POCSO Act की धारा 34(2) | ट्रायल कोर्ट पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए बाध्य: पटना हाईकोर्ट

Shahadat

24 Nov 2023 6:03 AM GMT

  • POCSO Act की धारा 34(2) | ट्रायल कोर्ट पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए बाध्य: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO Act) अधिनियम, 2012 की धारा 34 (2) के अनुसार पीड़िता की उम्र निर्धारित करनी चाहिए। अदालत ने बलात्कार के आरोपी द्वारा अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध दायर अपील की अनुमति देते हुए उपरोक्त फैसला दिया।

    जस्टिस चक्रधारी शरण और जस्टिस नवनीत कुमार पांडे की खंडपीठ ने कहा,

    “POCSO Act की धारा 34(2) के अनुसार, पीड़िता की उम्र ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। इस अनिवार्य प्रावधान का ट्रायल कोर्ट द्वारा पालन नहीं किया गया।''

    खंडपीठ ने कहा,

    “अभियोक्ता ने अपने बयान में कहा कि उसने 7वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, लेकिन किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की धारा 94 के तहत आवश्यक शैक्षिक प्रमाणपत्रों के आधार पर पीड़िता की उम्र का पता लगाने के लिए निचली अदालत द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया।“

    अभियोजक और शिकायतकर्ता ने दावा किया कि वह नाबालिग है और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376/34, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO Act) अधिनियम की धारा 4, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (XII) के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की।

    शिकायतकर्ता के फर्देबयान के अनुसार, 2016 में आरोपी ने अपने बच्चे के जन्म का जश्न मनाने के लिए अपने आवास पर डांस प्रोग्राम का आयोजन किया। पीड़िता और उसकी चचेरी बहन नृत्य प्रदर्शन देखने के लिए आरोपी के घर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुईं।

    रात लगभग 11:00 बजे, जब वे घर लौट रहे थे, अपीलकर्ता और उसके सह-अभियुक्त, जो अपीलकर्ता का भतीजा था, उन्होंने उन्हें रोक लिया। अपीलकर्ता ने पीड़िता को जबरन रोका और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया। आरोप है कि जब दोनों पीड़ितों ने शोर मचाया तो आरोपी मौके से भाग गए।

    भागते समय सह-आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता की चचेरी बहन को डराया, उसे शोर न मचाने की चेतावनी दी और उसका मुंह बंद कर दिया। इस दर्दनाक मुठभेड़ के बाद दोनों पीड़ितों ने अपने घर में शरण ली और अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया। इसके बाद मामला दायर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया।

    मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

    “ज्योति प्रकाश (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी से यह स्पष्ट हो जाता है कि ओसिफिकेशन या अन्य ट्रायल किसी की उम्र का सटीक प्रमाण नहीं है। न्यायालय द्वारा किसी भी पक्ष को व्यक्ति और दो वर्ष की छूट दी जा सकती है। अभियोजन पक्ष, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, यह साबित करने में विफल रहा है कि पीड़िता POCSO Act की धारा 2 (डी) के तहत बच्ची थी, इसलिए POCSO Act की धारा 29 और 30 के तहत धारणा लागू नहीं होगी।

    अदालत ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता के बयान, जहां उसने कथित बलात्कार के दौरान अपने चाचा के हस्तक्षेप का उल्लेख किया। उसके ट्रायल के बयान या प्रारंभिक बयान (फर्द-बयान) के बीच विसंगति को भी ध्यान में रखा, जहां ऐसे विवरण अनुपस्थित हैं। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस असंगतता ने अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह पैदा किया।

    अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा अस्थिर मानी और इस तरह बरी करने के पक्ष में फैसला सुनाया।

    नतीजतन, हाईकोर्ट ने अपील बरकरार रखी और अपीलकर्ता की सजा रद्द कर दी।

    अपीलकर्ता के लिए वकील: अशोक कुमार चौधरी, अक्षांश अंकित, और प्रतिवादी/प्रतिवादियों के लिए वकील: सुजीत कुमार सिंह, एपीपी।

    केस टाइटल: राधेश्याम साह @राधे श्याम साह बनाम बिहार राज्य

    केस नंबर: आपराधिक अपील (डीबी) नंबर 587/2021

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