COVID-19 पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि आवेदन फिजिकल रूप से दायर किए गए: बॉम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
24 Jan 2022 7:05 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को यह सूचित किए जाने के बाद नाराजगी व्यक्त की कि कई COVID-19 पीड़ितों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि से इसलिए वंचित किया जा रहा है, क्योंकि इन लोगों ने अपने दावा फॉर्म ऑनलाइन पोर्टल के बजाय फिजिकल प्रारूप में जमा किए गए थे।
जस्टिस एमएस कार्णिक ने कहा,
"वेब पोर्टल आपकी सुविधा के लिए है। मुआवजा प्राप्त करना उनका अधिकार है। उन्हें सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने [आवेदन] दर्ज किया है।"
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ प्रेय्या वेलफेयर फाउंडेशन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें सभी पात्र आवेदकों के लिए भुगतान की मांग की गई, भले ही दावे फिजिकल रूप से या डाक द्वारा दायर किए गए हों।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दिशा-निर्देश तैयार किए। इसके द्वारा COVID-19 पीड़ितों के आश्रितों को राज्य सरकारों द्वारा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष ("एसडीआरएफ") के माध्यम से 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि प्राप्त होगी।
प्रमाणन के संबंध में शिकायतों का निवारण स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और आईसीएमआर द्वारा तीन सितंबर, 2021 को जारी दिशा-निर्देशों द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। इस संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था।
याचिकाकर्ताओं के वकील सुमेधा राव ने सोमवार को हाईकोर्ट को सूचित किया कि महाराष्ट्र सरकार के भुगतान के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल के साथ आने से बहुत पहले कई झुग्गीवासियों ने कलेक्टर अधिकारी के समक्ष दावा आवेदन दायर किया।
राव ने कहा कि जिन्हें मुआवजे से वंचित किया जा रहा है वे बहुत गरीब हैं।
उनकी याचिका में कहा गया कि एक तरफ परिवारों ने अपनी रोटी पाने वालों को खो दिया है जबकि दूसरी तरफ उन्हें मुआवजा नहीं मिला है, जो कि उनके जीने का अधिकार है। इसके अलावा, ऑनलाइन पोर्टल पर फॉर्म अपलोड करने में कई तकनीकी गड़बड़ियां हैं।
मुंबई शहर के नागरिक निकाय बीएमसी के वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें 34,159 आवेदन प्राप्त हुए है। इनमें से 16,818 आवेदन स्वीकृत किए गए।
राज्य के लिए सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने प्रस्तुत किया कि ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया है और पैसा सीधे लाभार्थी के खाते में पहुंच रहा है। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता इन ऑनलाइन आवेदनों को जमा करने में लोगों की मदद कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि राज्य को तकनीकी कारणों से भुगतान से इनकार करने की आवश्यकता नहीं है।
सीजे दत्त ने पूछा,
"सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना यह है कि प्रशासन को उन लोगों के परिवारों तक पहुंचना चाहिए जो COVID-19 से मर चुके हैं। इसे ध्यान में रखें और आपको इतना तकनीकी क्यों होना चाहिए?"
कंथारिया ने कहा कि वह सरकार से निर्देश लेंगी। इसके बाद मामले को गुरुवार को पोस्ट कर दिया गया।