सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार अंतिम रिपोर्ट में किसी को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Brij Nandan

6 Oct 2022 8:49 AM GMT

  • हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 के तहत तैयार अंतिम रिपोर्ट में किसी को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि जब जांच के दौरान जांच अधिकारी को किसी के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है, तो उसे जांच रिपोर्ट में 'संदिग्ध' के रूप में दर्शाना कानून में स्वीकार्य नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस न्यायालय का सुविचारित विचार है कि क़ानून की योजना के संदर्भ में, जांच अधिकारी को उन व्यक्तियों के नाम, जो रिपोर्ट में मामले के तथ्यों से परिचित हैं, के साथ-साथ पक्षों के नामों का भी खुलासा करना है और जांच के आलोक में आरोपी के नामों का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख करना होगा। हालांकि, इस मामले से जुड़े किसी व्यक्ति को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित करने के क़ानून में कोई प्रावधान नहीं है, जिसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है।"

    अदालत ने इस प्रकार एक नीरा गुलाटी द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि 2016 के आपराधिक मामले के संबंध में दायर पूरक आरोप पत्र में जहां कहीं भी इसे एक संदिग्ध के रूप में दिखाया गया है, उसे रद्द करने/हटाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    पूरा मामला

    वर्ष 2016 में इंडियन टेक्नोमैक कंपनी लिमिटेड और उसके अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 406, 409, 411, 467, 468, 471, 201, 217, 218, 120B और धारा 13(I) d, 13(I) d (ii), 13 (आई) (ई) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की और 13 (2) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता ने एफआईआर दर्ज होने से पहले कुछ समय तक उक्त कंपनी के कंपनी सचिव के रूप में लगभग चौदह महीने की अवधि के लिए काम किया था। पुलिस ने साल 2020 में याचिकाकर्ता को संदिग्ध बताते हुए सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की थी।

    इसलिए, याचिकाकर्ता ने तत्काल दलील के साथ अदालत का रुख किया कि प्राथमिकी में उल्लिखित अपराधों में उसकी संलिप्तता को स्थापित करने के लिए उसके खिलाफ कोई सबूत सामने नहीं आया है, और तदनुसार, उसे एक आरोपी के रूप में उद्धृत नहीं किया गया है, और इस प्रकार, उसने पूरक आरोपपत्र में संदिग्ध के रूप में अपना नाम दर्ज करने की कार्रवाई को चुनौती दी।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 173 [जांच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट] को ध्यान में रखते हुए कहा कि इस प्रावधान की कहीं भी आवश्यकता नहीं है या यह अनिवार्य नहीं है कि रिपोर्ट में किसी भी 'संदिग्ध' का कोई संदर्भ होना चाहिए और जांच अधिकारी को आरोपी के नाम के साथ-साथ उन व्यक्तियों के नाम का भी उल्लेख करना होता है जो मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होते हैं। लेकिन कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि इस रिपोर्ट में किसी को 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित किया जाए।

    इसके अलावा, कोर्ट ने ज्ञानचंद वर्मा बनाम सुधाकर बी पुजारी और अन्य, 2011 (6) एमएच.एल.जे. 904 पर भरोसा जताया। इसमें इसी तरह के अवलोकन किए गए थे कि अंतिम रिपोर्ट में किसी को भी 'संदिग्ध' के रूप में संदर्भित नहीं किया जा सकता है, जिसे जांच अधिकारी द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 के संदर्भ में दायर किया जाना है।

    इसे देखते हुए वर्तमान याचिका की अनुमति दी गई और यह आदेश दिया गया कि 'संदिग्ध' शब्द, जैसा कि जांच रिपोर्ट के कॉलम 12 में उल्लेख किया गया है, जहां कहीं भी प्रकट होता है, उसे हटा दिया जाता है और जांच अधिकारी को उसी में आवश्यक सुधार करके कार्रवाई करने के बाद एक नई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने राज्य सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करने की सलाह दी कि जिस फॉर्म में जांच रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत की जाती है, वह सीआरपीसी की धारा 173 के प्रावधानों के अनुरूप है और 'संदिग्ध' शब्द का प्रयोग किसी ऐसे व्यक्ति के संदर्भ में नहीं किया जाना चाहिए जो जांच के दौरान आरोपी नहीं पाया गया हो।

    केस टाइटल - नीरज गुलाटी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य [Criminal MISC. Petition (Main)U/S 482 RPC No. 224 Of 2022]

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