हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 Nov 2023 11:15 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 नवंबर 2023 से 24 नवंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    यूपीवीएटी एक्ट के तहत बही खातों की अस्वीकृति, केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम के तहत बही खातों की अस्वीकृति का आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि रिकॉर्ड पर किसी भी सामग्री के अभाव में, स्थानीय कानूनों के तहत बही खाते (Book of Accounts) की अस्वीकृति केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम के तहत बही खाते की अस्वीकृति का एकमात्र आधार नहीं हो सकती है।

    जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि स्थानीय बिक्री कानून के तहत बही खातों को खारिज कर दिया गया है, रिकॉर्ड पर उपलब्ध किसी भी ठोस सामग्री के अभाव में केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम के तहत बही खामों को खारिज करने का आधार जरूरी नहीं है।"

    केस टाइटलः एम/एस श्री शांति रेडीमेड बनाम आयुक्त, वाणिज्यिक कर, उत्तर प्रदेश [SALES/TRADE TAX REVISION No. - 99 of 2023]

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    सरफेसी एक्ट | एमपी हाईकोर्ट ने सुरक्षित लेनदारों द्वारा दायर धारा 14 आवेदनों के शीघ्र निपटान के लिए मजिस्ट्रेटों को दिशानिर्देश जारी किए

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत आवेदनों पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा निष्क्रियता को गंभीरता से लिया है। अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को ऐसे आवेदनों पर निर्णय लेने के तरीके के बारे में भी कई निर्देश जारी किए हैं।

    जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस प्रणय वर्मा की डिवीजन बेंच ने खरगोन के सीजेएम को फटकार लगाई जिन्होंने पंजीकरण पर बहस के लिए धारा 14 के आवेदन को सूचीबद्ध किया था। इंदौर में बैठी पीठ ने दोहराया कि डीएम/एडीएम/सीजेएम में निहित सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत शक्ति की प्रकृति 'कार्यकारी और मंत्रिस्तरीय' है न कि ' निर्णय लेने वाली'।

    केस : अपने अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के माध्यम से इक्विटास स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य प्रमुख सचिव कानून और विधायी कार्य वल्लभ भवन भोपाल (मध्य प्रदेश)

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    चुनाव याचिकाएं | एसडीओ 'सिविल कोर्ट' की शक्तियों का प्रयोग करते हैं, शपथ आयुक्त द्वारा अभिकथनों का सत्यापन लाइलाज दोष नहीं: मप्र हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि चुनाव याचिका नियम, 1995 के तहत उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) जैसे राजपत्रित अधिकारी, 'सिविल कोर्ट' के कार्यों का प्रयोग करते हैं। दरअसल याचिकाकर्ता उम्मीदवार ने सीकरी जागीर जनपद पंचायत में सरपंच का चुनाव जीता था। इसे प्रतिवादी उम्मीदवार ने मतगणना प्रक्रिया में कथित विसंगतियों के कारण उपमंडल अधिकारी के समक्ष एक चुनाव याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर कर चुनाव याचिका को इस आधार पर खारिज करने की मांग की थी कि यह सीपीसी में आवश्यक हलफनामे द्वारा विधिवत समर्थित नहीं था, और हलफनामे में दी गई प्लीडिंग को एक सिविल जज या नोटरी के बजाय शपथ आयुक्त द्वारा सत्यापित किया गया था। ऐसे आवेदन को निर्दिष्ट अधिकारी द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्ता उम्मीदवार ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान रिट याचिका दायर की।

    केस: रवीन्द्र कुमार उपाध्याय बनाम एसडीओ (राजस्व) लहार एवं अन्य, रिट याचिका संख्या 12380/2023

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    फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19 | सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट का आदेश अपील योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष अपील योग्य नहीं है।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19 का जिक्र करते हुए कहा, "उप-धारा (2) में दिए गए अनुसार सहेजें" शब्दों का उपयोग करके संसद ने अधिनियम की धारा 19(1) के तहत बनाए गए अपील के अधिकार के संबंध में धारा 19 की उप-धारा (2) की सर्वोच्चता के बारे में कोई संदेह नहीं छोड़ा है। अधिनियम की धारा 19(2) सीआरपीसी के अध्याय IX के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किसी भी आदेश के खिलाफ अपील के अधिकार से स्पष्ट रूप से इनकार करती है। निर्विवाद रूप से सीआरपीसी की धारा 125 सीआरपीसी के अध्याय IX का अभिन्न अंग है।”

    केस टाइटल: दीपक बनाम रीना [प्रथम अपील दोषपूर्ण नंबर- 377/2023]

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    UPVAT Rules | छूट/कटौती का लाभ देने से पहले अपनाना होगा सख्त रुख: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यद्यपि संदेह की स्थिति में टैक्स लगाने की व्याख्या निर्धारिती के पक्ष में की जानी चाहिए। हालांकि, छूट और कटौतियों का लाभ देने से पहले सख्त रुख अपनाने की जरूरत है।

    जस्टिस शेखर बी. सराफ ने कहा, “टैक्स लगाने के क़ानून में क़ानून का सामान्य नियम यह है कि किसी भी संदेह की स्थिति में करदाता को लाभ दिया जाना चाहिए। हालांकि, दी जाने वाली छूट और कटौती के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार, यह जांचने के लिए सख्त दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है कि निर्धारिती इस तरह के लाभ के लिए पात्र है या नहीं।''

    केस टाइटल: आयुक्त, वाणिज्य कर, उ.प्र. बनाम एस/एस सान्या कंस्ट्रक्शन एंड डेवलपर्स प्रा. लिमिटेड [बिक्री/व्यापार कर संशोधन नंबर- 94/2023]

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    अदालत ए एंड सी एक्ट की धारा 36(3) के तहत अवार्ड पर बिना शर्त रोक नहीं लगा सकती, जब तक कि प्रथम दृष्टया धोखाधड़ी का मामला न हो: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि अदालत ए एंड सी एक्ट की धारा 36(3) के तहत अवार्ड पर बिना शर्त रोक नहीं लगा सकती, जब तक कि प्रथम दृष्टया यह मामला न बन जाए कि अवार्ड देना धोखाधड़ी से हुआ है।

    जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने भारत में जड़ें न रखने वाली विदेशी संस्था के पक्ष में स्टे देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने पाया कि उसके पास ऐसी कोई संपत्ति नहीं है, जिसे आर्बिट्रल अवार्ड के प्रवर्तन पर रोक लगाने के लिए सुरक्षा के रूप में पेश किया जा सके। इसके अलावा, यह आर्बिट्रल अवार्ड का एक हिस्सा भी जमा करने को तैयार नहीं है और बिना शर्त रोक पर जोर दिया, जो स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि धोखाधड़ी का मामला नहीं बनता है।

    केस टाइटल: इटालियन थाई डेवलपमेंट बनाम एनटीपीसी लिमिटेड, ओएमपी (सीओएमएम) 343/2022

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    साख की हानि को साबित करना मुश्किल, गणितीय परिशुद्धता से साबित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि साख (Goodwill) के नुकसान का दावा करने वाले किसी भी पक्ष के लिए इसे किसी गणितीय सटीकता के साथ साबित करना या स्थापित करना मुश्किल होगा। जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की खंडपीठ ने आर्बिट्रल अवार्ड बरकरार रखा, जिसमें आर्बिट्रेटर ने पक्षकार को जुर्माने के रूप में कुछ राशि अपने पास रखने की अनुमति दी थी, जो कि साख के नुकसान का वास्तविक पूर्व-अनुमान है, बिना इसके वास्तविक नुकसान की मात्रा के सबूत के।

    केस टाइटल: मेटल इंजीनियरिंग और फोर्जिंग कंपनी बनाम सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन, एफएओ (सीओएमएम) 5/2023

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    धारा 205 सीआरपीसी | व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट का प्रावधान अभियुक्तों के अनुचित उत्पीड़न से बचाने के लिए है: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 205 में उल्लिखित आरोपियों की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी व्यक्तियों को अनावश्यक उत्पीड़न का सामना न करना पड़े और शिकायतकर्ता को किसी भी अनुचित पूर्वाग्रह का सामना नहीं करना चाहिए।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा, “सीआरपीसी की धारा 205 के तहत छूट का उद्देश्य यह है कि विद्वान मजिस्ट्रेट का आदेश ऐसा होना चाहिए जिससे अभियुक्त को कोई अनावश्यक उत्पीड़न न हो और साथ ही इससे शिकायतकर्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े, और विद्वान अदालत को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अभियुक्त को दी गई व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट का दुरुपयोग न हो या मुकदमे में देरी न हो।''

    केस टाइटल: नवल कुमार कनोडिया @ नवल कनोडिया बनाम झारखंड राज्य

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    पहली शादी के बाद दूसरी पत्नी को पारिवारिक पेंशन देय नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मृत राज्य कर्मचारी की दूसरी पत्नी द्वारा अपने पति की मृत्यु पर फैमिली पेंशन की मांग को लेकर दायर अपील खारिज कर दी। चीफ जस्टिस बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि मृतक कर्मचारी की पहली शादी तब भी जीवित थी, उसकी अपील खारिज करते हुए कहा, “फैमिली पेंशन “पहली पत्नी” को देय है, न कि “दूसरी पत्नी” को, जिनकी शादी कानून की नजर में 'कोई शादी नहीं' है। इसके बावजूद, हिंदी विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के तहत उनसे पैदा हुए बच्चों की वैधता की स्थिति सीमित है।

    केस टाइटल: महालक्ष्मम्मा और सचिव, ग्रामीण विकास और पंचायतराज विभाग।

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    जीएसटी एक्ट के तहत कार्यवाही से पहले विभाग को मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि वस्तु एवं सेवा कर विभाग को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत मृतक के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक है। याचिकाकर्ता का पति फर्म का एकमात्र मालिक था और कंसल्टेंट के रूप में सेवाएं प्रदान करने में लगा हुआ था। याचिकाकर्ता के पति के नाम पर वित्तीय वर्ष 2014-15 सेवा कर के लिए सीजीएसटी अधिनियम की धारा 142, 173, 174 के साथ पठित वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 73(1) के प्रावधानों के तहत 8,97,716 रुपये की देनदारी लगाते हुए एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।

    केस टाइटल: श्रीमती ललिता सुब्रमण्यन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 3 अन्य [रिट टैक्स नंबर 1137/2023]

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    लंबे समय तक कब्जा लेने या मुआवजा देने में राज्य की विफलता के कारण भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही विफल हो गई: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में लगभग ढाई दशकों के बाद 1998 से निश्चित भूमि अधिग्रहण अवार्ड की कार्यवाही 'लैपस्ड' (Lapsed) घोषित करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका स्वीकार कर ली। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने दोहराया कि जब राज्य भूमि अधिग्रहण अवार्ड में निर्धारित संपत्ति पर कब्जा करने या याचिकाकर्ता को मुआवजा देने में विफल रहा तो अधिग्रहण की कार्यवाही समाप्त हो गया।

    केस टाइटल: शिखरचंद की पत्नी ज्ञानवती बनाम राजस्थान राज्य शहरी विकास और आवास विभाग और अन्य।

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    POCSO Act की धारा 34(2) | ट्रायल कोर्ट पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए बाध्य: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO Act) अधिनियम, 2012 की धारा 34 (2) के अनुसार पीड़िता की उम्र निर्धारित करनी चाहिए। अदालत ने बलात्कार के आरोपी द्वारा अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध दायर अपील की अनुमति देते हुए उपरोक्त फैसला दिया। जस्टिस चक्रधारी शरण और जस्टिस नवनीत कुमार पांडे की खंडपीठ ने कहा, “POCSO Act की धारा 34(2) के अनुसार, पीड़िता की उम्र ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। इस अनिवार्य प्रावधान का ट्रायल कोर्ट द्वारा पालन नहीं किया गया।''

    केस टाइटल: राधेश्याम साह @राधे श्याम साह बनाम बिहार राज्य

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    POCSO Act | जब प्रक्रियात्मक चूक से अभियोजन पर कोई असर नहीं पड़ेगा तो ट्रायल भी ख़राब नहीं होगा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (POCSO Act) अधिनियम, किशोर न्याय (JJ Act) अधिनियम और सीआरपीसी के तहत जांच और मुकदमे के दौरान बयान दर्ज करने के संबंध में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय बच्चों के अनुकूल माहौल सुनिश्चित करने के लिए हैं। पीड़ित बच्चे के लिए और जब प्रक्रियात्मक खामियां अभियोजन पक्ष के मामले को प्रभावित नहीं करती हैं तो इससे ट्रायल भी प्रभावित नहीं होगा।

    केस टाइटल: राज्य बनाम XXX

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    उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम 1955 गोमांस के परिवहन पर रोक या प्रतिबंध नहीं लगाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यूपी गोवध निवारण अधिनियम 1955 और उससे जुड़े नियम विशेष रूप से राज्य के बाहर से उत्तर प्रदेश में गायों, बैलों या सांडों के परिवहन पर लागू होते हैं और गोमांस के परिवहन पर प्रतिबंध नहीं लगाते हैं, क्योंकि वहां अधिनियम या नियमों में गोमांस की आवाजाही को प्रतिबंधित करने वाला कोई प्रावधान नहीं है।

    यह टिप्पणी जस्टिस पंकज भाटिया की पीठ ने वसीम अहमद द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए की, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट, फतेहपुर के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसकी मोटरसाइकिल (इस आरोप पर कि इसका इस्तेमाल गोमांस के परिवहन के लिए किया गया था) को 1955 अधिनियम की धारा 5ए(7) के तहत शक्तियों को प्रयोग करते हुए जब्त करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

    केस टाइटलः वसीम अहमद बनाम यूपी राज्य और अन्य 2023 LiveLaw (AB) 446 [CRIMINAL REVISION No. - 4956 of 2023]

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    कर्मचारी की हत्या कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा करने से कानूनी उत्तराधिकारियों को वंचित नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कर्मचारी मुआवजा (ईसी) अधिनियम की धारा 30 के तहत दायर एक अपील में दोहराया कि रोजगार के दौरान किसी कर्मचारी की हत्या का तथ्य उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को अधिनियम के तहत मुआवजा मांगने से वंचित नहीं करता है।

    “…आयुक्त का यह निष्कर्ष कि अपने कर्तव्यों के पालन के दौरान किसी कर्मचारी की हत्या मामले को ईसी अधिनियम की धारा 2(1)(एन) के दायरे में नहीं लाएगी, त्रुटिपूर्ण है, जिसके लिए रीता देवी बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के फैसले और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुनेश देवी मामले में इस न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया जा सकता है।''”

    केस टाइटल: नीलू कुमारी और अन्य बनाम ओम और अन्य (बजाज एलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) एफएओ 56/2016

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    सीपीसी | मालिकाना प्रतिष्ठान मुकदमा दायर कर सकते हैं, बशर्ते मालिक का पूरा विवरण वादपत्र में दिया गया हो: जेएंड के एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, स्वाम्य प्रतिष्ठान, जिसका एक मात्र मालिक हो, की ओर से किया गया मुकदमा या अनुमानित बिजनेस नाम के तहत दायरमुकदमा सुनवाई योग्य हो सकता है, बशर्ते मालिक के पूरा विवरण का वादपत्र में खुलासा किया गया हो।

    स्वाम्य प्रतिष्ठान (Proprietry Conderns) की ओर से दायर मुकदमों के विषय पर कानून को स्पष्ट करते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा, “....एकमात्र मालिक की मा‌लिकाना वाली कंपनी की ओर से या किसी व्यक्ति के अनुमानित बिजनेस नाम या शैली द्वारा किया गया मुकदमा सुनवाई योग्य प्रतीत होता है; केवल कानूनी आवश्यकता यह है कि जब ऐसा कोई मुकदमा दायर किया जाता है, तो मालिकाना प्रतिष्ठान के मालिक या अनुमानित ब‌िजनेस नाम का पूरा विवरण वादपत्र में दिया जाना चाहिए, जैसा कि संहिता के आदेश 7 नियम 1 के तहत आवश्यक है ताकि मालिकाना प्रतिष्ठान के मालिक या अनुमानित बिजनेस नाम की पहचान स्थापित की जा सके।"

    केस टाइटल: कार्यकारी अभियंता, डल लेक डिवीजन- I बनाम मौसवी इंडस्ट्रीज बडगाम

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    राज्यव्यापी प्रतिबंध के बावजूद बढ़ रही हैं गोहत्या की घटनाएं, यूपी पुलिस ऐसे मामलों की जांच में गंभीर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम, 1955 (U.P. Prevention of Cow Slaughter Act, 1955) के तहत दर्ज एफआईआर की जांच में राज्य पुलिस की ढिलाई पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने यह भी कहा कि गोहत्या पर राज्यव्यापी प्रतिबंध के बावजूद ऐसे मामले बढ़ रहे हैं और जब भी ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज की जाती है तो यूपी पुलिस इसे लेकर लचीला रवैया अपनाती है।

    जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने ये टिप्पणियां सैफ अली खान नामक व्यक्ति द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिनके पास कथित तौर पर वर्ष 2019 में 1.5 क्विंटल गाय का मांस पाया गया था। उस पर एक्ट की धारा 3, 5 और 8 के तहत मामला दर्ज किया गया।

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    PMLA Act की धारा 8 | अभियुक्त को स्वयं 'दावेदार' नहीं माना जा सकता, जिसने 'अच्छे विश्वास से काम किया और पर्याप्त नुकसान उठाया': एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी व्यक्ति पीएमएलए नियम, 2016 के नियम 2 (बी) और पीएमएलए, 2002 की धारा 8 (8) में उल्लिखित 'दावेदार' की परिभाषा में नहीं आते हैं।

    जस्टिस प्रेम नारायण सिंह ने विशेष न्यायाधीश (पीएमएलए की धारा 8(8)) के आदेश रद्द करते हुए अभियुक्तों से संबंधित संपत्तियों को जारी किया, जो कथित तौर पर 'अपराध की आय' है। उन्होंने ने कहा कि इस तरह का आदेश स्पष्ट रूप से क़ानून में संबंधित प्रावधान का उल्लंघन करके पारित किया गया था।

    केस टाइटल: सहायक निदेशक भोपाल जोनल कार्यालय के माध्यम से प्रवर्तन निदेशालय बनाम डॉ. विनोद भंडारी और अन्य।

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    धारा 196 सीआरपीसी | मंजूरी के लिए आवेदन करने में अत्यधिक देरी को सीमा की गणना करते समय धारा 470 के तहत बाहर नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आईपीसी की धारा 153 (ए) (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए मंजूरी प्राप्त करने के लिए अनुरोध को दोबारा प्रस्तुत करने में लगभग पांच साल की देरी को स्वीकार नहीं किया जा सकता.

    जस्टिस पीजी अजितकुमार ने कहा, यह भी माना गया कि अभियोजन पक्ष यह तर्क नहीं दे सकता कि उस अवधि को सीआरपीसी की धारा 470(3) के तहत बाहर रखा जा सकता है।

    केस टाइटलः मनोज कुमार और अन्य बनाम केरल राज्य

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    कानूनी औचित्य के बिना यूएपीएगिरफ्तारी अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन, धारा 43डी(5) के बावजूद ऐसे मामलों में आरोपी जमानत का हकदार: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पत्रकार फहद शाह को जमानत देते हुए कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत 'कानूनी औचित्य' के बिना गिरफ्तारी संविधान के तहत समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन होगी।

    अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि भले ही जांच एजेंसी के पास आतंकवाद विरोधी कानून के तहत गिरफ्तारी करने की विवेकाधीन शक्तियां हैं, फिर भी गिरफ्तारी के बाद एक ठोस तर्क दिया जाना चाहिए, जिसमें आरोपी को जमानत पर रिहा करने पर समाज को होने वाले खतरे की धारणा साफ-साफ बताई गई हो।

    केस डिटेलः पीरज़ादा शाह फहद बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य। | CrlA(D) No. 42 of 2022 c/w CRM (M) No. 472 of 2023

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    जब तक कि वैधानिक उल्लंघन प्रदर्शित न हो, नियोक्ता-कर्मचारी के बीच निजी विवाद रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने रोज़गार से संबंधित विवादों में रिट क्षेत्राधिकार की सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए हाल ही में देखा कि नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच सभी विवाद रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं। जस्टिस रजनेश ओसवाल की पीठ ने स्पष्ट किया कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच निजी विवाद नियोक्ता द्वारा किसी वैधानिक उल्लंघन का प्रदर्शन किए बिना सेवा के अनुबंध के लिए न्यायालय द्वारा रियायत की गारंटी नहीं देता है।

    केस टाइटल: सुनीता वाली बनाम यूओआई और अन्य

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    नागरिकों की निजता और मौलिक अधिकारों के सम्मान के लिए पुलिस निगरानी रजिस्टर प्रविष्टियों को सीमित करे : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों से नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करने, सतर्क और वैध निगरानी सुनिश्चित करने के लिए निगरानी रजिस्टर प्रविष्टियों की सख्ती से व्याख्या करने और उन्हें सीमित करने का आग्रह किया है।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा कि निगरानी को व्यक्तिगत गरिमा से समझौता नहीं करना चाहिए और निगरानी रजिस्टर प्रविष्टियों और निगरानी कानूनों को नियंत्रित करने वाले नियमों को इन प्रक्रियाओं में पुलिस अधिकारियों द्वारा आवश्यक सावधानी और देखभाल को स्वीकार करना चाहिए।

    केस : जागर सिंह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश

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    वसीयत पर तभी संदेह किया जा सकता है जब कटिंग और ओवरराइटिंग द्वारा महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केवल जहां यह पाया जाता है कि वसीयत में कुछ काट-छांट और ओवरराइटिंग करके महत्वपूर्ण बदलाव किए जाने की मांग की गई है, तभी अदालत यह निष्कर्ष निकाल सकती है कि वसीयत संदिग्ध है और उसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि वसीयत में कटिंग और ओवरराइटिंग का प्रभाव हमेशा प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। अदालत ने कहा कि वसीयत में ऐसी काट-छांट और ओवरराइटिंग के मामलों में प्रभाव की जांच की जानी चाहिए, भले ही ऐसे बदलाव उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 71 के अनुसार किए गए हों या नहीं।

    केस टाइटल: एमआर. भूपिंदर सिंह और अन्य बनाम राज्य और अन्य

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