मध्यस्थता को लागू करने की परिसीमा अवधि सहमति से नहीं बढ़ाई जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
6 Oct 2022 11:16 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए सहमति देने वाले मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) को लागू करने वाले नोटिस के जवाब में विरोधी पक्षकार द्वारा दिया गया बयान, मध्यस्थता को लागू करने के लिए परिसीमा अवधि का विस्तार नहीं करेगा, यदि दावेदार द्वारा किए गए दावे पूर्व दृष्टया कालबाधित हैं।
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की एकल पीठ ने कहा कि कानूनी उपाय लागू करने की परिसीमा अवधि सहमति से भी नहीं बढ़ाई जा सकती। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पक्षकार किसी भी समय दावा स्वीकार कर सकता। हालांकि, वह निर्धारित अवधि की परिसीमा से परे कानूनी उपाय की उपलब्धता को स्वीकार नहीं कर सकता।
श्री राम स्कूल के मालिक उत्तरदाताओं ने याचिकाकर्ता- एक्स्ट्रामार्क्स एजुकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ स्कूल में स्मार्ट लर्निंग क्लासेस स्थापित करने के उद्देश्य से कुछ सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर उपकरणों की बिक्री और स्थापना के लिए समझौता किया। प्रतिवादी द्वारा कथित रूप से समझौते के तहत याचिकाकर्ता के मौद्रिक बकाया को चुकाने में विफल रहने के बाद याचिकाकर्ता ने पक्षकारों के बीच समझौता समाप्त कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता खंड को लागू किया और दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 11 के तहत याचिका दायर की, जिसमें पक्षकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की गई।
प्रतिवादी- श्री राम स्कूल ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत याचिका को सीमा से रोक दिया गया, क्योंकि यह कानून द्वारा निर्धारित तीन साल की परिसीमा अवधि से काफी आगे दायर की गई।
याचिकाकर्ता- एक्स्ट्रामार्क्स एजुकेशन ने अपनी याचिका के समर्थन में मध्यस्थता खंड को लागू करने वाले नोटिस के जवाब में उत्तरदाताओं द्वारा दिए गए बयान पर भरोसा किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादियों ने उक्त नोटिस के जवाब में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए अपनी सहमति दी, जैसा कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तावित किया गया। अगर यह उनके इलाके के पास स्थित है। इसलिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाना चाहिए।
इस पर प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि मध्यस्थता खंड को लागू करने वाले नोटिस के जवाब में प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता द्वारा किए गए दावों से इनकार किया और विवादित किया। उत्तरदाताओं ने कहा कि हालांकि उक्त उत्तर में उन्होंने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए अपनी सहमति दी थी यदि यह उनके इलाके के पास स्थित है। हालांकि, उक्त बयान याचिकाकर्ता को उपचार अपने कथित बकाया की वसूली के लिए उपलब्ध परिसीमा की अवधि का विस्तार नहीं करेगा।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी समझौते के तहत इसके कारण पैसे का भुगतान करने में विफल रहे। जनवरी, 2017 में जारी नोटिस के माध्यम से पक्षकारों के बीच समझौते को समाप्त कर दिया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जुलाई, 2021 में मध्यस्थता खंड को लागू करने वाला नोटिस जारी किया, जो स्पष्ट रूप से 3 साल की परिसीमा अवधि से परे है, जैसा कि परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 137 के तहत निर्धारित किया गया।
याचिकाकर्ता द्वारा की गई दलीलों का खंडन करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि किसी पक्षकार द्वारा किए गए दावे पूर्व-अवरुद्ध हैं तो कानूनी उपाय लागू करने की परिसीमा को सहमति से भी नहीं बढ़ाया जा सकता।
अदालत ने कहा,
"वैचारिक रूप से सीमा कानूनी उपाय को रोकती है और कानूनी अधिकार नहीं है, कानूनी नीति यह सुनिश्चित करने के लिए है कि कानूनी उपचार अंतहीन रूप से उपलब्ध नहीं हैं बल्कि केवल निश्चित समय तक ही उपलब्ध हैं। हालांकि, यह जोड़ने की जरूरत नहीं कि यदि प्रतिवादी याचिकाकर्ता का दावा स्वीकार कर रहे हैं और भुगतान करने के लिए तैयार हैं तो ऐसा भुगतान अवैध नहीं होगा। ऐसा करने में कोई कानूनी बाधा नहीं हो सकती। पक्षकार किसी भी समय दावा स्वीकार कर सकता है; लेकिन परिसीमा की निर्धारित अवधि से परे कानूनी उपाय की उपलब्धता को स्वीकार नहीं कर सकता।"
न्यायालय ने बीएसएनएल और अन्य बनाम नॉर्टेल नेटवर्क्स इंडिया प्रा. लिमिटेड (2021) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि न्यायालय किसी विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने से इनकार कर सकता है, जहां संदेह का कोई निशान भी नहीं है कि दावा पूर्व-अवरुद्ध है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जहां दावेदार द्वारा जारी किए गए अंतिम बिल को विरोधी पक्षकार द्वारा खारिज कर दिया जाता है, मध्यस्थता का नोटिस जारी करने की परिसीमा अवधि केवल पत्रों के आदान-प्रदान या निपटान के लिए केवल चर्चा से नहीं बढ़ाई जाएगी।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादियों के खिलाफ याचिकाकर्ता का दावा पूर्व-अवरुद्ध है और इसलिए इसमें शामिल विवाद 'डेडवुड' है। इसलिए विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित नहीं किया जा सकता।
इस तरह कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: एक्स्ट्रामार्क्स एजुकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम राम स्कूल और अन्य।
दिनांक: 23.09.2022 (दिल्ली हाईकोर्ट)
याचिकाकर्ता के लिए वकील: जीशान हाशमी, एडवोकेट ए चौधरी, एडवोकेट, अंकित पाराशर, एडवोकेट।
प्रतिवादियों के लिए वकील: सिद्धार्थ बत्रा, एडवोकेट चिन्मय दुबे, एडवोकेट, शिवानी चावला, एडवोकेट और अर्चना यादव, एडवोकेट।
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