इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत गोंड उप-जातियों को नामित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को रद्द किया

LiveLaw News Network

19 Aug 2021 11:49 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत गोंड उप-जातियों को नामित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को रद्द किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को रद्द किया, जिसके तहत दो गोंड उप-जातियों - नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में नामित किया गया था।

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने कहा कि यूपी सरकार को गोंड जाति या उसके पर्यायवाची / उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नामित करने की अनुमति नहीं है।

    संक्षेप में मामला

    जाति को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आने की अधिसूचना जारी करने की शक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत संसद के पास है और इसके अनुसरण में यूपी राज्य के 13 जिलों के लिए कुछ जातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित करने के लिए 08 जनवरी 2003 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी।

    तत्पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण अनुभाग द्वारा दिनांक 15 जुलाई, 2020 का एक आदेश जारी किया गया, जिसके तहत अधिसूचना में दिए गए 13 जिलों के लिए जातियों का नामकरण करते हुए, इसमें गोंड जाति या उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति के रूप में उल्लेख किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह का संदर्भ राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए राज्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना में छेड़छाड़ या स्थानापन्न नहीं कर सकते हैं।

    दूसरी ओर, अतिरिक्त महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि यहां आदेश 1 जनवरी 2003 की राजपत्र अधिसूचना के अनुरूप है और व्यक्ति द्वारा जाति प्रमाण पत्र को धोखाधड़ी से लेने के लिए अपनाए गए कदाचार के कारण आदेश जारी करने की आवश्यकता पड़ी।

    यह तर्क दिया गया कि आदेश को भारत सरकार की राजपत्र अधिसूचना की व्याख्या या प्रतिस्थापन के आदेश के रूप में गलत तरीके से लिया गया है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने देखा कि राज्य सरकार को आदेश जारी करने की आवश्यकता नहीं है या अधिसूचना की व्याख्या या प्रतिस्थापन देने के आदेश जारी करने की क्षमता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार के आदेश को रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि,

    "15 जुलाई, 2020 का आदेश भारत सरकार की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार जाति और जिले का संदर्भ दिखाता है, लेकिन पैरा 3 के मध्य भाग में निर्दिष्ट जाति के अलावा, आक्षेपित आदेश के पैरा 3 के अंत में आगे गोंड जाति या इसके पर्यायवाची शब्द / उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आने के लिए संदर्भित करता है। पूर्वोक्त अनुमेय नहीं है।"

    अदालत ने कहा कि यू.पी. राज्य को भारत सरकार द्वारा जारी राजपत्र अधिसूचना का पालन करना चाहिए।

    अदालत ने ध्यान दिया कि जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में व्यक्तियों के कपटपूर्ण कृत्यों को रोकने के लिए आक्षेपित आदेश जारी किया गया था और इसलिए न्यायालय ने कहा कि,

    "हो सकता है कि हमने आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया हो, लेकिन पैरा 3 में कुछ प्रतिस्थापन को देखते हुए, इसे रद्द किया जाता है।"

    कोर्ट ने अंत में स्पष्ट किया कि राजपत्र अधिसूचना में नामित आरक्षित जाति के उम्मीदवार के पक्ष में जाति प्रमाण पत्र जारी करते समय यू.पी. राज्य आवेदन की उचित जांच करने के लिए स्वतंत्र होगा ताकि जाति प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से नहीं लिया जा सके।

    केस का शीर्षक - नायक जन सेवा संस्थान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड 2 अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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