पूर्व यौन कृत्यों के दौरान दी गई सहमति भविष्य तक विस्तारित नहीं होगी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Jan 2022 7:26 AM GMT

  • पूर्व यौन कृत्यों के दौरान दी गई सहमति भविष्य तक विस्तारित नहीं होगी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (High Court) ने हाल ही में कहा है कि पूर्व यौन कृत्यों (Sexual Act) के दौरान दी गई सहमति भविष्य तक विस्तारित नहीं होगी।

    आगे कहा कि कानून महिला के यौन संबंध रखने के अधिकार को स्वीकार करता है।

    न्यायमूर्ति विवेक पुरी की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की कि यौन कृत्य के लिए सहमति को वापस लेना पहले की सहमति को प्रभावी ढंग से समाप्त कर देता है और इसलिए जबरन संभोग गैर-सहमति बन जाता है जो आईपीसी की धारा 376 के दंड प्रावधानों को आकर्षित करता है।

    पूरा मामला

    शिकायतकर्ता/अभियोजन पक्ष ने एक शिकायत दर्ज कराई। इसमें आरोप लगाया गया कि वह याचिकाकर्ता/बलात्कार के आरोपियों के साथ काम कर रही थी और एक-दूसरे से परिचित थीं।

    इसके अलावा, उसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने कई मौकों पर शिकायतकर्ता के साथ बलात्कार किया और कोई भी शिकायत करने पर उसे मार डालने की धमकी दी।

    उसने एक घटना की भी शिकायत की जिसमें याचिकाकर्ता जबरन उसके पीजी के कमरे में घुस गया, गाली-गलौज की और मारपीट की।

    याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 376, 323, 427, 452, 506, और 509 के तहत मामला दर्ज किया गया है और बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसने जमानत के लिए तत्काल याचिका के साथ अदालत का रुख किया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्राथमिकी दर्ज करने में 48 दिनों की देरी है, शिकायतकर्ता 35 साल का तलाकशुदा है, असफल प्रेम प्रसंग से जबरन वसूली के परोक्ष मकसद से मामला दर्ज किया गया है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता दोनों बालिग हैं। वे लिव-इन-रिलेशनशिप में थे जो कि रिकॉर्ड पर रखी गई तस्वीरों से भी साबित होता है और उनके बीच संबंध सहमति से बने थे।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    अदालत ने शुरुआत में कहा कि इस स्तर पर अभियोजन पक्ष के संस्करण पर इस आधार पर अविश्वास करना उचित नहीं हो सकता है कि प्राथमिकी दर्ज करने में 48 दिनों की देरी है।

    अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में स्पष्ट उल्लेख है कि शिकायतकर्ता डरी हुई थीं और याचिकाकर्ता भी अपने कृत्यों के लिए क्षमाप्रार्थी है। इसलिए न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि एक झूठा मामला है।

    इसके अलावा, जमानत आवेदक के तर्क के बारे में कि यह सहमति से संबंध का मामला है और वे लिव-इन-रिलेशनशिप में थे, कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की,

    "यह सच हो सकता है कि कानून लिव-इन-रिलेशनशिप को स्वीकार करता है, लेकिन साथ ही, यह भी ध्यान में रखना होगा कि कानून महिला के यौन संबंध रखने के अधिकार को भी स्वीकार करता है। सहमति के बिना या किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना बलात्कार के अपराध में शामिल है। इस धारणा पर भी कि यदि दो व्यक्तियों के बीच पहले किसी भी कारण से सहमति से यौन संबंध थे, तो पूर्व यौन कृत्यों की सहमति भविष्य के अवसरों तक नहीं बढ़ाई जाएगी।"

    कोर्ट ने माना कि यह निष्कर्ष निकालने के लिए एक परिस्थिति के रूप में नहीं माना जा सकता है कि आरोपी को अभियोक्ता का लगातार शोषण करने का अधिकार मिलता है।

    जमानत आवेदक द्वारा प्रस्तुत तस्वीरों के संबंध में अदालत मे देखा कि यह सच हो सकता है कि अभियोक्ता याचिकाकर्ता को जानता है, लेकिन यह प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि अभियोक्ता सहमति से संबंध बनाई थी।

    अदालत ने कहा,

    "मामले की जांच पूरी हो गई है। चालान पेश किया गया है, लेकिन आरोप अभी तक तय नहीं हुआ है और अभियोक्ता की जांच की जानी बाकी है। याचिकाकर्ता की ओर से अभियोक्ता को प्रभावित करने के प्रयास की संभावना खारिज नहीं किया जा सकता है।"

    इसके साथ ही कोर्ट ने आवेदक को जमानत देने से इनकार किया।

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