पीठासीन जज को सीआरपीसी धारा 432(2) के तहत सजा से माफी पर अपनी राय में पर्याप्त कारण बताना आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Avanish Pathak

6 Oct 2022 6:15 AM GMT

  • पीठासीन जज को सीआरपीसी धारा 432(2) के तहत सजा से माफी पर अपनी राय में पर्याप्त कारण बताना आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि सजा देने वाली अदालत के पीठासीन अधिकारी को माफी के आवेदन पर राय देते समय पर्याप्त कारण बताना चाहिए। जस्टिस संजय के अग्रवाल की पीठ ने कहा कि सजा देने वाली अदालत के पीठासीन अधिकारी की राय में अपर्याप्त कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 (2) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।

    अदालत ने कहा कि धारा 432 (2) सीआरपीसी का उद्देश्य कार्यकारी को सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए एक सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाना है।

    उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी की धारा 432 (2) में कहा गया है कि जब भी उपयुक्त सरकार के समक्ष सजा के निलंबन या छूट के लिए आवेदन किया जाता है तो सरकार को उस न्यायालय के पीठासीन जज की जरूरत पड़ सकती है, जिसके समक्ष या जिसके द्वारा दोषसिद्ध किया गया था या पुष्टि की गई है, उसे इस बारे में अपनी राय बतानी पड़ सकती है कि क्या आवेदन स्वीकार किया जाना चाहिए या अस्वीकार किया जाना चाहिए, साथ ही इस तरह की राय के साथ कारणों और राय के बयान के साथ ट्रायल रिकॉर्ड की एक प्रमाणित प्रति या ऐसे रिकॉर्ड की एक प्रमाणित प्रति अग्रेषित करने करना पड़ सकती है।

    मामला

    इस मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 432 के तहत अपनी जेल की सजा में छूट के लिए एक अर्जी दाखिल की थी लेकिन उसे राज्य सरकार ने पीठासीन जज उसकी सिफारिश के आधार पर ही खारिज कर दिया है, जिन्होंने पर्याप्त कारण बताए बिना याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया था। इस आदेश को मौजूदा याचिका में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    न्यायालय ने सरकार के आदेश को ध्यान में रखते हुए कहा कि तीसरे अतिरिक्त सत्र जज, बस्तर ने अपनी सिफारिश में केवल यह कहा था कि उन्होंने मामले का अध्ययन किया था और कहा था कि चूंकि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया अपराध जघन्य प्रकृति का है, इसलिए उसका मामले में छूट पर विचार नहीं किया जा सकता है और सत्र जज की उक्त सिफारिश के आधार पर राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता के माफी के आवेदन को खारिज कर दिया।

    कोर्ट ने कहा कि यह अवलोकन सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम चंदर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 401 में दिए गए फैसले के आधार पर था, जिसमें यह माना गया था कि अपर्याप्त तर्क के साथ एक राय धारा 432 (2) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेगी।

    राम चंदर के मामले में (लक्ष्मण नस्कर के मामले पर भरोसा करते हुए) इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रासंगिक कारकों में यह आकलन करना शामिल है कि (i) क्या अपराध बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करता है; (ii) अपराध के दोहराए जाने की संभावना; (iii) अपराधी की भविष्य में अपराध करने की क्षमता; (iv) यदि अपराधी को कारागार में रखकर कोई सार्थक प्रयोजन सिद्ध हो रहा हो; और (v) दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।

    इसी मामले में, यह भी माना गया कि यदि पीठासीन जज की राय धारा 432 (2) की आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं करती है या यदि जज लक्ष्मण नस्कर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2000) 2 SCC 595 में निर्धारित छूट प्रदान करने के लिए प्रासंगिक कारकों पर विचार नहीं करता है, सरकार पीठासीन जज से मामले पर नए सिरे से विचार करने का अनुरोध कर सकती है

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा पारित आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता के आवेदन पर नए सिरे से निर्णय करने के लिए मामला राज्य सरकार को भेज दिया गया।

    राज्य सरकार को सत्र जज की राय लेने का निर्देश दिया गया है, जिन्हें याचिकाकर्ता के आवेदन पर अपनी राय मांग की तारीख से एक महीने के भीतर देनी होगी और उसके बाद राज्य सरकार याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला करेगी।

    केस टाइटल- चिंगदू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य

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