हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

9 Oct 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (3 अक्टूबर, 2022 से 7 अक्टूबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    जब कार्यवाही दूसरी जगह लंबित हो तो यूएपीए के तहत मुकदमे की मंजूरी देने के प्राधिकरण के आदेश को दिल्ली में सिर्फ इसलिए चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि गृह मंत्रालय दिल्ली में है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने फैसला सुनाया कि जब कार्यवाही दूसरी जगह लंबित हो तो यूएपीए के तहत मुकदमे की मंजूरी देने के प्राधिकरण के आदेश को दिल्ली में सिर्फ इसलिए चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि गृह मंत्रालय दिल्ली में स्थित है।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल ने एंटीलिया बम मामले में यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के आदेश को रद्द करने की मांग वाली मुंबई के पूर्व पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: सचिन हिंदुराव वेज़ बनाम भारत सरकार एंड अन्य

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    जीएसटी एससीएन के कारण बताओ नोटिस पर जवाब दाखिल करने के लिए कम से कम 30 दिन का समय दिया जाना चाहिए: बॉम्बे हाई कोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने कहा कि महाराष्ट्र माल और सेवा कर अधिनियम (एमजीएसटी अधिनियम) की धारा 73 (8) एक व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करने से 30 दिनों में देय ब्याज के साथ कर के भुगतान करने की अनुमति देती है। यदि वह भुगतान नहीं करना चाहता है, तो वह 30 दिन की अवधि के भीतर कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल कर सकता है।

    जस्टिस के.आर. श्रीराम और जस्टिस ए.एस. डॉक्टर ने कहा कि कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल करने के लिए, निर्धारण अधिकारी द्वारा वैधानिक अवधि को मनमाने ढंग से 7 दिनों तक कम नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: शीतल दिलीप जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य एंड अन्य।

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    [ज्ञानवापी] वाराणसी कोर्ट ने 11 अक्टूबर तक शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच की मांग वाली हिंदू उपासकों की याचिका पर सुनवाई टाली

    वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Gyanvapi Case) में कथित रूप से पाए गए शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच की मांग वाली हिंदू उपासकों की याचिका पर सुनवाई आज टाल दी। अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी की दलीलें सुनने के बाद जिला जज एके विश्वेश 11 अक्टूबर को याचिका पर फैसला सुना सकते हैं।

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    रेलवे सर्विस रूल्स | सजा के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए कर्मचारी को पूरी पेंशन या ग्रेच्युटी पर दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि रेलवे सेवा (पेंशन) नियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार, दंड के रूप में सेवा से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए रेल कर्मचारी के पास पूरी पेंशन या ग्रेच्युटी पर दावा करने का निहित अधिकार नहीं है। पेंशन और ग्रेच्युटी की मात्रा नियोक्ता के विवेक पर है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने कहा कि पिछली सर्विस को जब्त किया जा सकता है या पेंशन को उस सीमा तक रोका जा सकता है, जिसकी विनियम अनुमति देता है, और विवेक का यह प्रयोग गौण सजा के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    केस टाइटल: महाप्रबंधक दक्षिण रेलवे बनाम आर हरिद्रकुमार

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    नौकरी से निकाले जाने के बाद कर्मचारी नियोक्ता से बदला लेने की नीयत से आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि ऑर्गनाइजेशन से निकाला गया कर्मचारी कथित आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के लिए ऑर्गनाइजेशन के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने समीउल्ला बी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसके खिलाफ चतुर्थ अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु के समक्ष लंबित मामला खारिज कर दिया। कर्मचारी ने याचिकाकर्ता और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 406, 506, 149 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की थी।

    केस टाइटल: सैमीउल्ला बी बनाम कर्नाटक राज्य

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    पति पत्नी को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के समक्ष एक सवाल यह था कि क्या एक महिला के अपने पति की सहमति के बिना गर्भ को समाप्त करने के फैसले को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता कहा जा सकता है। जस्टिस अतुल चंदुरकर और जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के की खंडपीठ ने कहा कि एक महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: पुंडलिक येवतकर बनाम उज्ज्वला @ शुभांगी येवतकर।

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    लोकोमोटर डिसेबल कैंडिडेट को नेत्रहीन/श्रवण बाधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों पर तब तक नियुक्त नहीं किया जा सकता जब तक कि ऐसे व्यक्ति अनुपलब्ध न हों: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जहां विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम) की धारा 34 के तहत नेत्रहीन/श्रवण बाधित उम्मीदवारों के लिए पद आरक्षित किया गया है, लोकोमोटर डिसेबल कैंडिडेट आमतौर पर नियुक्ति के लिए दावा नहीं कर सकते हैं। हालांकि, केवल अंतिम अवसर पर जहां पद के लिए मूल रूप से पात्र ऐसे कोई उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं।

    केस टाइटल: प्रबंधक, सुन्निया अरबी कॉलेज बनाम केरल राज्य और अन्य और अबूबकर ई.के. बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    कर्मचारी को केवल इस आधार पर मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसने विशेष अस्पताल में इलाज कराया, जो राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या अनुमोदित नहीं है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि कर्मचारी को केवल इस आधार पर मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसने विशेष अस्पताल में इलाज कराया, जो राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या अनुमोदित नहीं है या सरकारी आदेश में शामिल नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, "मेडिकल प्रतिपूर्ति की राशि पीड़ित के प्रति संवैधानिक दायित्व है जो कल्याणकारी राज्य में अपने कर्मचारियों के लिए लाभकारी कानून है, इसलिए तैयार किए गए नियमों और निर्देशों को कर्मचारियों को राहत देने के बजाय उन्हें राहत देने के लिए उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: बिमला जी भट और अन्य बनाम भारत संघ।

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    जहां अभियुक्त क्षेत्राधिकार स्वीकार कर लिया और ट्रायल पूरा हो गया हो, क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार का प्रश्न नहीं उठाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जहां अभियुक्त ने स्वयं अपने क्षेत्राधिकार (Territorial Jurisdiction) को स्वीकार कर लिया और ट्रायल पूरा हुआ तो क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र का प्रश्न मुकदमे के अंत में नहीं उठाया जा सकता। इस आधार पर मामले के हस्तांतरण की मांग नहीं की जा सकती।

    इस आलोक में, न्यायालय ने मिसालों पर ध्यान देते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 462 के अनुसार, यह स्पष्ट होगा कि जब अधिकार क्षेत्र की कोई अंतर्निहित कमी नहीं है, क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी या आधार नहीं है। प्रक्रिया की अनियमितता किसी सक्षम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश या सजा को तब तक अपास्त नहीं किया जा सकता जब तक कि पूर्वाग्रह की पैरवी नहीं की जाती और साबित नहीं किया जाता, जिसका अर्थ न्याय की विफलता होगा।

    केस टाइटल: निषाद मैथ्यू बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    जो लोग वाद में पक्षकार नहीं हैं, लेकिन डिक्री में हित रखते हैं, उन्हें निष्पादन कार्यवाही में निर्णय देनदार के रूप में जोड़ा जा सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल के फैसले में कोलकाता नगर निगम [केएमसी] और उसके आयुक्त के नामों को मामले की निष्पादन कार्यवाही में निर्णय-देनदार (Judgement Debtors) के रूप में जोड़ने की अनुमति दी, भले ही वे डिक्री पारित होने पर मूल मुकदमे के पक्षकार नहीं है।

    जस्टिस बिभास रंजन डे ने कहा, "यदि हम सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों को तकनीकी या प्रतिबंधित अर्थों में पढ़ते हैं तो कठिनाई यह होगी कि जो व्यक्ति वास्तव में डिक्री के लाभों के हकदार हैं या जो व्यक्ति वास्तव में डिक्री के बोझ से दबे हुए हैं वे बच जाएंगे या 29 सितंबर के फैसले में डिक्री के तहत दायित्व डिक्री निष्फल होगी।

    केस टाइटल: मेसर्स राणा अध्यक्ष बनाम महानिदेशक (नगर योजना) केएमसी और अन्य

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    आरपी एक्ट की धारा 123 के तहत शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी देना 'भ्रष्ट आचरण' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक चुनावी उम्मीदवार की शिक्षा के बारे में गलत जानकारी को धारा 123 आरपी एक्ट की उपधारा (2) या (4) के अर्थ के तहत 'भ्रष्ट आचरण' नहीं कहा जा सकता है।

    जस्टिस राज बीर सिंह की पीठ ने कहा कि उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता के बारे में जानकारी मतदाता के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी नहीं है और इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि उम्मीदवार के हलफनामे में उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता में कोई विसंगति या त्रुटि भ्रष्ट आचरण के समान होगी।

    केस शीर्षक - अनुग्रह नारायण सिंह बनाम हर्षवर्धन बाजपेयी [चुनाव याचिका संख्या - 2017 का 10]

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    यूजीसी रेगुलेशन 2010 | एक वर्ष से अधिक की शिक्षक की एडहॉक सर्विस को सीधी भर्ती या पदोन्नति के लिए गिना जाएगा: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक वर्ष से अधिक की एडहॉक या अस्थायी सेवाओं की अवधि को शिक्षक की कैरियर उन्नति योजना के तहत सीधी भर्ती या पदोन्नति के लिए गिना जाएगा, जो कि यूजीसी रेगुलेशन 2010 के क्लॉज 10.1 में निर्धारित शर्तों के अधीन है।

    जस्टिस संजीव कुमार ने याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता कश्मीर यूनिवर्सिटी के मीडिया शिक्षा और अनुसंधान केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर ने यूनिवर्सिटी द्वारा जारी संचार को रद्द करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करने के लिए प्रार्थना की, जिसमें प्रतिवादी को वरिष्ठता सूची में याचिकाकर्ता से वरिष्ठ के रूप में रखा गया है।

    केस टाइटल: सैयद अफशाना भट बनाम कश्मीर यूनिवर्सिटी और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार अंतिम रिपोर्ट में किसी को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार अंतिम रिपोर्ट में किसी को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि जब जांच के दौरान जांच अधिकारी को किसी के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है, तो उसे जांच रिपोर्ट में 'संदिग्ध' के रूप में दर्शाना कानून में स्वीकार्य नहीं है।

    केस टाइटल - नीरज गुलाटी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य [Criminal MISC. Petition (Main)U/S 482 RPC No. 224 Of 2022]

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    UAPA की धारा 43-डी (2)(बी) के तहत हिरासत बढ़ाने से इनकार करने का आदेश एक 'अंतिम आदेश' है और यह NIA Act की धारा 21 के तहत अपील योग्य है: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गौहाटी हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में माना है कि यूएपीए-1967 की धारा 43डी के तहत किसी आरोपी की हिरासत की अवधि 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने से इनकार करने वाला आदेश प्रकृति में अंतिम आदेश होगा, इस प्रकार यह एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 21 के तहत अपील योग्य है।

    संदर्भ के लिए, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम, 2008 की धारा 21 अपीलों से संबंधित है, और इसकी धारा 21 (1) में कहा गया है कि तथ्यों और कानून दोनों के आधार पर हाईकोर्ट में अपील एक स्पेशल कोर्ट के किसी भी निर्णय, सजा या आदेश के खिलाफ होगी, जो कि एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है। दूसरे शब्दों में, यह प्रावधान करता है कि कोई आदेश, जो एक अंतर्वर्ती आदेश की प्रकृति में है, उसके खिलााफ हाईकोर्ट में अपील नहीं की जा सकती है।

    केस शीर्षक: एनआईए बनाम अखिल गोगोई

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    योग्य पत्नी का नौकरी करने की इच्छा व्यक्त करना क्रूरता नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि काम करने की इच्छा व्यक्त करने वाली पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता नहीं माना जाता। जस्टिस अतुल चंदुरकर और जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के की डिवीजन बेंच फैमिली कोर्ट के पति को तलाक देने से इनकार करने के खिलाफ अपील पर इस आधार पर सुनवाई कर रही थी कि क्रूरता साबित नहीं होती।

    केस टाइटल- पुंडलिक येवतकर बनाम सौ. उज्ज्वला @ शुभांगी पुंडलिक येवतकर

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    सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत फोरम संपत्ति के स्वामित्व के दावों पर फैसला नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत मंच या प्राधिकरण पक्षकारों के नागरिक और संपत्ति अधिकारों से संबंधित मुद्दों के संबंध में निर्णय नहीं ले सकते और न ही ट्रायल कर सकते हैं। जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा कि संपत्ति में स्वामित्व के दावे के संबंध में प्रश्न अधिनियम के तहत कार्यवाही में विचार या निर्णय का विषय नहीं बन सकता।

    केस टाइटल: अनमोल और अन्य बनाम सुशीला

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    पीठासीन जज को सीआरपीसी धारा 432(2) के तहत सजा से माफी पर अपनी राय में पर्याप्त कारण बताना आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि सजा देने वाली अदालत के पीठासीन अधिकारी को माफी के आवेदन पर राय देते समय पर्याप्त कारण बताना चाहिए। जस्टिस संजय के अग्रवाल की पीठ ने कहा कि सजा देने वाली अदालत के पीठासीन अधिकारी की राय में अपर्याप्त कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 (2) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे। अदालत ने कहा कि धारा 432 (2) सीआरपीसी का उद्देश्य कार्यकारी को सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए एक सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाना है।

    केस टाइटल- चिंगदू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य

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    मध्यस्थता को लागू करने की परिसीमा अवधि सहमति से नहीं बढ़ाई जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए सहमति देने वाले मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) को लागू करने वाले नोटिस के जवाब में विरोधी पक्षकार द्वारा दिया गया बयान, मध्यस्थता को लागू करने के लिए परिसीमा अवधि का विस्तार नहीं करेगा, यदि दावेदार द्वारा किए गए दावे पूर्व दृष्टया कालबाधित हैं।

    जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की एकल पीठ ने कहा कि कानूनी उपाय लागू करने की परिसीमा अवधि सहमति से भी नहीं बढ़ाई जा सकती। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पक्षकार किसी भी समय दावा स्वीकार कर सकता। हालांकि, वह निर्धारित अवधि की परिसीमा से परे कानूनी उपाय की उपलब्धता को स्वीकार नहीं कर सकता।

    केस टाइटल: एक्स्ट्रामार्क्स एजुकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम राम स्कूल और अन्य।

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    एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित निर्णय/आदेश पर पुनर्विचार की अनुमति नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश/निर्णय पर पुनर्विचार की अनुमति नहीं है। जस्टिस आर रघुनंदन राव की खंडपीठ ने कहा कि पुनर्विचार की शक्ति कानून का विषय है, और किसी कानून में इस प्रकार के प्रावधान के अभाव में किसी आदेश/निर्णय पर पुनर्विचार उसके गुणदोष के आधार पर नहीं की जा सकता है, जब तक कि यह कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितता के लिए न हो।

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    भारतीय बैंकिंग संस्थाएं अपनी विदेशी ब्रांच की चिंताओं के लिए बकाया राशि की वसूली के लिए "लुक आउट सर्कुलर" का अनुरोध नहीं कर सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लुक आउट सर्कुलर जारी करने पर हाल ही में कहा कि भारतीय बैंकों द्वारा अपनी विदेशी सहयोगी कंपनियों के बकाया की वसूली के लिए लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) का अनुरोध नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस रामचंद्र राव और जस्टिस हरकेश मनुजा की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कि ये गतिविधियां भारत के आर्थिक हितों को प्रभावित करती हैं, कहा कि मौजूदा मामले में भारत के आर्थिक हितों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है।

    केस टाइटल: विकास अग्रवाल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य

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    एलोपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करना भेदभावपूर्ण, असंवैधानिक: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने राजस्थान सरकार की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एलोपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करना भेदभावपूर्ण, असंवैधानिक है। अधिसूचना ने केवल चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं के डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी और आयुर्वेदिक, चिकित्सा विभाग, यूनानी, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा डॉक्टरों को इसके अधिदेश से बाहर कर दिया था।

    केस टाइटल: डॉ कमलेश शर्मा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

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    एक राज्य का हाईकोर्ट दूसरे हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में दर्ज मामले में ट्रांजिट जमानत दे सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि एक राज्य का हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत शक्ति के प्रयोग में दूसरे हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में दर्ज मामले के संबंध में ट्रांजिट जमानत दे सकता है। कोर्ट ने कहा, "हाईकोर्ट की ओर से ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने में कोई बंधन नहीं है ताकि आवेदक उच्च न्यायालयों सहित न्यायालयों का दरवाजा खटखटा सकें जहां अपराध का आरोप लगाया गया है और मामला दर्ज किया गया है।"

    केस टाइटल - अजय अग्रवाल बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और 3 अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन 438 सी.आर.पी.सी. संख्या – 1669 ऑफ 2022]

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    कोर्ट के कर्मचारियों द्वारा केरल क्रिमिनल रूल्स ऑफ प्रैक्टिस का पालन न करना शिकायतकर्ता या किसी भी पक्ष को सूट न करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं: हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या अदालत के कर्मचारियों द्वारा केरल क्रिमिनल रूल्स ऑफ प्रैक्टिस का पालन न करना शिकायतकर्ता या किसी भी पक्ष को सूट न करने के लिए पर्याप्त आधार होगा, और इसका उत्तर नकारात्मक में दिया।

    जस्टिस ए. बधारुद्दीन ने कहा, "यह स्थापित कानून है कि अदालत द्वारा की गई गलती अदालत के समक्ष पीड़ित पक्ष को मुकदमा न करने के रास्ते में नहीं खड़ी होगी। कहावत 'एक्टस क्यूरी नेमिनेम ग्रेवाबिट' उक्त सिद्धांत का प्रतीक है। ऐसी स्थिति में, न्यायालय गलत को पूर्ववत करने के लिए बाध्य है।"

    केस टाइटल: सी.पी. पप्पचन बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    सरफेसी एक्ट लागू करने के बाद भी यदि अकाउंट में धोखाधड़ी की गई तो बैंक आपराधिक कार्रवाई शुरू कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) किसी कंपनी और उसके निदेशकों के खिलाफ बैंक द्वारा दर्ज शिकायत की जांच कर सकता है, जिसमें धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया है, यहां तक कि सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) के तहत वसूली प्रमाण पत्र कार्यवाही शुरू करने के बाद भी कर सकता है।

    अदालत ने कहा, "इस न्यायालय ने फिर से कई मामलों में स्पष्ट रूप से माना कि जब बैंक द्वारा ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र का उपयोग किया जाता है, जब तक कि ऐसी कार्रवाई को धोखाधड़ी घोषित नहीं किया जाता है, वे दो कार्यवाही नहीं कर सकते- पहली, लोन वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष और दूसरा आपराधिक कानून को गति में स्थापित करने की। यदि खाते को धोखाधड़ी घोषित किया जाता है और खाताधारकों को विलफुल डिफॉल्टर्स घोषित किया जाता है तो यह मास्टर सर्कुलर के अनुसार, कार्यवाही शुरू करने के लिए खुला हो जाएगा।"

    केस टाइटल: एसोसिएट लम्बर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन द्वारा राज्य

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    [सीनियर सिटीजन एक्ट] वकील मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के समक्ष पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, धारा 17 का कोई प्रतिबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 17 पक्षकारों को भरण-पोषण न्यायाधिकरण (Maintenance Tribunal) के समक्ष कानूनी विशेषज्ञ का प्रतिनिधित्व करने से नहीं रोकेगी।

    अधिनियम, 2007 की धारा 17 में विशेष रूप से कहा गया कि किसी न्यायाधिकरण या अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही में किसी भी पक्ष का प्रतिनिधित्व किसी कानूनी व्यवसायी द्वारा नहीं किया जाएगा, चाहे किसी भी कानून में कुछ भी शामिल हो। हाईकोर्ट के समक्ष 2019 में दायर याचिकाओं के बैच ने प्रावधान को चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि यह एडवोकेट एक्ट की धारा 30 का उल्लंघन है, जो वकीलों को अदालतों और न्यायाधिकरणों में प्रैक्टिस करने का अधिकार देता है।

    केस टाइटल: पवन रिले और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य और अन्य जुड़े मामले

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    धारा 311 सीआरपीसी | ट्रायल कोर्ट उस क्रम को विनियमित कर सकता है, जिसमें गवाहों की जांच की जानी है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने हाल ही में कहा कि जब सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अपनी शक्ति के अनुसार निचली अदालत किसी गवाह को तलब कर सकती है, तो वह उस क्रम को भी नियंत्रित कर सकती है, जिसमें उनकी जांच की जानी है।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने प्रमुख गवाहों के "समझौता की संस्कृति" के शिकार होने की प्रवृत्ति पर दुख व्यक्त करते हुए कहा - "गवाहों को समझौता की संस्कृति से बचाने के लिए ट्रायल कोर्ट को इस अवसर का उपयोग करना चाहिए। बिना किसी उचित कारण के चश्मदीदों को रोकना, उन्हें समझौते की संस्कृति का शिकार बनने के लिए मजबूर कर सकता है। जब ट्रायल कोर्ट सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किसी गवाह को बुलाने के लिए है कर सकता है, तो वह उस क्रम को भी नियंत्रित कर सकता है, जिसमें गवाहों की जांच की जानी है। इस प्रकार सीआरपीसी की धारा 225, 226 और 301 का प्रावधान सच्चाई का पता लगाने के ट्रायल कोर्ट प्रयास पर ग्रहण नहीं लगाएगी।"

    केस टाइटल: शंभू उर्फ शिंभु लोधी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    अपंजीकृत साझेदारी फर्म का विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है, साझेदारी अधिनियम की धारा 69 के तहत रोक लागू नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पक्षों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (मध्यस्थता अधिनियम) की धारा 11 के तहत दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 (साझेदारी अधिनियम) की धारा 69 के तहत कोई मुकदमा या अन्य कार्यवाही स्‍थापित करने के लिए लगी रोक मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत मध्यस्थ कार्यवाही पर लागू नहीं होगी।

    केस टाइटल: मोहम्मद वसीम और अन्य बनाम मेसर्स बंगाल रेफ्रिजरेशन एंड कंपनी और अन्य

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    न्यायालय के क्षेत्राधिकार को लागू करने से पहले मध्यस्थता अधिनियम की धारा 21 की आवश्यकता का धारा 11 के साथ अनुपालन किया जाना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त करने के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 ('मध्यस्थता अधिनियम') की धारा 11 के तहत आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 21 में प्रतिवादी को मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) लागू करने के लिए उचित नोटिस देने में अनुपालन नहीं किया गया, इसलिए आवेदन समय से पहले होने के कारण खारिज करने योग्य है।

    केस टाइटल: वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम सिकल माइनिंग लिमिटेड

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    यदि व्यक्ति विदेश में रहता है तो अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत दर्ज एफआईआर में याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर याचिका पर विचार करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि आरोपी विदेश में रहता है, अग्रिम जमानत से इनकार करने का कोई आधार नहीं है।

    याचिकाकर्ता मृतक पति की सास है, जिसने सितंबर 2020 में याचिकाकर्ता द्वारा कथित तौर पर उससे आर्थिक मांग किए जाने के बाद आत्महत्या कर ली थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह फरवरी 2020 में कनाडा चली गई थी। इस प्रकार, उसका मामला यह है कि उसके खिलाफ वर्तमान एफआईआर नहीं दर्ज की गई।

    केस टाइटल: कुलविंदर कौर बनाम पंजाब राज्य

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