यूपी में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नहीं, लेकिन ऐसे 'डॉक्टर' उपसर्ग का उपयोग नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
20 May 2024 7:56 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश राज्य में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथी के ऐसे डॉक्टर अपने नाम के आगे 'डॉक्टर' उपसर्ग का उपयोग नहीं कर सकते।
जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने आगे कहा कि यह प्रथा सरकारी आदेश दिनांक 25.11.2003 द्वारा शासित होगी।
यह कहा गया,
“हालांकि कोई भी संस्थान इलेक्ट्रो होम्योपैथी में डिप्लोमा या डिग्री प्रदान नहीं कर सकता है। हालांकि, चूंकि कोई प्रतिबंध नहीं है, याचिकाकर्ता हमेशा दिनांक 25.11.2003 के आदेश के मापदंडों के भीतर वैकल्पिक मेडिकल के रूप में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस कर सकते हैं। इस न्यायालय ने यह भी पाया कि किसी वैधानिक प्रावधान के अभाव में भारत में इलेक्ट्रोपैथी या इलेक्ट्रो होम्योपैथी में कोई डिप्लोमा या डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है। हालांकि, उक्त अध्ययन के लिए सर्टिफिकेट जारी करने में कोई रोक नहीं है।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रणाली की दवाओं का प्रैक्टिस करने के लिए काउंट मैटेई एसोसिएशन से सर्टिफिकेट प्राप्त किया था। सर्टिफिकेट के आधार पर याचिकाकर्ताओं को पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल और अन्य राज्यों में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस करने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, उन्हें उत्तर प्रदेश में प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि राज्य में इस संबंध में कोई कानून नहीं था। याचिकाकर्ता ने यूपी में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस करने की अनुमति मांगने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि भारत सरकार द्वारा जारी दिनांक 21.06.2011 के आदेश में स्पष्ट किया गया कि दिनांक 25.11.2003 के आदेश इलेक्ट्रोपैथी, इलेक्ट्रो होम्योपैथी आदि जैसी मेडिकल की वैकल्पिक प्रणाली के लिए प्रैक्टिस, शिक्षा और अनुसंधान से संबंधित निर्देश थे। यह तर्क दिया गया कि आदेश दिनांक 21.06.2011 में प्रावधान किया गया कि जब तक उस पाठ्यक्रम के लिए कोई डिग्री/डिप्लोमा प्रदान/जारी नहीं किया जाता, तब तक इलेक्ट्रो होम्योपैथी की शिक्षा प्रदान करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है और ऐसे व्यक्ति अपने नाम के आगे 'डॉक्टर' का उपयोग नहीं कर सकते।
इसके अलावा कार्यालय ज्ञापन दिनांक 13.04.2023 पर भरोसा किया गया, जहां यह कहा गया कि केवल भारत सरकार के पास इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस, शिक्षा, विकास और प्रचार के संबंध में नियम/विनियम बनाने की शक्ति है। यह तर्क दिया गया कि चूंकि ऐसी शक्तियां केंद्र सरकार द्वारा आरक्षित हैं, राज्य सरकार इसके उल्लंघन में कार्य नहीं कर सकती है और याचिकाकर्ताओं को प्रैक्टिस करने से नहीं रोक सकती।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने कहा कि "इलेक्ट्रो होम्योपैथी सहित इलेक्ट्रोपैथी की प्रैक्टिस के लिए नियम और विनियम बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।" न्यायालय ने कहा कि देश में इसे विनियमित करने के लिए कोई परिषद स्थापित नहीं की गई और इलेक्ट्रोपैथी और इलेक्ट्रो होम्योपैथी को विनियमित करने के लिए समय-समय पर केवल सरकारी आदेश जारी किए जाते हैं।
25.11.2003 के सरकारी आदेश के संबंध में न्यायालय ने कहा कि इसने दवाओं की वैकल्पिक प्रणाली के रूप में इलेक्ट्रोपैथी/इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रणाली की सिफारिश नहीं की। सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को प्रचार-प्रसार करने और यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए गए कि कोई भी सरकारी संस्थान इलेक्ट्रोपैथी/इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस करने के लिए डिग्री या डिप्लोमा न दे। इसके अलावा, ऐसे डॉक्टरों को अपने नाम के आगे 'डॉक्टर' का प्रयोग नहीं करना है। न्यायालय ने कहा कि उपचार की वैकल्पिक पद्धति अपनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि दिनांक 05.05.2010 के आदेश के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि दिनांक 25.11. 2003 का अनुसरण किया जा रहा था।
इसके बाद इलेक्ट्रो होमियो मेडिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूपी राज्य और अन्य में इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकारी आदेश दिनांक 21.06.2011 जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि दिनांक 25.11.2003 और 05.05.2010 के आदेशों को शिक्षा, प्रैक्टिस और अनुसंधान के लिए इलेक्ट्रोपैथी, इलेक्ट्रो होम्योपैथी आदि जैसी मेडिकल की वैकल्पिक प्रणालियों के क्षेत्र में निर्देश के रूप में माना जाना था।
कोर्ट ने सुतापा सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य पर भी भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस करने की अनुमति दी। साथ ही कहा कि ऐसा अभ्यास और शिक्षा प्रदान करना सरकारी आदेश दिनांक 25.11.2003 के अनुसार किया जाना चाहिए।
तदनुसार, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस यूपी राज्य में तब तक किया जा सकता है, जब तक कि इसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जाता है। हालांकि, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को अपने नाम के आगे 'डॉक्टर' उपसर्ग लगाने से रोक दिया।
केस टाइटल: राजेश कुमार पुत्र राम खेलावन सिंह और अन्य बनाम भारत संघ सचिव के माध्यम से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय [डब्ल्यूआरआईटी - सी नंबर - 6856/2009]