''महिला के पवित्र शरीर के खिलाफ अपराध, गरिमा का दफन'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से सामूहिक बलात्कार करने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

15 Sep 2021 5:45 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    यह रेखांकित करते हुए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अंधेरे में गरिमा का एक राक्षसी दफन है, और यह एक महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ भी है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

    न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने आरोपी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि नाबालिग पीड़िता ने अपने सीआरपीसी की धारा 164 के बयान में आवेदक और अन्य सह-आरोपी पर सामूहिक बलात्कार करने के विशिष्ट आरोप लगाए हैं।

    संक्षेप में मामला

    दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत दायर वर्तमान आवेदन में अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की गई चूंकि आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 504, 506, 376 डी और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 7/8 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।

    आरोपी द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि चूंकि उसके पक्ष ने वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता/पीड़िता के पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 323 और 504 के तहत एनसीआर दर्ज की थी, इसलिए शिकायतकर्ता ने केवल उसे परेशान करने के लिए तत्काल आपराधिक कार्यवाही शुरू की है और उसे उक्त एनसीआर मामले को निपटाने के लिए मजबूर किया गया है।

    उसके वकील ने यह भी कहा कि आवेदक वर्तमान मामले में अपनी झूठी संलिप्तता का पता लगाने के लिए अपना डीएनए परीक्षण करवाने के लिए तैयार है। इतना ही नहीं अगर उसे अदालत द्वारा अग्रिम जमानत दी जाती है तो वह कोर्ट लगाई गई सभी शर्तों का पालन करने का भी वचन भी देता है।

    दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने अग्रिम जमानत का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि आवेदक पर एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार करने का जघन्य आरोप लगा है यानी आईपीसी की धारा 376डी और पाॅक्सो एक्ट की धारा 7/8 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

    आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि निचली अदालत ने वर्तमान आवेदक की अग्रिम जमानत को खारिज करते हुए कहा था कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में विशेष रूप से यह कहा है कि जब वह शौच के लिए गई तो दो आरोपियों ने उसके साथ बलात्कार किया।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    अदालत ने कहा कि पीड़िता के बयान के अवलोकन पर, वर्तमान मामले में आवेदक की संलिप्तता सामने आई है।

    इसलिए, कोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा किः

    ''महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध, विशेष रूप से, अंधेरे में एक महिला की गरिमा का राक्षसी तरीके से दफन करना है, और यह एक महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ एक अपराध है।''

    संबंधित समाचारों में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 2019 के झूंसी सामूहिक बलात्कार मामले में एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा कि उसने अपनी मर्दानगी का फायदा उठाकर, गरीब पीड़िता पर काबू पा लिया और उसके शरीर को कुचल दिया।

    यह देखते हुए कि आरोपी कोई सहानुभूति का पात्र नहीं है, न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने इसे सबसे अमानवीय और घृणित अपराध करार दिया, जहां पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को किसी और ने नहीं बल्कि आरोपी ने कुचल दिया है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि भारत में छोटी बच्चियों की पूजा की जाती है, लेकिन साथ ही, देश में बाल यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं। यह कहते हुए कोर्ट ने उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया था जिस पर एक 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप है।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा किः

    ''ऐसे में अगर कोर्ट ने सही समय पर सही फैसला नहीं लिया तो पीड़ित/आम आदमी का भरोसा न्यायिक व्यवस्था पर नहीं रहेगा। इस तरह के अपराध पर सख्ती से रोक लगाने का यह सही समय है।''

    केस का शीर्षक- छोटू उर्फ सुनील कुमार बनाम यूपी राज्य व अन्य

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