लंबे समय तक कब्जा लेने या मुआवजा देने में राज्य की विफलता के कारण भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही विफल हो गई: राजस्थान हाईकोर्ट

Shahadat

24 Nov 2023 6:26 AM GMT

  • लंबे समय तक कब्जा लेने या मुआवजा देने में राज्य की विफलता के कारण भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही विफल हो गई: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में लगभग ढाई दशकों के बाद 1998 से निश्चित भूमि अधिग्रहण अवार्ड की कार्यवाही 'लैपस्ड' (Lapsed) घोषित करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका स्वीकार कर ली।

    जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने दोहराया कि जब राज्य भूमि अधिग्रहण अवार्ड में निर्धारित संपत्ति पर कब्जा करने या याचिकाकर्ता को मुआवजा देने में विफल रहा तो अधिग्रहण की कार्यवाही समाप्त हो गया।

    इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहर लाल और अन्य (2020) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए निष्कर्ष निकाला कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार की धारा 24 के अनुसार कार्यवाही समाप्त हो गई है।

    न्यायालय ने आदेश में कहा,

    “…. जब यह तथ्य निर्विवाद है कि न तो कब्ज़ा लिया गया और न ही याचिकाकर्ता को कोई मौद्रिक मुआवजा दिया/जमा किया गया तो इंदौर विकास प्राधिकरण के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा पारित निर्णय के पैरा नंबर 366.8 में जारी टिप्पणियों और निर्देशों के आलोक में याचिकाकर्ता के लिए विवादित अधिग्रहण कार्यवाही समाप्त हो गई।

    इंदौर विकास प्राधिकरण में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणियां की थीं:

    “अधिनियम की धारा 24(2) के प्रावधानों में कार्यवाही की चूक को शामिल करने का प्रावधान उस स्थिति में लागू होता है, जब अधिनियम, 2013 लागू होने से पहले पांच साल या उससे अधिक समय तक कब्जा लेने और मुआवजे का भुगतान करने में अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण अधिकारी विफल रहे हैं। भूमि अधिग्रहण 1.1.2014 तक संबंधित प्राधिकारी के पास लंबित है।

    वर्तमान मामले में भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत अधिसूचना के आधार पर 25.07.1995 को शुरू की गई। इसके बाद संभावित आपत्तिकर्ताओं से आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए अधिनियम की धारा 6 के तहत नोटिस 1997 में जारी किया गया, जिसके बाद 1998 में भूमि अधिग्रहण किया गया। प्रतिवादी अधिकारियों ने भी भूमि अधिग्रहण कार्यवाही की समयसीमा के बारे में कोई आपत्ति नहीं उठाई। याचिकाकर्ता ने शहरी सुधार ट्रस्ट (राजस्थान) के नाम के बजाय राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम फिर से दर्ज करने की राहत भी मांगी।

    तदनुसार, अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और मामले में सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया।

    केस टाइटल: शिखरचंद की पत्नी ज्ञानवती बनाम राजस्थान राज्य शहरी विकास और आवास विभाग और अन्य।

    केस नंबर: एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 6975/2016

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