सामान्य ढर्रे के रूप में कैदी को वैवाहिक संबंधों का मौलिक अधिकार नहीं, बांझपन उपचार जैसे 'विशिष्ट उद्देश्य' के लिए यह संभवः मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Jan 2022 7:04 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में दो प्रश्नों का उत्तर दिया है, कि i) क्या एक दोषी कैदी को वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा और, ii) क्या राज्य को दोषी की ओर से उक्त उद्देश्य के लिए आपातकालीन छुट्टी या सामान्य छुट्टी के लिए गए अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है।

    चूंकि इस प्रकार के इनकार से दोषी कैदी की पत्नी या पति के दाम्पत्य अधिकारों का भी अप्रत्यक्ष रूप से हनन होता ‌है, मद्रास हाईकोर्ट ने जांच की कि दोषी/कैदी के दाम्पत्य अधिकारों को मौलिक अधिकार मानने की व्यापकता क्या हो सकती है और यदि ऐसा कोई अधिकार है तो क्या यह बिना शर्त या अन्य प्रतिबंधों के अधीन होगा। अदालत ने उपरोक्त सवालों के जवाब पति या पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने के उद्देश्य से दोषी को आपातकालीन छुट्टी या साधारण छुट्टी देने के लिए राज्य को निर्देश देने के औचित्य पर निर्णय लेते हुए दिए।

    कार्यवाहक चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी, जस्टिस पीडी ऑदिकेसवालु और जस्टिस पुष्पा सत्यनारायण की तीन जजों की पीठ ने हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच की ओर से एक दुविधा कि पति या पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने के लिए छुट्टी का लाभ उठाने के लिए तमिलनाडु निलंबन नियमावली, 1982 में कोई विशेष प्रावधान नहीं है, के संबंध में दिए संदर्भ का सकारात्मक उत्तर दिया कि कैदी/दोषी ऐसे अधिकार का दावा कर सकते हैं यदि आधार 'असाधारण कारण' है और यह बांझपन उपचार अधिनियम में परिकल्पित 'असाधारण कारणों' की परिभाषा में शामिल है।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की बांझपन का इलाज कराने की प्रर्थना, जबकि दोषी और पत्नी को बच्चा नहीं हो रहा है, यह 1982 के नियम 20 (vii) के तहत 'असाधारण कारण' होता है।

    हालांकि, अदालत ने स्पष्टीकरण दिया कि अगर जोड़े को बच्चा समान्य संबंधें से होता है तो बांझपन के इलाज के लिए छुट्टी मांगना 'असाधारण कारण' नहीं माना जाएगा। दोषी/कैदी 'असाधारण कारण' की श्रेणी में एक ही आधार पर बार-बार छुट्टी नहीं मांग सकते।

    पीठ ने कहा,

    "यह सच है कि 1982 के नियम पति या पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने के लिए छुट्टी प्रदान नहीं करते हैं। ऐसा इसलिए है कि यदि वैवाहिक संबंध रखने के लिए छुट्टी का प्रावधान प्रदान किया जाता है तो कैदी हमेशा और बार-बार उस आधार पर छुट्टी मांग सकता है।

    हालांकि, इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि 1982 के नियम 20(i) से (vi) और नियम 20(viii) में निर्दिष्ट परिस्थितियों को छोड़कर सभी परिस्थितियों में छुट्टी से इनकार किया जा सकता है, बल्कि 1982 के नियमों के नियम 20 (vii) में किसी अन्य असाधारण कारणों से छुट्टी देने का प्रावधान है, जो इस मामले में संदर्भित प्रकृति का हो सकता है, जैसे कि बांझपन के इलाज के लिए ..."

    पीठ ने इस बिंदु पर कि क्या यह माना जा सकता है कि वैवाहिक अधिकारों से इनकार अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है और क्या दोषी/ कैदी इस तरह के अधिकार की मांग लगातार और बिना किसी रोक-टोक के कर सकता है, कहा,

    "विशिष्ट उद्देश्य के लिए वैवाहिक संबंध से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार से वंचित करना हो सकता है। विशिष्ट उद्देश्य बांझपन का उपचार या कुछ इसी तरह का कारण हो सकता है, लेकिन सामान्य ढर्रे के रूप में वैवाहिक संबंध रखने के लिए इसे एक मौलिक अधिकार नहीं माना जाना चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों के संबंध में कानून का पालन करने वाले और उल्लंघनकर्ता के बीच अंतर करेगा।"

    तीन जजों की पीठ का दृढ़ मत है कि बांझपन का उपचार जैसे 'विशिष्ट उद्देश्य' के लिए छुट्टी, आम बोलचाल में 'वैवाहिक संबंध' शब्द के उपयोग से अलग है और नियमों के तहत 'असाधारण कारण' के दायरे में बखूबी आती है।

    इसलिए, अदालत ने माना कि 1982 के नियम दोषियों को वैवाहिक संबंध बनाने के लिए छुट्टी देने के लिए किसी विशेष प्रावधान के बिना, जिस सीमा तक आवश्यक ही, खुद ही उस सीमा तक संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत कैदी के अधिकारों की रक्षा करते हैं।

    पहले प्रश्न पर उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर न्यायालय ने दूसरे प्रश्न का उत्तर दिया। अदालत ने कहा कि बांझपन के इलाज जैसे 'असाधारण कारणों' से राज्य को सामान्य/आपातकालीन छुट्टी देने का निर्देश दिया जा सकता है। बिना किसी 'असाधारण कारण' के पति/पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने के लिए कैदी/दोषी छुट्टी का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकता है।

    मौजूदा मामले में पति हिरासत में है। वह आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, जबकि याचिकाकर्ता पत्नी को विवाह के बाद कोई बच्चा नहीं है। बांझपन के इलाज के लिए डिवीजन बेंच ने उसे पूर्व में दो सप्ताह की सामान्य छुट्टी दे चुकी थी, हालांकि पत्नी ने बांझपन के उपचार के लिए वैवाहिक संबंध रखने के लिए छह सप्ताह की छुट्टी के लिए एक अन्य रिट याचिका दायर की थी।

    पीठ ने जसवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2015) में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट, सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन , (1978) 4 एससीसी 494 में सुप्रीम कोर्ट और राजीता पटेल बनाम बिहार राज्य और अन्य (2020) में पटना हाईकोर्ट के निर्णयों का विश्लेषण किया। पीठ ने माना कि 1982 के नियमों के नियम 20 (vii) को कैदी के लिए वैवाहिक संबंध रखने के लिए साधारण/आपातकालीन छुट्टी का लाभ उठाने के लिए लागू किया जा सकता है, यदि इस तरह के अनुरोध के लिए 'असाधारण कारण' हैं।

    दोनों प्रश्नों का उत्तर देने के बाद रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि वह मामले को रोस्टर बेंच के समक्ष निस्तारण के लिए रखे।

    केस शीर्षक: मेहराज बनाम राज्य प्रतिनिधि सचिव और अन्य द्वारा।

    केस नंबर: एचसीपी (एमडी) नंबर 365 ऑफ 2018

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (मद्रास) 31

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