सेशन कोर्ट बाद की घटनाओं के आधार पर हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर सकता है, लेकिन इसकी सत्यता पर निर्णय नहीं ले सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

21 May 2024 1:17 PM GMT

  • सेशन कोर्ट बाद की घटनाओं के आधार पर हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर सकता है, लेकिन इसकी सत्यता पर निर्णय नहीं ले सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को केवल बाद की घटनाओं के आधार पर रद्द कर सकता है, लेकिन हाइकोर्ट के आदेश की सत्यता पर निर्णय नहीं ले सकता।

    जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,

    "सेशन कोर्ट के पास हाइकोर्ट द्वारा या उसके द्वारा पहले दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने का अधिकार है। हालांकि सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत केवल तभी रद्द कर सकता है, जब अभियुक्त ने हाइकोर्ट द्वारा (ऐसी जमानत देते समय) लगाई गई किसी शर्त का उल्लंघन किया हो या ऐसे अभियुक्त ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करके या खुद को अनुपस्थित करके या जमानत पर रहते हुए कोई अन्य अपराध करके मुकदमे में देरी करने की कोशिश करके उसे दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया हो। इसी तरह की अन्य प्रकृति के कारक हों।"

    दूसरे शब्दों में सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा अभियुक्त को दी गई अग्रिम जमानत को केवल ऐसी ही घटनाओं के आधार पर रद्द कर सकता है लेकिन हाइकोर्ट के आदेश की सत्यता पर निर्णय नहीं दे सकता।

    हाइकोर्ट ने निम्नलिखित सिद्धांतों का भी सारांश दिया:

    (i) हाइकोर्ट के पास स्वयं या सेशन कोर्ट या मजिस्ट्रेट न्यायालय द्वारा दी गई नियमित जमानत को रद्द करने का अधिकार है।

    (ii) सेशन कोर्ट को हाइकोर्ट या स्वयं या मजिस्ट्रेट न्यायालय द्वारा दी गई नियमित जमानत रद्द करने का अधिकार है। हालांकि सेशन कोर्ट हाइकोर्ट द्वारा दी गई नियमित जमानत को केवल तभी रद्द कर सकता है, जब अभियुक्त ने हाइकोर्ट द्वारा (जमानत देते समय) लगाई गई किसी शर्त का उल्लंघन किया हो या ऐसे अभियुक्त ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करके या खुद को अनुपस्थित करके या जमानत पर रहते हुए कोई अन्य अपराध करके मुकदमे में देरी करने की कोशिश करके उसे दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया हो।

    (iii) मजिस्ट्रेट के पास सीआरपीसी 1973 की धारा 437(5) के अनुसार उसके द्वारा दी गई नियमित जमानत रद्द करने का अधिकार है। हालांकि, मजिस्ट्रेट के पास हाइकोर्ट या सेशन कोर्ट द्वारा दी गई नियमित जमानत को रद्द करने का अधिकार नहीं है, सिवाय उस स्थिति के जिसमें अभियुक्त ने हाइकोर्ट या सेशन कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने पर उस पर लगाई गई किसी शर्त का उल्लंघन किया हो।

    (iv) यदि सेशन कोर्ट द्वारा दी गई नियमित जमानत रद्द करने की मांग की जाती है। ऐसी याचिका सामान्यतः सेशन कोर्ट के समक्ष ही दायर की जानी चाहिए। हालांकि, सीआरपीसी 1973 की धारा 439(2) के अनुसार हाइकोर्ट और सेशन कोर्ट का समवर्ती क्षेत्राधिकार है। इसलिए हाइकोर्ट के समक्ष ऐसी याचिका को सीधे दायर करना स्वतः वर्जित नहीं है।

    (v) नियमित जमानत रद्द करने की याचिका में सुनवाई योग्य कारक हैं कि क्या अभियुक्त ने गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास करके उसे दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया या उसने मुकदमे में देरी करने का प्रयास किया है या जमानत पर रहते हुए कोई अन्य अपराध किया है, क्या अभियुक्त ने जमानत रद्द करने के आदेश का उल्लंघन किया, क्या गलत बयानी या धोखाधड़ी या प्रासंगिक सामग्री को छिपाने और समान प्रकृति के समान कारकों के माध्यम से जमानत प्राप्त की गई।

    (vi) जहां ऐसी याचिका में यह आधार उठाया जाता है कि तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने या जमानत देने वाले न्यायालय के साथ धोखाधड़ी करने या सामग्री/प्रासंगिक तथ्यों को छिपाने के कारण जमानत दी गई है, यह समीचीन होगा कि ऐसी याचिका, प्रथम दृष्टया, उसी न्यायालय के समक्ष दायर की जाए, जिसने संबंधित जमानत प्रदान की थी।

    जमानत आदेश रद्द करने की मांग करने वाली याचिका के संबंध में इसने कहा कि याचिका “अनिवार्य रूप से उस न्यायालय में दायर की जानी चाहिए, जो जमानत प्रदान करने वाले न्यायालय से उच्चतर हो।”

    न्यायालय ने कहा,

    "यदि मजिस्ट्रेट न्यायालय द्वारा दिए गए जमानत आदेश रद्द करने की मांग की जाती है तो ऐसी याचिका सामान्यतः सेशन कोर्ट के समक्ष दायर की जानी चाहिए। हालांकि सीआरपीसी 1973 की धारा 439(2) के अनुसार हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय का समवर्ती क्षेत्राधिकार है, इसलिए हाईकोर्ट के समक्ष सीधे ऐसी याचिका दायर करना स्वतः वर्जित नहीं है।"

    साथ ही यह भी उचित होगा कि ऐसी याचिका (हाइकोर्ट के समक्ष सीधे दायर की गई) में सेशन कोर्ट में न जाने का ठोस कारण दिखाया जाना चाहिए। ये टिप्पणियां पीड़िता के पिता द्वारा क्रूरता से संबंधित मामले में गिरफ्तारी से पहले जमानत को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में आईं, जिसमें एक व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 323, 406, 498-ए, 506 और 34 और शस्त्र अधिनियम (Arms Act) की धारा 25 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभियुक्त को सत्र न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि उस पर गंभीर आरोप थे।

    यह भी तर्क दिया गया कि दहेज के सामान/इस्त्रीधन की पूरी वसूली नहीं की गई, इसलिए सत्र न्यायालय को उसे अग्रिम जमानत नहीं देनी चाहिए थी।

    प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

    "यह सामान्य कानून है कि दहेज के सामान/इस्त्रीधन की वसूली न होना अपने आप में पति या उसके रिश्तेदारों को अग्रिम जमानत देने की याचिका अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता।"

    न्यायालय ने कहा कि यह मानने का कोई अच्छा आधार नहीं है कि सेशन कोर्ट ने विवादित आदेश पारित करते समय अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है या सही परिप्रेक्ष्य में इसका प्रयोग नहीं किया।

    उपर्युक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- XXXX बनाम XXX

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