स्तंभ
अध्ययन सूची परियोजनाः कानून के छात्रों और वकीलों के लिए आवश्यक किताबें
हमजा लकड़वाला विचार भारत में कानून के अधिकांश छात्रों को उनकी कानूनी शिक्षा पुरानी और अधूरी लगती है। कॉलेज और विश्वविद्यालय अक्सर मूलभूत सिद्धांतों और अवधारणाओं के साथ कुछ बुनियादी प्रक्रियात्मक और ठोस कानूनों को सिखाते हैं। यह बुनियादी समझ बनाने में मदद करता है, मगर, किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है। ज्ञान क्षुधा की पूर्ति के लिए अधिकांश छात्र स्वाध्याय का सहारा लेते हैं, हालांकि ऐसा करने में, उन्हें यह महसूस होता है कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें क्या पढ़ना है ओर क्या नहीं। हालांकि कई...
किसी संक्रमित बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के रोग की सूचना किसी अन्य व्यक्ति को देना अपराध नहीं है अपितु लोक नीति के पक्ष में
इस समय विश्व भर में कोरोना वायरस जैसी गंभीर संक्रमित बीमारी चल रही है। इस बीमारी ने भारत भर को भी अपने चपेट में ले रखा है। यह एक संक्रामक रोग है तथा एक से दूसरे में संक्रमित होता है। आम जनसाधारण के भीतर इस बीमारी को लेकर एक बड़ा प्रश्न वैधानिक दृष्टिकोण से पैदा होता है कि यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार का कोई संक्रमित रोग है, जिस से वह संक्रमण दूसरों में भी फैल सकता है तो ऐसी परिस्थिति में क्या ऐसे व्यक्ति की पहचान को अभिव्यक्त करना अपराध है। किसी की बीमारी को सार्वजनिक करना अपराध हो सकता...
[लॉ ऑन रील्स] "आप लोग हैं कौन?" बोस्टन लीगल और रेप के अपराध में मृत्युदंड
सुनील फर्नांडिसबोस्टन लीगल (2004-2008) 'लॉ' जॉनर की लोकप्रिय अमेरिकी टीवी सीरीज़ों में से एक है।5 सीज़न्स और 101 एपिसोड्स की यह सीऱीज, जिसका निर्माण डेविड ई केली ने किया था, बोस्टन, मैसाचुसेट्स स्थित एक काल्पनिक लॉ फर्म 'क्रेन पूल एंड श्मिट' के वकीलों की जिंदगी और कानूनी मामलों की कहानी है। सीरीज़ में एकमात्र वास्तविक वकील खुद निर्माता डेविड ई केली थे। वह बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ के पूर्व छात्र थे। सीरीज़ में दो प्रमुख पात्र थे डेनी क्रेन और एलन शोर हैं। डेनी क्रेन का किरदार निभाया है...
वैवाहिक बलात्कारः क्या भारत में यह कानून पर्याप्त तरक्की कर चुका है?
वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे ने लंबे समय से, दुनिया भर में, कानूनविदों और समाज को प्रभावित किया है। अधिकांश देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यह माना गया है कि विवाह के रिस्ते में संभोग को जीवनसाथी का अधिकार नहीं माना जा सकता है। इंडिया टुडे वेब डेस्क द्वारा 12 मार्च 2016 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन 36 देशों में से एक है, जहां आज तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है। हम पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अफगानिस्तान, म्यांमार, ईरान, मलेशिया,...
"क्या गोपालन का भूत अभी भी हमारे न्यायशास्त्र को परेशान करता है?" : एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले की समकालीन प्रासंगिकता की तलाश
जस्टिस जयशंकरन नांबियार एके हमारे संविधान के क्रियाशील होने के पहले साल में, जिन ऐतिहासिक मामलों पर फैसला हुआ, मेरा मानना है कि उनमें गोपालन मामले को उसका उचित श्रेय नहीं मिलता है। मैं इसे दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं क्योंकि गोपालन मामलें में कई मतों को पढ़ने से निरे पांडित्य, न्यायिक अनुशासन और विचारों की स्पष्टता का पता चलता है, जिन्होंने जजों को अपने-अपने फैसले देने में मदद की, मामले में पेश हुए वकीलों की आकर्षक, प्रेरक और उत्तेजक दलीलों का उल्लेख ही न कीजिए! विचार से प्रकट होता है कि...
पतंजलि की COVID-19 की दवा की एकतरफा घोषणा कैसे कानून का उल्लंघन करती है?
पतंजलि आयुर्वेद ने COVID-19 के लिए इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा विकसित करने का सनसनी खेज दावा किया है। पतंजलि संस्थापक रामदेव और प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने घोषणा की कि उन्होंने "क्रोनिल और स्वासरी" दवाओं के जरिए COVID-19 का सौ फीसदी इलाज विकसित कर लिया है। पतंजलि ने अपने बयान में दावा किया है कि COVID-19 रोगी दवा के इस्तेमाल के 3 से 15 दिनों के भीतर निरोग हो गया। दावा किया गया कि दवाओं की 'क्लिनिकल केस स्टडी' दिल्ली, मेरठ और अहमदाबाद जैसे कई शहरों में की गई। इन दवाएं को कोरोना किट में बेचा...
जानिए वाहन दुर्घटना होने पर भारतीय कानून के बारे में खास बातें
वाहन दुर्घटना अत्यंत विचलित कर देने वाली घटना होती है तथा ऐसी घटना किसी भी व्यक्ति के जीवन में भूचाल ला देती है। छोटी से छोटी वाहन दुर्घटना भी जीवन को हिला कर रख देती है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रत्येक दिन 500 से अधिक वाहन दुर्घटनाएं होती है तथा इनमें अनेक लोग वाहन दुर्घटनाओं में जान तक गंवा देते है। इस लेख में वाहन दुर्घटना से संबंधित भारतीय कानून के ऊपर चर्चा की जा रही है। वाहन दुर्घटनाओं के लिए तथा मोटर यातायात के लिए मोटर व्हीकल अधिनियम 1988 अधिनियमित है। यह एक केंद्रीय कानून...
किस्से, कानूनी दांवपेंच और इतिहास: जानिए क्या था राज नारायण-इंदिरा गाँधी मामला?
तारीख 18 मार्च और साल 1975। सुबह 10 बजने में 2 मिनट बाकी रह गए थे कि तभी इलाहाबाद हाईकोर्ट के कोर्ट रूम नंबर 24 में जस्टिस जगमोहन सिन्हा दाखिल हुए। यह दिन खास था, देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री, न्यायालय में प्रवेश करने वाली थीं। यह उनकी प्रतिपरीक्षा (Cross-examination) का दिन था, या यूँ कहें कि असल मायने में यह उनकी अग्नि-परीक्षा का दिन था। हालाँकि, जिस मामले में वे पेश होने अदालत आ रही थीं, उसे कई बार प्रकृति में त्रुटिपूर्ण तकनीकी मामला कहा जाता है। ब्रिटिश अखबार, 'द गार्जियन' ने इस मामले को...
वकालत के पेशे में मेंटर की तलाश
गौतम शिवशंकरCOVID-19 के कारण लागू लॉकडाउन का एक दुष्प्रभाव विभिन्न प्रकार के कानूनी विषयों पर आयोजित हो रही वेबिनारों की बाढ़ है। कानूनी पेशे में परिचर्चा और परामर्श की यह लहर निस्संदेह मियादी है और लॉकडाउन समाप्त होने के बाद संभवतः खत्म हो जाए। जब सभी दोबारा व्यस्त हो जाएंगे, युवा वकीलों को, आज जिस उदारता से दी जा रही है, उसकी अपेक्षा, तब मेंटरशिप की अधिक आवश्यकता होगी। पिछले 15 वर्षों में, पहले कानून के छात्र के रूप में और बाद में एक वकील के रूप में, मैंने उचित प्रकार की मेंटरशिप प्राप्त...
हाथी भारत की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत
शशांक शेखर सिंह, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्टजैसा कि हमने देखा, दुनिया भर में सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर तालाबंदी के प्रयासों के बाद घरों के अंदर रहने को मजबूर किया गया था। यह माँ प्रकृति के लिए एक सांस लेने का क्षण था। सोशल मीडिया भी खाड़ी क्षेत्रों में आने वाले डॉल्फिन की खूबसूरत तस्वीरों से भर गया था, हिरणों की सड़क पार करती तसवीरेंऔर कछुओं की वापस आते हुए देखना तथा समुद्र तट क्षेत्र को अपने खेल मैदान के रूप में पुनः प्राप्त करते हुए देखना सुखद था।मानव आवासों पर मंडरा रहे वायरस के इस पूरे संकट...
सफूरा ज़रगर की जमानत पर रोकः व्यक्तिगत आज़ादी पर भारी पड़ीं उल्टीपुल्टी दलीलें
अतिरिक्त सत्र न्यायालय, पटियाला हाउस, नई दिल्ली का जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर को जमानत न देने का फैसला भ्रामकों तर्कों और निराधार अटकलों पर आधारित है। 27 वर्षीय ज़रगर पर फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप है और उन पर भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया गया है। उल्लेखनीय है कि सफुरा गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में हैं। अभियोजन पक्ष ने सफूरा पर आरोप लगाया है कि 23 फरवरी को उनके 'भड़काऊ भाषण' के कारण उत्तर...
न्यायिक चुप्पी 'निर्वाचित के अत्याचार' की पुष्टि करती: पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एक जवाब
अप्रत्याशित कोनों से कोर्ट पर, विशेष कर सुप्रीम कोर्ट पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वो गंभीर राष्ट्रीय मसलों, विशेष रूप से प्रवासी संकट में हस्तक्षेप न करें। सरकारों की लगातार निष्क्रियता का परिणाम यह है कि लाखों प्रवासी मजदूरों के जीवन अकल्पनीय दुखों का ढेर लग गया है, वो सड़कों पर पैदल चल रहे हैं। भोजन, पानी, जीवन के आवश्यक साधनों की कमी से जूझ रहे हैं। इस कठिन दौर में, अदालतों को हस्तक्षेप न करने की सलाह देना आंख पर पट्टी बांधने जैसा है। दूसरा मशविरा श्री आरसी लाहोटी (पूर्व सीजेआई) की...
COVID-19 और मरीजों के अधिकार
डॉ अनीता यादव & राकेश मिश्राभारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर आता है, जहां लगभग 1.36 अरब लोग निवास करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार देता है तथा जीने के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति की यही कामना होती है कि वह और उसका परिवार सेहतमंद रहें लेकिन कई बार चाहे-अनचाहे उन्हें बीमारियां घेर लेती हैं। समकालीन समय में कोविड-19 के कारण स्थिति और भयावह होती जा रही है। भारत में लगभग 1.9 लाख के करीब कोविड-19 के मरीज हो चुके...
COVID 19 के दौर में मकान मालिक-किरायेदार विवादः मुश्किलें और हल
अनघ मिश्रऐसा लगता है कि दुनिया एक विकट स्थिति का सामना कर रही है, जिसका प्रभाव न केवल आर्थिक, राजनीतिक और संगठनात्मक मोर्चों पर दिखाई दे रहा है, बल्कि हमारे पारस्परिक और सामाजिक संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। भारत में COVID-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव काफी निराशाजनक है। विश्व बैंक और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 के लिए भारत की विकास दर को कम कर दिया है। यह भारत के आर्थिक उदारीकरण के तीन दशकों की न्यूनतम विकास दर है। केंद्र सरकार ने बीते दो महीनों में कोरोनोवायरस के...
मुस्लिम विवाह में मेहर का अर्थ और महत्व
मुस्लिम विवाह की प्रकृति का अध्ययन करने के बाद यह बात सामने आती है की मूलतः मुस्लिम विवाह की प्रकृति एक संविदा की तरह है, परंतु इस बात में विवाद अवश्य है कि मुस्लिम विवाह केवल संविदा नहीं है, वह एक संस्कार भी है। मुस्लिम विवाह को संविदा की तरह प्रस्तुत करने में मेहर की अग्रणी भूमिका है, जिस तरह विक्रय में एक संविदा होती है तथा उसमें मूल्य जो प्रतिफल होता है इसी प्रकार मुस्लिम विवाह जो संविदा है, उसमें मेहर प्रतिफल होता है। कुछ विद्वानों ने मेहर को केवल प्रतिफल नहीं बता कर एक...
हरियाणा की अदालतों में हिंदीः एक नई चुनौती
हरि किशन हरियाणा ने 11 मई, 2020 को एक अधिसूचना जारी कर कहा कि राज्य के सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में 'हिंदी' का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 में संशोधन किया। इस अधिनियम को अब हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 कहा जाता है। हरियाणा मंत्रिमंडल ने इससे पहले मई के पहले सप्ताह में अधीनस्थ न्यायालयों में हिंदी भाषा की शुरुआत को मंजूरी दी थी। विधानसभा ने फैसले के कार्यान्वयन के लिए एक विधेयक पारित किया था। 78 विधायकों, महाधिवक्ता...
ये आज़ादी महंगी है : "कानून, कैदी और कशमकश "
प्रज्ञा पारिजात सिंह( पैरोल पर छूटे कैदियों से हुई बातचीत के आधार पर लेख ) जैरमी बैंथम ने अपने उपयोगितावाद के सिद्धांत में कहा था कि अपराधी को उतनी ही सज़ा मिलनी चाहिए जितना उसे किसी अपराध को करने में फायदा हुआ है। इसके साथ ही बैंथम का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को मुनाफ़े के लिए काम करना चाहिये, चाहे वह दिखे या ना दिखे। हमारे देश सहित सभी आधुनिक जेल प्रणालियां आज इसी सिद्धांत और सुधारात्मक न्याय प्रणाली पर आधारित हैं। इस सिद्धांत पर विचारकों के बीच काफी मतभेद हैं, जो एक अलग विवाद का...
नफरत फैलाना, अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है
19 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ रिपब्लिक भारत के 21 अप्रैल और 29 अप्रैल को दो प्रसारणों के संबंध में महाराष्ट्र में दर्ज दो अलग-अलग एफआईआर के मामलों को या तो रद्द करने या सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने की मांग नहीं मानी। एफआईआर में हेट स्पीच से संबंधित आईपीसी के विभिन्न दंडात्मक प्रावधानों के साथ-साथ आपराधिक मानहानि का भी आरोप लगाया गया है। 21 अप्रैल के प्रसारण के संबंध में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने सुश्री सोनिया गांधी के खिलाफ बयान दिया और आरोप...
प्रवासी संकट: पूर्व जजों और कानूनी बिरादरी की प्रतिक्रिया का नतीजा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी संकट का संज्ञान लिया
मनु सेबेस्टियनराष्ट्रीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन के कारण दो महीनों से बहुत ही ज्यादा संकट का सामना कर रहे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का संज्ञान अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 26 मई को ले लिया। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के कारण सैकड़ों प्रवासी मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि सुप्रीम कोर्ट अब तक अनभिज्ञता की मुद्रा में रहा है और सरकार के बयान को कि-सब ठीक है- को ही सही मानता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रवासी मजदूरों से संबंधित कई मुद्दों, जैसे कि मजदूरी का भुगतान, खाद्य सुरक्षा, आश्रय...