24 अगस्त 2009 से पहले रिटायर्ड हुए पीएमएस डॉक्टर संशोधित 'नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ते' के हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के आदेश को रद्द किया

LiveLaw News Network

7 Sept 2021 12:21 PM IST

  • 24 अगस्त 2009 से पहले रिटायर्ड हुए पीएमएस डॉक्टर संशोधित नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ते के हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के आदेश को रद्द किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के एक आदेश को खार‌िज़ कर दिया, जिसमें 24 अगस्त 2009 से पहले रिटायर्ड हुए प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) के डॉक्टरों को संशोधित एनपीए (नॉन-प्रैक्टिस‌िंग भत्ते) का लाभ देने से इनकार किया गया था। कोर्ट ने निर्देश किया सरकार के आदेश के बाद वसूली गई एनपीए राशि को तीन महीने के भीतर वापस किया जाए।

    राज्य की दलील कि याचिकाकर्ताओं को संशोधित एनपीए लाभ देने में वित्तीय बाधाएं हैं, के जवाब में जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने जोर देकर कहा कि राज्य कर्मचारियों के वैधानिक बकाया का भुगतान करने के लिए बाध्य है, वह वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए अपनी देयता से बच नहीं सकता है।

    एनपीए (नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ता) क्या है?

    उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1983 में यूपी गवर्नमेंट डॉक्टर्स (एलोपैथिक) रिस्ट्र‌िक्‍शन ऑफ प्राइवेट प्रैक्टिस रूल्स, 1983 की घोषणा की थी, जिसमें सरकारी डॉक्टरों पर निजी प्रैक्टिस में संलग्न होकर किसी भी तरह का आर्थिक लाभ पाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

    उक्त प्रतिबंध के एवज में उन्हें एक नानॅ-प्रैक्टिसिंग भत्ता उपलब्ध कराया गया था, जिसे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाना था।

    संक्षेप में तथ्य

    अदालत 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त हो चुके कई एलोपैथिक डॉक्टरों द्वारा दायर कुल 14 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    वे सभी 14 जुलाई, 2020 और 4 सितंबर, 2020 के सरकारी आदेशों से व्यथित थे, जिन्होंने उन्हें इस आधार पर एनपीए की संशोधित और बढ़ी हुई दर से वंचित कर दिया कि वे कटऑफ तिथि 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त हो गए हैं।

    इन दो आदेशों के पारित होने से पहले, 7 वें वेतन आयोग की सिफारिशों को 9 मार्च, 2019 को यूपी राज्य द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसका लाभ याचिकाकर्ताओं को दिया गया था, और उन्हें आक्षेपित सरकारी आदेशों के पारित होने तक (14 जुलाई और 4 सितंबर) नॉन-प्रैक्टिस भत्ते की बढ़ी हुई दर प्राप्त होने लगी थी।

    साथ ही सरकार ने एनपीए की संशोधित और बढ़ी हुई दर से प्राप्त लाभ की वसूली के लिए 16 जुलाई, 2020 का एक वसूली आदेश भी पारित किया था।

    अनिवार्य रूप से, दोनों आदेशों (14 जुलाई और 4 सितंबर) का प्रभाव यह था कि 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त होने वाले डॉक्टरों को एक वर्ग में शामिल किया गया था और उन्हें उस दर पर एनपीए का हकदार बनाया गया था, जो वे अपनी सेवानिवृत्ति के समय प्राप्त कर रहे थे। (किसी भी वृद्धि या संशोधन के किसी भी अधिकार से रहित)।

    हालांकि, 24 अगस्त 2009 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति अन्य वर्ग का गठन करेंगे, और वे 20% की बढ़ी हुई दर पर नॉन-प्रैक्टिस भत्ते के हकदार होंगे।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अनुचित वर्गीकरण के समान है।

    14 जुलाई और 4 सितंबर के आदेश

    14 जुलाई, 2020 के आदेश में कहा गया है कि 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त होने वाले याचिकाकर्ता उस दर पर एनपीए प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो वे सेवानिवृत्ति की तारीख को प्राप्त कर रहे थे , और 24 अगस्त 2009 के बाद उनके लिए समय-समय पर एनपीए का संशोधन अस्वीकार्य होगा।

    4 सितंबर, 2020 के आदेश ने याचिकाकर्ताओं को देय एनपीए की दर को रोक दिया, जो 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त हो गए थे, जबकि अन्य सरकारी डॉक्टर, जो 24 अगस्त, 2009 के बाद सेवानिवृत्त हुए थे, उन्हें संशोधित दरों पर एनपीए प्राप्त करने का हकदार बनाया गया था।

    अनिवार्य रूप से, 4 सितंबर, 2020 का सरकारी आदेश 14 जुलाई, 2020 के पहले के सरकारी आदेश की पुनरावृत्ति के अलावा और कुछ नहीं था और दोनों आदेशों का प्रभाव याचिकाकर्ताओं को नॉन-प्रैक्टिस भत्ते की संशोधित दर से उनकी पात्रता से वंचित करने का था।

    दलीलें

    याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया था कि 24 अगस्त 2009 के बाद सेवानिवृत्त हुए डॉक्टरों को नॉन-प्रैक्टिस भत्ते की संशोधित दर का हकदार बनाया गया है, जबकि 24 अगस्त, 2009 से पहले सेवानिवृत्त होने वाले डॉक्टरों को संशोधित एनपीए लाभ प्राप्त करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

    उन्होंने दावा किया कि उनके साथ अनुचित रूप से भेदभाव किया गया है, और इसलिए, उक्त सरकारी आदेशों के साथ-साथ आक्षेपित आदेशों के परिणामस्वरूप पारित वसूली आदेशों को रद्द करने की प्रार्थना की।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    महत्वपूर्ण रूप से, यह तर्क दिया गया था कि प्रत्यायोजित शक्ति के प्रयोग में सरकार नॉन-प्रैक्टिस भत्ते की दरों को पूर्वव्यापी रूप से निर्धारित नहीं कर सकती और इसलिए, यह तर्क दिया गया था कि आक्षेपित सरकारी आदेश अधिकार क्षेत्र के बिना, अवैध और मनमाना थे।

    इस तर्क को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने कहा, "आक्षेपित सरकारी आदेश में 24/08/2009 से दरों को फिर से निर्धारित करने का प्रभाव है, इसलिए स्पष्ट रूप से अधिकार क्षेत्र के बिना और मनमाना है। नतीजतन, सरकारी आदेश दिनांक 04/09/2020 स्पष्ट रूप से अधिकार के बिना अवैध और मनमाना है ... नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ते के अधिकार को पूर्वव्यापी से वापस लेना स्पष्ट रूप से अधिकार क्षेत्र के बिना, अवैध, मनमाना है और तर्कसंगतता के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।"

    न्यायालय ने दोनों सरकारी आदेशों को ध्यान में रखा, जिसने अनिवार्य रूप से डॉक्टरों के दो अलग-अलग वर्ग बनाए थे और कहा, "सरकार के आदेश हमारे विचार में उचित वर्गीकरण के परीक्षण में विफल रहे हैं और कट-ऑफ तिथि 24/08/2009 के आधार पर किए जाने वाले वर्गीकरण तर्कहीन हैं....आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।"

    नतीजतन, न्यायालय ने अपने आदेश में कहा-

    -याचिकाकर्ता सरकार के आदेश 3 मार्च 2019 (एनपीए की दर को संशोधित) के अनुसार नॉन-प्रैक्टिस भत्ते की संशोधित राशि के हकदार हैं।

    -16 जुलाई, 2020 के वसूली आदेश को अवैध और मनमाना माना जाता है।

    -सभी रिट याचिकाओं को स्वीकार किया गया और 14/07/2020, 16/07/2020 और 04/09/2020 के आक्षेपित आदेश रद्द किए जाते हैं।

    -याचिकाकर्ता सरकारी आदेश दिनांक 19/08/2019 द्वारा संशोधित एनपीए के हकदार माने जाते हैं।

    -आक्षेपित शासनादेशों के अनुसार वसूल ‌किए गए गैर-व्यावसायिक भत्ते की राशि को आज से तीन माह की अवधि के भीतर बकाया सहित वापस करने का निर्देश दिया जाता है, ऐसा न करने पर भुगतान में विलम्ब के लिए 8% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान किया जाएग।

    आदेश/निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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