आईपीसी की धारा 397 के तहत सजा बरकरार रखने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि डकैती के दौरान इस्तेमाल 'हथियार की प्रकृति' घातक थी: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 Jan 2022 10:28 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की दोषसिद्धी और सजा में संशोधन किया। अभियोजन पक्ष घातक हथियार के इस्तेमाल को साबित करने में विफल रहा, जिसके बाद कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धी और सजा को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 397 से धारा 392 के तहत कर दिया।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता का विचार था कि अभियोजन को चाकू या ब्लेड के अपराध में इस्तेमाल हथियार की प्रकृति को साबित करना आवश्यक था।

    उन्होंने कहा,

    "अभियोजन द्वारा साबित किए जा रहे एक घातक हथियार के उपयोग की अनुपस्थिति में आईपीसी की धारा 397 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपीलकर्ता की सजा को बरकरार नहीं रखा जा सकता है और इसे धारा 392 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध में संशोधित करने की आवश्यकता है।"

    अदालत ने अपीलकर्ता की नामावली का भी अवलोकन किया, जिससे पता चलता है कि वह लगभग 3 साल और 9 महीने की सजा भुगत चुका था, जिसमें छूट भी शामिल है, और वह इसी प्रकार के अपराधों से संबंधित तीन एफआईआर सहित चार अन्य एफआईआर में शामिल था।

    अदालत ने कहा,

    "नतीजतन, अपीलकर्ता की सजा को धारा 392 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध में बदल दिया जाता है और अपीलकर्ता की सजा को पांच साल की अवधि के लिए कठोर कारावास में बदल दिया जाता है।"

    अदालत 5 जुलाई, 2019 के फैसले के खिलाफ आसिफ नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उसे धारा 397 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और 17 जुलाई, 2019 को सजा पर ‌दिए आदेश में उसे सात साल के कारावास की सजा भुगतने का निर्देश दिया गया था।

    शिकायतकर्ता के बयान पर आईपीसी की धारा 392, 397 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। श‌िकायत में कहा गया था कि 9 जनवरी, 2015 को अपीलकर्ता और एक सह-अभियुक्त ने एक घातक हथियार, यानी ब्लेड दिखाकर उसका मोबाइल फोन लूट लिया।

    अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों की गवाही में स्पष्ट विरोधाभासों की ओर इशारा किया था, जिन्होंने कथित लूट के तरीके के संबंध में और पुलिस द्वारा की गई जांच के संबंध में अलग-अलग बयान दिए थे।

    अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही का अवलोकन करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह घ‌िसपिटा कानून है कि छीना-झपटी के बाद भी छीनी गई वस्तु को लेकर भागने के लिए भी अपराध का हथियार दिखाया गया है तो वह आईपीसी की धारा 397 को आकर्षित करता है।

    यह भी नोट किया गया कि चोरी 'डकैती' है, अगर चोरी करने या चोरी करने के मकसद के लिए या चोरी से प्राप्त संपत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयास करने के लिए, अपराधी उस उद्देश्य के लिए, स्वेच्छा से किसी भी मृत्यु का कारण बनता है, या कारण बनने का प्रयास करता है, या चोटिल करता है, या गलत तरीके से रोकता है, या त्वरित मृत्यु का भय पैदा करता है, या तुरंत चोटिल करता है, या तुरंत गलत तरीके से रोकता है।

    अदालत ने अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि आईपीसी की धारा 397 नहीं बनती है क्योंकि ब्लेड कथित तौर पर मोबाइल फोन लूटने के बाद दिखाया गया था।

    आगे यह देखते हुए कि एक पिस्तौल, रिवॉल्वर, तलवार, कुल्हाड़ी या यहां तक ​​कि एक चाकू भी घातक हथियार है, कोर्ट ने कहा कि चाकू के मामले में, चाकू की लंबाई, उसके तेज और नुकीले किनारे को देखा जाना चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि चाकू घातक हथियार है या नहीं।

    न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि अभियोजन पक्ष का साक्ष्य यह था कि अपीलकर्ता ने एक ब्लेड निकाला और शिकायतकर्ता को लात मारी, जिरह में यह कहा गया कि ब्लेड शेविंग ब्लेड नहीं था। इसलिए कोर्ट ने कहा कि जिस तरह के ब्लेड का इस्तेमाल किया गया वह गवाहों के ऑक्यूलर साक्ष्य से भी साबित नहीं हुआ।

    हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि इस्तेमाल किए गए हथियार की प्रकृति को साबित करने के लिए अपराध के हथियार को बरामद किया जाना चाहिए और यह कि अपराध करने के समय एक घातक हथियार का इस्तेमाल किया गया था, हालांकि, अभियोजन पक्ष को विशेष रूप से चाकू या ब्लेड के मामले में इस्तेमाल किए गए अपराध के हथियार की प्रकृति को साबित करना आवश्यक है।

    चूंकि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से ब्लेड का आकार और तीक्ष्णता साबित नहीं होती है, इसलिए अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता ने एक घातक हथियार का इस्तेमाल किया था।

    इन्हीं टिप्‍पणियों के साथ कोर्ट ने केस का निस्तारण किया।

    केस शीर्षक: आसिफ बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली)

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 55

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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