हत्या के दोषियों को तीन बार मिली COVID पैरोल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा, जांच के आदेश

LiveLaw News Network

16 Dec 2021 10:45 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के चार दोषियों को COVID पैरोल पर रिहा करने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदम पर सवाल उठाते हुए सोमवार को राज्य सरकार के मुख्य सचिव को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया कि किन परिस्थितियों में दोषी/अपीलकर्ता को तीन बार पैरोल पर रिहा किया गया।

    जस्टिस विवेक वर्मा और जस्टिस रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने यह रिपोर्ट भी मांगी है कि ऐसे कितने दोषसिद्ध व्यक्ति हैं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा दी गई है, और अन्य दोषियों, जो सात साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए जेल में हैं, उन्हें यूपी सरकार ने रिहा किया है।

    कोर्ट चार मर्डर दोषियों के मामले से निपट रहा था, जिन्हें 1999 में ट्रायल कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई थी और वर्तमान में उनकी अपील हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। उन्हें 23 मार्च, 2020 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर राज्य सरकार ने तीन बार COVID पैरोल पर रिहा किया था।

    महत्वपूर्ण रूप से, सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2020 के आदेश के अनुसार, राज्यों को कैदियों को रिहा करके जेलों में भीड़ कम करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) बनाने का निर्देश दिया गया था और यूपी सरकार द्वारा गठित समिति ने उन कैदियों को पैरोल देने का फैसला किया था जो सात सालों तक की जेल का सामना कर रहे हैं।

    इस पृष्ठभूमि में मौत की सजा की अपील से निपटने के दौरान, अदालत को बताया गया था कि चार अपीलकर्ता, कृष्ण मुरारी, राघव राम, काशी राम और राम मिलन को सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश के अनुपालन में तीन बार मई 2021, अगस्त 2021 और दिसंबर 2021 में पैरोल पर रिहा किया गया था। हर बार उन्हें साठ दिनों की अवधि के लिए पैरोल पर रिहा किया गया।

    गौरतलब है कि हत्या के चारों दोषियों को 1999 में ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी और एक साल बाद हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। हालांकि 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट को मामले की नए सिरे से सुनवाई करने के लिए कहा। उसके बाद हाईकोर्ट ने एक गैर-जमानती वारंट जारी किया और दोषियों को हिरासत में ले लिया गया।

    तब से, वे हिरासत में थे, लेकिन राज्य सरकार ने तीन बार आदेश पारित किया, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, उन्हें शीर्ष अदालत के दिनांक 23.03.2020 के उक्त आदेश के अनुपालन में पैरोल पर रिहा किया गया है।

    अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता से यह पूछे जाने पर कि किन परिस्थितियों में अपीलार्थी तीन बार पैरोल पर रिहा हुए, वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके और उन्होंने कहा कि पैरोल पर रिहाई का आदेश वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर पारित नहीं किया जा सकता है।

    इसे देखते हुए न्यायालय ने कहा,

    " ...यह बहुत चिंता का और गंभीर विषय है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सहायता से राज्य द्वारा पैरोल पर दोषियों/अपीलकर्ताओं की रिहाई की जा रही है... जिस तरह से राज्य ने दोषी/अपीलकर्ताओं को तीन बार पैरोल पर रिहा किया है, हम उस पर अपनी नाराजगी दर्ज करते हैं..."

    कोर्ट ने दोषियों/अपीलकर्ताओं के अधिवक्ता को निर्देश दिया गया कि वे दोषियों/अपीलकर्ताओं को तत्काल मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, फैजाबाद के समक्ष आत्मसमर्पण करने की सूचना दें, ऐसा न करने पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, फैजाबाद को दोषियों/अपीलकर्ताओं को हिरासत में ले लें।

    मामले को अगली सुनवाई के लिए 12 दिसंबर, 2021 को सूचीबद्ध किया गया है।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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