स्तंभ
अनुच्छेद 19 और इंटरनेट : आजादी की हद तय हो
यह सबसे शानदार समय था और सबसे खराब वक्त भीकई बार, यह ज्ञान का युग था, यह मूर्खता का भी युगयह विश्वास का युग था, यह अविश्वास का भी युगयह उजाले का भी मौसम था, और अंधेरे का भीयह उम्मीदों का वसंत था और निराशा की सर्दियांहमारे सामने सब कुछ था और कुछ भी नहीं था,हम सीधे स्वर्ग जा रहे थे, हम दूसरे रास्ते से भी जा रहे थेयह वक्त अपने वर्तमान से काफी दूर थाअब कोलाहलपूर्ण वक्त में जीने के लिए मजबूरअच्छा हो या बुरा, जो भी है अति है।19वीं सदी के ब्रिटिश लेखक चार्ल्स डिकंस के उपन्यास 'ए टेल ऑफ टू सिटीज' की इन...
किसी प्रकरण में पुलिस कब पेश करती है खात्मा रिपोर्ट?
हम देखते हैं कि कई मामलों में पुलिस खात्मा रिपोर्ट पेश करती है। आखिर क्या है यह खात्मा रिपोर्ट और वे कौन सी परिस्थितियां हैं, जब पुलिस खात्मा रिपोर्ट पेश करती है। दंड प्रकिया सहिंता की धारा 154 के अंतर्गत पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध के मामले प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ करने के अधिकार दिए गए हैं। जब किसी मामले में एफआईआर थाने में दर्ज हो जाती है और मामले के अन्वेषण के दौरान अन्वेषणकर्ता अधिकारी को विवेचन मामले में इतना पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिलता है, जितने में मामले में न्यायालय के...
जानिए मृत्यु वारंट क्या होता है एवं इसके निष्पादन पर क्या है कानून?
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार (7 जनवरी, 2020) को निर्भया बलात्कार-हत्या मामले में चार दोषियों को फांसी की सजा के लिए 22 जनवरी को सुबह 7 बजे डेथ वारंट जारी किया है। चार दोषियों - मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय सिंह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आदेश की सूचना दी गई। पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश अरोड़ा उनके खिलाफ डेथ वारंट के निष्पादन की याचिका पर विचार कर रहे थे। इससे पहले दिसंबर 2018 में, निर्भया के माता-पिता ने दोषियों को मिले मृत्युदंड को निष्पादित...
सिविल वाद कैसे दर्ज करें, नए अधिवक्ताओं के लिए विशेष
नवीन पंजीकृत हुए अधिवक्ताओं के लिए सिविल प्रकृति के वादों को न्यायालय में संस्थित करना कठिनाई भरा काम हो सकता है। नवीन अधिवक्ता वाद की प्रकृति के अनुरूप यह तय नहीं कर पाते हैं कि वाद किस प्रकृति का है तथा इस वाद को कौन से न्यायालय में दर्ज करना है। जब वाद की प्रकृति मालूम हो जाती है तो वाद को दर्ज करने के संबंध में कठिनाई होती है। इस आलेख के माध्यम से नवीन अधिवक्ता अपने मुकदमे दर्ज करने में सहायता प्राप्त कर सकते हैं। किसी सिविल वाद को दर्ज करवाने में निम्न चरण हो सकते हैं। इन चरणों का अनुसरण...
जानिए संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों के बारे में ख़ास बातें (भाग 1)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए विनाश का सामना फिर से दुनिया को कभी न करना पड़े इसके लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) को अस्तित्व में लाया गया था। हम यह भी जानते हैं कि किसी भी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र जितनी मान्यता एवं सम्मान प्राप्त नहीं किया है। संयुक्त राष्ट्र के विषय में जितना साहित्य मौजूद है, उतना किसी अन्य संगठन को लेकर मौजूद नहीं है। यह संगठन, अपने अस्तित्व में आने के बाद से, पिछले 70 वर्षों की अधिकांश वैश्विक चुनौतियों और संकटों को सुलझाने में...
जानिए संयुक्त राष्ट्र (UN) के बारे में खास बातें और महत्वपूर्ण सवालों के जवाब
हम सभी ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के बारे में सुना है। हालाँकि इसका मुख्य कार्य क्या है इसको लेकर हम सभी की उत्सुकता बनी रहती है। यह तो हम समझते हैं कि यह संगठन वैश्विक स्तर पर सभी राष्ट्रों (हम अपनी सुविधा के लिए इन्हें 'देश' कह सकते हैं) के बीच सामान्य मूल्यों को स्थापित करता है, जिससे हर राष्ट्र एक यूनिफार्म तरीके से कुछ मूल्यों को अपना सके और इन मूल्यों का अपनाया जाना सभी राष्ट्रों के हित में होता है। सामान्य अर्थों में हम यह कह सकते हैं कि इसका एक मुख्य उद्देश्य यह भी है कि वैश्विक...
जानिए एनआरसी और एनपीआर में क्या संबंध है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न (एनआरसी) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) में क्या संबंध है? हाल ही में केंद्र सरकार ने अप्रैल 2020 में होने वाले एनपीआर के लिए चार हज़ार करोड़ रुपए का बजट मंज़ूर किया और गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर दोनों ने कहा कि एनसीआर और एनपीआर में आपस में कोई संबंध नहीं है। लेकिन ये बयान न केवल संसद में आए उन नौ अवसरों के विपरित है, जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने सदन में कहा कि एनपीआर, एनआरसी की दिशा में पहला कदम है, बल्कि कानून में जो लिखा है, उसके भी खिलाफ...
सीएए विरोधी प्रदर्शन: जानिए प्रदर्शनों को दबाने के लिए बल प्रयोग करने की कानूनी वैधता
शाश्वत अवस्थी एवं अनुष्का सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसम्बर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों के विरुद्ध पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई की जांच अदालत की निगरानी में कराये जाने की अर्जी संबंधित उच्च न्यायालयों के समक्ष दायर करने का याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया। शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप न करने का मुख्य कारण स्थापित तथ्यों की अनुपस्थिति में उसकी अनिच्छा (तथ्य का पता लगाना अनिवार्य तौर पर...
क्या पुलिस विश्वविद्यालय/कॉलेज परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश कर सकती है?
इस बात को लेकर हर कहीं बहस छिड़ी हुई है कि क्या पुलिस को किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से पहले कॉलेज/विश्वविद्यालय प्रशासन या किसी अन्य प्राधिकरण से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है? दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी एवं उत्तर प्रदेश के अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा प्रवेश किये जाने के बाद यह सवाल सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चा में छाया हुआ है। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने को लेकर पुलिस ने यह कहा है कि वे स्थिति को नियंत्रित करने के...
न्यायाधीशों का आकलन कौन करे?
अवनी बंसल हाल ही में सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा दिये गये हालिया फैसलों को लेकर व्यक्त किये जा रहे मतों से हमारे तकनीकी, मानसिक और संभवतया रूहानी इनबॉक्स छलकने लगे हैं। अब सबकी निगाहें नये मुख्य न्यायाधीश- न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे पर टिकी हुई हैं। वास्तविक विषय-वस्तु पर आने से पहले, मैंने एक जज के नाम से पहले 'जस्टिस' (न्यायमूर्ति) शब्द जुड़ा पाया है, जैसा मेरे नाम के पहले तो कतई नहीं है। जस्टिस गोगोई की विरासत पर विचार करते हुए और बाबरी...
वकील और जज काला कोट और बैंड क्योंं पहनते हैं? एडवोकेट और लॉयर में क्या है अंतर
आपने अदालत के आसपास या अदालतों के भीतर वकीलों को काला कोर्ट और गले में टाई नुमा बैंड के साथ देखा होगा और वकीलों को बहुत सारे नामों के साथ भी सुना होगा। आप इस बात से अनभिज्ञ हो सकते हैं कि आख़िर इन नामों में क्या अंतर है और इस वेशभूषा के पीछे क्या कारण है? किसी भी प्रोफ़ेशन में एक तयशुदा वेशभूषा हो सकती है। इस ही तरह वकीलों की भी एक तयशुदा वेशभूषा है और यह वेशभूषा वकीलों के लिए अनिवार्य भी है। इस वेशभूषा के लाभ भी हैं, जिससे अदालतों में वकील दूर से ही आम जनता के बीच पहचान में आ जाते हैं। ...
लॉ ऑन रील्स - आक्रोश : न्याय व्यवस्था की विफलता पर करारा कमेंट
हमारे लॉ स्कूलों में एनालिटिकल पोज़िटिविस्ट सोच से प्रेरित होकर कानून मात्र केस लॉ और संसद द्वारा पारित अधिनियमों द्वारा पढ़ाया जाता है, लेकिन यह कानून और उसकी कार्यप्रणाली के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य को नहीं दर्शाता है। अमेरिका के क्रिटिकल लीगल स्टडीज़ मूवमेंट ने यह दर्शाया है कि कानून मूल्य उदासीन (वैल्यू न्यूट्रल) नहीं है। कानून भी समाज के ढांचों में बंधा अपने पूर्वाग्रहों के साथ काम करता है। उदाहरण के तौर पर कानून की महिलावादी व्याख्या को अगर देखा जाये तो कुछ का मानना है कि कानून भी पितृसत्ता...
जानिए कानून के एक जैसे शब्द और उनके अलग अलग अर्थ
भारतीय विधि व्यवस्था में आम लोगों के सामने ऐसे बहुत से शब्द आते हैं, जो दो शब्द एक जैसे अर्थो के प्रतीत होते हैं, परंतु उन शब्दों के अर्थ बहुत भिन्न भिन्न होते हैं। कानूनी प्रक्रिया से दूर रहने वाले लोग या फिर ऐसे लोग जिनका न्यायालय इत्यादि से कोई काम नहीं रहा वह इन शब्दों से भ्रमित होते हैं। बहुत से लोग तो सारा जीवन उन शब्दों को पढ़ते, देखते और उपयोग करते रहते हैं, उसके पश्चात भी उन शब्दों के संबंध में उचित जानकारी नहीं रख पाते हैं। ये शब्द भ्रमित करने वाले होते हैं। आप जानकारी के अभाव में यह...
बिना वकील के आप खुद भी लड़ सकते हैं अपना मुकदमा, यह है प्रक्रिया
जब कोई व्यक्ति समस्याओं से घिर जाता है तो उसे न्यायालय से ही उम्मीद रहती है। वकीलों की बेतहाशा फीस के कारण आदमी अपने किसी भी मामले को न्यायालय में ले जाने से डरता है, लेकिन कानून में इतनी गुंजाइश है कि आप न्यायालय की अनुमति से अपना केस खुद लड़ सकते हैं। अधिवक्ता अधिनियम के अंतर्गत आप बगैर अधिवक्ता हुए विधि व्यवसाय नहीं कर सकते परंतु स्वयं का मुकदमा लड़ सकते हैं, यह आपका नैसर्गिक अधिकार है। न्यायालय आपको अपना मुकदमा लड़ने से कतई निषिद्ध नहीं कर सकता। आप न्यायालय में वक़ील स्वयं की इच्छा से...
वकालत है चुनौतीपूर्ण पेशा, जानिए सफल वकील बनने के आवश्यक गुण
शादाब सलीम देशभर में हज़ारोंं लोग प्रतिवर्ष लॉ ग्रेजुएट होकर आते हैंं। अलग अलग राज्यों की अधिवक्ता सूची में शामिल होकर विधि व्यवसाय आरंभ करते हैंं, परन्तु वकालत नितांत चुनौतीपूर्ण पेशा है। इस पेशे में लाइम लाइट के साथ चुनौतियां भी बहुत हैं। यदि इस पेशे में थोड़ी गंभीरता रख ली जाए तो आपका भविष्य स्वर्णिम है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट बार के एक समागम में कहा था, "वकीलों को कोई लड़की नहीं देना चाहता।" पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के इस बयान में तर्क तो है। समाज...
एनकाउंटर: क्या हैदराबाद पुलिस अपना दावा साबित कर सकती है?
प्रोफेसर मदाभुषि श्रीधर आचार्यलु क्या हैदराबाद पुलिस यह साबित करने के लिए तैयार है कि उन्होंने आत्मरक्षा में चार आरोपियों को मार डाला? क्या कोई पुलिस 'आरोपी' पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करेगी? अगर मुठभेड़ में हुई हत्या को हत्या के लिए आवश्यक साबित किया जाता है, तो इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों को आरोपी नहीं माना जाना चाहिए, यदि नहीं तो दिशानिर्देशों और कानून के अनुसार मामला दर्ज किया जाना चाहिए और जांच की जानी चाहिए। यदि हैदराबाद पुलिस का दावा असत्य बयानों पर आधारित है, तो...
क्या है राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान की शक्ति, क्या कहता है संविधान
शादाब सलीमभारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पाक्सो एक्ट के दोषियों को क्षमा याचना का अधिकार दिए जाने पर आपत्ति जतायी है और विधायिका से यह आशा की है कि विधायिका इस पर विधान बनाकर पॉक्सो एक्ट के सिद्धदोष अपराधियों को दिए जाने वाले दया याचिका के अधिकार को समाप्त कर दे।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राष्ट्रपति और राज्यपालों को दंड के 'लघुकरण' 'परिहार' 'विराम' और 'प्रविलम्ब' का अधिकार दिया गया है। इसे राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा दंड का क्षमादान कहा जाता है। राष्ट्रपति...
संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बीआर आंबेडकर ने कौन सी तीन चेतावनी दी थीं? संविधान दिवस पर विशेष
स्वतंत्र भारत के इतिहास में 26 नवंबर का अपना महत्व है, क्योंकि इसी दिन वर्ष 1949 में, भारत के संविधान को अपनाया गया था और यह पूर्ण रूप से 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। इसलिए इस दिन को भारत के एक नए युग की सुबह को चिह्नित करने के रूप में जाना जाता है। संविधान के निर्माताओं के योगदान को स्वीकार करने और उनके मूल्यों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' (Constitution Day) के रूप में मनाया जाता है। गौरतलब है कि, भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को...
अर्ध सत्य : भारतीय पुलिस की कार्यप्रणाली को समझाती एक खास फिल्म
"जब कोर्ट की तारीख आने वाली होती है तो हम छुट्टी लेकर केस डायरी भरते है." यह बात मैंने हाल ही में पुलिस रिफार्म पर हुई एक कांफ्रेंस में सुनी थी. भारत में पिछले चार दशकों से पुलिस सिस्टम को सुधारने, उसमें रिफार्म करने की बात चल रही है पर हमारी पुलिस व्यवस्था अत्यधिक कार्यभार में दबी हुई है, वह आज भी एक औपनिवेशिक सिस्टम और अंग्रेज़ों के जमाने से चले आ रहे कानूनों के साथ कई पूर्वाग्रहों में काम करती है. और इसी सन्दर्भ में अर्ध सत्य एक बेहद महत्वपूर्ण फिल्म है. भारतीय पुलिस मशीनरी पर आज तक बनी...