सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : अगस्त, 2025

Update: 2025-09-09 06:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : अगस्त, 2025

सुप्रीम कोर्ट में अगस्त, 2025 में क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप। अगस्त महीने के सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

CPC की धारा 80 का नोटिस न देने पर डिक्री रद्द हो जाती है, निष्पादन न्यायालय शून्यता की दलील पर विचार करने के लिए बाध्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि डिक्री के 'शून्य' होने का तर्क निष्पादन के चरण में उठाया जा सकता है और निष्पादन न्यायालय गुण-दोष के आधार पर उस पर निर्णय लेने के लिए बाध्य है। न्यायालय ने कहा, "CPC की धारा 47 के अनुसार, निष्पादन न्यायालय को डिक्री के निष्पादन, निर्वहन या संतुष्टि से संबंधित प्रश्नों की जाँच करने का अधिकार है। वह डिक्री से आगे नहीं जा सकता; लेकिन साथ ही, जब यह दलील दी जाती है कि डिक्री शून्य है। इसलिए लागू नहीं की जा सकती तो निष्पादन न्यायालय ऐसे आवेदन की जांच करने और उसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने के लिए बाध्य है।"

Cause Title: ODISHA STATE FINANCIAL CORPORATION VERSUS VIGYAN CHEMICAL INDUSTRIES AND OTHERS

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Banke Bihari Temple | अध्यादेश की वैधता पर हाईकोर्ट के निर्णय लिए जाने तक समिति को निलंबित करने का आदेश पारित किया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 के तहत समिति के संचालन को निलंबित करने का आदेश पारित करेगा, जिसे मथुरा के वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन सौंपा गया है। न्यायालय ने कहा कि वह अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट में भेजेगा और जब तक हाईकोर्ट इस मामले का निर्णय नहीं ले लेता, समिति को स्थगित रखा जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि इस बीच मंदिर के सुचारू प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए वह एक अन्य समिति का गठन करेगा, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के पूर्व जज करेंगे। समिति में कुछ सरकारी अधिकारी और गोस्वामी, जो मंदिर के पारंपरिक संरक्षक हैं, उसके प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

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चीफ जस्टिस के अनुरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट जज को आपराधिक क्षेत्राधिकार से हटाने का निर्देश वापस लिया

सुप्रीम कोर्ट ने एक असामान्य घटनाक्रम में शुक्रवार (8 अगस्त) को 4 अगस्त को पारित अपने अभूतपूर्व आदेश को वापस ले लिया। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज को उनकी रिटायरमेंट तक आपराधिक क्षेत्राधिकार से हटा दिया जाना चाहिए और उन्हें एक अनुभवी सीनियर जज के साथ बैठाया जाना चाहिए।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित आदेश पर आपत्ति जताते हुए यह असामान्य आदेश पारित किया था, जिसमें आपराधिक शिकायत को इस आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया गया था कि धन की वसूली के लिए दीवानी उपाय प्रभावी नहीं था।

Case Details: M/S. SHIKHAR CHEMICALS v THE STATE OF UTTAR PRADESH AND ANR|SLP(Crl) No. 11445/2025

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चीफ जस्टिस को आंतरिक जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजते हुए जज को हटाने की सिफ़ारिश करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

अघोषित नकदी विवाद में जस्टिस यशवंत वर्मा को दोषी ठहराने वाली आंतरिक समिति की रिपोर्ट के ख़िलाफ़ दायर रिट याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) को जज को हटाने की सिफ़ारिश करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार की गई आंतरिक प्रक्रिया में वह प्रावधान (पैराग्राफ 7(ii)) "कानूनी और वैध" है, जिसके तहत चीफ जस्टिस को समिति की रिपोर्ट के साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजने की आवश्यकता होती है।

Case Details: XXX v THE UNION OF INDIA AND ORS|W.P.(C) No. 699/2025

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पहली तलाक से प्राप्त गुजारा भत्ता, दूसरे विवाह से प्राप्त गुजारा भत्ता निर्धारित करने में अप्रासंगिक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले तलाक के बाद प्राप्त गुजारा भत्ता, दूसरे विवाह के तलाक के बाद देय गुजारा भत्ता निर्धारित करने में प्रासंगिक कारक नहीं है। न्यायालय ने पति के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है, क्योंकि उसे अपने पहले तलाक से उचित समझौता मिला था।

न्यायालय ने कहा, "अपीलकर्ता-पति का दावा है कि दूसरी प्रतिवादी-पत्नी को पहले तलाक से गुजारा भत्ता के रूप में उचित समझौता मिला था; जो, जैसा कि हम शुरू में पाते हैं, वर्तमान विवाद के निर्णय में अप्रासंगिक है...प्रतिवादी द्वारा अपने पहले विवाह के विघटन पर प्राप्त गुजारा भत्ता प्रासंगिक विचारणीय नहीं है।"

Case : A v. State of Maharashtra.

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सेशन कोर्ट CrPC की धारा 193 के तहत अतिरिक्त अभियुक्तों को सुनवाई के लिए बुला सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 193 के तहत सेशन कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए अतिरिक्त अभियुक्त को सुनवाई के लिए बुलाने में कुछ भी गलत नहीं है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायालय "अपराध" का संज्ञान लेता है, न कि "अपराधी" का और यदि न्यायालय को अपनी कार्यवाही के दौरान अन्य अभियुक्तों की संलिप्तता का पता चलता है तो उसे उन्हें भी बुलाने का अधिकार है।

Case : Kallu Nat Alias Mayank Kumar Nagar v State of UP and anr

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चेक बाउंस केस वहीं दर्ज होगा, जहां लाभार्थी का बैंक खाता होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक अनादरण के अपराध के लिए शिकायत के लिए क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार उस स्थान पर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के साथ है जहां आदाता अपना बैंक खाता रखता है जिसके माध्यम से संग्रह के लिए चेक दिया गया था। क्षेत्राधिकार वह नहीं है जहां खाते के माध्यम से नकदीकरण के लिए चेक भौतिक रूप से प्रस्तुत किया गया था, बल्कि उस स्थान पर जहां खाता बनाए रखा जाता है।

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नौकरी के दौरान दिव्यांग होने पर कर्मचारी को दूसरा काम देना नियोक्ता की ज़िम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (1 अगस्त) को यह दोहराया कि यदि कोई कर्मचारी सेवा के दौरान दिव्यांगता का शिकार हो जाता है, तो नियोक्ता की यह संवैधानिक और वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह उसे उपयुक्त वैकल्पिक पद प्रदान करे, जब तक कि संगठन में ऐसा कोई पद मौजूद न हो।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (APSRTC) के एक बस चालक को राहत प्रदान की, जिसे सेवा के दौरान रंग-अंधता (Colour Blindness) विकसित हो जाने के कारण बिना किसी वैकल्पिक पद की पेशकश के समय से पहले सेवा से हटा दिया गया था।

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ओलंपियन पहलवान सुशील कुमार की ज़मानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के विरुद्ध अपीलों से संबंधित सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत किया

बुधवार (13 अगस्त) को सागर धनखड़ हत्याकांड में ओलंपियन पहलवान सुशील कुमार की ज़मानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के विरुद्ध अपील के संबंध में सिद्धांत निर्धारित किए। न्यायालय ने कहा कि ज़मानत के विरुद्ध अपील और ज़मानत रद्द करने की अपील अलग-अलग अवधारणाएं हैं, क्योंकि दोनों में अलग-अलग मानदंड शामिल हैं।

न्यायालय ने कहा कि ज़मानत के विरुद्ध अपील पर हाईकोर्ट विचार कर सकता है, यदि यह दर्शाया गया हो कि ज़मानत आदेश अपराध की गंभीरता, अपराध के प्रभाव, आदेश का अवैध होना, विकृत होना, गवाहों को प्रभावित करने की संभावना आदि जैसे प्रासंगिक कारकों पर विचार किए बिना पारित किया गया था। हालांकि, ज़मानत रद्द करने के लिए आवेदन करते समय इन्हीं आधारों का हवाला नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ज़मानत रद्द करने के लिए परिस्थितियों या उस व्यक्ति पर लगाई गई ज़मानत की शर्तों के किसी भी उल्लंघन, जैसे कि ज़मानत दिए जाने के बाद अभियुक्त का आचरण, को ज़मानत आदेश के विरुद्ध अपील में नहीं, बल्कि ज़मानत रद्द करने के आवेदन में दिया जाना चाहिए।

Case : ASHOK DHANKAD Versus STATE NCT OF DELHI AND ANR | SLP(Crl) No. 5370/2025

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न्यायिक अधिकारी के रूप में अनुभव को सिविल जज परीक्षाओं के लिए 'तीन साल की प्रैक्टिस' में नहीं गिना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल की प्रैक्टिस नियम पर अपने पहले के आदेश में संशोधन करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया। उक्त आदेश में कहा गया था कि न्यायिक अधिकारी के अनुभव को एक प्रैक्टिसिंग वकील के समकक्ष माना जाए। कोर्ट ने कहा कि इससे भानुमती का पिटारा खुल जाएगा।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ हाल ही में आए उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायिक सेवा में प्रवेश स्तर के पदों के लिए आवेदन करने हेतु उम्मीदवार के लिए वकील के रूप में न्यूनतम तीन साल की प्रैक्टिस अनिवार्य की गई।

Case Details : MA in ALL INDIA JUDGES ASSOCIATION AND ORS. Versus UNION OF INDIA AND ORS|W.P.(C) No. 1022/1989

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वोटर लिस्ट से हटाए गए लोगों की सूची प्रकाशित करें, नाम हटाने का कारण भी बताएं: सुप्रीम कोर्ट का ECI को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (14 अगस्त) को भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के बाद प्रकाशित वोटर लिस्ट से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की जिलावार सूची जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर प्रकाशित करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि नाम हटाने के कारण जैसे मृत्यु, प्रवास, दोहरा पंजीकरण आदि, स्पष्ट किए जाने चाहिए। यह जानकारी बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित की जानी चाहिए। दस्तावेजों को EPIC नंबरों के आधार पर सर्च किया जा सके।

Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)

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मोटर दुर्घटना मामले में रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर न होने पर पंजीकृत मालिक का बीमा कंपनी जिम्मेदार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वाहन के पंजीकृत मालिक का बीमाकर्ता वाहन के उपयोग से उत्पन्न होने वाले तीसरे पक्ष के नुकसान की भरपाई के लिए उत्तरदायी होगा, अगर वाहन के हस्तांतरण के बावजूद वाहन का पंजीकरण नहीं बदला गया था।

जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने माल ढोने वाले एक चालक की अपील पर सुनवाई की, जिसमें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपने माल के साथ वाहन में यात्रा करते समय हुई घातक दुर्घटना में मारे गए और घायल हुए यात्रियों को मुआवजा देने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया गया था। वाहन मालिक के समझौते के आधार पर चालक के कब्जे में था ताकि उसे स्वामित्व हस्तांतरित किया जा सके; हालांकि, पंजीकरण औपचारिक रूप से स्थानांतरित नहीं किया गया था।

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सुपीम कोर्ट ने दिल्‍ली NCR के सभी अवारा कुत्तों को डॉग शेल्टर में भेजने का निर्देश दिया, रोकने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 अगस्त) को एक महत्वपूर्ण आदेश में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अधिकारियों को सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को डॉग शेल्टर में पहुंचाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों को उठाने से अधिकारियों को रोकता है, तो उसे कानूनी परिणाम भुगतने होंगे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर आवारा कुत्तों को उठाना ज़रूरी हुआ, तो अधिकारी बल प्रयोग भी कर सकते हैं।

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Delhi LG मानहानि मामले में मेधा पाटकर को राहत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 अगस्त) को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और एक्टिविस्ट मेधा पाटकर की दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। यह आपराधिक मानहानि का मामला दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल (Delhi LG) और लेफ्टिनेंट जनरल विनय कुमार सक्सेना ने 2001 में उनके खिलाफ दर्ज कराया था।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने हालांकि पाटकर पर लगाया गया एक लाख रुपये का जुर्माना रद्द कर दिया। निचली अदालत ने प्रोबेशन अवधि लागू करके उन्हें जेल की सजा से छूट दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रोबेशन आदेश में संशोधन किया, जिसके तहत उन्हें समय-समय पर उपस्थित होना अनिवार्य था। इसके बजाय उन्हें मुचलके भरने की अनुमति दी।

Case Title – Medha Patkar v. VK Saxena

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Bihar SIR: वोटर ड्राफ्ट रोल से बाहर हुए लोग आधार कार्ड के साथ कर सकते हैं ऑनलाइन आवेदन- सुप्रीम कोर्ट

बिहार SIR मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आज आदेश दिया कि जिन व्यक्तियों को मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखा गया है, वे ऑनलाइन मोड के माध्यम से शामिल करने के लिए अपने आवेदन जमा कर सकते हैं और फॉर्म का भौतिक रूप से जमा करना आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उल्लिखित ग्यारह दस्तावेजों में से कोई भी दस्तावेज या आधार कार्ड सूची में शामिल करने की मांग करने वाले आवेदनों के साथ जमा किया जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में किया संशोधन, कहा- Delhi-NCR में टीकाकरण के बाद ही छोड़े जाएंगे उठाए गए आवारा कुत्तें

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को दो जजों की बेंच द्वारा दिए गए उस निर्देश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से उठाए गए आवारा कुत्तों को नहीं छोड़ा जाना चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की तीन जजों की बेंच ने स्पष्ट किया कि उठाए गए आवारा कुत्तों को नसबंदी, कृमिनाशक और टीकाकरण के बाद उसी क्षेत्र में वापस छोड़ा जाना चाहिए, जहां से उन्हें उठाया गया था, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित हैं, जिनके रेबीज से संक्रमित होने का संदेह है या जो आक्रामक व्यवहार कर रहे हैं।

Case Details: IN RE : 'CITY HOUNDED BY STRAYS, KIDS PAY PRICE'|SMW(C) No. 5/2025

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राज्यपाल द्वारा अनिश्चितकाल तक बिल रोकने से विधानसभा निष्क्रिय हो जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

विधेयकों को मंजूरी से संबंधित मुद्दों पर राष्ट्रपति के संदर्भ की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (21 अगस्त) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि यदि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए विधेयकों को रोकते हैं, तो यह विधायिका को निष्क्रिय कर देगा। क्या ऐसी स्थिति में अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए शक्तिहीन हैं, अदालत ने पूछा।

चीफ़ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सॉलिसिटर जनरल की इस दलील का जवाब देते हुए कि न्यायपालिका राष्ट्रपति और राज्यपाल को बाध्यकारी निर्देश जारी नहीं कर सकती है।

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ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत अपराध की परिसीमा अवधि ड्रग्स एनालिस्ट की रिपोर्ट प्राप्त होने से शुरू होती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत 3 वर्ष के कारावास से दंडनीय अपराधों की परिसीमा अवधि की गणना सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट के प्रकाशन की तिथि से की जानी चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता के खिलाफ औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम की धारा 32 के तहत कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी गई थी और शिकायतों को परिसीमा अवधि के भीतर माना गया था।

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IPC की धारा 172-188 से जुड़े अपराधों को धारा 195 के प्रतिबंध को दरकिनार करने के लिए विभाजित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धांत निर्धारित किए

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 195 मजिस्ट्रेट को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 172-188 के तहत अपराधों का संज्ञान लेने से तब तक रोकती है, जब तक कि संबंधित लोक सेवक शिकायत दर्ज न करे, यह प्रतिबंध उन अन्य अपराधों पर भी लागू होता है, जो इन प्रावधानों से इतने निकटता से जुड़े हैं कि उन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता।

पूर्व उदाहरणों पर चर्चा के बाद न्यायालय ने कहा: "इस प्रकार, उपरोक्त के मद्देनजर, कानून का सारांश इस प्रकार दिया जा सकता है कि उस लोक सेवक द्वारा शिकायत अवश्य की जानी चाहिए, जिसे उसके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में स्वेच्छा से बाधा पहुंचाई गई हो। शिकायत लिखित रूप में होनी चाहिए। CrPC की धारा 195 के प्रावधान अनिवार्य हैं। इसका पालन न करने पर अभियोजन और अन्य सभी परिणामी आदेश अमान्य होंगे। न्यायालय ऐसी शिकायत के बिना ही मामले का संज्ञान ले लेता है। ऐसी शिकायत के अभाव में मुकदमा और दोषसिद्धि अधिकार क्षेत्र के बिना होने के कारण प्रारंभ से ही शून्य हो जाएगी।"

Cause Title: DEVENDRA KUMAR VERSUS THE STATE (NCT OF DELHI) & ANR.

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16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (19 अगस्त) को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज की। इस याचिका में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के 2022 के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया था कि 16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है और दंपति को धमकियों से सुरक्षा प्रदान की गई थी। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि NCPCR इस मुकदमे से अनजान है और उसे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

Case Details : NATIONAL COMMISSION FOR PROTECTION OF CHILD RIGHTS (NCPCR) Versus GULAAM DEEN AND ORS.| SLP(Crl) No. 10036/2022, NCPCR vs JAVED AND ORS Diary No. 35376-2022, NCPCR vs FIJA AND ORS SLP(Crl) No. 1934/2023

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RP Act | पर्याप्त न होने तक संपत्ति का खुलासा न करने मात्र से चुनाव अमान्य नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में संपत्ति का खुलासा न करने मात्र से यदि वह कोई भौतिक दोष नहीं है और पर्याप्त प्रकृति का नहीं है तो नामांकन स्वीकार करना अनुचित नहीं होगा, जिससे चुनाव अमान्य हो जाएगा। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 123 के अनुसार ऐसी विफलता भ्रष्ट आचरण नहीं मानी जाएगी, जिससे धारा 100(1)(बी) के अनुसार चुनाव परिणाम अमान्य हो जाता है। ऐसा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति (BRS) की विधायक कोवा लक्ष्मी के चुनाव में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जो तेलंगाना विधानसभा चुनाव, 2023 के आसिफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुई थीं।

Cause Title: AJMERA SHYAM VERSUS SMT. KOVA LAXMI & ORS.

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WB Premises Tenancy Act | धारा 7 के तहत यदि स्वीकृत किराया समय पर जमा नहीं किया जाता तो किरायेदार बेदखली से सुरक्षित नहीं: सुप्रीम कोर्ट

पश्चिम बंगाल परिसर किरायेदारी अधिनियम, 1997 (WBPT Act) की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक बार किरायेदार को बेदखली का समन जारी होने के बाद लागू ब्याज सहित बकाया किराया जमा करने की वैधानिक 30-दिन की अवधि अनिवार्य है और इसे परिसीमा अधिनियम की धारा 5 का हवाला देकर बढ़ाया नहीं जा सकता।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने एक ऐसे मामले पर विचार किया, जिसमें अपीलकर्ता-किरायेदार वैधानिक 30-दिन की अवधि के भीतर स्वीकृत किराया जमा करने में विफल रहा और बाद में परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत एक याचिका के साथ किराए के निर्धारण के लिए विलंबित आवेदन दायर किया। चूंकि बेदखली से बचने के लिए 30 दिनों के भीतर किराए का समय पर भुगतान और उसी अवधि के भीतर किराए के निर्धारण के लिए आवेदन दायर करने की दोनों अनिवार्य शर्तें पूरी नहीं हुईं, इसलिए हाईकोर्ट ने उसे राहत देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

Cause Title: SEVENTH DAY ADVENTIST SENIOR SECONDARY SCHOOL VS. ISMAT AHMED AND ORS.

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फ़ैक्ट्री/प्लांट के भीतर चलने वाले वाहनों पर मोटर व्हीकल टैक्स नहीं लगेगा : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि फ़ैक्ट्री या प्लांट के बंद और सुरक्षित परिसरों के भीतर चलने वाले वाहनों पर मोटर व्हीकल टैक्स नहीं लगेगा, क्योंकि ऐसे क्षेत्र पब्लिक प्लेस की परिभाषा में नहीं आते।

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भूयान की बेंच ने कहा, “मोटर व्हीकल टैक्स मुआवज़े की प्रकृति का होता है। इसका सीधा संबंध सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे सड़क और हाईवे के इस्तेमाल से है। जो वाहन सार्वजनिक सड़कों पर नहीं चलते और केवल बंद परिसरों में उपयोग होते हैं, उनसे टैक्स वसूली का सवाल ही नहीं उठता।”

केस टाइटल : Tarachand Logistic Solutions Ltd बनाम State of Andhra Pradesh & Ors

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आपराधिक अदालतें अपने फैसलों पर पुनर्विचार या उनमें संशोधन नहीं कर सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि आपराधिक अदालतें लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटियों को ठीक करने के अलावा अपने निर्णयों की समीक्षा या वापस नहीं ले सकती हैं, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया गया था जिसने एक कॉर्पोरेट विवाद में झूठी गवाही की कार्यवाही को फिर से खोल दिया था।

चीफ़ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें लंबे समय से चल रहे विवाद में झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने की याचिका खारिज करने के अपने पहले के फैसले को वापस ले लिया गया था।

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NGT के पास PMLA के तहत ED को जांच का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को किसी संस्था के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जांच शुरू करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ED) को निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत जांच करने और उचित कार्रवाई करने के प्रवर्तन निदेशालय (ED) को NGT का निर्देश खारिज कर दिया। इस संबंध में खंडपीठ ने वारिस केमिकल्स (प्रा.) लिमिटेड (2025) का हवाला दिया और कहा कि PMLA की धारा 3 किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप संपत्ति के अवैध लाभ पर निर्भर है। यहां, न तो किसी अनुसूचित अपराध के लिए कोई FIR दर्ज की गई और न ही PMLA के तहत निर्धारित विभिन्न पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत ऐसे अपराधों का आरोप लगाते हुए कोई शिकायत दर्ज की गई।

Case Details: M/s C.L. GUPTA EXPORT LTD v. ADIL ANSARI & Ors. |CIVIL APPEAL NO. 2864 OF 2022

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सुप्रीम कोर्ट ने वंतारा वन्यजीव केंद्र और जानवरों के अधिग्रहण मामलों की SIT से जांच कराने का आदेश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस फाउंडेशन द्वारा जामनगर, गुजरात में संचालित वंतारा (ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर) के मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश दिया। SIT को अन्य बातों के अलावा, भारत और विदेशों से जानवरों, विशेष रूप से हाथियों के अधिग्रहण में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और अन्य प्रासंगिक कानूनों के प्रावधानों के अनुपालन की जांच करनी है। SIT का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जे. चेलमेश्वर करेंगे।

Case : C R Jaya Sukin v Union of India

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अप्रतिबंधित संगठन की बैठकों में शामिल होना UAPA के तहत अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत की पुष्टि की

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसमें 'अल-हिंद' संगठन से कथित संबंधों के लिए सलीम खान नामक व्यक्ति को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत दी गई ज़मानत को चुनौती दी गई थी। अदालत ने यह देखते हुए कि 'अल-हिंद' UAPA के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं है। यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति इसके साथ बैठकें करता है तो UAPA के तहत कोई प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है।

Case : Union of India v. Saleem Khan

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Maharashtra Slum Areas Act | भूमि स्वामी के अधिमान्य अधिकार को समाप्त किए बिना भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

मुंबई के कुर्ला में झुग्गी पुनर्वास के उद्देश्य से भूमि के टुकड़े के अधिग्रहण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि झुग्गी अधिनियम का अध्याय 1-A, राज्य, झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (SRA), अधिभोगियों और अन्य हितधारकों के मुकाबले, भूमि के पुनर्विकास के लिए भूमि स्वामी को अधिमान्य अधिकार प्रदान करता है। न्यायालय ने कहा SRA अनिवार्य रूप से भूमि स्वामी को झुग्गी पुनर्वास योजना के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करते हुए नोटिस जारी करेगा और भूमि स्वामी को "उचित अवधि के भीतर" झुग्गी पुनर्वास (SR) योजना प्रस्तुत करनी होगी।

Case Title: Tarabai Nagar Co-Op. Hog. Society (Proposed) versus The State of Maharashtra and others, SLP(C) No.19774/2018

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प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा के उल्लंघन पर मौत की सज़ा को अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने वसंत संपत दुपारे द्वारा दायर अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका स्वीकार की। दुपारे को चार साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और उन्होंने अपनी सजा को चुनौती दी थी।

कोर्ट ने कहा, "रिट याचिका स्वीकार की जाती है। हमारा मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 32 इस न्यायालय को मृत्युदंड से संबंधित मामलों में, जहां अभियुक्त को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई, सजा सुनाने के चरण को फिर से खोलने का अधिकार देता है, बिना यह सुनिश्चित किए कि मनोज मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया गया। इस सुधारात्मक शक्ति का प्रयोग ऐसे मामलों में मनोज मामले में निर्धारित सुरक्षा उपायों के कठोर अनुप्रयोग के लिए बाध्य करने के लिए किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोषी व्यक्ति समान व्यवहार, व्यक्तिगत सजा और निष्पक्ष प्रक्रिया के उन मौलिक अधिकारों से वंचित न हो, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान करते हैं।

Case Title: VASANTA SAMPAT DUPARE Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(Crl.) No. 371/2023

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