हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 May 2024 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 अप्रैल, 2024 से 24 मई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    [CAPF Recruitment ] टैटू हटाने की सर्जरी के कुछ दिनों बाद मेडिकल बोर्ड को उम्मीदवार की तुरंत जांच नहीं करनी चाहिए: दिल्ली हाइकोर्ट

    जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस रविंदर डुडेजा की दिल्ली हाइकोर्ट की पीठ ने टैटू हटाने की सर्जरी के बाद भी अयोग्य घोषित किए गए CAPF उम्मीदवार की फिर से जांच करने का निर्देश दिया है। इसने माना कि समीक्षा मेडिकल बोर्ड को सर्जरी के कुछ दिनों बाद उम्मीदवार की जांच नहीं करनी चाहिए थी और उसे निशान के ठीक होने के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए था।

    केस टाइटल- अक्षय चौधरी बनाम भारत संघ गृह मंत्रालय और अन्य।

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    तलाशी और जब्ती किए बिना पारित किया गया मूल्यांकन आदेश कानून में टिकने लायक नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने माना कि एक बार तलाशी और जब्ती की गई और आयकर अधिनियम की धारा 153ए को लागू करके मूल्यांकन आदेश पारित किया गया तो तलाशी और जब्ती अभियान चलाए बिना नया आदेश कानून में टिकने लायक नहीं होगा।

    जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि जब याचिकाकर्ता के खिलाफ आयकर अधिनियम की धारा 132 और 132ए के तहत कोई तलाशी नहीं ली गई और केवल एम3एम इंडिया लिमिटेड के पंजीकृत कार्यालय में तैयार किए गए पंचनामा में याचिकाकर्ता का नाम दर्शाया गया तो धारा 153ए के तहत नोटिस के आधार पर दूसरा मूल्यांकन आदेश पारित करने में प्रतिवादियों की कार्रवाई अनुचित और अधिकार क्षेत्र से बाहर मानी गई।

    केस टाइटल- मिस्टी मीडोज प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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    S.96 Insolvency & Bankruptcy Code | NI Act के तहत कार्यवाही जब किसी ऋण के संबंध में नहीं तो उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि जब परक्राम्य अधिनियम (NI Act) के तहत कार्यवाही करना ऋण नहीं है तो दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की धारा 96 के तहत इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

    आईबीसी की धारा 96 के अनुसार, अंतरिम अधिस्थगन अवधि के दौरान, 'किसी भी ऋण' के संबंध में लंबित किसी भी कानूनी कार्रवाई या कार्यवाही पर रोक लगा दी गई मानी जाएगी।

    केस टाइटल: जितेंद्र सिंह सोढ़ी और अन्य बनाम आयकर उपायुक्त और अन्य [अन्य संबंधित याचिकाओं के साथ]

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    सिविल कोर्ट को विस्थापित भूमि विवादों से निपटने के दौरान कस्टोडियन विस्थापितों की संपत्ति को सूचित करना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    निष्क्रांत संपत्ति से संबंधित विवादों के लिए कानूनी प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि निष्क्रांत संपत्ति के संबंध में किसी सिविल मुकदमे का संज्ञान लेते समय सिविल अदालतों को कस्टोडियन निष्क्रांत संपत्ति को सूचित करना चाहिए।

    इस शर्त के पीछे विधायी मंशा पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस राहुल भारती ने जम्मू एंड कश्मीर राज्य विस्थापित (संपत्ति का प्रशासन) अधिनियम, 2006 एसवीटी की धारा 35 का हवाला दिया।

    केस टाइटल: मंजूर हुसैन बनाम सैयद मोहसिन अब्बास

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    विशिष्ट प्रदर्शन सूट में विशेष रूप से प्रार्थना नहीं की जाती है तो अदालतें बयाना राशि की वापसी नहीं दे सकती: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि, एक विशिष्ट प्रदर्शन सूट में, न्यायालय बयाना राशि की वापसी की राहत नहीं दे सकता है यदि इसके लिए विशेष रूप से प्रार्थना नहीं की गई है।

    जस्टिस सुभाष चंद की सिंगल जज बेंच ने कहा, "चूंकि वादी ने अपने आप में बयाना राशि या आगे भुगतान की गई राशि की वापसी के लिए वैकल्पिक राहत की मांग नहीं की है, इसलिए अदालत विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 22 (2) के मद्देनजर वादी/अपीलकर्ताओं को उक्त राशि वापस करने का निर्देश नहीं दे सकती है।

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    मध्यस्थता खंड का अस्तित्व स्वतः ही आपराधिक कार्यवाही पर रोक नहीं लगाता: झारखंड हाइकोर्ट

    झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने माना कि मध्यस्थता खंड का अस्तित्व स्वतः ही आपराधिक कार्यवाही पर रोक नहीं लगाता। इसने माना कि संज्ञान या कार्यवाही को रद्द करना, साथ ही वाणिज्यिक लेनदेन से संबंधित मध्यस्थता कार्यवाही की शुरुआत निर्णायक कारक नहीं हैं।

    पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि मध्यस्थता के माध्यम से अनुबंध के उल्लंघन के लिए एक उपाय उपलब्ध है, अदालत को स्वचालित रूप से यह निष्कर्ष निकालने की ओर नहीं ले जाता है कि दीवानी उपाय ही एकमात्र सहारा है। इससे आपराधिक कार्यवाही शुरू करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं माना जाता, जिससे ऐसी कार्यवाही रद्द करने के लिए निहित शक्तियों के उपयोग की आवश्यकता हो।

    केस टाइटल- असित सी. मेहता इन्वेस्टमेंट इंटरमीडिएट्स लिमिटेड और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य और संबंधित मामले

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    कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी किए गए OBC सर्टिफिकेट रद्द कर दिए

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में जारी किए गए सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सर्टिफिकेट रद्द कर दिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों ने अधिनियम के लाभ पर रोजगार प्राप्त किया। इस तरह के आरक्षण के कारण पहले से ही सेवा में थे, वे आदेश से प्रभावित नहीं होंगे।

    जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने राज्य में OBC सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया। इस फैसले का असर 5 लाख OBC सर्टिफिकेट पर पड़ना तय है।

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    S.2(2) HMA| काफी हद तक 'हिंदूकृत' जनजातियों को तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए प्रथागत न्यायालयों में नहीं भेजा जा सकता: तेलंगाना हाइकोर्ट

    तेलंगाना हाइकोर्ट ने माना कि जब मान्यता प्राप्त जनजातियों ने हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करना स्वीकार कर लिया है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(बी) के तहत विवाह विच्छेद के लिए संयुक्त रूप से याचिका दायर की है तो न्यायालय अधिनियम की धारा 2(2) द्वारा बनाए गए प्रतिबंध का हवाला देते हुए उन्हें प्रथागत न्यायालयों में नहीं भेज सकता।

    HMA की धारा 2(2) कहती है कि अधिनियम में निहित कोई भी बात अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होगी।

    केस टाइटल- कदवथ श्रीकांत बनाम कदवथ अश्विता

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    बिना किसी वैध कारण के कर्मचारी को मूल स्थान से नए स्थान पर ट्रांसफर करना अनुचित: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट के जस्टिस संजय वशिष्ठ की पीठ ने कहा कि हलफनामे के रूप में कर्मचारी को मूल स्थान से नए स्थान पर ट्रांसफर करने की आवश्यकता को दर्शाने वाले किसी भी तथ्य के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि प्रबंधन द्वारा लिया गया निर्णय उचित है और इसमें कोई संदेह नहीं है।

    केस टाइटल- पप्पू गिरी और अन्य बनाम पीठासीन अधिकारी, औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय, पानीपत, और अन्य

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    स्टाम्प अधिकारी अचल संपत्ति के हस्तांतरण के लिए एक ही बिक्री मूल्य पर दो बार शुल्क नहीं लगा सकते: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने संपत्ति लेन-देन पर स्टाम्प ड्यूटी लगाने के संबंध में एक महत्वपूर्ण कानूनी निर्णय में फैसला सुनाया है कि स्टाम्प अधिकारी अचल संपत्ति के हस्तांतरण के लिए एक ही बिक्री मूल्य पर दो बार स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगा सकते हैं, जब बिक्री मूल्य का भुगतान बिक्री समझौते के निष्पादन के चरण में किया गया था और स्टाम्प ड्यूटी उक्त दस्तावेज के पंजीकरण के समय पूरी बिक्री मूल्य पर चुकाई गई थी।

    केस टाइटल: डिप्टी कलेक्टर और अन्य बनाम मीरा एस देसाई और अन्य

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    क्रोध या भावना के क्षण में कही गई बात को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा है कि क्रोध या भावना के क्षण में कही गई बात को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता। अपराध के लिए मेन्स रीया आवश्यक तत्व है। इस प्रकार इसने अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 306 के तहत दर्ज पत्नी की सजा खारिज कर दी।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा, "क्रोध या भावना के क्षण में कही गई बातों को उकसावा नहीं माना जा सकता। यह स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति की संवेदनशीलता और स्वभाव अलग-अलग होते हैं। केवल मृतक की भावनाएं ही मायने नहीं रखतीं बल्कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरोपी के कृत्य के पीछे की मंशा क्या थी, क्या वह वास्तव में मृतक को आत्महत्या के लिए मजबूर करना चाहता था।"

    केस टाइटल- कविता बनाम हरियाणा राज्य

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    सेशन कोर्ट बाद की घटनाओं के आधार पर हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर सकता है, लेकिन इसकी सत्यता पर निर्णय नहीं ले सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को केवल बाद की घटनाओं के आधार पर रद्द कर सकता है, लेकिन हाइकोर्ट के आदेश की सत्यता पर निर्णय नहीं ले सकता।

    जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा, "सेशन कोर्ट के पास हाइकोर्ट द्वारा या उसके द्वारा पहले दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने का अधिकार है। हालांकि सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत केवल तभी रद्द कर सकता है, जब अभियुक्त ने हाइकोर्ट द्वारा (ऐसी जमानत देते समय) लगाई गई किसी शर्त का उल्लंघन किया हो या ऐसे अभियुक्त ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करके या खुद को अनुपस्थित करके या जमानत पर रहते हुए कोई अन्य अपराध करके मुकदमे में देरी करने की कोशिश करके उसे दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया हो। इसी तरह की अन्य प्रकृति के कारक हों।"

    केस टाइटल- XXXX बनाम XXX

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    एससी/एसटी अधिनियम के तहत 'जानबूझकर अपमान' का कथित कृत्य तब तक अपराध नहीं, जब तक कि वह सार्वजनिक रूप से न किया गया हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि जानबूझकर अपमान या धमकी देने का कथित कृत्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा, जब यह सार्वजनिक रूप से किया गया हो।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध के संबंध में तीन व्यक्तियों (आवेदकों) के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटलः पिंटू सिंह @ राणा प्रताप सिंह और 2 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 335

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    हिरासत में रखने वाले अधिकारी को सिर्फ़ इसलिए निवारक हिरासत आदेश जारी करने से नहीं रोका जा सकता कि व्यक्ति पर पहले से ही मुकदमा चल रहा है: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने माना कि हिरासत में रखने वाले अधिकारी को सिर्फ़ इसलिए निवारक हिरासत आदेश जारी करने से नहीं रोका जा सकता कि व्यक्ति पर पहले से ही ठोस अपराधों के लिए मुकदमा चल रहा है।

    रफ़ाक़त अली द्वारा दायर की गई हेबियस कॉर्पस याचिका खारिज करते हुए, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों के अवैध व्यापार की रोकथाम अधिनियम 1988 (PITNDPS Act) के तहत उनकी निवारक हिरासत को चुनौती दी गई।

    केस टाइटल: रफाकत अली बनाम जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश

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    धारा 33-जी यूपी माध्यमिक शिक्षा (सेवा चयन बोर्ड) अधिनियम दशकों से सेवारत शिक्षकों को नियमित करने के लिए एक लाभकारी प्रावधान: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा (सेवा चयन बोर्ड) अधिनियम, 1982 की धारा 33-जी, जिसे 2016 में संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था, उन शिक्षकों के लिए एक लाभार्थी योजना थी, जिन्होंने दशकों तक शिक्षक के रूप में सेवा की है।

    यह प्रावधान प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक के पदों के अलावा अन्य पदों पर शिक्षकों की मौलिक नियुक्तियों को नियंत्रित करता है। इसकी उपधारा (ए) में प्रधानाचार्य या प्रधानाध्यापक के अलावा अन्य शिक्षक के नियमितीकरण का प्रावधान है, जिन्हें सात अगस्त 1993 को या उसके बाद, लेकिन 25 जनवरी 1999 के बाद नहीं, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग (कठिनाइयों का निवारण) आदेश, 198 के पैरा 2 के अनुसार अल्पकालिक रिक्ति पर व्याख्याता ग्रेड या प्रशिक्षित स्नातक ग्रेड में पदोन्नति या सीधी भर्ती द्वारा नियुक्त किया गया है, जिसे बाद में मौलिक रिक्ति में परिवर्तित कर दिया गया था।

    केस टाइटल: तीर्थराज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य माध्यमिक शिक्षा लखनऊ। और 4 अन्य [WRIT - A No. - 8517 of 2023]

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    धारा 2(ई) यूपीवैट | कारोबार बंद होने के बाद बेचे गए प्लांट, मशीनरी पूंजीगत सामान, इन्हें कर से बाहर रखा गया है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि कारोबार बंद होने के बाद बेचे गए संयंत्र और मशीनरी उत्तर प्रदेश मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2008 की धारा 2(एफ) के तहत पूंजीगत सामान हैं और अधिनियम की धारा 2(ई) के तहत 'कारोबार' की संशोधित परिभाषा के तहत कर के दायरे से बाहर हैं।

    उत्तर प्रदेश मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2008 की धारा 2(ई)(iv) के तहत 'कारोबार' की परिभाषा को 2014 में संशोधित किया गया था, ताकि कारोबार बंद होने के बाद भी कोई भी लेन-देन इसमें शामिल हो, अगर यह कारोबार की अवधि के दौरान अर्जित माल की बिक्री से संबंधित है। धारा 2(एफ) में 'पूंजीगत सामान' को डीलर द्वारा बिक्री के लिए किसी भी माल के निर्माण या प्रसंस्करण के लिए उपयोग किए जाने वाले संयंत्र, मशीन, मशीनरी, उपकरण, औजार, उपकरण या विद्युत स्थापना के रूप में परिभाषित किया गया है।

    केस टाइटलः आयुक्त, वाणिज्य कर यूपी बनाम मेसर्स आरपी मिल्क मेड प्रोडक्ट्स (पी) लिमिटेड [बिक्री/व्यापार कर संशोधन संख्या 123 वर्ष 2023]

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    पारिवारिक भूमि विवादों में सबूत पेश करने का प्रारंभिक दायित्व उन पर, जिन्होंने दावा किया कि संपत्ति संयुक्त हिंदू संपत्ति है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि हिंदू परिवार भूमि विवादों में, जिस व्यक्ति ने विचाराधीन संपत्ति को संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति होने का दावा किया है, उसे इसे साबित करने के लिए प्रारंभिक प्रमाण का भार उठाना होगा।

    न्यायालय ने कुंज बिहारी बनाम गंगा सहाय पांडे के मामले पर भरोसा किया, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि "इससे जो कानूनी प्रस्ताव उभरता है, वह यह है कि प्रारंभिक भार उस व्यक्ति पर है जो दावा करता है कि यह संयुक्त परिवार की संपत्ति है, लेकिन प्रारंभिक भार के निर्वहन के बाद, भार उस पक्ष पर स्थानांतरित हो जाता है जो दावा करता है कि संपत्ति स्वयं अर्जित की गई थी और संयुक्त परिवार की संपत्ति की सहायता के बिना अर्जित की गई थी।"

    केस टाइटलः राम बहल और अन्य बनाम डीडीसी और अन्य [रिट-बी नंबर-3434/1981]

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    दहेज की मांग दंडनीय है, मगर कम दहेज देने पर ताना देना अपने आप में दंडनीय अपराध नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    पति के रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक शिकायतों को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि दहेज की मांग दंडनीय अपराध है, लेकिन कम दहेज देने के लिए ताना देना अपने आप में एक दंडनीय अपराध नहीं है। न्यायालय ने माना कि परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप स्पष्ट होने चाहिए, जिसमें आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए प्रत्येक सदस्य द्वारा निभाई गई विशिष्ट भूमिकाओं पर प्रकाश डाला जाए।

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    FIR को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि पुलिस स्टेशन के पास मामले की जांच करने का कोई क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं था: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि एक प्राथमिकी को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि जिस पुलिस स्टेशन में इसे दर्ज किया गया था, उसके पास मामले की जांच करने का कोई क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं था।

    जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि अगर कोई संज्ञेय अपराध हुआ है तो शिकायतकर्ता किसी भी पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। यदि पुलिस स्टेशन यह निष्कर्ष निकालता है कि उसके पास मामले की जांच करने का कोई क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है, तो उसे एफआईआर को उस पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित करना होगा जो इसकी जांच करने के लिए क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि, अकेले इस आधार पर एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।

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    यूपी में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नहीं, लेकिन ऐसे 'डॉक्टर' उपसर्ग का उपयोग नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश राज्य में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथी के ऐसे डॉक्टर अपने नाम के आगे 'डॉक्टर' उपसर्ग का उपयोग नहीं कर सकते। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने आगे कहा कि यह प्रथा सरकारी आदेश दिनांक 25.11.2003 द्वारा शासित होगी।

    यह कहा गया, “हालांकि कोई भी संस्थान इलेक्ट्रो होम्योपैथी में डिप्लोमा या डिग्री प्रदान नहीं कर सकता है। हालांकि, चूंकि कोई प्रतिबंध नहीं है, याचिकाकर्ता हमेशा दिनांक 25.11.2003 के आदेश के मापदंडों के भीतर वैकल्पिक मेडिकल के रूप में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस कर सकते हैं। इस न्यायालय ने यह भी पाया कि किसी वैधानिक प्रावधान के अभाव में भारत में इलेक्ट्रोपैथी या इलेक्ट्रो होम्योपैथी में कोई डिप्लोमा या डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है। हालांकि, उक्त अध्ययन के लिए सर्टिफिकेट जारी करने में कोई रोक नहीं है।

    केस टाइटल: राजेश कुमार पुत्र राम खेलावन सिंह और अन्य बनाम भारत संघ सचिव के माध्यम से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय [डब्ल्यूआरआईटी - सी नंबर - 6856/2009]

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    [Indian Stamp Act] कलेक्टर अर्ध-न्यायिक प्राधिकारी, आदेश की समीक्षा करने/वापस लेने की कोई वैधानिक शक्ति नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के तहत कार्यवाही प्रकृति में अर्ध-न्यायिक है और जब तक क़ानून विशेष रूप से प्रदान नहीं करता है, कलेक्टर (स्टाम्प) के पास अपने आदेश की समीक्षा करने या वापस लेने की कोई शक्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम के तहत कलेक्टर (स्टाम्प) को अपने आदेश की समीक्षा/वापस लेने की कोई वैधानिक शक्ति नहीं दी गई है।

    जस्टिस शेखर बी. सराफ ने कहा "कलेक्टर (स्टाम्प) अपने स्वयं के आदेश को वापस नहीं ले सकता है और / या समीक्षा नहीं कर सकता है क्योंकि अधिनियम की धारा 47-ए के तहत ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की गई है। एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण अपनी कार्यक्षमता में सीमित है जितना कि उसे क़ानून के चार कोनों के भीतर कार्य करना है जहाँ से वह अपना अधिकार प्राप्त करता है। यदि क़ानून किसी विशेष अधिनियम के लिए प्रदान नहीं करता है, तो उस प्राधिकरण द्वारा ऐसा नहीं किया जा सकता है। विधायी इरादे के अनुसार की गई ऐसी कोई भी कार्रवाई एक अतिरेक होगी और उक्त प्राधिकरण की शक्ति से परे होगी,"

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    पति के रिश्तेदारों के खिलाफ पत्नी द्वारा यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप क्रूरता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पति के रिश्तेदारों के खिलाफ पत्नी द्वारा यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप क्रूरता के बराबर है और तलाक का आधार हो सकता है।

    जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस हर्ष बंगर की खंडपीठ ने कहा, 'परिवार के सभी पुरुष सदस्यों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाना और जांच के दौरान उनके निर्दोष पाए जाने का तथ्य स्पष्ट रूप से क्रूरता के समान है।'

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    मस्जिद प्रबंध समिति एक वर्ष से कम समय के लिए वक्फ संपत्ति का पट्टा दे सकती है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि मस्जिद प्रबंध समिति को 'मुतवल्ली' माना जा सकता है और वह किसी भी वक्फ संपत्ति को एक वर्ष से कम अवधि के लिए पट्टे पर देने का हकदार है। कोर्ट ने कहा, "वक्फ लीज नियमों के नियम 4 में यह प्रावधान है कि मुतवल्ली भी एक वर्ष से कम अवधि के लिए पट्टे देने का हकदार है। वक्फ अधिनियम की धारा 3(i) में मुतवल्ली को किसी भी व्यक्ति, समिति या निगम को शामिल किया गया है जो फिलहाल किसी भी वक्फ संपत्ति का प्रबंधन या प्रशासन कर रहा है। चूंकि चौथे प्रतिवादी की प्रबंध समिति को वक्फ बोर्ड द्वारा इस उद्देश्य के लिए नियुक्त किया गया है, इसलिए उक्त प्रबंध समिति को चौथे प्रतिवादी की मुतवल्ली माना जाएगा और वह एक वर्ष से कम अवधि के लिए पट्टे देने की हकदार होगी।"

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    RTI Act के तहत मांगी गई कर चोरी याचिका के नतीजे से संबंधित जानकारी प्रदान नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI Act) के तहत मांगी गई कर चोरी याचिका के नतीजे से संबंधित जानकारी प्रदान नहीं की जा सकती।

    जस्टिस बी.आर. सारंगी और जस्टिस जी. सतपथी की खंडपीठ ने पाया कि RTI Act के तहत दायर आवेदन में मांगी गई जानकारी की आपूर्ति के संबंध में याचिकाकर्ता का दावा धारा 8(1) खंड (i) के तहत निहित प्रावधानों के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं है।

    केस टाइटल: दीपक कुमार आचार्य बनाम आयुक्त, आयकर विभाग और अन्य

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    कानूनी मुद्दा पहली बार अपील कार्यवाही में उठाया जाना तथ्यों पर निर्भर करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि मामले की जड़ तक जाने वाला कोई कानूनी मुद्दा अपीलीय कार्यवाही में पहली बार उठाया जा सकता है, लेकिन यह मामले के तथ्यों पर निर्भर है।

    चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार की खंडपीठ ने फैसला सुनाया, “कानून के इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं है कि मामले की जड़ में जाने वाला कोई कानूनी मुद्दा अपीलीय कार्यवाही में पहली बार उठाया जा सकता है। हालांकि, प्रश्न किसी विशेष मामले के तथ्यों पर निर्भर है।

    केस टाइटल: गौरसंस प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आकाश इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स [मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 37 के तहत अपील नंबर- 144/2023]

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