एस 41डी सीआरपीसी | एडवोकेट को पूरी पूछताछ के दरमियान आरोपी के साथ उपस्थित रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट
Avanish Pathak
2 Nov 2022 2:33 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 41 डी, जो एक आरोपी को जांच एजेंसी द्वारा पूछताछ के दरमियान पसंद के वकील से मिलने का अधिकार देती है, पूरी जांच के दरमियान वकील की उपस्थिति तक विस्तारित नहीं होती है।
जस्टिस विवेक चौधरी ने मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन को स्वीकार करते हुए जांच के समय विपक्षी पक्ष/अभियुक्तों को सभी के साथ उपस्थित रहने की अनुमति दी, जस्टिस बिबेक चौधरी ने कहा,
"सीआरपीसी की धारा 41D को लागू करने का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित नागरिक के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करना है। इस प्रकार की स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता है।
साथ ही कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह जांच और ट्रायल के दरमियान एक नागरिक का एक एडवोकेट द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने के अधिकार और कानून के किसी भी दंडात्मक प्रावधान के तहत दंडनीय अपराध के अपराधी के खिलाफ सत्यता का पता लगाने और सबूत एकत्र करने के लिए जांच एजेंसी की शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखे।"
इसलिए, यह माना गया कि धारा 41 डी सीआरपीसी का मतलब यह नहीं है कि पसंद के वकील को पूरी पूछताछ के दरमियान उपस्थित रहने की अनुमति दी जाएगी।
मौजूदा मामले में कार्यवाही मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 के तहत ईडी ने स्थापित की थी, जिसने परिचय के माध्यम से विभिन्न बैंक खातों से खरीदे गए हैं, जिसने झूठे और जाली ऑनलाइन गेमिंग ऐप को इट्रोड्यूस करने और सर्कूलेट करने के माध्यम से विभिन्न बैंक खातों से खरीदे गए क्रिप्टोकरेंसी और बिटक्वाइन्स के माध्यम से बड़ी मात्रा में धन के आपराधिक दुरुपयोग के आरोप की जांच कर रही थी।
उक्त जांच के तहत पीएमएलए की धारा 19 के तहत कई आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और इसके बाद उक्त आरोपियों को मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया।
ईडी के वकील ने तर्क दिया कि धारा 41डी की सरल भाषा के संदर्भ में, मजिस्ट्रेट पूछताछ के दरमियान पसंद के वकील से मुलाकात करने के आरोपी के वैधानिक अधिकार के और जांच के दरमियान मौजूद रहने के का निरंकुश अधिकार देने के बीच अंतर को समझने में विफल रहे इस प्रकार उक्त प्रावधान को गलत तरीके से समझा..।
ईडी ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के अवलोकन पर आपत्ति जताई, जिसके तहत आरोपियों को एजेंसी की हिरासत में हर 24 घंटे में एक बार चिकित्सा परीक्षण करना आवश्यक किया गया था। एजेंसी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [1997 (1) एससीसी 416] निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है।
अपने अंतरिम आदेश में हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को ईडी की हिरासत में नजरबंदी के दरमियान दिन में एक बार आधे घंटे के लिए अपने पसंद के वकील से मिलने की अनुमति दी। मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को भी डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [1997 (1997) 1) एससीसी 416] में निर्धारित दिश निर्देशों की हद तक संशोधित किया गया था।
अदालत की छुट्टी के एक सप्ताह बाद मामले को फिर से सूचीबद्ध किया गया है।
केस टाइटल: In Re: प्रवर्तन निदेशालय बनाम श्री अरिजीत चक्रवर्ती और अन्य, CRR No. 3943 of 2022