महिंद्रा फाइनेंस अनुच्छेद 12 के तहत एक प्राधिकरण नहीं, इसके खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

LiveLaw News Network

15 Jan 2021 6:22 AM GMT

  • महिंद्रा फाइनेंस अनुच्छेद 12 के तहत एक प्राधिकरण नहीं, इसके खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरिफ खान बनाम शाखा प्रबंधक महिंद्रा फाइनेंस सुल्तानपुर और एक अन्य मामले में कहा कि किसी निजी निकाय के खिलाफ़ रिट याचिका पर परमादेश (Mandamus) जारी नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में नहीं आता।

    न्यायालय एक निजी निकाय महिंद्रा फायनेंस को परमादेश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

    इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत के सामने प्रार्थना की थी कि वह महिंद्रा फाइनेंस को मैंडेमस के तहत निर्देश जारी करे और संबंधित देय राशि के साथ कस्टमर आईडी नंबर का पूरा विवरण उपलब्ध कराए, ताकि संबंधित राशि को आंशिक/आसान किस्तों में जमा करने के लिए उत्तरदाताओं को निर्देशित किया जा सके।

    कोर्ट ने पहले याचिकाकर्ता के वकील से इस बारे में पूछताछ की थी कि क्या प्राइवेट बैंक के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य है?

    निजी बैंक के खिलाफ रिट प्रस्तुत करते समय याचिकाकर्ता ने विभिन्न न्याय निर्णयों का हवाला दिया।

    याचिकाकर्ता ने प्रबंधक, आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड बनाम प्रकाश कौर और अन्य ने 26.02.200 App (200 2007 का अपील) (क्र.) नंबर 26 मामले का हवाला दिया।

    न्यायालय का अवलोकन

    कोर्ट ने फेडरल बैंक लिमिटेड बनाम सागर थॉमस और अन्य के फैसले को संदर्भित करती याचिकाकर्ता की सामग्री को खारिज करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट जारी करने की गुंजाइश पर विचार किया।

    अदालत ने देखा:

    "फेडरल बैंक लिमिटेड बनाम सागर थॉमस और अन्य माामले में शीर्ष न्यायालय ने एक निजी बैंक के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट जारी करने की गुंजाइश पर विचार किया।

    इसके पैरा 27 और 33 में कहा गया:

    "27. कुछ निजी कंपनियां संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आम तौर पर रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं होंगी। लेकिन कुछ परिस्थितियों में एक रिट ऐसे निजी निकायों या व्यक्तियों को जारी की जा सकती है क्योंकि ऐसे कानून हो सकते हैं, जिन्हें सभी संबंधितों द्वारा अनुपालन करने की आवश्यकता होती है।

    निजी कंपनियों सहित उदाहरण के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम उचित वातावरण बनाए रखने के लिए कुछ विधान हैं जैसे वायु (रोकथाम और प्रदूषण का नियंत्रण) अधिनियम, 1981 या जल (रोकथाम और नियंत्रण) प्रदूषण) अधिनियम, 1974 इत्यादि या उस प्रकृति के क़ानून जो ऐसे निजी निकायों पर वैधानिक रूप से कुछ कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को तय करते हैं, जिनका वे अनुपालन करने के लिए बाध्य हैं।

    यदि वे ऐसे वैधानिक प्रावधान का उल्लंघन करते हैं तो निश्चित रूप से उन प्रावधानों के अनुपालन के लिए एक रिट जारी की जाएगी।

    उपरोक्त चर्चा के लिए हमारे विचार में बैंकिंग व्यवसाय को अनुसूचित बैंक के रूप में एक निजी कंपनी को किसी भी वैधानिक या सार्वजनिक कर्तव्य वाली संस्था या कंपनी नहीं कहा जा सकता है। एक निजी निकाय या व्यक्ति केवल अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी हो सकता है, जहां किसी भी वैधानिक दायित्वों को लागू करने के लिए इस तरह के निकाय या संघ को बाध्य करने के लिए आवश्यक हो सकता है या सार्वजनिक प्रकृति के ऐसे दायित्वों पर सकारात्मक दायित्व डाल सकता है।

    हमें नहीं लगता कि बैंकिंग की व्यावसायिक गतिविधि करने वाली एक निजी कंपनी के संबंध में ऐसी शर्तें पूरी होती हैं।"

    उद्धृत मामले इस मामले पर लागू नहीं होते हैं

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने जिन दो फैसलों का उल्लेख अपनी याचिका में किया है उनका इस मामले से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि तथ्य और परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। तदनुसार यह देखा गया कि इस मोड़ पर इस तरह की राहत नहीं मांगी जा सकती है और निजी बैंकों को इसके अनुसार परमादेश जारी नहीं किया जा सकता।

    "यह याचिकाकर्ता का मामला नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में महिंद्रा फायनेंस प्राधिकरण है, न ही यह आरोप लगाया गया है कि वर्तमान मामले में किसी भी वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।

    उपरोक्त के मद्देनजर, हमारा विचार है कि वर्तमान मामले के तथ्यों में शुद्ध रूप से निजी निकाय अर्थात् महिंद्रा फाइनेंस को कोई भी परमादेश जारी करने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया है।''

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