ओलंपियन पहलवान सुशील कुमार की ज़मानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के विरुद्ध अपीलों से संबंधित सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत किया
Shahadat
15 Aug 2025 11:01 AM IST

बुधवार (13 अगस्त) को सागर धनखड़ हत्याकांड में ओलंपियन पहलवान सुशील कुमार की ज़मानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के विरुद्ध अपील के संबंध में सिद्धांत निर्धारित किए। न्यायालय ने कहा कि ज़मानत के विरुद्ध अपील और ज़मानत रद्द करने की अपील अलग-अलग अवधारणाएं हैं, क्योंकि दोनों में अलग-अलग मानदंड शामिल हैं।
न्यायालय ने कहा कि ज़मानत के विरुद्ध अपील पर हाईकोर्ट विचार कर सकता है, यदि यह दर्शाया गया हो कि ज़मानत आदेश अपराध की गंभीरता, अपराध के प्रभाव, आदेश का अवैध होना, विकृत होना, गवाहों को प्रभावित करने की संभावना आदि जैसे प्रासंगिक कारकों पर विचार किए बिना पारित किया गया था। हालांकि, ज़मानत रद्द करने के लिए आवेदन करते समय इन्हीं आधारों का हवाला नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ज़मानत रद्द करने के लिए परिस्थितियों या उस व्यक्ति पर लगाई गई ज़मानत की शर्तों के किसी भी उल्लंघन, जैसे कि ज़मानत दिए जाने के बाद अभियुक्त का आचरण, को ज़मानत आदेश के विरुद्ध अपील में नहीं, बल्कि ज़मानत रद्द करने के आवेदन में दिया जाना चाहिए।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने ज़मानत के विरुद्ध अपील के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांत जारी किए:
(i) ज़मानत के विरुद्ध अपील को ज़मानत रद्द करने के आवेदन के समान नहीं माना जा सकता।
(ii) संबंधित न्यायालय को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का गहन विश्लेषण नहीं करना चाहिए। ऐसे साक्ष्यों के गुण-दोष का निर्णय ज़मानत के चरण में नहीं किया जाना चाहिए।
(iii) ज़मानत देने के आदेश में ज़मानत देने के लिए इस न्यायालय द्वारा स्पष्ट किए गए प्रासंगिक कारकों के विवेकपूर्ण प्रयोग और आकलन को प्रतिबिंबित करना चाहिए। [देखें: वाई बनाम राजस्थान राज्य (सुप्रा); जैबुनिशा बनाम मेहरबान एवं अन्य और भगवान सिंह बनाम दिलीप कुमार @ दीपू]
(iv) ज़मानत के विरुद्ध अपील किसी हाईकोर्ट द्वारा विकृति; अवैधता; कानून के साथ असंगति; अपराध की गंभीरता और अपराध के प्रभाव सहित प्रासंगिक कारकों पर विचार न किए जाने जैसे आधारों पर विचार की जा सकती है।
(v) हालांकि, न्यायालय जमानत दिए जाने के बाद अभियुक्त के आचरण को ऐसी जमानत के विरुद्ध अपील पर विचार करते समय ध्यान में नहीं रख सकता। जमानत रद्द करने के आवेदन में ऐसे आधारों पर विचार किया जाना चाहिए।
(vi) जमानत दिए जाने के विरुद्ध अपील को प्रतिशोधात्मक उपाय के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी अपील केवल ऊपर चर्चा किए गए आधारों तक ही सीमित होनी चाहिए।
जस्टिस करोल द्वारा लिखित निर्णय में हाल ही में अजवर बनाम वसीम एवं अन्य 2024 लाइवलॉ (SC) 392 के मामले का उल्लेख किया गया, जिसमें यह माना गया कि अभियुक्त द्वारा ज़मानत की शर्तों का दुरुपयोग न करने पर भी ज़मानत आदेश रद्द किया जा सकता है, बशर्ते ज़मानत आदेश प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखकर पारित न किया गया हो, जैसे "अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की प्रकृति, जिस तरह से अपराध किया गया, अपराध की गंभीरता, अभियुक्त की भूमिका, अभियुक्त का आपराधिक इतिहास, गवाहों से छेड़छाड़ और अपराध दोहराने की संभावना, यदि अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जाता है, ज़मानत मिलने की स्थिति में अभियुक्त के अनुपलब्ध रहने की संभावना कार्यवाही में बाधा डालने और न्यायालय से बचने की संभावना और अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा करने की समग्र वांछनीयता।"
कानून को लागू करते हुए न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट ने कुमार को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश ग़लती से पारित किया, क्योंकि हाईकोर्ट ने "अपराध की गंभीर प्रकृति, अभियुक्त द्वारा मुकदमे को प्रभावित करने की संभावना और जांच के दौरान अभियुक्त के आचरण" पर विचार न करके गलती की।
अदालत ने भगवान सिंह बनाम दिलीप कुमार, 2023 लाइव लॉ (एससी) 707 का हवाला देते हुए यह भी कहा,
"निस्संदेह, अभियुक्त प्रतिष्ठित पहलवान और ओलंपियन है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसका सामाजिक प्रभाव है। ऐसी परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि उसका गवाहों पर कोई दबदबा नहीं होगा या वह मुकदमे की कार्यवाही में देरी नहीं करेगा। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ज़मानत आदेश पारित होने से पहले ही गवाहों पर दबाव डालने के आरोप लगाए गए। कुछ गवाहों ने अभियुक्तों के इशारे पर अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताते हुए लिखित में शिकायत दर्ज कराई।"
Case : ASHOK DHANKAD Versus STATE NCT OF DELHI AND ANR | SLP(Crl) No. 5370/2025

