"पीड़िता को बेरहमी से कुचला गया; महिलाएं इस्तेमाल की वस्तु नहीं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

20 Oct 2021 2:55 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रेप आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, आरोपी सितंबर 2020 हुई घटना में शामिल था, जिसमें पीड़‌िता के शरीर को "आद‌िम होमो सेपियंस ने कुचला और मसल दिया।"

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कहा कि महिलाएं इस प्रकार इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु नहीं है। उन्होंने जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपी द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध के प्रति सभ्य समाज में कोई सहानुभूति नहीं है।

    संक्षेप में मामला

    न्यायालय स्पेशल जूड एससी/एसटी एक्ट, मेरठ द्वारा पारित निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वाशु नामक एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। वह धारा 376-डी, 377 , 323, 504, 506 आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2) (v) के तहत दर्ज मामले में अभियोजन का सामना कर रहा है।

    मामले में दर्ज एफआईआर के अनुसार, 14 सितंबर, 2020 को राघव त्यागी नामक एक व्यक्ति ने पीड़िता को अपनी कार में लिफ्ट दी और उसे किसी सुनसान जगह पर ले गया, जहां उसने दो अन्य लोगों के साथ उसके साथ बेरहमी से मारपीट की और बलात्कार करने के बाद उसे छोड़ दिया।

    धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में पीड़िता ने एफआईआर में दर्ज अभियोजन कहानी को दोहराया और उसने यह भी कहा कि वह अक्सर नामित आरोपी व्यक्ति मोबाइल फोन पर अक्सर उसका उत्पीड़न करते थे।

    उसने यह भी बताया कि कार में बैठने के तुरंत बाद उसने दो अन्य व्यक्तियों को देखा और ड्राइवर ने अचानक कार चलाना शुरू कर दिया, और उसके बाद सभी ने निर्दयतापूर्वक उसके साथ जघन्य तरीके से बलात्कार और कुकर्म किया। उसने तीनों हमलावरों में से वर्तमान आवेदक वासु की भी पहचान की।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरू में कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में रजत त्यागी उर्फ ​​राघव त्यागी, वासु के खिलाफ आरोप सुसंगत थे। दूसरी ओर, अदालत ने एफएसएल रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा, जिसमें संकेत दिया गया था कि लड़की का बलात्कार किया गया था।

    इसके अलावा, धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत बयानों को देखते हुए, अदालत ने कहा, "... उसने अपीलकर्ता को अपराध का दोषी ठहराया है। मामले में नामित तीन आदिम होमो सेपियंस ने जिस तरह और तरीके से उसके मन, आत्मा और शरीर को बेरहमी से कुचला, वह एक सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है। महिलाएं इस तरह से इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु नहीं है और इस प्रकार, ऐसे अपराधियों के लिए सभ्य समाज में कोई सहानुभूति नहीं है।"

    अंत में, कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि अभियोजन की कहानी, डॉक्टर के समक्ष सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़ितों का बयान, मेडिकल रिपोर्ट, और धारा 164 सीआरपीसी के तहत उसका बयान जब रैखिक तरीके से रखा जाता है तो यह स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता की संलिप्तता को इंगित करता है।

    इसलिए, अदालत ने निचली अदालत के आरोपी वाशु को जमानत देने से इनकार करने के आदेश में कोई विकृति और अवैधता नहीं पाई और अपील को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - वाशु बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 2 अन्य

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