संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 12 संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत निहित हित क्या होता है

Shadab Salim

9 Aug 2021 9:47 AM GMT

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग: 12 संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत निहित हित क्या होता है

    संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 19 निहित हित से संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित करती है। इस आलेख के अंतर्गत निहित हित पर सारगर्भित प्रस्तुति दी जा रही है तथा इससे पूर्व के आलेख में इस अधिनियम से संबंधित धारा 17 जो किसी संपत्ति के अंतरण पर आय के संचयन से संबंधित है पर उल्लेख किया गया था।

    निहित हित- धारा 19

    इस धारा में निहित हित की परिभाषा प्रस्तुत की गयी है। निहित हित सम्पत्ति में एक ऐसा हित होता है जो अन्तरितों को तुरन्त सम्पत्ति का अधिकारी बना देता है और अन्तरितो या तो तुरन्त या भविष्य में सम्पत्ति का उपभोग करने के लिए सक्षम हो जाता है।

    उदाहरणार्थ, 'अ' अपनी सम्पत्ति दान के रूप में 'ब' को देता है और उसकी मृत्यु के बाद 'स' को देता है। 'ब' तथा 'स' दोनों का हित एक ही समय निहित हित है किन्तु सम्पत्ति का उपभोग 'ब' तुरन्त करने में सक्षम होगा जबकि 'स' 'ब' की मृत्यु के बाद।

    किन्तु यदि सम्पत्ति 'ब' को विवाह 'न' करने तक के लिए दो गयी हो और 'स' को उसके बाद तो 'स' का हित सम्पत्ति में निहित हित नहीं होगा। उसे सम्पत्ति तब प्राप्त होगी जब 'ब' अ' द्वारा अधिरोपित शर्त का उल्लंघन कर विवाह कर ले। यदि वह विवाह नहीं करता है तो स' सम्पत्ति का अधिकारी नहीं होगा।

    यह धारा उपबन्धित करती है कि जहाँ किसी सम्पत्ति अन्तरण से किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई हित सृष्ट किया जाता है -

    (1) बिना समय विनिर्दिष्ट किये जब से वह प्रभावी होगा, या

    (2) शब्दों में यह विनिर्दिष्ट करते हुए कि वह तत्काल प्रभावी होगा या

    (3) किसी घटना के घटित होने पर प्रभावी होगा और वह घटना अवश्य घटित हो, तो ऐसा हित, जब तक कि अन्तरण के निबन्धनों से प्रतिकूल आशय प्रतीत न हो, निहित हित समझा जाएगा।

    उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित मामलों में भी सृष्ट हित निहित हित समझा जाएगा-

    (1) यदि हित का उपभोग मुल्तवी (स्थगित) कर दिया गया हो।

    (2) यदि सम्पत्ति में कोई पूर्विक हित किसी अन्य व्यक्ति को दे दिया गया हो।

    (3) उद्धृत आय के संचयन का आदेश हो।

    (4) सशर्त मर्यादाएँ लगायी गयी हो।

    उदाहरण-

    (1) अ''ब' को 500 रुपये देता है जो उसे स की मृत्यु पर देय होगा। 'ब' को सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त होता है, यद्यपि यह व्यक्ति सम्पत्ति का कब्जा तब प्राप्त करेगा जब स की मृत्यु हो जाए। 'स को मृत्यु एक अनिवार्य घटना है।

    (2) 'अ ब को एक मकान उसके जीवनकाल के लिए दान में देता है और उसकी मृत्यु के बाद 'स' को 'ब' तथा 'स' दोनों ही सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त करेंगे। अन्तर दोनों के हितों में केवल यह है कि 'ब' को सम्पति में हित तथा कब्जा दोनों एक साथ प्राप्त होगा जबकि 'स' को हित तुरन्त प्राप्त होगा और कब्जा 'ब' को मृत्यु के बाद।

    (3) जमीन का एक टुकड़ा 'ब' तथा 'स' को बराबर हिस्सों में इस निर्देश के साथ अन्तरित किया जाता है कि सम्पत्ति उन्हें वयस्क होने पर परिदत्त की जाएगी. किन्तु यदि अवयस्क के रूप में ही उनकी मृत्यु हो जाती है तो सम्पत्ति द को दे दो जाएगी।'' तथा सम्पति में निहित हित प्राप्त करेंगे जो कब्जा रहित होगा। कब्जा प्राप्त करने के अधिकारों के वयस्क होने के बाद होंगे। द' का सम्पत्ति में हित केवल समाश्रित होगा जब तक कि यह सुनिश्चित न हो जो कि 'अ' 'ब' तथा 'स' को मृत्यु वयस्क होने से पहले ही हो गयी थी।

    (4) 'अ' अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति ब को न्यास के रूप में इस निर्देश के साथ अन्तरित करता है कि वह सम्पत्ति से होने वाली आय से अ' के कतिपय ऋणों का भुगतान करेगा: तत्पश्चात् सम्पूर्ण सम्पत्ति स को दे देगा। 'स' सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त करता है। ऋण के भुगतान की शर्त से हित का निहित होना स्थगित नहीं होगा केवल कब्जे का अधिकार स्थगित होगा।

    (v) 'अ 'ब' को अपनी मृत्यु के उपरान्त अपना भविष्य निधि प्राप्त करने लिए नामित करता है। 'ब' को सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त होगा। यह हित उसके जीवनकाल में ही प्राप्त होगा।

    उपभोग का स्थगन-

    यदि अन्तरण विलेख में वर्णित निर्देश के आधार पर सम्पति के उपभोग का अधिकार कुछ समय के लिए मुल्तवी या स्थगित कर दिया गया है तो यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि सृष्ट हित, निहित हित नहीं है। अन्तरण द्वारा सृष्ट हित तुरन्त अन्तरितों में निहित हो जाता है, किन्तु वह तुरन्त कब्जा प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा। अन्तरिती तब कब्जा प्राप्त करेगा जब पूर्विक कब्जा समाप्त हो जायेगा।

    उदाहरणार्थ अ अपनी सम्पत्ति का दान 'ब' के पक्ष में इस निर्देश के साथ करता है कि वह तुरन्त सम्पत्ति का उपभोग नहीं कर सकेगा। निर्देश हित के निहित होने को प्रभावित नहीं करेगा केवल कब्जा का परिदान ही निर्देशानुसार स्थगित रहेगा।

    किन्तु यह महत्वपूर्ण है कि उपभोग का स्थगन केवल तब वैध होगा जब कि-

    (1) स्थगन की कालावधि में सम्पत्ति के उपभोग का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को दिया गया हो, या

    (2) अन्तरिती अवयस्क है और उपभोग का स्थगन उसके वयस्क होने तक के लिये किया गया है।

    उदाहरणार्थ- अ ने एक दान दिलेख इस निर्देश के साथ निष्पादित किया कि सम्पत्ति से उद्धृत होने वाली आय अ को उसके जीवनकाल के लिए दी जाएगी तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् अवशिष्ट सम्पनि स तथा द' में बराबर बराबर वितरित कर दी जाएगी, तीनों को सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त होंगे।

    'ब' 'स' तथा 'द' पूर्विक हित सम्पत्ति में पूर्ववतों हित का सृजन उत्तरवर्ती हित के निहित होने में किसी प्रकार की बाधा नहीं उत्पन्न करता है। यदि अन्तरक कोई सम्पत्ति अपनी पत्नी को उसके जीवनकाल के लिए और उसके बाद सम्पत्ति में का एक अंश अपने भाई ब को तथा दूसरा अंश अपने दो बच्चों 'स' और द को देता है।

    द तथा 'स' को विधवा के जीवनकाल में हो मृत्यु को गयो व तथा 'स' का हित निहित हित था। अतः उनको मृत्यु के पश्चात उनमें निहित हित क्रमशः उनके उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो जाएंगे द का अपना हित प्राप्त हो जाएगा।"

    एक पिता ने अपनी सम्पत्ति का न्यास निष्पादित किया तथा अपने सबसे बड़े पुत्र को उसका न्यासी नियुक्त किया। बन्दोबस्त के अन्तर्गत समस्त सम्पत्ति 5 हिस्सों में विभक्त की गयी और नं० 1 से 4 बड़े पुत्र को तथा लाट नं० 5 छोटे पुत्र को मिलती थी यह अभिनिर्णीत हुआ कि पुत्रों को सम्पत्ति में निहित हित प्राप्त था केवल उन्हें संपत्ति न्यास की समाप्ति पर प्राप्त होती थी। उन्हें सम्पत्ति न्यास की समाप्ति पर प्राप्त होगी और न्यास समाप्त होगा (1) न्यास की अनुसूची में उल्लिखित ऋणों के भुगतान के बाद तथा (2) न्यासकर्ता की मृत्यु के बाद।

    आय का संचयन- यदि सम्पत्ति से उद्भूत होने वाली आय के संचयन के लिए निर्देश दिया गया था तो भी सृष्ट निहित हित माना जाएगा। आय का संचयन अधिनियम की धारा 17 में उल्लिखित अवधि के लिए होना चाहिए। उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए किया गया संचयन अवैध होगा। उक्त अवधि के लिए किया गया संचयन केवल उपभोग मुल्तवी करता है। यह हित के निहित होने की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करता है।

    एक वाद में एक स्त्री ने अपनी अवशिष्ट सम्पत्ति इस निर्देश के साथ न्यासी को दिया कि उससे उद्भूत आय को संचित किया जाये तथा इस प्रकार संचित आय व के सभी बच्चों को 23 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर दी जाए। यह अभिनित हुआ था कि अन्तरिती को निहित हित प्राप्त होगा, केवल उपभोग स्थगित कर दिया गया है। संचयन के निर्देश मात्र से यह अन्तरण समाश्रित हित सृष्ट करता हुआ समझा जाएगा।

    सशर्त परिसीमन यदि अन्तरण विलेख में कोई ऐसा उपबन्ध हो, कि यदि कोई विनिर्दिष्ट घटना घटित होती है तो हित दूसरे व्यक्ति के पास चला जाएगा तो उस व्यक्ति का हित जिसे सम्पति तुरन्त प्रदान की जाती है, सशर्त निहित हित होगा और यदि यह शर्त का उल्लंघन करता है तो उसका निहित हित समाप्त हो जाएगा और सम्पत्ति दूसरे व्यक्ति के पास चली जाएगी। इस प्रकार की शर्त निहित हित को प्रतिसंहरित कर उसे दूसरे व्यक्ति में निहित कर देती है।

    अ ने कुछ सम्पत्ति अपनी पत्नी ब को इस शर्त पर अन्तरित किया कि यदि मुझसे उसका कोई पुत्र होगा तो अनुदान शाश्वत मुकरांरी के रूप में उसे प्राप्त होगा, किन्तु यदि मेरे से उसका कोई पुत्र नहीं होगा तो सम्पत्ति उसे आजीवन मुकर्ररी के रूप में मिलेगी तथा अवशिष्ट 'ग' और 'घ' को मिलेगी। यह अभिनित हुआ कि ग तथा घ का सम्पत्ति में हित निहित अवशिष्ट है जो 'ब' के पुत्र पैदा होने पर समाप्त हो जाएगा।

    निहित हित की प्रकृति - निहित हित अन्तरिती की सम्पत्ति होती है जिसका अन्तरण यह कब्जा प्राप्त करने से पहले भी कर सकेगा यदि अन्तरितों की मृत्यु हो जाती है तो उसके उत्तराधिकारी उस सम्पत्ति को पाने के हकदार होंगे भले ही मृत्यु के समय उसे सम्पत्ति का कब्ज़ा प्राप्त हुआ रहा हो ।

    जैसे ही अन्तरण पूर्ण होता है हित निहित हो जाता है, परन्तु अन्तरक को पह अधिकार होता है कि यदि वह चाहे तो हित के निहित होने के सम्बन्ध में कोई अवधि विनिर्दिष्ट कर सकें किन्तु ऐसी अवधि यदि धारा 14 में उल्लिखित अवधि से अधिक होगी तो अन्तरण शून्य होगा और अन्तरितों में सम्पत्ति निहित नहीं होगी कोई हित निहित है अथवा नहीं इसका निर्धारण करने का एक उपाय यह है कि यदि हित अन्तरिती के बाद उसके उत्तराधिकारियों को मिलेगा तो यह निहित हित होगा और यदि वापस अन्तरक के पास चला जाएगा तो निहित नहीं होगा।

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