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अध्ययन सूच‌ी परियोजनाः कानून के छात्रों और वकीलों के लिए आवश्यक किताबें
अध्ययन सूच‌ी परियोजनाः कानून के छात्रों और वकीलों के लिए आवश्यक किताबें

हमजा लकड़वाला विचार भारत में कानून के अधिकांश छात्रों को उनकी कानूनी शिक्षा पुरानी और अधूरी लगती है। कॉलेज और विश्वविद्यालय अक्सर मूलभूत सिद्धांतों और अवधारणाओं के सा‌थ कुछ बुनियादी प्रक्रियात्मक और ठोस कानूनों को सिखाते हैं। यह बुनियादी समझ बनाने में मदद करता है, मगर, किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है। ज्ञान क्षुधा की पूर्ति के लिए अधिकांश छात्र स्वाध्याय का सहारा लेते हैं, हालांकि ऐसा करने में, उन्हें यह महसूस होता है कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें क्या पढ़ना है ओर क्या नहीं। हालांकि कई...

किसी संक्रमित बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के रोग की सूचना किसी अन्य व्यक्ति को देना अपराध नहीं है अपितु लोक नीति के पक्ष में
किसी संक्रमित बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के रोग की सूचना किसी अन्य व्यक्ति को देना अपराध नहीं है अपितु लोक नीति के पक्ष में

इस समय विश्व भर में कोरोना वायरस जैसी गंभीर संक्रमित बीमारी चल रही है। इस बीमारी ने भारत भर को भी अपने चपेट में ले रखा है। यह एक संक्रामक रोग है तथा एक से दूसरे में संक्रमित होता है। आम जनसाधारण के भीतर इस बीमारी को लेकर एक बड़ा प्रश्न वैधानिक दृष्टिकोण से पैदा होता है कि यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार का कोई संक्रमित रोग है, जिस से वह संक्रमण दूसरों में भी फैल सकता है तो ऐसी परिस्थिति में क्या ऐसे व्यक्ति की पहचान को अभिव्यक्त करना अपराध है। किसी की बीमारी को सार्वजनिक करना अपराध हो सकता...

क्या गोपालन का भूत अभी भी हमारे न्यायशास्त्र को परेशान करता है? : एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले की समकालीन प्रासंगिकता की तलाश
"क्या गोपालन का भूत अभी भी हमारे न्यायशास्त्र को परेशान करता है?" : एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले की समकालीन प्रासंगिकता की तलाश

जस्टिस जयशंकरन नांबियार एके हमारे संविधान के क्रियाशील होने के पहले साल में, जिन ऐतिहासिक मामलों पर फैसला हुआ, मेरा मानना ​​है कि उनमें गोपालन मामले को उसका उचित श्रेय नहीं मिलता है। मैं इसे दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं क्योंकि गोपालन मामलें में कई मतों को पढ़ने से न‌िरे पांडित्य, न्यायिक अनुशासन और विचारों की स्पष्टता का पता चलता है, जिन्होंने जजों को अपने-अपने फैसले देने में मदद की, मामले में पेश हुए वकीलों की आकर्षक, प्रेरक और उत्तेजक दलीलों का उल्‍लेख ही न कीजिए! विचार से प्रकट होता है कि...

सफूरा ज़रगर की जमानत पर रोकः व्यक्तिगत आज़ादी पर भारी पड़ीं उल्टीपुल्टी दलीलें
सफूरा ज़रगर की जमानत पर रोकः व्यक्तिगत आज़ादी पर भारी पड़ीं उल्टीपुल्टी दलीलें

अतिरिक्त सत्र न्यायालय, पटियाला हाउस, नई दिल्ली का जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर को जमानत न देने का फैसला भ्रामकों तर्कों और निराधार अटकलों पर आधार‌ित है। 27 वर्षीय ज़रगर पर फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप है और उन पर भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया गया है। उल्‍लेखनीय है कि सफुरा गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में हैं। अभियोजन पक्ष ने सफूरा पर आरोप लगाया है कि 23 फरवरी को उनके 'भड़काऊ भाषण' के कारण उत्तर...

न्यायिक चुप्पी निर्वाचित के अत्याचार की पुष्टि करती: पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एक जवाब
न्यायिक चुप्पी 'निर्वाचित के अत्याचार' की पुष्टि करती: पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एक जवाब

अप्रत्याशित कोनों से कोर्ट पर, विशेष कर सुप्रीम कोर्ट पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वो गंभीर राष्ट्रीय मसलों, विशेष रूप से प्रवासी संकट में हस्तक्षेप न करें। सरकारों की लगातार निष्क्रियता का परिणाम यह है कि लाखों प्रवासी मजदूरों के जीवन अकल्पनीय दुखों का ढेर लग गया है, वो सड़कों पर पैदल चल रहे हैं। भोजन, पानी, जीवन के आवश्यक साधनों की कमी से जूझ रहे हैं। इस कठिन दौर में, अदालतों को हस्तक्षेप न करने की सलाह देना आंख पर पट्टी बांधने जैसा है। दूसरा मशविरा श्री आरसी लाहोटी (पूर्व सीजेआई) की...

प्रवासी संकट: पूर्व जजों और कानूनी बिरादरी की‌ प्रतिक्रिया का नतीजा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी संकट का संज्ञान लिया
प्रवासी संकट: पूर्व जजों और कानूनी बिरादरी की‌ प्रतिक्रिया का नतीजा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी संकट का संज्ञान लिया

मनु सेबे‌स्टियनराष्ट्रीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन के कारण दो महीनों से बहुत ही ज्यादा संकट का सामना कर रहे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का संज्ञान अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 26 मई को ले लिया। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के कारण सैकड़ों प्रवासी मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि सुप्रीम कोर्ट अब तक अ‌नभिज्ञता की मुद्रा में रहा है और सरकार के बयान को कि-सब ठीक है- को ही सही मानता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रवासी मजदूरों से संबंधित कई मुद्दों, जैसे कि मजदूरी का भुगतान, खाद्य सुरक्षा, आश्रय...