जानिए हमारा कानून
सिविल कानून के तहत "रिसीवर" क्या होता है और इसकी क्या प्रासंगकिता है?
जब कभी दो पक्षकारों के मध्य किसी भी सम्पति को लेकर विवाद होता है तो यह अदालत में मुकदमा चलने के दौरान उस सम्पति को सुरक्षित एवं परिरक्षित करना भी न्याय हित के लिए आवश्यक होता है। यह सम्पति जमीन, सामग्री, कंपनी के शेयर, अमूर्त/मूर्त अधिकार, आदि कुछ भी हो सकते है। मुक़दमे के लंबित रहने के दौरान विवादित सम्पति से सम्बंधित सञ्चालन, रख-रखाव, नफ़ा-नुकसान, सम्पति की प्रकृति, आदि पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत किसी भी व्यक्ति को एक रिसीवर के रूप में नियुक्त कर सकती है। रिसीवर की नियुक्ति तब की जाती है...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 39: पट्टाकर्ता के अंतिरिती के अधिकार (धारा-109)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत पट्टाकर्ता के अन्तरिती के अधिकार भी स्पष्ट किए गए। कभी-कभी ऐसी परिस्थिति होती है कि किसी संपत्ति का पट्टाकर्ता संपत्ति में विधामान अपने अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित कर देता है। ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति को पट्टा संपत्ति के अधिकार अंतरित किए गए हैं उस व्यक्ति को पट्टाकर्ता का अन्तरिती कहा जाता है तथा इस धारा के अंतर्गत इसी प्रकार के अन्तरिती के अधिकारों का वर्णन किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 109 पर सारगर्भित टिप्पणी की जा रही है। यह धारा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 38: पट्टेदार के दायित्व
संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 108 एक वृहद धारा है तथा इसमे अनेक प्रावधान पट्टाकर्ता और पट्टेदार के दायित्व और अधिकारों के संबंध में प्रस्तुत किये गए है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेख में पट्टाकर्ता के दायित्वों के संबंध में उल्लेख किया गया था इस आलेख में पट्टेदार के दायित्व का वर्णन किया जा रहा है। दोनों के दायित्व ही एक दूसरे के विरुद्ध एक दूसरे के अधिकार भी है। यह एक प्रकार से सहवर्ती है।पट्टेदार का दायित्व-तथ्य प्रकट करने का दायित्व – (धारा 108 (ट)) :-यह धारा उपबन्धित करती है पट्टेदार उस हित...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 37: पट्टाकर्ता के दायित्व
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत धारा 108 पट्टाकर्ता के दायित्व का उल्लेख किया गया है, पट्टाकर्ता का दायित्व ही पट्टेदार के अधिकार भी है। इस आलेख के अंतर्गत उन सभी दायित्वों का उल्लेख सारगर्भित किए जा रहा हैं।धारा 108 पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार के अधिकारों एवं दायित्वों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है, परन्तु ये अधिकरण एवं दायित्व आत्यन्तिक नहीं हैं। ये संविदा या स्थानीय प्रथा के अध्यधीन होते हैं, किन्तु किसी स्थानीय विधि के अध्यधीन नहीं होते हैं। पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार स्वयं इसमें वर्णित...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 36: पट्टे कैसे किए जाते हैं (धारा 107)
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत पट्टा भी संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम है इससे पूर्व के आलेख में पट्टे की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी तथा उसकी कालावधि के संबंध में उल्लेख किया गया था इस आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 107 से संबंधित पट्टे करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इस धारा में पट्टे की प्रक्रिया को समाविष्ट कर दिया गया है तथा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी पट्टा किस प्रकार से किया जाएगा तथा उसका रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है या नहीं। यह धारा उन विधियों या तरीकों का उल्लेख करती...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 35: संविदा के अभाव में पट्टों की कालावधि (धारा 106)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 से संबंधित इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत दिए गए पट्टे के विषय पर धारा 125 से संबंधित पट्टे की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी। पट्टा भी संपत्ति के अन्तरण का एक माध्यम है जिसमें संपत्ति का टाइटल तो उसके स्वामी के पास पर रहता है परंतु संपत्ति पर उपभोग का अधिकार अंतरिती उपलब्ध हो जाता। इस आलेख के अंतर्गत पट्टा से संबंधित धारा 106 को प्रस्तुत किया जा रहा है जिसके अंतर्गत पट्टे की कालावधि का उल्लेख किया गया है। इससे संबंधित न्याय निर्णय भी इसी आलेख में...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 34: पट्टे की परिभाषा (धारा 105)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत जिस प्रकार विक्रय विक्रय एक व्यवहार है वह संपत्ति के अंतरण का माध्यम है इसी प्रकार पट्टा भी संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम है तथा इससे भी संपत्ति का अंतरण किया जाता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत पट्टे से संबंधित विधानों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत पट्टे की परिभाषा प्रस्तुत की जा रही है जो कि इस अधिनियम की धारा 105 से संबंधित है। इसके बाद के आलेखों में पट्टे से संबंधित दूसरे भी प्रावधान प्रस्तुत की जाएंगे।पट्टा- (धारा...
कोर्ट कमिश्नर क्या होता है और इसकी नियुक्ति के सम्बन्ध में क्या कानून है?
सिविल कोर्ट ने दाखिल मुकदमों के निस्तारण के लिए न्यायालय को विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होता है। किन्तु कुछ ऐसे विषय होते है जिन्हें दस्तावेजों से समाज पाना अथवा दस्तावेजों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना मुश्किल होता है। उदहारण के लिए जब पक्षकारों के मध्य विवाद आने-जाने वाले रास्ते के लिए हो और वादी का कहना को कि आवागमन के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है और वो भी प्रतिवादी द्वारा रोक लिया गया है, तो ऐसी स्थिति में सिर्फ साक्ष्य/सबूतों के आधार पर न्यायालय किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकता है।...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 33: संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत भार क्या होता है (धारा 100)
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 100 भार की परिभाषा प्रस्तुत करती है भार और बंधक में अंतर होता है। भार का संबंध किसी संपत्ति के ऋण से होता है। जब कभी किसी संपत्ति पर कोई ऋण होता है तब कुछ संपत्ति को भार रखने वाली संपत्ति कहा जाता है तथा ऐसी परिस्थिति में संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता है। यह धारा इसी प्रकार के भार का प्रावधान करती हैं तथा संबंधित नियमों को प्रस्तुत करती है। इस आलेख में धारा 100 से संबंधित नियमों को प्रस्तुत किया गया है और उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 32: कौन व्यक्ति मोचन के लिए वाद ला सकते हैं तथा प्रत्यासन का क्या अर्थ है (धारा 91- 92)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 91 एवं 92 दोनों ही महत्वपूर्ण धाराएं हैं। इसकी पहली धारा के अंतर्गत मोचन के अधिकार के संबंध में उल्लेख किया गया है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेख में न्यायालय में निक्षेप के माध्यम से मोचन के अधिकार के संबंध में उल्लेख किया गया था जो कि इस अधिनियम की धारा 90 से संबंधित है। एक बंधककर्ता को अपनी संपत्ति पर मोचन का अधिकार प्राप्त होता है। बंधककर्ता के अलावा भी कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें मोचन का अधिकार प्राप्त है। धारा-91 उन्हीं व्यक्तियों का उल्लेख कर रही है इस...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 31: संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय में निक्षेप क्या होता है (धारा 83)
संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 के अंतर्गत किसी भी बंधककर्ता को अपनी बंधक संपत्ति को मोचन करने का अधिकार प्राप्त है। यदि किसी बंधककर्ता ने अपनी कोई संपत्ति बंधक की संविदा के अंतर्गत बंधकदार को अंतरण की है तो उस संपत्ति की ऋण की अदायगी के समय विमोचन के अधिकार का प्रयोग कर पुनः प्राप्त कर सकता है। इस अधिनियम की धारा-83 इसी प्रकार मोचन के अधिकार का एक प्रारूप है। यदि कोई व्यक्ति अपने मोचन के अधिकार का प्रयोग करना चाहता है तथा अपने लिए गए ऋण की अदायगी करना चाहता है तब उसके पास में यह विकल्प उपलब्ध होगा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 30: संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत क्रमबंधन और अभिदाय क्या होता है (धारा 81-82)
संपत्ति अंतरण अधिनियम से संबंधित इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 81 जो क्रमबंधन का उल्लेख करती है तथा धारा 82 जो अभिदाय का उल्लेख करती है पर सारगर्भित टिप्पणियां प्रस्तुत की जा रही है। इससे पूर्व के आलेख में पूर्विक बंधकदार के मुल्तवी किए जाने के संबंध में उल्लेख किया गया था। इस एक ही आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही धाराओं पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां प्रस्तुत की जा रही है जिससे एक ही आलेख में दोनों ही धाराओं पर महत्वपूर्ण जानकारियों को प्राप्त किया जा सके।क्रमबंधन- (धारा 81)'क्रमबन्धन' से...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 29: पुर्विक बंधकदार का मुल्तवी होना (धारा 78)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 29 के अंतर्गत एक संपत्ति को अनेक व्यक्तियों के पास बंधक रखने के परिणामस्वरूप नियमों का उल्लेख किया गया है। किसी भी संपत्ति को एक से अधिक व्यक्तियों के समक्ष भी बंधक रखा जा सकता है तथा उन पर ऋण लिया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियां होती है कि एक से अधिक व्यक्तियों के पास कोई संपत्ति बंधक रखी गई है उसका बंधक के अंतर्गत अंतरण किया गया है तब इस धारा की सहायता ली जाती है। इस आलेख के अंतर्गत संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा- 29 से संबंधित समस्त प्रावधानों पर चर्चा की जा...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 28: बंधकदार के अधिकार और कर्तव्य
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत जिस प्रकार इससे पूर्व के आलेख में एक बंधककर्ता के मोचन के अधिकार का उल्लेख किया गया था इसी प्रकार इस आलेख के अंतर्गत बंधकदार के अधिकार और कर्तव्यों का उल्लेख किया जा रहा है। एक बंधकदार के अधिकार और कर्तव्य संपत्ति अंतरण अधिनियम कि किसी एक धारा में समाहित नहीं किए गए हैं अपितु धारा 67 से लेकर धारा 77 तक बंधकदार के अधिकारों एवं कर्तव्यों से संबंधित है तथा उनकी विवेचना प्रस्तुत कर रही है। इस आलेख के अंतर्गत उन सभी धाराओं के प्रावधानों पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 27: बंधककर्ता का मोचन का अधिकार (धारा 60)
संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 60 बंधककर्ता के मोचन के अधिकार का उल्लेख करती है। यह ऐसा अधिकार है जो बंधककर्ता को बंधक रखी गई संपत्ति पर उपलब्ध होता है। इस आलेख के अंतर्गत बंधककर्ता के इस अधिकार का उल्लेख किया जा रहा है। मोचन का अधिकार बंधक संपत्ति अन्तरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार है। इससे पूर्व के आलेख में बंधक के संबंध में इस अधिनियम में प्रस्तुत किए गए प्रावधानों पर चर्चा की गई थी।मोचनाधिकार से तात्पर्य बन्धककर्ता के उस अधिकार से है जिसके माध्यम से वह बन्धकधन के भुगतान हेतु प्रतिभूत रखी...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 26: संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत बंधक क्या होता है (धारा 58)
संपत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत बंधक की परिभाषा और उसकी अवधारणा को प्रस्तुत करती है। यह अधिनियम संपत्तियों के अंतरण से संबंधित है। जिस प्रकार इससे पूर्व के आलेख में संपत्ति के विक्रय के संबंध में समझा गया है इसी प्रकार बंधक भी संपत्ति अंतरण अधिनियम का एक महत्वपूर्ण भाग है। बंधक भी एक प्रकार से संपत्ति का अंतरण करता है तथा बंधक में किया गया संपत्ति का अंतरण सीमित अधिकार के अंतर्गत होता है जबकि विक्रय में किया गया संपत्ति का आत्यंतिक अधिकार के रूप में होता...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 25: विक्रय के पूर्व और पश्चात क्रेता और विक्रेता के अधिकार तथा दायित्व (धारा 55)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 धारा 55 विक्रय के पश्चात और उसके पहले क्रेता और विक्रेता के अधिकार तथा दायित्व का उल्लेख करती है। यह धारा एक प्रकार से क्रेता और विक्रेता के अधिकारों तथा उनके एक दूसरे के विरुद्ध दायित्व को स्पष्ट रूप से उल्लखित कर देती है जिससे किसी भी विक्रय में उसके पूर्व तथा उसके बाद किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं आए। लेखक इस आलेख के अंतर्गत इन्हीं अधिकारों पर तथा दायित्व पर टीका प्रस्तुत कर रहे है। इससे पूर्व के आलेख के अंतर्गत विक्रय की समस्त अवधारणा पर टीका किया गया था जिसके...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 23: भागिक पालन {धारा 53 (क)}
संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 53 (क) भागिक पालन के संबंध में उल्लेख कर रहे हैं यह धारा संपत्ति अंतरण अधिनियम में सन 1929 में जोड़ी गई है तथा इस अधिनियम के महत्वपूर्ण कारणों में से एक धारा है। भागिक पालन धारा 53 (क) का उद्देश्य किसी ऐसे अन्तरिती के हितों को संरक्षण प्रदान करना है जिसने किसी संव्यवहार में सद्भावनापूर्वक हिस्सा लिया हो, पर अन्तरणकर्ता ने सामान्य व्यवस्था के किसी तकनीकी तत्व का बहाना लेकर उसे परेशान करने या सम्पत्ति न देने की योजना बना रखी हो। धारा 53 क के गर्भ में स्थित...
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 22: कपटपूर्ण अन्तरण (धारा 53)
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53 कपट पूर्ण अंतरण के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह सर्वमान्य नियम है कि यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति का स्वामी है तब भी वे व्यक्ति उस संपत्ति का आत्यंतिक अधिकारी नहीं होता है। कपट पूर्ण अंतरण ऐसे अंतरण के मामले में लागू होता है जहां लेनदारों के भय से उनके साथ कपट करने के उद्देश्य से संपत्ति का अंतरण कर दिया जाए। लेनदारों से बचने के लिए इस प्रकार के अंतरण सामान्य रूप से देखने को मिलते हैं जहां व्यक्ति लेनदारों से बचने हेतु अपनी संपत्ति का अंतरण कपट पूर्वक...
वाद-पत्र कौन सी परिस्थितियों में ख़ारिज किया जा सकता है?
किसी भी सिविल दावे को दायर करने का औपचारिक चरण वाद-पत्र पेश करना होता है और इसी के साथ सिविल कानून के तहत सारी प्रक्रिया की शुरुआत होती है। सीपीसी की धारा 26 के अनुसार कोई भी दावा वाद-पत्र के पेश करने से दाखिल किया जायेगा। सीपीसी के अंतर्गत "वाद-पत्र" शब्द को कही भी परिभाषित नहीं किया गया है। किन्तु इसे दावे का वर्ण या एक दस्तावेज, जिसकी प्रस्तुति के द्वारा मुकदमा स्थापित किया जाता है, कहा जा सकता है। इसका उद्देश्य उन आधारों को बताना है जिन पर वादी द्वारा न्यायालय की सहायता मांगी गई है। यह वादी...









