आजादी के 75 साल बाद भी छोटे किसानों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Nov 2021 11:39 AM GMT

  • आजादी के 75 साल बाद भी छोटे किसानों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी छोटे किसानों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है।

    न्यायमूर्ति मनीष कुमार और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने अपीलीय अदालत के आदेश के खिलाफ एक सरकारी कर्मचारी (रिश्वत मांगने के आरोप में दोषी) द्वारा दायर एक अपील को खारिज किया। दरअसल, निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को अपीलीय अदालत ने बरकरार रखा था।

    संक्षेप में तथ्य

    याचिकाकर्ता रसूल अहमद उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग में लेखपाल के पद पर कार्यरत थे।

    याचिकाकर्ता ने 1992 में शिकायतकर्ता वेदराम से संबंधित भूखंड को मापने के लिए 300 रुपये की रिश्वत की मांग की। इसमें से शिकायतकर्ता सिर्फ 100 रुपए दे पाया और जब अहमद ने शेष राशि पर जोर दिया, तो शिकायतकर्ता ने सूचना पुलिस अधीक्षक, भ्रष्टाचार निवारण संगठन, लखनऊ में शिकायत कर दी।

    इसके बाद, अपीलकर्ता को ट्रैप कार्यवाही में गिरफ्तार किया गया और इसके पास से 50 रुपये के चार उपचारित नोट बरामद किए गए। इस पर वर्ष 2013 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के साथ पठित धारा 13 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया और दोषी ठहराया गया।

    याचिकाकर्ता को 2000 रुपये के जुर्माने के साथ एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई, इसके खिलाफ एक अपील भी खारिज कर दी गई।

    इसके अलावा, उत्तर प्रदेश राज्य में लागू सिविल सेवा विनियमन के नियम 351 के तहत एक सरकारी आदेश पारित किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता की पूरी पेंशन रोक दी गई थी।

    याचिकाकर्ता ने सरकार के इस आदेश को चुनौती देते हुए यह दावा करते हुए रिट कोर्ट का रुख किया कि सिविल सेवा विनियमन के नियम 351 केवल गंभीर अपराधों के मामले में ही लागू होता है और उसने तर्क दिया कि केवल आपराधिक मामले में याचिकाकर्ता की सजा के कारण की गंभीरता पर विचार किए बिना अपराध, उसकी पूरी पेंशन पर रोक लगाने का आदेश पारित किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि रिट कोर्ट ने भी इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखा और मामले के तथ्यों के आलोक में 'गंभीर अपराध' शब्द पर विस्तार से चर्चा नहीं की।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने देखा कि उत्तर प्रदेश राज्य काफी हद तक एक कृषि प्रधान राज्य है और लेखपालों को भूमि की माप आदि से संबंधित राजस्व कानूनों के तहत कर्तव्यों को सौंपा गया है।

    न्यायालय ने इस प्रकार कहा,

    "अदालत केवल इस अपमान और आघात के साथ सहानुभूति रखती है जो उक्त छोटे किसान/शिकायतकर्ता को वह भी कानून के तहत अपने अधिकारों का दावा करने के लिए झेलना पड़ा होगा न कि किसी अवैध कार्य के लिए। याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मचारी था जो अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य था। लेकिन उसने अपने सही दायित्वों को पूरा करने के लिए रिश्वत की मांग की। अपराध की गंभीरता रिकॉर्ड के चेहरे पर स्पष्ट है।"

    कोर्ट ने नोट किया कि केवल इसलिए कि संबंधित प्राधिकारी जिसने विनियम 351 के तहत आदेश पारित किया था, ने मामले के इस पहलू पर विस्तार से चर्चा नहीं की और रिट कोर्ट ने भी तदनुसार ऐसा नहीं किया होगा, अपील की अनुमति देने का कोई आधार नहीं हो सकता है। अपीलकर्ता की रिट कोर्ट के आदेश के विपरीत है।

    कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्य सबके सामने हैं और किसी और विस्तार की आवश्यकता नहीं है।

    आगे कहा,

    "भ्रष्टाचार हमारे समाज का अभिशाप है। जो अकेले भ्रष्टाचार को झेलता है, वह इसकी चुभन महसूस कर सकता है। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, छोटे किसान को रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह आजादी के 75 साल बाद भी यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।"

    न्यायालय ने अंत में अपराध की गंभीरता को देखते हुए तत्काल अपील को खारिज किया।

    केस का शीर्षक - रसूल अहमद बनाम यूपी राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव राजस्व विभाग लखनऊ एवं अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story