इस्लामिक कानून मुस्लिम महिला के तलाक मांगने के अधिकार को मान्यता देता है, पति की सहमति जरूरी नहीं: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

2 Nov 2022 8:11 AM GMT

  • इस्लामिक कानून मुस्लिम महिला के तलाक मांगने के अधिकार को मान्यता देता है, पति की सहमति जरूरी नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पत्नी की इच्छा "पति की इच्छा से संबंधित" नहीं हो सकती। कोर्ट ने उक्त टिप्पणी यह देखते हुए कि इस्लामी कानून एक मुस्लिम महिला के विवाह की समाप्ति की मांग के अधिकार को मान्यता देता है।

    एक फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए, जिसमें अदालत ने एक मुस्लिम महिला को खुला का सहारा लेने के अधिकार को मान्यता दी थी, जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सीएस डायस की खंडपीठ ने कहा,

    "पत्नी के कहने पर विवाह के खात्मे को मान्यता देने, जबकि पति सहमति देने से इनकार कर रहा हो, के लिए देश मे किसी मैकेनिज्म के अभाव में अदालत केवल यह कह सकती है कि पति की सहमति के बिना महिला खुला का उपयोग कर सकती है।"

    अदालत ने कहा,

    एक सामान्य पुनर्विचार यह है दिखाता है कि मुस्लिम महिलाएं पुरुष समकक्षों की इच्छा के अधीन हैं।

    यह पुनर्विचार अपीलकर्ता के के कहने पर नुकसानदेह नहीं लगता है, हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि इसे पादरियों और मुस्लिम समुदाय की वर्चस्ववादी पुरुषत्व ने गढ़ा और समर्थित किया है, जिन्हें मुस्लिम महिलाओं के पास मौजूद खुला जैसा तलाक का अतिरिक्त न्याय‌िक अधिकार पच नहीं पा रहा है।"

    मामला

    मौजूदा मामले में न‌िचली अदालत ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत एक मुस्लिम महिला को तलाक की डिक्री प्रदान की थी, जिसे अपील में चुनौती दी गई। उक्त अपील को खारिज किए जाने के बाद मौजूदा पुनर्विचार याचिका दायर की गई है।

    अपील पर द‌िए फैसले में अदालत ने माना था कि मुस्लिम महिला के कहने पर विवाह समाप्त करने का अधिकार पूर्ण अधिकार है, जिसे पवित्र कुरान ने प्रदान किया है और यह पति की स्वीकृति या इच्छा के अधीन नहीं है।

    अदालत ने कहा था कि अगर कुछ शर्तें पूरी होती हैं तो खुला वैध होगा-

    -पत्नी द्वारा विवाह को अस्वीकार करने या समाप्त करने की घोषणा।

    -विवाह के जरिए प्राप्त दहेज या किसी अन्य भौतिक लाभ को वापस करने का प्रस्ताव।

    -खुला की घोषणा से पहले समझौते का एक प्रभावी प्रयास।

    पुनर्विचार याचिका में यह तर्क दिया गया कि यदि एक मुस्लिम पत्नी अपने पति के साथ अपनी शादी को समाप्त करना चाहती है, तो उसे अपने पति से तलाक की मांग करनी होगी और उसके मना करने पर उसे काजी या अदालत के समक्ष जाना होगा।

    याचिकाकर्ता ने माना कि एक मुस्लिम महिला को अपनी मर्जी से तलाक मांगने का अधिकार है, लेकिन उसे खुला का प्रयोग करने का "कोई पूर्ण अधिकार नहीं" है। दलील दी गई कि दुनिया में कहीं भी मुस्लिम महिला को एकतरफा विवाह को समाप्त करने की अनुमति नहीं है।

    खुला क्या है

    कोर्ट ने पिछले हफ्ते दिए फैसले में कहा कि कुरान के अध्याय 2, आयत 229 खुला से संबंधित है, जिसमें स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि एक मुस्लिम पत्नी को अपनी शादी को समाप्त करने का अधिकार है।

    कोर्ट ने इस्लामिक से पहले के दौर में तलाक पाने के लिए महिलाओं के अधिकार के विकास का पता लगाते हुए कोर्ट ने एक रीसर्च थीसिस पर भरोसा करते हुए कहा कि महिलाओं ने इस्लाम से पहले के दौर में भी एकतरफा तलाक देने के अधिकार का प्रयोग किया।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इस्लामी कानून में यह वांछनीय है कि सभी प्रकार के विवादों को या तो खुद या शासक की सहायता से सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जाए।

    महिला को अपनी मर्जी से शादी खत्म करने का अधिकार

    मुस्लिम विद्वान से वकील बने एडवोकेट हुसैन सीएस ने तर्क दिया कि यदि पति पत्नी के अनुरोध पर तलाक का उच्चारण करने से इनकार करता है तो एक काजी के पास तलाक का उच्चारण करने की शक्ति होती है, और एक काजी की अनुपस्थिति में आधुनिक न्यायालय काजी की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

    अदालत ने कहा कि जब ऐसी स्थिति में महिला अदालत से संपर्क करती है तो उसे न तो फैसला सुनाने के लिए कहा जाता है और न ही स्थिति की घोषणा करने के लिए कहा जाता है, बल्कि केवल पत्नी की ओर से शादी को समाप्त करने की बात कही जाती है।

    कोर्ट ने कहा कि खुला को तलाक के एक तरीके के रूप में मान्यता दी गई है, और यही कारण है कि पुनर्विचार के तहत आदेश में कोर्ट ने व्याख्या की कि अवशिष्ट आधार, जिसे मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 धारा 2 (ix) के तहत संदर्भित किया गया है, उसके प्रावधानों की तुलना खुला से नहीं की जा सकती।

    इसमें कहा गया है, "मुस्लिम विवाह अधिनियम का विघटन केवल मुस्लिम महिलाओं के कहने पर दोष के आधार पर विवाह के विघटन पर विचार करता है।"

    यह देखते हुए कि सुन्नत इस्लामी कानून में प्राथमिक कानून को खत्म या निरस्त नहीं कर सकती है, अदालत ने कहा,

    यदि कुरान, स्पष्ट शब्दों में, पति-पत्नी को अपनी मर्जी से अपनी शादी को समाप्त करने की अनुमति देता है, तो खुला के मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि खुला के मामले में सुन्नत पति की इच्छा के अधीन इसे और योग्य बनाती है।

    अदालत ने यह भी दर्ज किया कि पुनर्विचार याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि न तो कुरान और न ही सुन्नत उस स्थिति में कोई मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, जब पति तलाक का उच्चारण करने से इनकार करता है, और ऐसी स्थिति में पीठ ने कहा कि इस्लाम ने ही इस तरह की स्थिति के निस्तारण के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया है, जहां कानूनी शून्य पैदा होता है।

    अदालत ने कहा कि अगर पुनर्विचार याचिकाकर्ता की दलीलें स्वीकार कर ली जाती हैं, भारत में मुस्लिम महिलाओं को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जहां कुरान द्वारा उन्हें दिए गए इस अधिकार को लागू करने के लिए कोई समाधान उपलब्ध नहीं होगा।

    अदालत ने फैसले पर पुनर्विचार करने का कोई कारण नहीं पाया और याचिका को खारिज कर दिया।

    केस शीर्षक: XXXX बनाम XXXXX

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 559

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