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श्रेया सिंघल जजमेंट के पांच सालः अब तक पूरी तरह से अमल में नहीं आ पाया फैसला
श्रेया सिंघल जजमेंट के पांच सालः अब तक पूरी तरह से अमल में नहीं आ पाया फैसला

देवदत्ता मुखोपाध्याय व सिद्घार्थ देवसुप्रीम कोर्ट का 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिया गया फैसला भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के क्षेत्र में दिया गया महत्वपूर्ण फैसला है। यह पहला और इकलौता मौका था, जब केवल अभ‌िव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले एक कानून असंवैधानिक करार दिया गया था। जैसा कि सेखरी और गुप्ता ने कहा है कि धारा 66 ए का प्रावधान ऐसा उत्तर संवैधानिक कानून था, जिसे पुलिस नियमित रूप से इस्तेमाल करती थी, वही इसे कई पूर्व-संवैधानिक कानूनों और धारा 377, आईपीसी...

कोविड लॉकडाउन: जानिए मिथ्या दावे (FalseClaim) एवं चेतावनी (Warning) के मामलों में कौन सी परिस्थितियों में हो सकती है जेल?
कोविड लॉकडाउन: जानिए मिथ्या दावे (FalseClaim) एवं चेतावनी (Warning) के मामलों में कौन सी परिस्थितियों में हो सकती है जेल?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (24 मार्च) रात 12 बजे से अगले 21 दिनों के लिए तीन सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। पीएम ने कहा कि COVID-19 वायरस को फैलने से रोकने के लिए यह उपाय नितांत आवश्यक था।दरअसल COVID-19 महामारी के फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है। हालाँकि, 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कुछ आवश्यक सामग्री और सेवाएं बंद से मुक्त रहेंगी, आप उनकी जानकारी इस लेख से...

क्या साध्य, साधन की पवित्रता तय करेंगे? पोलिश छात्र के मामले में कलकत्ता उच्‍च न्यायालय की हानिप्रद व्याख्या
क्या साध्य, साधन की पवित्रता तय करेंगे? पोलिश छात्र के मामले में कलकत्ता उच्‍च न्यायालय की हानिप्रद व्याख्या

(स्वप्न‌िल त्र‌िपाठी)कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय, कोलकाता की ओर से भारत में पढ़ रहे एक पोलिश नागरिक को दिए गए भारत छोड़ने के नोटिस ( Leave India Notice या LIN) को रद्द कर दिया। पोलिश नागरिक को हालिया नागरिक संशोधन कानून के विरोध में आयोजित राजनीतिक रै‌लियों में शामिल होने के कारण कथित रूप से वीजा शर्तों का उल्लंघन करने के आरोप में भारत छोड़ने का नोटिस दिया गया था, जिसे उसने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उसका...

जानिए मास्क और सैनिटाइज़र को आवश्यक वस्तु घोषित करने के क्या हैं मायने? इससे क्या बदल जाएगा?
जानिए मास्क और सैनिटाइज़र को 'आवश्यक वस्तु' घोषित करने के क्या हैं मायने? इससे क्या बदल जाएगा?

COVID-19 (नॉवेल कोरोनावायरस) के फैलने पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार को मास्क और हैंड सैनिटाइज़र को 30 जून, 2020 तक "आवश्यक वस्तुएं" घोषित किया था।केंद्र सरकार और राज्य सरकार (प्रतिनिधिमंडल द्वारा) को मास्क (2 प्लाई और 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन 95 मास्क और सैनिटाइज़र) के उत्पादन, गुणवत्ता और वितरण को विनियमित करने के लिए इन्हें आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत रखा गया था।बीते समय में हम सभी अपने निजी अनुभव से इस बात का एहसास कर पा रहे थे कि बाज़ार में मास्क और सैनिटाइज़र के...

उत्तर प्रदेश बैनर मामला : सुप्रीम कोर्ट के मामले को बड़ी बेंच को भेजने के आदेश के निहितार्थ
उत्तर प्रदेश बैनर मामला : सुप्रीम कोर्ट के मामले को बड़ी बेंच को भेजने के आदेश के निहितार्थ

मनु सेबेस्टियन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बैनर के मामले को बड़ी पीठ से सुनवाई का जो आदेश दिया है उसमें वह गंभीरता नहीं दिखाई देती है जो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में दिखाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना है कि इससे नागरिकों का मौलिक अधिकार प्रभावित होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन बैनरों को तत्काल प्रभाव से हटा लेने को कहा जिन्हें उत्तर प्रदेश प्रशासन ने लगाया है, जिनमें उन लोगों के नाम, पाते और फ़ोटो दिए गए हैं जिन पर सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने का आरोप...

कोर्ट रूल्स एवं आरटीआई : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सूचना का अधिकार कमजोर हुआ
कोर्ट रूल्स एवं आरटीआई : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सूचना का अधिकार कमजोर हुआ

शैलेष गांधीआरटीआई कानून पर कोर्ट रूल्स को अधिक महत्व दिये जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सूचना के अधिकार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 'मुख्य सूचना आयुक्त बनाम गुजरात हाईकोर्ट' के मामले में चार मार्च 2020 को एक फैसला सुनाया है। इसका नागरिकों के सूचना के अधिकार (आरटीआई) के मौलिक अधिकार पर बहुत बुरा असर होगा। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई नागरिक न्यायिक कार्यवाही से संबंधित कोई दस्तावेज हासिल करना चाहता है तो वह आरटीआई के जरिये इसे हासिल नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट और सभी...

आखिर क्यों उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों से सम्बंधित पोस्टर/बैनर लगाना है अत्यधिक अन्यायपूर्ण?  कुछ विचार
आखिर क्यों उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों से सम्बंधित पोस्टर/बैनर लगाना है 'अत्यधिक अन्यायपूर्ण'? कुछ विचार

बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार को गंभीर झटका देते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में उत्तर-प्रदेश पुलिस द्वारा लगाए गए सभी पोस्टरों और बैनरों को हटाने का आदेश दिया था। दरअसल, इन बैनरों में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर हिंसा फैलाने के आरोपी व्यक्तियों के नाम, उनका पता, उनके पिता का नाम और फोटो लगाये गए थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध...