हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

30 Jan 2022 7:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 जनवरी, 2022 से लेकर 28 जनवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण की कार्यवाही में सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को कोर्ट हड़प नहीं सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पक्षकारों की वैवाहिक स्थिति तय करने का कार्य सिविल कोर्ट को सौंपा गया है। कोई अन्य न्यायालय सीआरपीसी की धारा 125 के तहत धारा के तहत भरण पोषण की कार्यवाही की बिनाह पर सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को हड़प नहीं सकता।

    जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 की सामाजिक मंशा को संरक्षित करने के लिए मजिस्ट्रेट प्रथम दृष्टया विवाह के तथ्य के बारे में निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकता है, जो भरण पोषण के आदेश के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए निर्णायक निष्कर्ष नहीं होगा।

    शीर्षक: मोहम्मद शकील @ शकील अहमद बनाम एमएसटी सबिया बेगम और अन्य

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    आईपीसी की धारा 397 के तहत सजा बरकरार रखने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि डकैती के दौरान इस्तेमाल 'हथियार की प्रकृति' घातक थी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की दोषसिद्धी और सजा में संशोधन किया। अभियोजन पक्ष घातक हथियार के इस्तेमाल को साबित करने में विफल रहा, जिसके बाद कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धी और सजा को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 397 से धारा 392 के तहत कर दिया। जस्टिस मुक्ता गुप्ता का विचार था कि अभियोजन को चाकू या ब्लेड के अपराध में इस्तेमाल हथियार की प्रकृति को साबित करना आवश्यक था।

    केस शीर्षक: आसिफ बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली)

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    मोटर दुर्घटना दावा- गुणक को पूर्ण आयु के आधार पर निर्धारित किया जाए, न कि वर्तमान आयु के आधार पर: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि मोटर दुर्घटना दावों में मुआवजे की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले गुणक को मृतक/घायल की प्राप्त उम्र (attained age) के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए, न कि मौजूदा उम्र (running age) के आधार पर। जस्टिस सीएस डायस ने कहा कि जब 50 वर्ष और 7 महीने की आयु के व्यक्ति की मोटर दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, तो 46-50 आयु वर्ग पर लागू गुणक लागू होगा, न कि 51-55 के आयु वर्ग पर लागू होने वाला गुणक।

    केस शीर्षक: पीओ मीरा और अन्य बनाम आनंद पी नाइक और अन्य।

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    सरकारी कर्मचारी होना बलात्कार मामले में जमानत का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ सरकारी कर्मचारी होने के आधार पर बलात्कार के आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती। जस्टिस एचपी संदेश ने श्रीनिवास मूर्ति एच.एन. द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा, "तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मचारी है, उसे जमानत पर बरी करने का आधार नहीं है, जब याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार के गंभीर अपराध का आरोप लगाया गया है।"

    केस शीर्षक: श्रीनिवास मूर्ति एच.एन. और कर्नाटक राज्य

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    एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध के लिए जब्त वाहन की अंतरिम कस्टडी देने पर कोई रोक नहीं: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इस आधार पर कि वाहन एनडीपीएस अधिनियम की धारा 60 के तहत जब्त हुआ है, यह नहीं माना जा सकता कि एक बार वाहन को एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध के लिए जब्त कर लिया जाता है तो उसे अंतरिम कस्टडी में नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने आगे कहा कि एनडीपीएस अधिनियम में भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 52सी में निहित अंतरिम कस्टडी देने के संबंध में कोई रोक नहीं है।

    केस का शीर्षक - सुरेंद्र धाकड़ बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    फर्जी मेडिकल रिकॉर्ड के जरिए झूठे मोटर दुर्घटना दावे: मद्रास हाईकोर्ट ने वापस लिए गए 84 दावों की जांच का आदेश दिया

    फर्जी मोटर दुर्घटना दावों के आरोपों के मद्देनज़र मद्रास हाईकोर्ट ने ऐसे 84 मामलों की विस्तृत जांच का आदेश दिया है, जिनमें 11.70 करोड़ रुपये का दावा किया गया था। हालांकि बाद में इन मामलों को वापस ले लिया गया।

    जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा, "यह महज इत्तेफाक नहीं कि कावेरी अस्पताल, होसुर की ओर से दिए गए फर्जी और मनगढ़ंत मेडिकल रिकॉर्ड की सहायता से दावा दायर किया गया। यह स्पष्ट नहीं है कि जजों ने उन 84 दावों को खारिज करने से पहले कोई प्रारंभिक जांच भी की कि इतने सारे दावों पर जोर क्यों नहीं डाला गया।"

    केस शीर्षक: चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी बनाम पुलिस महानिदेशक और अन्य

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    एक बार आरोपी के व्यक्तिगत रूप से या वकील के माध्यम से पेश होने के बाद अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब कोई आरोपी व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से अदालत में पेश हो जाता है तो वह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 का इस्तेमाल कर अग्रिम जमानत की मांग नहीं कर सकता।

    मामले में जस्टिस एचपी संदेश ने रमेश नामक एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। उसे उसके खिलाफ जारी वारंट को वापस लेने के लिए जरूरी आवेदन दाखिल करने के लिए ट्रायल कोर्ट से संपर्क करने का निर्देश दिया।

    केस शीर्षक: रमेश बनाम राज्य उप आरएफओ के माध्यम से

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    पॉलिसी की शर्तों के उल्लंघन के मामले में बीमाकर्ता तीसरे पक्ष को मुआवजे की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी, बीमित व्यक्ति से बाद में वसूली हो सकती है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), अलवर के एक फैसले को बरकरार रखा है, जिसने 'वेतन और वसूली के सिद्धांत' पर भरोसा करते हुए बीमा कंपनी को पहले दावेदारों को मुआवजे का भुगतान करने और फिर उसे वाहन मालिक से वसूल करने का निर्देश दिया।

    जस्टिस सुदेश बंसल ने कहा, "बीमा कंपनी यह साबित करने में बुरी तरह विफल रही कि चालक के ड्राइविंग लाइसेंस को रद्द करने की घोषणा कभी वाहन मालिक के संज्ञान में लाई गई थी और यह साबित नहीं होता है कि मालिक लापरवाही का दोषी था। बीमा पॉलिसी की शर्तों को पूरा करने के लिए उचित देखभाल और सावधानी का पालन नहीं करने में, इसलिए, ट्रिब्यूनल ने "भुगतान और वसूली " के सिद्धांत का पालन करने में कानून की कोई त्रुटि नहीं की है।

    केस शीर्षक: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम श्रीमती सोनिया

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    POSH एक्ट एक स्कूल की छात्राओं के लिए लागू: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (2013 POSH अधिनियम) के प्रावधान स्कूल की छात्राओं पर लागू होते हैं।

    जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस रवींद्रनाथ सामंत की पीठ ने 2013 के अधिनियम की धारा 2 (ए) के तहत प्रदान की गई 'पीड़ित महिला' की परिभाषा पर भरोसा किया और तदनुसार फैसला सुनाया, "धारा 2 (ए) के अनुसार एक पीड़ित महिला का मतलब कार्यस्थल के संबंध में किसी भी उम्र की महिला चाहे वह कार्यरत हो या नहीं, जो प्रतिवादी द्वारा यौन उत्पीड़न के किसी भी कार्य के अधीन होने का आरोप लगाती है। ऐसा होने पर अधिनियम के प्रावधान पूरी तरह से स्कूल के छात्रों पर लागू होते हैं।"

    केस शीर्षक: पवन कुमार निरौला बनाम भारत संघ

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    मोटर दुर्घटना मुआवजा- दावेदार भविष्य की आय के नुकसान के ‌लिए, विकलांगता की सीमा के अनुपात में दावे का हकदार; भले ही पूरी आय का नुकसान न हुआ होः बॉम्‍बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि भविष्य की कमाई के नुकसान के कारण आवेदक जिस मुआवजे का हकदार होगा, भले ही स्थायी विकलांगता के कारण उसकी आय का पूरा नुकसान न हुआ हो, मुआवजे का निर्धारण करते समय आवेदक अपनी विकलांगता की सीमा के अनुरूप आनुपातिक काल्पनिक आय का हकदार होगा। तदनुसार, अदालत ने अपीलकर्ता-दावेदार को दिए गए मुआवजे को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 2,70,000 रुपये कर दिया।

    केस शीर्षक: हरेश्वर हरिश्चंद्र मिस्त्री बनाम प्रवीण बी नायक

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    पूर्व यौन कृत्यों के दौरान दी गई सहमति भविष्य तक विस्तारित नहीं होगी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (High Court) ने हाल ही में कहा है कि पूर्व यौन कृत्यों (Sexual Act) के दौरान दी गई सहमति भविष्य तक विस्तारित नहीं होगी। आगे कहा कि कानून महिला के यौन संबंध रखने के अधिकार को स्वीकार करता है।

    न्यायमूर्ति विवेक पुरी की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की कि यौन कृत्य के लिए सहमति को वापस लेना पहले की सहमति को प्रभावी ढंग से समाप्त कर देता है और इसलिए जबरन संभोग गैर-सहमति बन जाता है जो आईपीसी की धारा 376 के दंड प्रावधानों को आकर्षित करता है।

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    सामान्य ढर्रे के रूप में कैदी को वैवाहिक संबंधों का मौलिक अधिकार नहीं, बांझपन उपचार जैसे 'विशिष्ट उद्देश्य' के लिए यह संभवः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में दो प्रश्नों का उत्तर दिया है, कि i) क्या एक दोषी कैदी को वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा और, ii) क्या राज्य को दोषी की ओर से उक्त उद्देश्य के लिए आपातकालीन छुट्टी या सामान्य छुट्टी के लिए गए अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है।

    चूंकि इस प्रकार के इनकार से दोषी कैदी की पत्नी या पति के दाम्पत्य अधिकारों का भी अप्रत्यक्ष रूप से हनन होता ‌है, मद्रास हाईकोर्ट ने जांच की कि दोषी/कैदी के दाम्पत्य अधिकारों को मौलिक अधिकार मानने की व्यापकता क्या हो सकती है और यदि ऐसा कोई अधिकार है तो क्या यह बिना शर्त या अन्य प्रतिबंधों के अधीन होगा। अदालत ने उपरोक्त सवालों के जवाब पति या पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने के उद्देश्य से दोषी को आपातकालीन छुट्टी या साधारण छुट्टी देने के लिए राज्य को निर्देश देने के औचित्य पर निर्णय लेते हुए दिए।

    केस शीर्षक: मेहराज बनाम राज्य प्रतिनिधि सचिव और अन्य द्वारा।

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    वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर भी रजिस्ट्री आपत्ति नहीं उठा सकती, अनुच्छेद 227 के तहत रिट जारी करने की शक्ति कोर्ट के विवेक के अधीन: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने कोयंबटूर के प्रधान जिला मुंसिफ द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली सिविल रिवीजन (Civil Revision) याचिकाओं में कहा है कि अनुच्छेद 226 या अनुच्छेद 227 के तहत रिट जारी करने की शक्ति वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर भी अदालत के विवेक के अधीन है। आगे कहा कि वैकल्पिक उपाय अपने आप में हाईकोर्ट के लिए अनुच्छेद 227 के तहत अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करने के लिए एक बार का गठन नहीं करेगा।

    केस का शीर्षक: आरटी. रेव. टिमोथी रविंदर देव प्रदीप, बिशप, सीएसआई कोयंबटूर सूबा बनाम रेव. चार्ल्स सामराज.एन एंड अन्य, सीएसआई कोयंबटूर सूबा प्रतिनिधि द्वारा इसकी प्रशासनिक समिति बनाम रेव. चार्ल्स सामराज.एन एंड अन्य

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    मोटर दुर्घटना - कोर्ट दावे से ज्यादा मुआवजा दे सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक 14 वर्षीय (उस समय) किशोर की सहायता के लिए आगे आते हुए हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के उस आदेश को संशोधित किया, जिसमें न्यायाधीकरण ने जीवन में सुख सुविधाओं के मद में उसे 50,000 रुपये का मुआवजा दिया था। हाईकोर्ट ने इसे बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया था। एक दुर्घटना में उस किशोर का पेल्विक क्षेत्र स्थायी रूप से अक्षम हो गया था।

    केस शीर्षक: बसवराज बनाम उमेश

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    आदेश VIII नियम 10 के तहत लिखित बयान दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समय सीमा होती है, लेकिन कोर्ट को विवेक का प्रयोग करना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) के न्यायमूर्ति अशोक कुमार जोशी की खंडपीठ ने कहा कि आदेश VIII नियम 1 के तहत लिखित बयान दाखिल करने की अधिकतम 90 दिनों की समय सीमा होती है और प्रकृति में अनिवार्य नहीं है। हालांकि, न्यायालयों को इसमें विवेक का संयम से प्रयोग करना चाहिए न कि नियमित रूप से।

    केस का शीर्षक: राजेंद्रभाई मगनभाई कोली बनाम शांताबेन मगनभाई कोली

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    सीपीसी के आदेश XXI नियम 37 के तहत व्यक्तिगत संपत्ति का हलफनामा दाखिल करने की अनुमति नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) का आदेश XXI नियम 37 एक जजमेंट-देनदार (कंपनी) या उसके निदेशकों को अपनी निजी संपत्ति की सूची दाखिल करने की अनुमति नहीं देता। जस्टिस अमित बंसल ने जिला न्यायाधीश, पटियाला हाउस कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें देनदार कंपनी ('याचिकाकर्ता') के निदेशकों को व्यक्तिगत संपत्ति का हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था।

    केस शीर्षक: जीएस संधू और अन्य बनाम गीता अग्रवाल

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    POSCO : सजा के निलंबन के लिए आरोपी की सुनवाई के दौरान पीड़ित को नोटिस आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (पॉक्सो अधिनियम) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए सीआरपीसी की धारा 389 (1) के तहत सजा के निलंबन और जमानत देने के आवेदन पर सुनवाई करते समय पीड़िता/शिकायतकर्ता/उसके माता-पिता को नोटिस दिया जाना आवश्यक है।

    जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस अरविंद सिंह की खंडपीठ ने जोर देकर कहा, "नोटिस देते समय समन और निजता की सुरक्षा और उन मूल्यों को सुनिश्चित करने के तौर-तरीकों से संबंधित सिद्धांत जैसा कि निपुण सक्सेना और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ईमानदारी से पालन किया जाए।"

    केस शीर्षक: आकाश चंद्राकर और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    [सिविल सेवा] डीओपीटी को निष्कर्ष निकालने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी लेने का अधिकार है कि क्या उम्मीदवार ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का सही दावा किया है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को निष्कर्ष निकालने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी लेने का अधिकार है कि क्या सिविल सेवाओं के लिए संबंधित उम्मीदवार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के तहत आरक्षण का सही दावा किया है या नहीं।

    न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली आशिमा गोयल द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहे थे।

    केस का शीर्षक: आशिमा गोयल बनाम भारत संघ एंड अन्य

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    आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग के लिए परिसीमा अवधि आर्बिट्रेशन को लागू करने के नोटिस जारी करने से 30 दिनों की समाप्ति के बाद शुरू होती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग के लिए तीन साल की पर‌िसीमा अवधि 30 दिनों की अवधि की समाप्ति की तारीख से शुरू होती है, जिसे आर्ब‌िट्रेशन को लागू करने वाला नोटिस जारी करने की तारीख से माना जाता है। कोर्ट ने यह मानते हुए याचिकाकर्ता, भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को प्रतिवादी, विप्रो लिमिटेड के खिलाफ आर्ब‌िट्रेशन के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी है।

    केस शीर्षक: हुआवेई टेलीकम्युनिकेशंस (इंडिया) कंपनी प्रा लिमिटेड और अन्य बनाम विप्रो लिमिटेड।

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    अनुबंध करने के लिए पक्षकारों के बीच विवाद बैंक गारंटी के प्रवर्तन को प्रतिबंधित करने का आधार नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बैंक को केवल धोखाधड़ी या विशेष इक्विटी के मामले में अपरिवर्तनीय अन्याय को रोकने के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा द्वारा बिना शर्त और पूर्ण बैंक गारंटी लागू करने से रोका जा सकता। जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल ने आगे कहा कि अनुबंध के पक्षों के बीच विवादों का अस्तित्व बैंक गारंटी के प्रवर्तन को रोकने के लिए निषेधाज्ञा आदेश जारी करने का आधार नहीं है।

    केस शीर्षक: एआरएसएस - एसआईपीएस (जेवी) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।

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    यदि दो व्याख्याएं संभव हैं तो अवमानना की कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं और आक्षेपित कार्रवाई अवमानना योग्य नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ ने कहा है कि अवमानना की कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं होगी, यदि दो व्याख्याएं संभव हैं, और यदि विचाराधीन कार्रवाई आपत्तिजनक नहीं है। अदालत ने यह फैसला एक आदेश का पालन नहीं करने के मामले में दायर अवमानना याचिका पर सुनाया। आदेश में याचिकाकर्ता, एक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता को नियुक्ति और परिणामी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।

    जस्टिस सुदेश बंसल ने में कहा, "याचिकाकर्ता को महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में सेवाओं में शामिल होने की अनुमति देने के निर्देशों का पहले ही अनुपालन किया जा चुका है और प्रतिवादियों के अनुसार, याचिकाकर्ता की नियुक्ति के लिए 08.07.2000 को द‌िए आदेश के अनुसार 25.10.2011 को दिए आदेश के जर‌िए परिणामी लाभ भी प्रदान किया जा चुका है।"

    केस शीर्षक: अनुपमा सिंह v. बद्री नारायण शर्म और अन्य

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    हमारे समाज में जाति व्यवस्था गहरी जड़ें जमा चुकी है; आजादी के 75 साल बाद भी हम इस सामाजिक खतरे से बाहर नहीं निकल पाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    "हमारे समाज में जाति व्यवस्था गहरी जड़ें जमा चुकी है। हम खुद को एक शिक्षित समाज के रूप में गर्व करते हैं, लेकिन हम अपने जीवन को दोहरे मानकों के साथ जीते हैं। आजादी के 75 साल बाद भी हम इस सामाजिक खतरे से बाहर नहीं निकल पाए।"

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक कथित ऑनर किलिंग मामले में हत्या के आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह भी कहा कि यह उन समझदार लोगों का नैतिक कर्तव्य है, जो वंचितों और दलितों की रक्षा करते हैं ताकि वे सुरक्षित, सुरक्षित और आरामदायक महसूस करें।

    केस का शीर्षक - सन्नी सिंह बनाम यूपी राज्य एंड अन्य

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    माता-पिता के बीच मनमुटाव से उनके बच्चे की शिक्षा प्रभावित नहीं होनी चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि माता-पिता के बीच मनमुटाव से उनके बच्चे की शिक्षा प्रभावित नहीं होनी चाहिए। न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने मां और उसकी 8 वर्षीय बेटी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार किया। याचिका में बेंगलुरु के एक स्कूल को उसका ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    केस का शीर्षक: अमरुषा दास वी. कर्नाटक राज्य

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    COVID-19 पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि आवेदन फिजिकल रूप से दायर किए गए: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को यह सूचित किए जाने के बाद नाराजगी व्यक्त की कि कई COVID-19 पीड़ितों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि से इसलिए वंचित किया जा रहा है, क्योंकि इन लोगों ने अपने दावा फॉर्म ऑनलाइन पोर्टल के बजाय फिजिकल प्रारूप में जमा किए गए थे।

    जस्टिस एमएस कार्णिक ने कहा, "वेब पोर्टल आपकी सुविधा के लिए है। मुआवजा प्राप्त करना उनका अधिकार है। उन्हें सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने [आवेदन] दर्ज किया है।"

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    शादी करने का वादा तोड़ना आईपीसी के तहत धोखाधड़ी का अपराध नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए दोहराया कि शादी के वादे का पालन नहीं करने पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध नहीं माना जाएगा।

    जस्टिस के नटराजन की एकल-न्यायाधीश पीठ ने वेंकटेश और अन्य द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा, "लड़की के कथन में यह दिखाने के लिए कोई घटक नहीं है कि याचिकाकर्ता नंबर एक का धोखाधड़ी करने का आपराधिक इरादा है। इस तरह उसने लड़की से शादी करने का वादा किया था लेकिन अपना वादा तोड़ दिया।"

    केस टाइटल: वेंकटेश एंड स्टेट ऑफ कर्नाटक केस नंबर: क्रिमिनल पिटीशन नंबर 5865/2021

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    शादी का वादा तोड़ना आईपीसी की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द करते हुए कहा कि महिला से शादी का वादा तोड़ना आईपीसी की धारा 420 के तहत 'धोखाधड़ी (Cheating)' का अपराध नहीं माना जाएगा।

    न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल-न्यायाधीश पीठ ने वेंकटेश और अन्य द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा, "यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 का धोखाधड़ी का आपराधिक इरादा था।"

    केस का टाइटल: वेंकटेश एंड स्टेट ऑफ कर्नाटक

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    सार्वजनिक कंपनी के कर्मचारी नियुक्ति प्राधिकारी के अलावा अन्य अधिकारियों के समक्ष भी अनुशासनात्मक कार्यवाही के अधीन हो सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि डिस‌ि‌प्ल‌िनरी आथॉरिटी, हालांकि अनिवार्य सेवानिवृत्ति, बर्खास्तगी और हटाने जैसे बड़े दंड लगाने के लिए सक्षम नहीं है, इसे लागू करने के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर सकता है। यह नोट किया गया कि यह सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं है कि अनुशासनात्मक/बड़ी दंड कार्यवाही शुरू करने के लिए केवल नियुक्ति प्राधिकारी ही सक्षम प्राधिकारी होगा।

    केस शीर्षक: श्री फजलुर रहमान बनाम आईपीजीसीएल, प्रबंध निदेशक और अन्य के माध्यम से। (WP(C) 890/2020) और बीएस पुरिया बनाम इंद्रप्रस्थ पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड। और एएनआर। (WP(C) 3495/2021)

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    गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्तियों द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करना एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंध न रखने वाले व्यक्ति फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करते हैं, तो उन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार की रोकथाम) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार की एकल पीठ ने दो आरोपित यमुना और विजया को आरोपमुक्त करते हुए कहा, ''यदि वैसे व्यक्ति द्वारा गलत सूचना के आधार पर फर्जी प्रमाण पत्र हासिल कर लिया जाता है जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित नहीं होते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि लोक सेवक उस सदस्य के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हो।"

    केस टाइटल: यमुना एंड द स्टेट

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    यदि कोई समझौता नहीं होता है तो लोक अदालत अपराधों से संबंधित विवादों का निर्णय नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 और बिजली अधिनियम, 2003 के अन्योन्य प्रभावों की व्याख्या की है। कोर्ट ने कहा है, जहां स्थायी लोक अदालत के समक्ष पेश विवाद एक समाधेय (compoundable) अपराध के बराबर हो सकता है, सुलह और समझौते (conciliation and settlement) के उद्देश्य से स्थायी लोक अदालत इस पर विचार कर सकती है, हालांकि अगर सुलह विफल हो जाती है और अगर यह अपराध से संबंधित है तो, अपराध के समाधेय होने के बावजूद भी यह स्थायी लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि वह मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करे।

    केस टाइटल: महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रि‌सिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड बनाम बद्रीनाथ पेमा राठौड़

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    फैमिली कोर्ट से पक्षकारों के बीच समझौता कराने की अपेक्षा की जाती है,लेकिन कोर्ट का प्रयास न्याय की कीमत पर केवल मामलों को निपटाने का नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि यदि संभव हो तो पक्षों के बीच एक समझौता हो सके, लेकिन कोर्ट का प्रयास न्याय की कीमत पर केवल मामलों को निपटाने का नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को खारिज किया। इसमें कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत अपीलकर्ता पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था।

    केस का शीर्षक: कमोडोर पवन चौहान बनाम अनुषा चौहान

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    COVID से‌ मृत्यु की स्थिति में विवाहित बेटी भी अनुकंपा नियुक्ति की हकदारः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस नीनाला जयसूर्या ने माना कि एक विवाहित बेटी भी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है। उन्होंने कहा कि विवाहित बेटी की वैवाहिक स्थिति कल्याणकारी योजनाओं में बाधक नहीं हो सकती। अपनी अनुकंपा नियुक्त‌ि की प्रार्थना खारिज किए जाने से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने मौजूदा रिट याचिका दायर की थी। उसने प्रतिवादियों के आदेश को ‌अवैध, मनमाना, अन्यायपूर्ण बताते हुए मांग की थी कि आदेश को रद्द किया जाए और उसे अनुकंपा के आधार पर किसी भी उपयुक्त पद पर नियुक्त करने के लिए परिणामी निर्देश जारी किए जाएं।

    केस शीर्षक : श्रीमती पेडिसेटी अनीता श्री @ येनेपल्ली अनीता श्री बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शक्ति का प्रयोग करके अन्वेषण की निगरानी कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शक्ति का प्रयोग करके अन्वेषण की निगरानी कर सकता है। न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सुधीर भास्करराव तांबे बनाम हेमंत यशवंत धागे, (2016) 6 एससीसी 277 मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की।

    केस का शीर्षक - सत्यप्रकाश बनाम यूपी राज्य एंड 6 अन्य

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    कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के क्षेत्राधिकार के तहत विचार नहीं कर सकता कि क्या धारा 161 के तहत दर्ज बयान में बाद में सुधार किया गया था: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका में कोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों के प्रयोग में रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सराहना नहीं कर सकता है।

    चार्जशीट को रद्द करने के लिए सीआरपीसी, 1973 की धारा 482 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता-आरोपी पर आईपीसी की धारा 498ए आर/डब्ल्यू 34 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है।

    केस का शीर्षक: थम्मीसेटी नरसिम्हा राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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