UAPA की धारा 43-डी (2)(बी) के तहत हिरासत बढ़ाने से इनकार करने का आदेश एक 'अंतिम आदेश' है और यह NIA Act की धारा 21 के तहत अपील योग्य है: गुवाहाटी हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Oct 2022 6:41 AM GMT

  • UAPA की धारा 43-डी (2)(बी) के तहत हिरासत बढ़ाने से इनकार करने का आदेश एक अंतिम आदेश है और यह NIA Act की धारा 21 के तहत अपील योग्य है: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गौहाटी हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में माना है कि यूएपीए-1967 की धारा 43डी के तहत किसी आरोपी की हिरासत की अवधि 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने से इनकार करने वाला आदेश प्रकृति में अंतिम आदेश होगा, इस प्रकार यह एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 21 के तहत अपील योग्य है।

    संदर्भ के लिए, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम, 2008 की धारा 21 अपीलों से संबंधित है, और इसकी धारा 21 (1) में कहा गया है कि तथ्यों और कानून दोनों के आधार पर हाईकोर्ट में अपील एक स्पेशल कोर्ट के किसी भी निर्णय, सजा या आदेश के खिलाफ होगी, जो कि एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है। दूसरे शब्दों में, यह प्रावधान करता है कि कोई आदेश, जो एक अंतर्वर्ती आदेश की प्रकृति में है, उसके खिलााफ हाईकोर्ट में अपील नहीं की जा सकती है।

    जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ, जस्टिस मनीष चौधरी और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पूर्ण पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि यूएपीए-1967 की धारा 43 डी के संदर्भ में एक आरोपी की हिरासत अवधि 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने से इनकार करने वाला आदेश एक 'अंतिम आदेश' है, क्योंकि जब ऐसा आदेश पारित किया जाता है, तो कार्यवाही समाप्त हो जाती है और एक पक्ष [आरोपी व्यक्तियों] के [हिरासत में नहीं रहने के] अधिकारों को अंततः निर्धारित किया जाता है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के एक आदेश में, दूसरे पक्ष [एनआईए] के आरोपी व्यक्तियों की हिरासत को 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने के अधिकार के साथ-साथ अन्य आवश्यकता को भी अंततः निर्धारित किया जाता है।

    हालांकि, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि आरोपी व्यक्तियों की हिरासत के विस्तार की अनुमति देने वाला आदेश एक 'अंतर्वर्ती आदेश' है, क्योंकि ऐसी स्थिति में सबसे पहले इस विषय पर कार्यवाही समाप्त नहीं हो जाती कि इस तरह की हिरासत की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं और दूसरी बात, पार्टियों में से एक यानी आरोपी व्यक्तियों के हिरासत में नहीं रहने का अधिकार (इतर कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के अलावा) भी अंत में निर्धारित नहीं किया जाता है, क्योंकि हिरासत अवधि के विस्तार की समाप्ति के बाद हिरासत अवधि की विस्तारित अवधि के संबंध में आगे विचार किया जाएगा कि इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है या नहीं।

    संक्षेप में मामला

    अखिल गोगोई के खिलाफ चांदमारी हिंसा मामले में आईपीसी की धारा 120(बी)/124-ए/153-ए/153-बी के साथ पठित गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 18/39 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। उन्हें 13 दिसंबर, 2019 को गिरफ्तार किया गया था। एनआईए ने 14 दिसंबर, 2019 को मामले को अपने हाथ में लिया। जांच के दौरान, स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर ने यूएपीए-1967 की धारा 43 डी (2) (बी) के तहत एक रिपोर्ट दर्ज की, जिसमें जांच जारी रखने के लिए गोगोई की हिरासत 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने की मांग की गयी थी।

    एनआईए, असम के स्पेशल जज इस बात से पूरी तरह यकीन नहीं था कि जांच के उस चरण में आरोपी ए 1 को आजादी मामले की प्रभावी जांच के हित के साथ असंगत होगी और इस प्रकार, स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर की अर्जी को 16 मार्च, 2020 को खारिज कर दिया गया था। आदेश को चुनौती देते हुए, एनआईए ने हाईकोर्ट का रुख किया, हालांकि, गोगोई के वकील ने इस आधार पर अपील की सुनवाई के लिए स्वीकार्यता (मेनटेनेबिलिटी) पर सवाल उठाया कि (हिरासत बढ़ाने से इनकार का) आक्षेपित आदेश एक अंतर्वर्ती आदेश की प्रकृति में है, और इस प्रकार, एनआईए अधिनियम-2008 की धारा 21(1) और 21(3) के प्रावधानों के मद्देनजर कोई अपील नहीं बनती है।

    गोगोई के वकील द्वारा उठाई गई आपत्ति को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सात अप्रैल, 2020 को मामले को एक बड़ी बेंच को विचार करने और यह तय करने के लिए संदर्भित किया कि क्या जांच की अवधि को 180 दिनों तक बढ़ाने से इनकार करना गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 43-डी (2) (बी) के परिप्रेक्ष्य में एक अंतर्वर्ती आदेश के रूप में माना जा सकता है।

    यह प्रश्न इस मामले के लिए आवश्यक था, क्योंकि यदि हिरासत में नजरबंदी के विस्तार से इनकार करने वाले आदेश को एक अंतर्वर्ती आदेश माना जाता है, तो इसके खिलाफ एनआईए अधिनियम की धारा 21(1) और धारा 21(3) के तहत कोई अपील नहीं की जा सकेगी, लेकिन, दूसरी ओर, अगर हिरासत में नजरबंदी के विस्तार से इनकार करने वाले आदेश को एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं माना जाता है, तो एक अपील बनाए रखने योग्य होगी।

    हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ की टिप्पणियां

    'वी.सी. शुक्ला बनाम. सीबीआई के माध्यम से सरकार एसयूपीपी एससीसी 92' मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि एक मुकदमे या ट्रायल के अलावा, एक कार्यवाही के मामले में, यदि कोई आदेश किसी खास पहलू या किसी खास मुद्दे या किसी खास मामले को कार्यवाही में तय करता है तो ऐसा आदेश अंतर्वर्ती आदेश होगा और यदि कोई आदेश किसी कार्यवाही में शामिल पूरे पहलू या मुद्दे या मामले को तय करता है तो यह एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं होगा, बल्कि ऐसी कार्यवाही के लिए अंतिम आदेश होगा।

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि गैर-बाधक खंड से शुरू होने वाली अपील के प्रावधान के संबंध में कोई आदेश 'अंतर्वर्ती आदेश' या 'अंतिम आदेश' होगा, इसका निर्णय निम्नलिखित मानकों पर निर्धारित किया जाएगा:

    (i) क्या विचाराधीन निर्णय या आदेश मुकदमे के पक्षकारों के अधिकारों को निर्धारित करता है और;

    (ii) क्या ऐसे निर्णय या आदेश से वह कार्यवाही समाप्त हुई जिसमें निर्णय या आदेश पारित किया गया था।

    अब, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हिरासत के विस्तार से इनकार करने के आदेश से, कार्यवाही स्वयं समाप्त हो गई। इस तरह के इनकार के साथ, मामले में जांच के संबंध में आरोपी के आगे और हिरासत में नहीं रहने के मौलिक और कानूनी अधिकार अंततः निर्धारित किए गए थे।

    कोर्ट ने माना,

    "इस तरह, कार्यवाही की पार्टियों में से एक यानी आरोपी व्यक्ति के अधिकारों का अंतिम निर्धारण होता है। साथ ही एनआईए के अपीलकर्ता होने के नाते जांच की आवश्यकता के लिए आरोपी व्यक्तियों की हिरासत 90 दिनों से अधिक 180 दिनों तक बढ़ाने के मुद्दे का भी निर्धारण किया गया था।.." कोर्ट ने माना कि हिरासत अवधि बढ़ाने से इनकार करने का आदेश एक 'अंतिम आदेश' था, क्योंकि जिस कार्यवाही में ऐसा आदेश पारित किया गया था, वह समाप्त हो गया था और एक पक्ष के अधिकारों को अंतिम रूप से निर्धारित किया गया था, साथ ही दूसरे पक्ष की आवश्यकता को भी अंतिम रूप से निर्धारित किया गया था।''

    तदनुसार, एनआईए अधिनियम-2008 की धारा 21(1) के तहत क्रिमिनल अपीलों को सुनवाई योग्य माना गया और कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपीलों को अब योग्यता के आधार पर उचित बेंच के समक्ष रखा जाए।

    केस शीर्षक: एनआईए बनाम अखिल गोगोई

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