"जेल में आवेदक को राज्य/अभियोजक की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काउंटर एफिडेविट/रिपोर्ट समय पर न दाखिल करने पर नाराजगी व्यक्त की
Sparsh Upadhyay
22 March 2021 11:05 AM IST
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि पर्याप्त समय मिलने के बावजूद, लगभग हर मामले में, AGA समय पर काउंटर एफिडेविट और मृतक के विसरा रिपोर्ट देने में विफल रहते हैं।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने सख्त तौर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि,
"राज्य के पक्ष से न्यायालय को पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है। यह दयनीय स्थिति है और न्यायालय राज्य के इस तरह के रवैये पर अपनी आपत्ति दर्ज करता है।"
इसके अलावा, यह देखते हुए कि लगभग हर मामले में, पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद, AGA ने समय के भीतर काउंटर हलफनामा या विस्सेरा रिपोर्ट दाखिल करने में असमर्थता जताई, अदालत ने टिप्पणी की,
"आवेदक जो जेल में है उसे राज्य / या अभियोजक की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है।"
अंत में, कोई अन्य विकल्प ना पाते हुए, अदालत केवल आवेदक के लिए पेश वकील की मदद से जमानत आवेदन पर फैसला करने के लिए आगे बढ़ी।
न्यायालय के समक्ष मामला और उसका आदेश
आवेदक अनमोल रस्तोगी के खिलाफ धारा 323, 328, 304-बी, 498 ए और 506 आईपीसी और धारा ¾ दहेज प्रताड़ना अधिनियम, पुलिस थाना-गंज, जिला-रामपुर में मामले दर्ज किया गया था जिसके संबंध में जमानत आवेदन दाखिल किया गया।
आवेदक 26 मई 2020 से जेल में बंद था।
अतिरिक्त दहेज की मांग के चलते कथित तौर पर शादी के तीन साल के भीतर ही आवेदक की पत्नी की मृत्यु हो गई और यह आरोप लगाया गया कि उसे कुछ जहरीला पदार्थ खिलाया गया, जिससे उसकी जान चली गई।
आवेदक के वकील ने डॉक्टर की राय पर अदालत का ध्यान आकर्षित किया जिसमें कहा गया था कि मृतक के शरीर में गंभीर संक्रमण मौजूद था और उसके बाद उसे बेहतर इलाज के लिए उच्च केंद्र में भेजा गया था।
यह तर्क दिया गया था कि डॉक्टर ने इस तथ्य पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया था कि उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया गया था या नहीं?
दूसरी ओर, A.G.A ने जमानत के लिए प्रार्थना का विरोध किया, लेकिन उपरोक्त तथ्यों और कानूनी दलीलों पर विवाद नहीं कर सका जैसा कि आवेदक के लिए पेश वकील ने तर्क दिया था।
अंत में, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि गवाह पक्षद्रोही हुए और अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने देखा कि आवेदक ने जमानत के लिए एक मामला बनाया था।
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