया था कि वह 2003 के नियमों का लाभ नहीं उठा सकता है।

    वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 2003 में हुई थी जब वह केवल 16-17 वर्ष के थे। वह लगभग तीन साल के बाद पात्र हो गया था और अब 19 साल बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता अचानक आई गरीबी से पीड़ित है जैसा उनके साथ वर्ष 2003 में हुआ था।

    ''याचिकाकर्ता की ओर से वर्ष 2022 में इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने में काफी देरी हुई है ... पूरी देरी के लिए याचिकाकर्ता और / या उसके परिवार के सदस्य ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।''

    हालांकि, अदालत ने कहा कि मृत कर्मचारी की विधवा देय ब्याज की लागू दर के साथ मुआवजे की राशि पाने की हकदार है,जो पत्र जारी करने की तिथि (जिसमें मृतक कर्मचारी की विधवा को 2.5 लाख रुपये की अनुकंपा सहायता के संबंध में सुनवाई में भाग लेने के लिए कहा गया था)से भुगतान करने तक की अवधि के लिए दिया जाए।

    केस टाइटल- सुधीर कुमार बनाम हरियाणा राज्य व अन्य

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