अपंजीकृत साझेदारी फर्म का विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है, साझेदारी अधिनियम की धारा 69 के तहत रोक लागू नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Avanish Pathak

3 Oct 2022 7:31 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पक्षों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (मध्यस्थता अधिनियम) की धारा 11 के तहत दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 (साझेदारी अधिनियम) की धारा 69 के तहत कोई मुकदमा या अन्य कार्यवाही स्‍थापित करने के लिए लगी रोक मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत मध्यस्थ कार्यवाही पर लागू नहीं होगी।

    आवेदकों का मामला यह था कि, आवेदकों और प्रतिवादियों के बीच एक साझेदारी विलेख (Partnership Deed )निष्पादित किया गया था, जिसमें एक मध्यस्थता खंड शामिल था, जिसमें सभी विवादों और प्रश्नों को सर्वसम्मति से मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त व्यक्ति को संदर्भित करना अनिवार्य था। हालांकि अपंजीकृत थी।

    पक्षों के बीच एक विवाद पैदा हो गया, जिसके बाद, आवेदकों ने मध्यस्थता खंड को लागू करने और विवाद को हल करने के लिए एकमात्र मध्यस्थ के रूप में एक वकील के नाम का प्रस्ताव करते हुए प्रतिवादियों को एक नोटिस भेजा।

    जवाब में हालांकि, प्रतिवादियों ने मध्यस्थ की नियुक्ति से इनकार करते हुए आरोप लगाया कि आवेदकों द्वारा प्रारंभिक नोटिस में लगाए गए आरोप झूठे हैं। इन परिस्थितियों से व्यथित होकर आवेदकों ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन दाखिल किया।

    आवेदकों द्वारा दायर वर्तमान आवेदन में, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि चूंकि साझेदारी फर्म 'अपंजीकृत' थी, इसलिए साझेदारी अधिनियम की धारा 69 द्वारा लागू रोक और आवेदन के मद्देनजर विवाद को मध्यस्थ के पास नहीं भेजा जा सकता है।

    उनका मामला यह था कि चूंकि भागीदारी अधिनियम की धारा 69 की उप-धारा (3) के साथ पठित उप-धारा (1) और (2) अपंजीकृत फर्म के भागीदार के रूप में किसी भी व्यक्ति द्वारा मुकदमा दायर करने को प्रतिबंधित करता है, जिसमें 'अन्य कार्यवाही' के तहत दावा करने का माध्यम भी शामिल है। मामले में साझेदारी विलेख 'अपंजीकृत' होने के कारण आवेदक एक मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग नहीं कर सके।

    चीफ ज‌स्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने उमेश गोयल बनाम हिमाचल प्रदेश सहकारी समूह हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड, (2016) 11 SCC 313 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मैसर्स जयमुरुगन ग्रेनाइट एक्सपोर्ट्स बनाम मेसर्स एसक्यूएनवाई ग्रेनाइट्स, 2015 4 एलडब्ल्यू 385 में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

    दोनों फैसलो में माना गया कि मध्यस्थता की कार्यवाही भागीदारी अधिनियम की धारा 69 (3) की अभिव्यक्ति 'अन्य कार्यवाही' के तहत नहीं आएगी और धारा 69 के तहत लगाए गए प्रतिबंध का मध्यस्थता की कार्यवाही, साथ ही मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत एक मध्यस्थ अवॉर्ड पर कोई आवेदन नहीं हो सकता है।

    तदनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक ​​मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत कार्यवाही स्‍थापित करेन संबंध है, भागीदारी अधिनियम की धारा 69 के तहत साझेदारी फर्म के गैर-पंजीकरण के कारण कोई रोक नहीं लगेगी।

    केस टाइटल: मोहम्मद वसीम और अन्य बनाम मेसर्स बंगाल रेफ्रिजरेशन एंड कंपनी और अन्य

    साइटेशन: AP No 27 Of 2022

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