जानिए हमारा कानून
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 24: स्थावर संपत्ति के विक्रय के विषय में (धारा 54)
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 54 अचल संपत्ति के विक्रय के संबंध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। इस धारा के अंतर्गत विक्रय की परिभाषा भी प्रस्तुत की गई है, अंतरण का ढंग भी बताया गया है और विक्रय संविदा के संबंध में भी उल्लेख किया गया है। अचल संपत्ति का विक्रय इस अधिनियम की इस धारा के अंतर्गत ही अधिशासी होता है तथा चल संपत्तियों का विक्रय वस्तु विक्रय अधिनियम के अंतर्गत अधिशासी होता है। इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 53 (क) जोकि भागिक पालन के संबंध में प्रावधान करती है का...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 21: संपत्ति संबंधी वाद के लंबित रहते हुए संपत्ति का अंतरण (धारा 52)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 किसी संपत्ति के ऐसे अंतरण पर रोक लगाती है जिस के संबंध में कोई वाद न्यायालय में लंबित है। इस धारा का मूल अर्थ यह है कि जब भी किसी संपत्ति पर कोई विवाद न्यायालय के समक्ष पंजीकृत हो तब उस संपत्ति का अंतरण नहीं किया जाए और यदि ऐसा अन्तरण किया जाता है तब उस अंतरण को अवैध और शून्य करार दिया जाएगा। अधिनियम कि यह धारा 52 इसकी अवधारणा पर स्पष्ट रूप से प्रावधान करती है तथा उससे संबंधित नियमों को प्रस्तुत करती है। इस आलेख के अंतर्गत लेखक इस धारा की विस्तारपूर्वक...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 20: त्रुटियुक्त हकों के अधीन सद्भावना से धारकों द्वारा किए गए सुधार (धारा 51)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 51 त्रुटि युक्त हकों के अधीन सद्भावना से किए जाने वाले सुधार कार्यों के संबंध में उल्लेख करती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 51 से संबंधित प्रावधानों पर सारगर्भित टिप्पणी की जा रही है। यह धारा का मूल लक्ष्य यह है कि यदि किसी व्यक्ति को कोई संपत्ति अंतरित की जाती है और वह संपत्ति का स्वयं को आत्यंतिक स्वामी मानकर उसमें कोई बढ़ोतरी करता है या उसमें कोई सुधार करता है और इस प्रकार के सुधार में वह कोई खर्च करता है तब वह खर्चे का प्रतिकर पाने का अधिकारी होता है। इस...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 19: अप्राधिकृत व्यक्ति द्वारा अंतरण (धारा 43)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 43 अप्राधिकृत व्यक्ति द्वारा अंतरण के विषय में उल्लेख कर रही है। इस धारा का अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति का अंतरण उस समय कर देता है जिस समय वह इस प्रकार का अंतरण करने के लिए अधिकृत नहीं है परंतु बाद में वह संपत्ति का अंतरण करने के लिए अधिकृत हो जाता है तब इस अधिनियम के क्या प्रावधान होंगे वे सभी प्रावधान इस धारा में समाहित किए गए हैं। इनसे संबंधित टीका इस आलेख पर प्रस्तुत किया जा रहा है। इससे पूर्व के आलेख में दृश्यमान स्वामी अर्थात धारा 41 से...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 18 दृश्यमान स्वामी (ostensible owner) क्या होता है (धारा 41)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 41 दृश्यमान स्वामी के संबंध में प्रावधान उपलब्ध करती है। जैसा कि शब्द से प्रतीत होता है दृश्यमान का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो संपत्ति का असल स्वामी नहीं है परंतु वे संपत्ति का स्वामी प्रतीत होता है। साधारण भाषा पर इसे संपत्ति का नकली स्वामी कहा जा सकता है। इसके संबंध में भारत में बेनामी संपत्ति प्रतिषेध अधिनियम 1988 भी निर्माण किया गया है। इस धारा के अंतर्गत इस प्रकार के सिद्धांत पर पूर्ण विवेचन प्रस्तुत की गयी है। आलेख के अंतर्गत इस धारा की व्याख्या...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 17 भूमि के उपयोग पर निर्बंधन लगाने वाली बाध्यता का बोझ (धारा 40)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 40 भूमि के उपयोग पर निर्बंधन लगाने वाली बाध्यता के बोझ के संबंध में उल्लेख करती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 40 से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बातों को प्रस्तुत किया जा रहा है। धारा 40 ऐसी धारा है जो संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत संविदा में होने वाली चूक को भी स्पष्ट कर रही है और यह भी तथ्य प्रस्तुत कर रही है कि केवल संविदा के पक्षकारों एवं आश्रित पर ही संविदा बाध्यकारी होती है और इसी के साथ नकारात्मक शर्त या निर्बन्धात्मक संविदाएं किसी भी पक्षकार के विपरित...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 16 निर्वाचन का सिद्धांत क्या है
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 35 निर्वाचन के सिद्धांत के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस अधिनियम के अंतर्गत निर्वाचन क्या होता है और धारा 35 का उद्देश्य क्या है इन सभी जानकारियों से संबंधित यह आलेख है। इस आलेख के अंतर्गत संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 35 पर टीका प्रस्तुत किया जा रहा है तथा उसकी सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की कुछ धाराओं की व्याख्या प्रस्तुत की गई थी। इस अधिनियम की धारा 35 महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 15 संपत्ति अंतरण अधिनियम के धारा 27 से लेकर 34 तक के महत्वपूर्ण प्रावधानों पर व्याख्या
संपत्ति अंतरण अधिनियम अंतर्गत लगभग तो सभी धाराएं महत्वपूर्ण है। कुछ धाराएं महत्वपूर्ण होने के साथ छोटी भी हैं पर इस अधिनियम में उनका उनका स्थान बड़ी धाराओं के समक्ष ही है। इस आलेख के अंतर्गत संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 27 से लेकर 34 तक की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। पिछले आलेख के अंतर्गत पूर्ववर्ती शर्त और पुरोभाव्य शर्त की पूर्ति पर टीका किया गया था।धारा 27:-इस धारा का उद्देश्य अन्तरक के आशय को तब प्रभावी बनाना है जबकि पूर्विक हित विफल हो गया हो। इसे इंग्लिश कानून के अन्तर्गत त्वरिताप्ति...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 14 सशर्त अन्तरण और पुरोभाव्य शर्त की पूर्ति
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 25 सशर्त अंतरण के संबंध में प्रावधान करती है तथा धारा 26 पुरोभाव्य शर्त की पूर्ति के संबंध में प्रावधान कर रही है। यह इस अधिनियम की दो महत्वपूर्ण धाराएं हैं। इस आलेख के अंतर्गत लेखक इन दोनों ही धाराओं पर व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं। इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत समाश्रित हित के संबंध में उल्लेख किया गया था। सशर्त अंतरण कुछ शर्तों का निर्धारण करता है और किन शर्तों पर अंतरण होता नहीं है या अवैध होता है उनका उल्लेख करता...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 13 संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत समाश्रित हित क्या होता है
संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 21 समाश्रित हित के संबंध में उल्लेख करती है। इस धारा में समाश्रित घटना पर आधारित होने वाले अंतरण के संबंध में विस्तार से नियम दिए गए हैं। इस आलेख में उन्हीं नियमों पर चर्चा की जा रही है इससे पूर्व के आलेख में इस अधिनियम की धारा 19 से संबंधित निहित हित पर प्रकाश डाला गया था। समाश्रित हित पर अंतरण इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है जिसकी जानकारी इस अधिनियम को समझने के लिए अति आवश्यक है।संपत्ति अंतरण अधिनियम की "धारा 21" समाश्रित हित के प्रावधान को कुछ...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 12 संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत निहित हित क्या होता है
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 19 निहित हित से संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करती है। इस आलेख के अंतर्गत निहित हित पर सारगर्भित प्रस्तुति दी जा रही है तथा इससे पूर्व के आलेख में इस अधिनियम से संबंधित धारा 17 जो किसी संपत्ति के अंतरण पर आय के संचयन से संबंधित है पर उल्लेख किया गया था।निहित हित- धारा 19इस धारा में निहित हित की परिभाषा प्रस्तुत की गयी है। निहित हित सम्पत्ति में एक ऐसा हित होता है जो अन्तरितों को तुरन्त सम्पत्ति का अधिकारी बना देता है और अन्तरितो या तो तुरन्त या भविष्य में सम्पत्ति...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 11 अंतरण की जाने वाली संपत्ति की आय को एक निश्चित समय के लिए स्टॉक करने से संबंधित निर्देश
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा-17 संपत्ति के संचयन के निर्देश से संबंधित है यह धारा इस अधिनियम की धारा 14 जिसका उल्लेख पिछले आलेख में किया गया था जो शाश्वतता के नियम के विरुद्ध प्रावधान कर रही है उसका एक अपवाद है। इस आलेख के अंतर्गत अंतरण के समय संपत्ति की आय के संचयन की एक निश्चित अवधि से संबंधित जानकारियों को प्रस्तुत किया जा रहा है। इस आलेख का संबंध संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 17 से है।संचयन के लिए निर्देश (धारा-17)संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 इस धारा को कुछ इन शब्दों में प्रस्तुत करती...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 9 अंतरण पर लगाई कौन सी शर्त शून्य होगी
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 और धारा 11 अंतरण पर लगाई कुछ शर्तों को शून्य करार देती है। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 10 और 11 से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला जा रहा है। इससे पूर्व के आलेख में इस अधिनियम की धारा 9 जो मौखिक अंतरण के संबंध में उल्लेख कर रही है पर चर्चा की गई थी। कुछ शर्ते ऐसी होती हैं जो किसी अंतरण में अधिरोपित कर दी जाती हैं तो उन शर्तों को शून्य समझा जाता है तथा इस अधिनियम के अंतर्गत उन शर्तों को स्पष्ट रूप से शून्य करार दिया गया है।अन्य अंतरण को...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 10 अजन्मे बालक के फायदे के लिए संपत्ति का अंतरण और शाश्वतता के विरुद्ध संपत्ति का अंतरण
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 अजन्मे बालक के लाभ के लिए किए जाने वाले अंतरण पर भी प्रतिबंध लगाता है तथा संपत्ति में शाश्वतता के विरुद्ध नियम पर भी प्रतिबंध लगाती है। इससे संबंधित संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 13 और धारा 14 में स्पष्ट उल्लेख किए गए हैं। पिछले आलेख में धारा 10, 11 और 12 से संबंधित ऐसी शर्तों पर अंतरण के संबंध में उल्लेख किया गया था जिनको शून्य करार दिया गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 13 और धारा 14 से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।इस अधिनियम में वर्णित सिद्धान्त ऐसे...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 8 मौखिक अंतरण क्या होता है
संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 9 मौखिक अंतरण के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा उपबंधित करती है कि उस दशा में जिसमें विधि द्वारा कोई लेख अभिव्यक्त रूप से अपेक्षित नहीं है संपत्ति का अंतरण लिखे बिना किया जा सकता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 9 से संबंधित प्रमुख बातों का उल्लेख किया जा रहा जो मौखिक अंतरण पर प्रकाश डालती है। इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण के पश्चात होने वाले प्रभाव पर उल्लेख किया गया था जो कि इस अधिनियम की धारा 8 से संबंधित है।मौखिक अंतरण कानून का यह नियम है कि इसके...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 7 अंतरण करने के लिए सक्षम पक्षकार और अंतरण का प्रभाव
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 से संबंधित प्रस्तुत किए जा रहे आलेखों में अब तक किन संपत्तियों को अंतरित किया जा सकता है जो कि इस अधिनियम की धारा 6 से संबंधित है का अध्ययन किया जा चुका है। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 7 जो कि अंतरण करने के लिए सक्षम पक्षकारों का उल्लेख कर रही है तथा धारा 8 जो कि अंतरण के प्रभाव का उल्लेख कर रही है का अध्ययन किया जा रहा है।अंतरण करने के लिए सक्षम व्यक्ति-संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 7 अंतरण करने के लिए सक्षम व्यक्तियों का उल्लेख कर रही है। इस धारा के...
सिविल मुकदमों में कौन-कौन पक्षकार बन सकता या बनाया जा सकता है?
क्या सिविल मुकदमा किसी के भी द्वारा और किसी के भी खिलाफ दाखिल किया जा सकता है? किसी भी व्यक्ति को सिविल मुकदमे में पक्षकार बनाने के पीछे क्या विचार होता है? क्या कानूनी रूप से किसी भी तरह की कोई रोक-टोक मौजूद है जो किसी व्यक्ति को गैर-जरुरी मुकदमेबाज़ी से बचाती हो?किसी भी सिविल मुक़दमे में दो पक्षकार होते है। प्रथम, वादी जिसने अदालत में मुकदमा दाखिल किया हो या जिसके अधिकारों का हनन हुआ हो अथवा जो किसी व्यक्ति विशेष से अपने अधिकारों की मांग करता हो। द्वितीय, प्रतिवादी जिसके खिलाफ वादी द्वारा मुकदमा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 6: जानिए कौन सी संपत्तियों को अंतरित नहीं किया जा सकता
संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 6 के अंतर्गत जिन संपत्तियों को अंतरित किया जा सकता है उनका उल्लेख किया गया है। धारा 6 के अनुसार सभी संपत्तियों को अंतरित किया जा सकता है पर इस धारा के अंतर्गत कुछ ऐसे अपवाद प्रस्तुत किए गए हैं जिन्हें अंतरित नहीं किया जा सकता है। इन अपवादों को कुल 10 खंडों में बांटा गया है। इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 6 के अंदर बताए गए अपवादों में सर्वप्रथम पहले अपवाद का उल्लेख किया गया था। इस आलेख के अंतर्गत अन्य अपवादों का उल्लेख किया जा रहा है अर्थात...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग:5 क्या संपत्ति अंतरित की जा सकती है
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 6 जिन संपत्तियों को अंतरित किया जा सकता है उनके संबंध में उल्लेख कर रही है। इस आलेख के अंतर्गत ऐसी कुछ संपत्तियों का उल्लेख किया जाएगा जिन्हें अंतरित नहीं किया जा सकता क्योंकि इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सभी संपत्तियों को अंतरित किए जाने का उल्लेख कर दिया गया है तथा कुछ ही संपत्तियां ऐसी हैं जिन्हें अंतरित नहीं किए जाने का उल्लेख किया गया है।कौन सी संपत्ति अंतरित की जा सकती है-संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 6 सभी प्रकार की संपत्तियों को अंतरित करने का वर्णन...
क्या किसी एक मुद्दे (सिविल) पर बार-बार मुकदमा दायर किया जा सकता है?
Res Judicata (पूर्व न्याय / निर्णय न्यायोचित) का सिद्धांतमुक़दमे दायर करने सम्बन्धी सवालों में एक सवाल बहुत आम है, वो यह है कि क्या एक ही मुद्दे पर बार-बार मुकदमा दायर किया जा सकता है। क्या किसी भी विवाद का कोई अन्त होता है या फिर किसी भी मुद्दे को जीवन भर बार-बार न्यायालयों में ताउम्र खींचा जा सकता है। क्या किसी कानून के तहत एक बार न्यायालय द्वारा हल किये गए विवाद को आखिरी माना जा सकता है। इन सब सवालों से सम्बंधित है - पूर्व न्याय / निर्णय न्यायोचित का सिद्धांत। अंग्रेजी में इसे Res Judicata का...







