मोटर दुर्घटना - कोर्ट दावे से ज्यादा मुआवजा दे सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Jan 2022 4:29 AM GMT

  • मोटर दुर्घटना - कोर्ट दावे से ज्यादा मुआवजा दे सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक 14 वर्षीय (उस समय) किशोर की सहायता के लिए आगे आते हुए हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के उस आदेश को संशोधित किया, जिसमें न्यायाधीकरण ने जीवन में सुख सुविधाओं के मद में उसे 50,000 रुपये का मुआवजा दिया था। हाईकोर्ट ने इसे बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया था। एक दुर्घटना में उस किशोर का पेल्विक क्षेत्र स्थायी रूप से अक्षम हो गया था।

    न्यायमूर्ति एसजी पंडित और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा,

    "चूंकि दावेदार की शादी की संभावना समाप्त हो गई है, दावेदार विवाहित जीवन के सभी सुखों और लाभों से वंचित है। अविवाहित रहने का मानसिक आघात, और जीवन भर लोगों द्वारा शादी न करने के लिए पूछे गए जिज्ञासु सवालों के जवाब देना, कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका सामना करना आसान नहीं है। यह आघात बारहमासी और बेधड़क साबित होने वाला है।"

    कोर्ट ने आगे कहा है,

    "इस तरह की स्थिति होने के कारण, न्यायाधिकरणों और न्यायालयों का यह कर्तव्य बन जाता है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए उचित मुआवजा दें कि असहनीय मानसिक आघात को यथासंभव कम किया जाए और दावेदार कुछ गरिमा के साथ रह सके तथा मौद्रिक मुआवजे के कारण खुद की तसल्ली कर सकते।''

    यह देखते हुए कि उसके द्वारा दिया गया मुआवजा याचिकाकर्ता द्वारा किये गये दावे से अधिक है, पीठ ने कहा,

    "मोटर वाहन अधिनियम, 1988, उदार कानून है। मोटर वाहन दुर्घटना के शिकार को उचित और न्यायोचित मुआवजा देना ट्रिब्यूनल का कर्तव्य होता है। हालांकि याचिका में किया गया दावा ट्रिब्यूनल या कोर्ट के न्यायसंगत और उचित मुआवजे के मुकाबले कम है, इसके आधार पर, पीड़ित को न्यायसंगत और उचित मुआवजा देने की न्यायाधिकरण या न्यायालय की शक्ति कम राशि के दावे के कारण नहीं छीनी जा सकती है।"

    इसके अलावा इसने कहा,

    "ट्रिब्यूनल द्वारा दिया जाने वाला मुआवजा दावा याचिका के प्रार्थना कॉलम में उल्लेखित आंकड़े के कारण प्रभावित नहीं होता है।" इसमें कहा गया है, "अगर अधिक मुआवजा देकर दी जाने वाली राहत को नहीं ढाला गया, तो हम अपने कर्तव्य में विफल होंगे।"

    केस पृष्ठभूमि:

    अपीलकर्ता बसवराज, जो 18 सितंबर, 2011 को 14 वर्ष के थे, अपने पिता के साथ सड़क पर चल रहे थे। लॉरी पीछे से आई और याचिकाकर्ता को टक्कर मार गयी। याचिकाकर्ता को गंभीर चोटें आईं। उनकी दो सर्जरी हुई और 13 दिनों तक वह अस्पताल में भर्ती रहे।

    याचिकाकर्ता द्वारा दावा किया गया था कि वह एक छात्र था और एक होटल में आपूर्तिकर्ता के रूप में भी काम कर रहा था। उन्हें 'प्यूबिक रमी' का फ्रैक्चर हुआ, उसका मूत्रमार्ग फट गया, उन्हें पेल्विक फ्रैक्चर और दाहिने कूल्हे की हड्डी के अवर रेमस का फ्रैक्चर भी हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप स्थायी विकलांगता हुई है। उन्होंने 4 अगस्त, 2016 के आदेश के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि में वृद्धि की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    याचिकाकर्ता की दलीलें:

    डॉक्टरों के प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए यह आग्रह किया गया था कि इस तथ्य को देखते हुए कि दावेदार को स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ा है, ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया मुआवजा कम है। इसके अलावा, यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता की शादी की संभावना गंभीर रूप से खतरे में है और वह शादी नहीं कर सकता और उसका वंश नहीं बढ़ सकता। याचिकाकर्ता द्वारा निरंतर विकलांगता, स्थायी विकलांगता के मद्देनजर, सुविधाओं की क्षतिपूर्ति के लिए 50,000 रुपये के मुआवजे का निर्णय अत्यंत रूढ़िवादी है और सुविधाओं के नुकसान और जीवन का आनंद के नुकसान के मद्देनजर मुआवजे को काफी हद तक बढ़ाने की आवश्यकता है।

    इसी तरह, दावेदार को लगी चोटों की प्रकृति और दावेदार द्वारा झेली गई चोट की प्रकृति को देखते हुए, दर्द और पीड़ा के तहत दिए गए 50,000 रुपये का मुआवजा भी पूरी तरह से अपर्याप्त है। गौरतलब है कि 11,75,000 रुपये का मुआवजा मांगा गया था।

    बीमा कंपनी ने अपील का विरोध किया और दावा किया कि ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई मुआवजे की राशि न्यायसंगत और उचित है।

    न्यायालय के निष्कर्ष:

    शुरुआत में पीठ ने कहा,

    "दर्द और पीड़ा, जीवन में सुविधाओं की हानि और जीवन की उम्मीद की हानि जैसे गैर-आर्थिक मदों के तहत देय मुआवजे की मात्रा को तय करने का कार्य भले आसान प्रतीत होता है, लेकिन आसान नहीं होता है। यदि दावेदार कम उम्र में स्थायी विकलांगता का शिकार हो जाता है तो यह कार्य थोड़ा और कठिन हो जाता है।"

    फिर कोर्ट ने डॉक्टर द्वारा जारी किए गए मेडिकल सर्टिफिकेट की जांच की, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को पेल्विक फ्रैक्चर, यूरेथ्रल फ्रैक्चर और यूरेथ्रोप्लास्टी से गुजरना पड़ा है। वह पेनाइल इरेक्शन प्राप्त करने और नॉकटर्नल पेनाइल ट्यूमर्सेंस में असमर्थ है। प्रमाण पत्र ने आगे खुलासा किया कि याचिकाकर्ता भविष्य में मैथुन करने में असमर्थ है।

    जिसके बाद कोर्ट ने कहा,

    "डॉक्टर ने कहा है कि स्थिति अपरिवर्तनीय है। याचिकाकर्ता के लिए शादी की कोई संभावना नहीं है। याचिकाकर्ता का नुकसान, जो शादी की संभावनाओं और वैवाहिक जीवन के सुख और बच्चे पैदा करने से वंचित है, पैसे के रूप में पर्याप्त रूप से मुआवजा नहीं दिया जा सकता।''

    इसमें कहा गया है,

    "दावेदार को जिस तरह की विकलांगता का सामना करना पड़ा, उसे देखते हुए, मानसिक आघात जो दावेदार को जीवन भर झेलना पड़ता है, वह उस शारीरिक दर्द से कहीं अधिक दर्दनाक है जो उसने दुर्घटना के तुरंत बाद झेला है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा,

    "याचिकाकर्ता जिसकी उम्र 14 वर्ष है, उसके जननांग में चोट लगी है, जिससे स्थायी विकलांगता हो गई है, इस परिस्थिति में, सुविधाओं के नुकसान और जीवन का आनंद के मद में 50,000 रुपये का अवार्ड अत्यंत कम है। भविष्य की कमाई क्षमता के नुकसान के तहत 54,000 रुपये और सुविधाओं के नुकसान के मद में और जीवन के आनंद को खोने के लिए 50,000 रुपये का अवार्ड मुआवजे को नियंत्रित करने वाले स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। वास्तव में, इन दो मदों के तहत अवार्ड को किसी भी प्रकार से मुआवजा नहीं कहा जा सकता।''

    कोर्ट ने तब राय दी कि गैर-आर्थिक मदों के तहत देय मुआवजा दावेदार की सामाजिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता या आय पर निर्भर नहीं है। यह गरीब और अमीर दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। कोर्ट ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता गरीब पृष्ठभूमि से है।

    कोर्ट ने कहा,

    "चूंकि यह अवार्ड जीवन में सुख-सुविधाओं के नुकसान के संबंध में पारित होने जा रहा है, मुद्रास्फीति और रुपये की लगातार घटती क्रय शक्ति को ध्यान में रखते हुए यह कोर्ट इस मद में 10 लाख रुपये का अवार्ड देने को उचित मानता है।"

    तदनुसार कोर्ट ने कहा,

    "प्रधान वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश और एएमएसीटी, रानीबेन्नूर की फाइल पर एमवीसी संख्या 49/2012 मामले में दिनांक 04.08.2016 को पारित निर्णय को संशोधित किया जाता है और ब्याज के साथ 17,68,000 रुपये का मुआवजा छह प्रतिशत की दर से दिया जाता है।"

    केस शीर्षक: बसवराज बनाम उमेश

    मामला संख्या: एम.एफ.ए. नंबर 103473/2017

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर्नाटक) 29

    आदेश की तिथि: 11 जनवरी 2022

    पेशी: अपीलकर्ता के लिए अधिवक्ता हनुमंतरेड्डी साहूकार; प्रतिवादी संख्या 2 के लिए एडवोकेट सुरेश एस गुंडी

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