स्तंभ
मीडिया ट्रायल और उसके दुष्परिणाम
"The problem with the electronic media is all about TRPs, leading to more and more sensationalism, damage reputation of people and masquerade as form of right." -The Supreme Court Of Indiaकिसी ने सच ही कहा है की जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास होता है, उसी के अनुसार सामाजिक व्यवस्था चलती है और साथ ही लोगों की सोच और जीवन शैली का तरीका भी बदलता है। आज यही कारण है कि पहले कभी ताजा खबरें हम अखबारों में ढूंढा करते थे और आज, हम कई उपकरणों द्वारा उसे लाइव देख सकते हैं। यही परिवर्तन हमारे सामाजिक परिवेश...
शादीशुदा होते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहना, क्या है इसकी वैधानिकता?
विवाह एक सामाजिक संविदा है, दो बालिग लोग आपसी सहमति से विवाह के बंधन में बंधते हैं। जीवन में कई दफा ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है जब विवाह में खटास पैदा हो जाती है और पक्षकार एक दूसरे का परित्याग कर देते हैं। विवाह का उद्देश्य दो लोगों के साथ रहकर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है लेकिन जब विवाह में विवाद उत्पन्न होते हैं तब विवाह के पक्षकार पति और पत्नी एक साथ नहीं रहते हैं। केवल एक दूसरे को छोड़ देने से विवाह समाप्त नहीं होता है, विवाह तो तब भी बरकरार रहता है। विवाह एक तरह का लीगल एग्रीमेंट है...
कोर्ट आदेशों के बावजूद भारत में सड़क दुर्घटनाएं क्यों कम नहीं हो रही हैं?
सडकों पर बने गड्ढों में गिरने से होने वाली मौतें, कहीं न कहीं हमारी पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती हैं। मौजूदा विकास दर और हाइवे निर्माण के जरिए हम कितनी ही अपनी पीठ थपथपा लें, सड़क दुर्घटनाओं से जमीनी हकीकत खुद ही बयां होती है। बरसात में सड़कें इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि सड़कों का कभी अस्तित्व भी था, यह पता नहीं लगता। एक उदाहरण पर्याप्त होगा। महाराष्ट्र स्थित अंबरनाथ निवासी अंकित थाइवा एक दिन नवी मुंबई के घनसोली में काम करने जा रहा था। उसकी मोटरसाइकिल कांतिबदलापुर रोड पर सड़क के...
बार को रजिस्ट्री अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता: दुष्यंत दवे
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवेमैं 1978 से बार में हूं। मैंने हमेशा न्यायपालिका का सम्मान किया है। बदले में, मुझे कई जजों से बहुत गर्मजोशी मिली है। चार दशकों से मैं न्यायालयों के गलियारों में होने वाली घटनाओं का गहराई से अवलोकन करता रहा हूं, पहले गुजरात हाईकोर्ट और 1986 से सुप्रीम कोर्ट, मुझे हमेशा संस्थाओं से अपनेपन का अहसास होता था।आज मैं पूरी तरह से अलग-थलग महसूस कर रहा था। आज मैंने सुप्रीम कोर्ट में जो देखा, उसने मुझे शब्दों से परे दुखी कर दिया। मुझे गहरा दुख हुआ है।जब मैं लगभग 9:50 बजे न्यायालय...
भारत में "राजद्रोह" कानून को अलविदा कहने का समय
- निशिकांत प्रसादएसजी वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ, 2022 के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के तहत "राजद्रोह" के 152 वर्षीय औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान को प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने आईपीसी की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। सरकार द्वारा यह भी कहा गया कि एक बार पुनर्विचार हो जाने के पश्चात...
भारत में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया एवं पद की गरिमा
-निशिकांत प्रसादभारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ इसके बाद संविधान सभा के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमें 26 नवंबर 1949 को अपना संविधान मिला, जो 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हैl संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट है, कि भारत एक प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य होगा l गणराज्य का तात्पर्य, वैसे राज्य से है जहां राज्य-प्रमुख एक निश्चित समय के लिए निर्वाचित होता हो (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से)lभारत में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया-भारतीय संविधान के अनुच्छेद...
महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में दल-बदल विरोधी कानून के क्या हैं मायने?
महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में हुए हंगामे ने एक बार फिर संविधान की 10वीं अनुसूची यानी दलबदल विरोधी कानून के मुद्दे को ज्वलंत कर दिया है। जन प्रतिनिधियों द्वारा पक्ष/पार्टी बदलने की आदत राजनीतिक और सामाजिक रूप से काफी खराब है और लोकतंत्र में अस्वीकार्य है जहां एक प्रतिनिधि को जनादेश और जिस राजनीतिक दल का वह प्रतिनिधित्व कर रहा है उसमें विश्वास और निश्चित रूप से उसकी छवि पर चुना जाता है।रिज़ॉर्ट गवर्नमेंट का यह निरंतर चलन जहां विधानसभा के सदस्यों को बंदियों की तरह ले जाकर कहीं दुर्गम स्थान...
काले बादल सिर्फ तूफान ही नहीं बारिश भी लाते हैं
के कन्नन, सीनियर एडवोकेटश्रीराम पंचू ने 13 जून को द वायर में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, 'थैंक्स टू अवर जजेज, डार्कनेस नाउ क्लाउड्स इंडियाज मीडिएशन प्लेइंगफील्ड';मिस्टर श्रीराम वास्तव में मध्यस्थता के क्षेत्र में एक चमकते सितारे हैं, काले बादल उनकी दीप्ति को अभी भी कम नहीं कर सकते। वह ठोस तर्कों के साथ लिखते हैं और यदि वह यह कहते हैं कि उच्च न्यायपालिका काले बादल छाने जैसी हो गई है तो इसे आसानी से दरकिनार नहीं किया जा सकता है। आम तौर पर यह विश्वास होता है कि उन्होंने जो कुछ लिखा है, उसके बारे...
विक्टिमोलॉजी, पीड़ित और पुनर्वासन
"Justice should not only be done but should manifestly and undoubtedly be seen to be done."विक्टिमोलॉजी (पीड़ितविज्ञान) यह पीड़ितों पर अपराध के मनोवैज्ञानिक प्रभाव की जांच है तथा पीड़ितों और अपराधियों, न्याय प्रणाली, और सुधार अधिकारियों के मध्य संबंधों का अध्ययन है। इसमें मूल रुप से व्यक्ति के प्रताड़ना (victimization) से शिकार होने से लेकर के सुधार तक की प्रक्रिया वर्णित है। साधारण अर्थों में यदि देखा जाए तो यह ऐसा विज्ञान हैं जिसमें प्रताड़ना की प्रक्रिया, दर, घटना, प्रभाव और व्यापकता का...
प्रथागत क़ानून के आईने में उरावं महिलाओं को संपत्ति में अधिकार
- डा. शालिनी साबू 22 अप्रैल को झारखंड हाईकोर्ट ने उरावं जनजाति के महिलाओं के अधिकार से सम्बंधित एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। वो यह है कि इस जनजाति कि महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में पुरुषों कि भांति पूर्ण अधिकार है। जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने प्रभा मिंज बनाम मार्था एक्का और अन्य के मामले में सेकेण्ड अपील याचिका पर सुनवाई के पशचात अपने फैसले में स्वीकार किया कि उरावं जनजाति में पुत्रियों को भी पुत्र के सामान पैतृक संपत्ति पर हक़ है।असल में अपील याचिका कि सुनवाई के दौरान प्रतिवादी उरावं...
वैवाहिक बलात्कार का इतिहास और वर्तमान स्थिति
"Truth: Rape does indeed happen between girlfriend and boyfriend, husband and wife. Men who force their girlfriends or wives into having sex are committing rape, period. The laws are blurry, and in some countries marital rape is legal. But it still is rape.'' Patti Feuereisen, Invisible Girls: The Truth About Sexual Abuseदिल्ली हाईकोर्ट के हाल ही में आये निर्णय से फिर से एक बार वैवाहिक बलात्कार [Marital Rape] का मुद्दा देश के गलियारों में उछला है परंतु इस बार भी निर्णय विभाजित (split...
कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?
हम कई दफा छोटे छोटे मामलों में कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड भरने के बारे में सुनते हैं। कॉलोनी मोहल्ले में आसपास के लोगों से किसी तरह का विवाद होने पर या छोटे मोटे धरने प्रदर्शन इत्यादि के मामलों में भी कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड जैसी चीज देखने को मिलती हैं।कभी कभी थोड़ी मारपीट हो जाने पर पुलिस मारपीट का मुकदमा दर्ज नहीं करती है, अपितु शिकायतकर्ता की शिकायत पर आरोपी से बांड भरने को कहती है। ऐसा बॉन्ड कलेक्टर की कोर्ट में लिया जाता है।हमारे देश में पुलिस का कर्तव्य अपराध होने पर प्रकरण दर्ज करना ही नहीं,...
गरीबी और अपराध की प्रासंगिकता
"Extreme poverty anywhere is a threat to human security everywhere." – Kofi Annanगरीबी का सामान्य अर्थ— एक ऐसी स्थिति का होना है, जिसमें किसी व्यक्ति के पास अपेक्षा से कम मानवीय संसाधनों मौजूद हैं और जिसकी आय कम होती है तथा इसके कारण बुनियादी सुख सुविधाएं मिलना असंभव हों।यदि गरीबी का सांखिकीय और अर्थशास्त्रीय दृष्टि से मूल्यांकन किया जाए तो इसके 2 अर्थ हैं-1. पूर्ण गरीबी- ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्तिगत बुनियादी सुविधाएं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान इत्यादि के लिए आवश्यक राशि का कम होना है। 2. सापेक्ष...
पुलिस बर्बरता: समस्या, कारण और इसके प्रभाव
"You were put here to protect us, But who protects us from you?" अमेरिकन सिंगर KRS–one द्वारा गाये गाने की यह पंक्तियां सामाजिक परिपेक्ष्य में भी कही न कहीं सही प्रतीत होती है, क्योंकि सिविल सोसाइटी में पुलिस द्वारा की जाने वाली बर्बरता का हर एक व्यक्ति साक्षी है। ऐसे कृत्यों को कोई समाजिकतंत्र स्वीकार नहीं कर सकता, चाहे वह भारतीय समाज हो या पश्चिमी।पुलिस बर्बरता यानि "Police Brutality", ये अभिव्यक्ति (term) सबसे पहली बार 19वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटन में प्रयुक्त कि गई थी। जानना आवश्यक है...
घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधीन जानिए अपील के प्रावधान
अपील का सामान्य अर्थ– निवेदन करना है, लेकिन इसका जुरीसप्रूडेंसिअल अर्थ किसी अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा पूर्व में किए विधिक अवधारण को उच्च प्राधिकारी के समक्ष चुनौती देना है। –[Encyclopaedia Britannica]भारतीय विधिक मूल परिपेक्ष्य से यह एक संविधिक और सारभूत अधिकार [statuary-substantive right] है। इसका उद्देश्य अधीनस्थ न्यायालय द्वारा घोषित निर्णय के अधीन किसी विधि/तथ्य की त्रुटि, अनियमितता या ऐसी ही कोई अन्य गलती जो अन्याय कारित करती हो, को उच्चतर न्यायालय (higher court) के समक्ष पुनर्विचार हेतु...
जानिए कॉमन सिविल कोड क्या है
कॉमन सिविल कोड भारत में एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर समय-समय पर बहस होती रही है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान सिविल संहिता का उल्लेख मिलता है, जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में संविधान में राज्य को कॉमन सिविल कोड के लिए प्रयास करने हेतु निर्देशित किया है। आधुनिक भारत में कॉमन सिविल कोड की आवश्यकता प्रतीत होती है, हालांकि इस पर स्पष्ट और खुलकर बातचीत कभी भी नहीं हो पाई क्योंकि जनता में इस मुद्दे को विवाद का मुद्दा बना दिया गया है। यदि ध्यानपूर्वक देखें तो कॉमन सिविल कोड...
सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी मामले में कानून के शासन के मूल्यों को बरकरार रखा
लखीमपुर मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा मोनू उर्फ टेनी जूनियर की जमानत रद्द करने के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसला, जो पहले इलाहाबाद के उच्च न्यायालय द्वारा दी गई थी, न केवल खुद मिश्रा, राज्य सरकार और राज्य पुलिस के लिए एक झटका है, बल्कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए भी है । इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत पर सुनवाई के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से कुछ बेहद तीखी टिप्पणियां की गईं। निर्णय/आदेश के अनुच्छेद 41 में किए गए चार बिंदु स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि मुख्य...
सीआरपीसी की धारा 436 A : संवैधानिक उपचारों के प्रति समाज को जागरूक कैसे बनाएं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National crime records bureau) द्वारा वर्ष2020 में जारी किए डाटा के अनुसार, देश की जेलों में हर 10 में से 7 कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन है। विचाराधीन कैदी वे लोग है, जिन पर लगे आरोप अभी सिद्ध नहीं हुए हैं तथा जिनका विचारण न्यायलयों में लंबित है या प्रारंभ ही नहीं हुआ हैं।जेल सांख्यिकी भारत रिपोर्ट 2020 (prison statistics India report 2020) के अनुसार भी वर्ष दर वर्ष यह संख्या बढ़ती ही जा रही है, जो कि पूर्व के कुछ वर्षों में 3% थे और हाल ही में जारी किए आंकड़ों...
क्या नाबालिग जेजे एक्ट, 2015 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है? जानिए प्रावधान
A person's a person, no matter how small." Dr. Seuss किशोर न्याय(बालकों की देखरेख और संरक्षण)अधिनियम,2015 के संशोधन का मुख्य उद्देश्य बालकों के सामाजिक कल्याण, व्यक्तिगत विकास और उनमें सुधारात्मक परिवर्तन लाने का है, न कि उन्हें सज़ा इत्यादि से दंडित करने का। इसके पश्चात भी यदि सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसा कोई स्पष्ट अभिव्यक्त प्रावधान [Expressed Provision] नहीं है, जो की किशोर [ Juvenile] द्वारा अंतरिम जमानत [Anticipatory Bail] के लिए आवेदन करने की बात करता हो। तो...