एससी/एसटी अधिनियम के तहत 'जानबूझकर अपमान' का कथित कृत्य तब तक अपराध नहीं, जब तक कि वह सार्वजनिक रूप से न किया गया हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

21 May 2024 11:27 AM GMT

  • एससी/एसटी अधिनियम के तहत जानबूझकर अपमान का कथित कृत्य तब तक अपराध नहीं, जब तक कि वह सार्वजनिक रूप से न किया गया हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि जानबूझकर अपमान या धमकी देने का कथित कृत्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा, जब यह सार्वजनिक रूप से किया गया हो।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध के संबंध में तीन व्यक्तियों (आवेदकों) के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

    दरअसल, आवेदकों के खिलाफ नवंबर 2017 में धारा 147, 452, 323, 504, 506 आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी और आरोप लगाया गया कि नामजद आरोपियों (आवेदकों सहित 7) ने शिकायतकर्ता के घर में घुसकर जाति-आधारित टिप्पणी की और शिकायतकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों पर हमला भी किया।

    आवेदकों ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध के संबंध में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत न्यायालय में आवेदन किया।

    यह तर्क दिया गया कि अपराध शिकायतकर्ता के घर में किया गया था, जो सार्वजनिक स्थान नहीं है और लोगों की नज़र में नहीं था, इसलिए एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत कोई अपराध नहीं बनता।

    संदर्भ के लिए, एससी/एसटी अधिनियम के तहत यह प्रावधान किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक दृश्य में किसी भी स्थान पर अपमानित करने या डराने के इरादे से जानबूझकर अपमानित करना अपराध बनाता है।

    दूसरी ओर, एजीए ने आवेदकों की धारा 482 सीआरपीसी की दलील का विरोध किया। हालांकि, वह इस बात पर विवाद नहीं कर सके कि कथित तौर पर घटना शिकायतकर्ता के घर में हुई थी। शुरू में, न्यायालय ने नोट किया कि आवेदकों के वकील द्वारा दायर साइट प्लान से संकेत मिलता है कि घटना का स्थान शिकायतकर्ता का घर है, जो सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृश्य नहीं है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 161 सीआरपीसी और एफआईआर के तहत शिकायतकर्ता के बयान के अवलोकन से पता चलता है कि जिस घर में कथित घटना हुई थी, वहां कोई भी बाहरी आदमी नहीं था।

    इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के प्रावधानों के अनुसार, अपराध सार्वजनिक रूप से किया जाना चाहिए था।

    एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत कार्यवाही को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा, "जब अपराध सार्वजनिक रूप से नहीं हुआ है, तो एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के प्रावधान लागू नहीं होंगे और इसलिए इस पर आगे कार्रवाई नहीं की जा सकती।"

    केस टाइटलः पिंटू सिंह @ राणा प्रताप सिंह और 2 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 335

    केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 335

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